Hindi Kavita –
आँधी में उड़ गया था छप्पर वो गाँव का,
भूला नहीं हूँ आज तक मंजर वो गाँव का।
आती थी मीठी नींद सरेशाम सो जाता,
कितना नरम पुआल का बिस्तर वो गाँव का।
मिलते ही नमस्कार, हाल चाल पूँछना,
छोटे बड़े सभी का, आदर वो गाँव का।
कोल्हू से पेरते रस, चढ़ते कड़ाह गुड़ के,
कितने लजीज स्वाद का, शक़्कर वो गाँव का।
दादी की कहानियों में, परियों की सगाई,
सुनते थे रातभर हम, अकसर वो गाँव का।
भूलूँगा भला कैसे, प्राइमरी के गुरू को,
जिसने हमें पढ़ाया, मास्टर वो गाँव का।
खेतों के बीचोबीच में, छोटी सी तलइया,
हम थे जहाँ नहाते, समंदर वो गाँव का।
कच्ची डहर पगडंडियां, मूजों के वो झुरमुट,
गर्दा उड़ाते घूमते, दुपहर वो गाँव का।
चूल्हे की सोंधी रोटी, अरहर की देसी दाल,
मट्ठा, दही, घी, दूध का, लंगर वो गाँव का।
आँगन में खड़े पेड़ पर, चिड़ियों के बसेरे,
चीं चीं से गूँजता था, पूरा घर वो गाँव का।
लालटेन, ढ़िबरियों की रोशनी से जगमगाता
अम्मा की सँझा बाती, पूजा घर वो गाँव का।।
डॉ. सुनील सिंह गुर्जर
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