First day at School : जब बच्चा पहली बार स्कूल जाये तो अपनाये ये आसान से टिप्स और स्कूल जाना बनायें आसान

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First day at School: When the child goes to school for the first time, follow these easy tips and make going to school easy
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calendar01 Apr 2023 09:20 PM
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  First day at School : बच्चों की पहली टीचर उसकी मां होती है और उसकी पहली शिक्षा घर से ही शुरु होती है । बच्चे को पहला शब्द बोलना उसकी मां सिखाती है । जब बच्चा घर की सुरक्षित चारदीवारी के बाहर स्कूल की ओर अपना पहला क़दम बढ़ाता है तो सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा स्कूल से डरे या घबराए नहीं। पेरेन्टस चाहते है की बच्चे को स्कूल में कोई दिक्कत न आए, वह क्लास में किसी वजह से दूसरे बच्चों से पीछे न रहे, यह प्रेशर उनको ओवर कॉन्शस रखता है। इसके चलते वे बच्चे को लेकर कभी- कभार ओवर प्रोटेक्टिव भी हो जाते हैं। अगर आपका बच्चा पहली बार स्कूल जा रहा है तो आपको कुछ जरुरी बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए ।आइए जानते हैं वह कौन सी आदतें हैं जो बच्चों को सिखाना हर पैरेंट्स की जिम्मेदारी है।

First day at School :

  बच्चों को पर्सनल हाईजीन की आदत डालें : बच्चों को न सिर्फ बाहर या स्कूल के लिए बल्कि उन्हें खुद के लिए भी हाइजीन मेंटेन करना सिखाएं ।जैसे-जैसे बच्चे समझदार होते जाते हैं वैसे-वैसे उनमें खुद की साफ-सफाई की आदत डेवलप करवाना आपका पहला कर्तव्य है।अपने बच्चे को टॉयलेट और वॉशरूम के बाद खुद को क्लीन करना सिखाएं. इसके अलावा उन्हें साफ सफाई ना रखने से होने वाले इन्फेक्शन के बारे में भी बताएं। बाथरूम के बाद उन्हें हैंड-वाश करना जरूर सिखाएं। टिफ़िन खुद से खाना सिखाये: माता पिता अक्सर लाड प्यार से अक्सर अपने बच्चों को अपने हाथों से खाना खिलाते है । बच्चो को अपना खाना अपने आप खाने के लिये बोले । उन्हे ये भी बताएं की बिना खाना गिराये कैसे टिफ़िन फिनिश करे ।और खाने के पहले और बाद मे हैण्ड वॉश करना सिखाएं । चीजों को शेयर करना सिखायें : आप अपने बच्चे को कभी भी खेल-खेल में किसी को पलट कर मारने और डांटने कि शिक्षा न दें। उन्हें सिखाएं कि सबके साथ मिल-जुल कर प्यार से रहें। अपनी चीजों और समान को एक दूसरे को देना और शेयर करना सिखायें । थैंक्यू और सॉरी बोलना सिखाएं अपने बच्चों को सिखाएं कि बड़ों का आदर करें. उनमें थैंक्यू बोलने की आदत डालें। उन्हें सिखाएं कि जब आपको कोई चीज़ देता है या आप किसी से कुछ लेते हैं तो थैंक्यू जरूर कहें।अपने बच्चों को बड़ों और छोटो की रिस्पेक्ट करना सिखाएं । इससे बच्चे आसानी से घुल-मिल जाते है । साथ ही अपनी गलती पर सॉरी बोलना भी सिखाएं। घर पर पहले से सिखाएं कुछ चीजें घर पर पहले से बच्चों को बॉडी पार्ट्स, शेप, कलर और जानवरों के नाम, बर्ड्स नेम सिखाएं। जिससे बच्चे स्कूल में एकदम ब्लैंक ना हों। बच्चों को मानसिक रूप से स्कूल के लिए तैयार करें। उनकी दिनचर्या से हफ़्तेभर पहले से कुछ ऐसा शामिल करें, जिससे वो स्कूल जाने का इंतज़ार करने लगें। बच्चों को अपना फोन नम्बर याद करा दे। इन छोटी-छोटी टिप्स को फोलो करके आप अपने बच्चे को स्कूल जाने के लिये तैयार कर सकते हैं । बच्चों को बताएं की जीवन के हर पहलू को विकसित करने की पाठशाला है।

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Article : अपनों से जोड़ नहीं, तोड़ रहा है स्मार्टफोन

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calendar01 Dec 2025 05:53 AM
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संजीव रघुवंशी (वरिष्ठ पत्रकार) लोग किस कदर टचस्क्रीन (Touch Screen) की लत के शिकार हो रहे हैं, इस बाबत डिजिटल रिसर्च संस्था ‘एप एनी’ की रिपोर्ट डराने वाली है। संस्था ने अपनी 2021 की रिपोर्ट में दावा किया था कि विश्व भर में लोगों ने एक साल में 3.8 लाख करोड़ घंटे मोबाइल पर बिताए हैं। वहीं, भारतीयों ने 69.9 करोड़ घंटे मोबाइल पर खर्च किये। भारतीय औसतन 4.8 घंटे रोजाना मोबाइल की स्क्रीन से चिपके रहे। यह उनके जागने के समय के एक तिहाई के बराबर है। ‘एप एनी’ के सीईओ थियोडोर क्रांत्ज का कहना है कि साल 2021 में गूगल प्ले स्टोर और एप स्टोर से दुनिया भर में 26 अरब 70 करोड़ एप डाउनलोड किए गए। भारत एप डाउनलोड करने के मामले में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।

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राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद के लोनी स्थित परिवार परामर्श केंद्र पर पिछले दिनों एक अजीबोगरीब मामला सामने आया। यहां काउंसलर को एक महिला ने दो-टूक कह दिया कि वह पति को छोड़ सकती है, लेकिन स्मार्टफोन (Smart Phone) नहीं। पति का आरोप था कि वह लगातार घंटों तक वीडियो कॉल करती रहती है, जिससे घर-परिवार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। महिला को काउंसलर, मायके वालों समेत दूसरे रिश्तेदारों ने भी समझाया, लेकिन उसने पति के बजाय स्मार्टफोन को चुना। बहरहाल, इस मामले की परिणति क्या होगी, इस बारे में तो कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन स्मार्टफोन Smart Phone के प्रति दीवानगी की पराकाष्ठा का यह मामला कई सवाल खड़े करता है। क्या अपनों से जुड़े रहने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला मोबाइल ही हमें अपनों से दूर ले जा रहा है? क्या हम एक ‘कम्युनिकेशन इंस्ट्रूमेंट’ के इतने गुलाम हो गए हैं कि वह हमें अपने इशारों पर नचाने लगा है? कहीं हमने स्मार्टफोन को ‘दोस्त’ बना कर बीमार शरीर के साथ एकाकी जीवन का रास्ता तो नहीं चुन लिया है?

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दुनिया में स्मार्टफोन की दस्तक 23 नवंबर, 1992 को ‘आईबीएम साइमन’ नाम के तीन इंच की टचस्क्रीन वाले मोबाइल फोन के साथ मानी जाती है। इसके करीब पौने दो साल बाद 16 अगस्त, 1994 को यह बाजार में आया। जबकि, भारत में टचस्क्रीन फोन एचटीसी कंपनी ने 22 अक्टूबर, 2008 को ‘एचटीसी ड्रीम’ नाम से लांच किया। दुनिया में स्मार्टफोन का चलन बढऩे के साथ ही इसके फायदे-नुकसान का गुणा-भाग भी शुरू हो गया। कोरोना काल में तमाम व्यावसायिक और शैक्षणिक गतिविधियों का डिजिटलीकरण हुआ तो स्मार्टफोन ने अधिकतर घरों में पहुंच बना ली। कोरोना पर लगाम लगने के साथ ही जनजीवन तो काफी हद तक अपने पूर्ववर्ती ढर्रे पर आ गया है, लेकिन जिंदगी स्मार्टफोन की ‘कैद’ से निकलने को तैयार नहीं। मोबाइल ने लोगों से ऐसी ‘दोस्ती’ गांठी कि यह जीवन-मरण का बंधन बनकर रह गया है। चिंता इस बात को लेकर है कि यह सब रिश्तों और मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य की कीमत पर हो रहा है। स्मार्टफोन की लत हमें किस रास्ते पर ले जा रही है, इसकी एक बानगी पिछले महीने हैदराबाद में सामने आई है। यहां एक महिला की देखने की क्षमता लगभग चली गई। नेत्र रोग विशेषज्ञ की जांच में सब कुछ ठीक होने के बावजूद महिला को देखने में बड़ी दिक्कत हो रही थी। आखिरकार, न्यूरोलॉजिस्ट ने जांच की तो पाया कि अंधेरे में घंटों मोबाइल की स्क्रीन देखने से समस्या पैदा हुई है। ‘डिजिटल विजन सिंड्रोम’ के ही एक रूप ‘स्मार्टफोन विजन सिंड्रोम’ से पीडि़त 30 वर्षीय महिला मंजू की आंखों को न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर कुमार ने बगैर किसी दवाई और टेस्ट के एक महीने में ही ठीक कर दिया। इसके लिए सिर्फ मोबाइल स्क्रीन से परहेज किया गया। यह हालत सिर्फ मंजू की नहीं है अधिकतर घरों में ऐसे किस्से मौजूद हैं। लगातार घंटों तक मोबाइल स्क्रीन पर टकटकी लगाकर देखने से सिर्फ आंखों से जुड़ी दिक्कत ही पैदा नहीं हो रही है। विशेषज्ञ बताते हैं कि गर्दन दर्द, कंधे में दर्द, सिर दर्द, अंगुली, कलाई व कोहनी में दर्द की सबसे बड़ी वजह मोबाइल का बेतहाशा इस्तेमाल ही है। स्मार्टफोन के दिए दर्द की दास्तान यहां ही खत्म नहीं हो जाती। देर रात तक मोबाइल से चिपके रहने से नींद पूरी नहीं हो पाती जो अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, भ्रमित रहना, तनाव और अंतत: अवसाद का कारण बनता है।

पिछले साल उत्तर प्रदेश के मेरठ में मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने जनवरी से जून तक 26553 मरीजों का विश्लेषण करके यह निष्कर्ष निकाला कि स्मार्टफोन पर ज्यादा समय बिताने से लोग तनाव, चिड़चिड़ापन और अवसाद का शिकार हो रहे हैं। खास बात यह है कि इनमें से करीब 50 फीसदी मरीज 25 से 45 साल के थे। जिला अस्पताल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. कमलेंद्र किशोर का कहना था कि मोबाइल की लत से युवा देर रात तक जागते हैं और फिर दिन में सोते हैं। यह विकृत जीवनशैली उन्हें अवसाद की ओर धकेल रही है। मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. तरुण पाल ने तो कई ऐसे लोगों की काउंसलिंग करने की बात स्वीकारी जो स्मार्टफोन से ‘दोस्ती’ कर एकाकीपन का शिकार हो गए और आत्महत्या करने तक की सोचने लगे। लोग किस कदर टचस्क्रीन की लत के शिकार हो रहे हैं, इस बाबत डिजिटल रिसर्च संस्था ‘एप एनी’ की रिपोर्ट डराने वाली है। संस्था ने अपनी 2021 की रिपोर्ट में दावा किया था कि विश्व भर में लोगों ने एक साल में 3.8 लाख करोड़ घंटे मोबाइल पर बिताए हैं। वहीं, भारतीयों ने 69.9 करोड़ घंटे मोबाइल पर खर्च किये। भारतीय औसतन 4.8 घंटे रोजाना मोबाइल की स्क्रीन से चिपके रहे। यह उनके जागने के समय के एक तिहाई के बराबर है। ‘एप एनी’ के सीईओ थियोडोर क्रांत्ज का कहना है कि साल 2021 में गूगल प्ले स्टोर और एप स्टोर से दुनिया भर में 26 अरब 70 करोड़ एप डाउनलोड किए गए। भारत एप डाउनलोड करने के मामले में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।

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यहां, मोबाइल टावर से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से स्वास्थ्य पर पडऩे वाले नकारात्मक प्रभाव का जिक्र करना भी जरूरी है। हालांकि, सूचना प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञों का दावा है कि शरीर पर इनका गंभीर प्रभाव नहीं पड़ता। ‘गंभीर’ शब्द की आड़ लेकर भले ही मोबाइल टावर का बचाव किया जाता रहा हो, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक दशक पहले ही इसके नुकसान को लेकर चेता दिया था। अपनी 2012 की रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि अगर कोई व्यक्ति 8 से 10 साल तक रोजाना 30 घंटे टावर से निकलने वाली माइक्रोवेव तरंगों के संपर्क में रहता है, तो उसमें ब्रेन ट्यूमर का खतरा 400 गुना तक बढ़ जाता है। यही तरंगे मोबाइल का इस्तेमाल करने वालों तक भी पहुंचती हैं, जो अधिक इस्तेमाल करने पर अधिक नुकसान पहुंचा सकती हैं। अब 5G और 6G की होड़ ने इस खतरे को भी बढ़ा दिया है। इंटरनेट की ज्यादा स्पीड के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की क्षमता बढ़ाने से ये स्वास्थ्य के लिए पहले से कहीं अधिक घातक हो रही हैं।

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हाल ही में नोकिया ने ‘ब्रॉडबैंड इंडिया ट्रैफिक इंडेक्स’ को लेकर अपनी सालाना रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत में इंटरनेट डाटा की खपत पांच साल में 3.2 गुना तक बढ़ गई है। भारतीय हर महीने औसतन 19.5 जीबी डाटा खर्च कर रहे हैं। साथ ही, संभावना जताई है कि डाटा उपभोग का मासिक औसत 2027 तक 46 जीबी तक पहुंच सकता है। भारत में अगले साल तक करीब 15 करोड़ लोग 5G तकनीक से लैस मोबाइल का उपयोग करने लगेंगे, जो डाटा खपत बढऩे की प्रमुख वजह बनेगी। सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के लिहाज से ये आंकड़े भले ही उत्साह बढ़ाने वाले हो, लेकिन स्मार्टफोन के अंधाधुंध इस्तेमाल से समाज और शरीर के बीमार होने की कड़वी हकीकत को अनदेखा नहीं किया जा सकता। बेशक, कोरोना काल में स्मार्टफोन से नजदीकी हमारी मजबूरी बन गई थी, लेकिन इस मजबूरी को अपनी कमजोरी बनने दिया तो अपनों से जुड़े रहने का यह जरिया हमें सिर्फ अपनों से ही नहीं, बल्कि खुद से भी दूर कर देगा।

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Skincare : ट्रैवेलिंग से पहले कौन से ब्यूटी ट्रीटमेंट हैं जरुरी?

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These beauty treatments are quite effective.
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calendar02 Dec 2025 02:13 AM
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ट्रैवेलिंग लाइफ के सबसे ज्यादा एक्साइटिंग कामों में से एक है क्योंकि इस दौरान लोग नये वातावरण में जाते हैं, नये लोगों से मिलते हैं, अलग-अलग तरह के फ़ूड ट्राई करते हैं और तमाम यादें समेटने के लिए ढेर सारी पिक्चर्स भी लेते हैं लेकिन इन सबके दौरान क्या आप अपनी त्वचा की सुरक्षा ( Skincare) को ध्यान में रखते हैं?

Skincare

कोई भी ऐसा नहीं चाहेगा कि ट्रैवेलिंग के दौरान उसे किसी भी तरह की स्किन की समस्या से गुजरना पड़े। इसके लिए आप ट्रैवेलिंग से पहले ही कुछ ब्यूटी ट्रीटमेंट लेकर अपनी स्किन की ख़ूबसूरती को लॉक कर सकते हैं। आइये जानते हैं त्वचा को ट्रैवेल रेडी बनाने के क्या तरीके मार्केट में मौजूद हैं?...

LED लाइट थेरेपी :

Skincare विशेषज्ञ की माने तो यह ड्राई स्किन और एक्जिमा जैसी परेशानियों से बचाने का एक कामगार तरीका है। 20 मिनट तक चलने वाला यह ब्यूटी ट्रीटमेंट आपकी स्किन पर दो - तीन महीने तक टिका रह सकता है।

अलग - अलग तरह के फेशियल

वैसे तो Skincare के लिए कई सालों से फेशियल का सहारा लिया जा रहा है लेकिन आज मार्केट में फेशियल की नयी लिस्ट आगयी है जो स्किन से जुड़ी तमाम तरह की समस्याओं को जड़ से खत्म करती है। ऑक्सीजन फेशियल और हाइड्रा फेशियल आदि स्किन को ट्रैवेल रेडी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

ग्लूटाथिऑन

बहुत सारे लोगों को अपनी स्किन के कलर से जुड़ी हुई समस्या होती है। जैसे कि चेहरे पर अलग अलग जगहों पर त्वचा की रंगत अलग अलग होना। ऐसे में यह Skincare ट्रीटमेंट त्वचा में मौजूद मिलेनिन को घटाकर ग्लो को बढ़ाता है। इससे स्किन लम्बे समय तक चमकदार रहती है।

बॉडी पॉलिशिंग

स्किन पर डेड स्किन सेल्स की मौजूदगी अक्सर उसे बेजान बना देती है और ऐसे में ट्रैवेल करना स्किन को और भी ज्यादा डैमेज कर सकता है। बेहतर होगा यदि आप ट्रैवेल से पहले अपनी पूरी बॉडी को पॉलिश करा के उसमें एक नयी जान फूँक दें। इसका असर लगभग 12 हफ्तों तक रहता है। बोटॉक्स और फिलर चेहरे पर मौजूद बारीक रेखाएं और झाइयाँ अक्सर उसकी सुंदरता को कम कर देती हैं। ट्रैवेल के दौरान हवा, धूल - मिट्टी और परिवेश के बदलने के कारण ये और अधिक गहरी होती जाती हैं। इससे बचने के लिए आप मिनटों में होने वाले बोटोक्स और फिलर जैसे Skincare ट्रीटमेंट का उपयोग कर सकते हैं। इसका असर लगभग एक साल तक चेहरे पर बना रहता है।

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