Tuesday, 1 April 2025

Chetna Manch Kavita – धार निर्झर की तिरोहित हो नदिया में

सुरेश हजेला धार निर्झर की तिरोहित हो नदिया में, पावन जल बन प्यास मिटाए सदा ही, मरु धरा और हर…

Chetna Manch Kavita – धार निर्झर की तिरोहित हो नदिया में

सुरेश हजेला

धार निर्झर की तिरोहित हो नदिया में,
पावन जल बन प्यास मिटाए सदा ही,
मरु धरा और हर तृषित भूत की।
बढ़ आगे जब संबल थामे वह,
महासागर का ज्वार बन टकराए सदा ही।।

धरती के तट से- प्रस्तर पर्वत के चूर्ण कर,
अनन्त रजकण तट पर बिखरा दे,
उन्मत्त हुआ है जाने ज्वार क्यों,
शांत धरा तो शरण दे सबको,
नभ, चंद्र, सूर्य कोई भी कुछ,
कि क्यूँ उन्मादित हैं वो, पागल मतंग सी।।

जो ख़ुद ही उद्गम से जा टकराए,
झेले कैसे दैव भी उसको,
क्रोधित हो रवि इतना ताप बढ़ाए कि,,
मेघ बन जल उड़ने लगे पवन संग,
भले ही पर्वत सागर को फिर भर दे,
हरित धरा हो निर्मल मुस्कान बिखेरे,,
आह्लादित हो सृष्टि समूची ही।

ख़ुद मुस्काए भर आँचल में अपने,
प्रफुल्लित खिले सुमन सब रगं रंगीले,
कितना ही समझाए शांत शीतल पूनम भी,
पर मान मूर्ख का सदा ही आड़े आए,
उत्तेजित हो ज्वार उद्यत है अब चुंम्बन,
गगन की रजनी का लेने को।
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