Friday, 25 April 2025

महानतम नेता तथा सच्चे राष्ट्रभक्त थे डॉ. भीमराव अंबेडकर

Dr. Ambedkar Jayanti : डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती भारत के लिए गौरव का दिन है। हर साल 14 अप्रैल…

महानतम नेता तथा सच्चे राष्ट्रभक्त थे डॉ. भीमराव अंबेडकर

Dr. Ambedkar Jayanti : डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती भारत के लिए गौरव का दिन है। हर साल 14 अप्रैल को डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाई जाती है। डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती के कारण 14 अप्रैल का दिन हर भारतीय के लिए गौरव का दिन बन गया है। 14 अप्रैल 2024 को पूरा भारत डॉ. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती मना रहा है। डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर डॉ. भीमराव अंबेडकर को ठीक-ठीक जानना भी जरूरी है। डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती पर पूरे गर्व के साथ कहा जा सकता है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर एक महानतम नेता तथा सच्चे राष्ट्रभक्त थे।

डॉ. भीमराव अंबेडकर से जुड़े हुए हैं तीन बड़े प्रेरक प्रसंग

भारत रत्न डा. भीमराव अंबेडकर की जयंती पर पूरा विश्व उन्हें नमन कर रहा है। डा. अंबेडकर ने अपने जीवनकाल में न केवल दलित, बल्कि समाज के अन्य शोषित वर्गों के उत्थान के लिए भी कार्य किया है। डा. भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर हम आपको डा. अंबेडकर के जीवन से जुड़े तीन प्रेरक प्रसंगों की जानकारी देंगे। यह प्रेरक प्रसंग ही उन्हें महान बनाते हैं। यह आजादी के पहले की घटना है। वर्ष-1943 में बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर को वाइसराय काउंसिल में शामिल किया गया और उन्हें श्रम मंत्री बना दिया गया। इसके साथ ही लोक निर्माण विभाग (PWD) भी उन्हीं के पास था। इस विभाग का बजट उस समय भी करोड़ों में था और ठेकेदारों में इसका ठेका लेने की होड़लगी रहती थीं। इसी लालच में दिल्ली के एक बड़े ठेकेदार ने अपने पुत्र को बाबासाहेब के पुत्र यशवंत राव के पास भेजा और बाबासाहेब के माध्यम से ठेका दिलवाने पर अपना पार्टनर बनाने और 25 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक का कमीशन देने का प्रस्ताव दिया। यशवंत राव उसके झांसे में आ गए और अपने पिता को यह सन्देश देने पहुँच गए। जैसे ही बाबासाहेब ने ये बात सुनी वे आग-बबूला हो गए। उन्होंने कहा कि मैं यहाँ पर केवल समाज के उद्धार का ध्येय को लेकर आया हूँ। अपनी संतान को पालने नहीं आया हूँ। ऐसे लोभ-लालच मुझे मेरे ध्येय से डिगा नहीं सकते और उसी रात यशवंत को भूखे पेट मुम्बई वापस भेज दिया गया।

दुनिया में सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था डॉ. भीमराव अंबेडकर के पास

डॉ. आंबेडकर ने अपने जीवन में बहुत से कष्ट सहे लेकिन कभी भी अपनी शिक्षा को प्रभावित नहीं होने दिया। वह हर दिन 14 से 18 घंटे तक अध्ययन किया करते थे। शिक्षा के प्रति उनकी ललक और जी तोड़ मेहनत का ही परिणाम था कि बड़ौदा के शाहू महाराज जी ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया था। डॉ. भीमराव अंबेडकर को किताबें पढने का बड़ा शौक था। माना जाता है कि उनकी पर्सनल लाइब्रेरी यानि की निजी पुस्तकालय दुनिया की सबसे बड़ी व्यक्तिगत लाइब्रेरी थी, जिसमे 50 हजार से अधिक पुस्तकें थीं। लन्दन प्रवास के दौरान वे रोज एक लाइब्रेरी में जाया करते थे और घंटों पढाई किया करते थे। एक बार वे लंच टाइम में अकेले लाइब्रेरी में बैठ-बैठे ब्रेड का एक टुकड़ा खा रहे थे कि तभी लाइब्रेरियन ने उन्हें देख लिया और उन्हें डांटने लगा कि कैफेटेरिया में जाने की बजाय वे यहाँ छिप कर खाना खा रहे हैं। लाइब्रेरियन ने उन पर फाइन लगाने और उनकी मेम्बरशिप खत्म करने की धमकी दी। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने लाइब्रेरियन से क्षमा मांगी और अपने और अपने समाज के संघर्ष और इंग्लैंड आने के की वजह के बारे में बताया। उन्होंने यह भी ब?ी ईमानदारी से कबूल किया कि कैफेटेरिया में जाकर लंच करने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं। उनकी बात सुनकर लाइब्रेरियन बोला- आज से तुम लंच आर्स में यहाँ नहीं बैठोगे तुम मेरे साथ कैफेटेरिया चोलोगे और मैं तुमसे अपना खाना शेयर करूँगा। वह लाइब्रेरियन एक यहूदी (Jew) था और उसके इस व्यवहार के कारण डॉ. भीमराव अंबेडकर के मन में यहूदियों के लिए एक विशेष स्थान बन गया।

डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन का तीसरा प्रेरक प्रसंग

यह घटना तब की है जब डॉ. अंबेडकर अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे। वह रोज सुबह लाइब्रेरी खुलने से पहले ही वहां पहुँच जाते थे और सबके जाने के बाद ही वे वहां से निकलते थे। यहाँ तक कि वे कई बार लाइब्रेरी की टाइमिंग खत्म होने के बाद भी वहां बैठे रहने की अनुमति माँगा करते थें उन्हें रोज ऐसा करते देख एक दिन चपरासी ने उनसे कहा, क्यों तुम हमेशा गंभीर रहते हो, बस पढाई ही करते रहते हो और कभी किसी दोस्त के साथ मौज-मस्ती नहीं करते। तब बाबा साहेब बोले- “अगर मैं ऐसा करूँगा तो मेरे लोगों का ख्याल कौन रखेगा?” डॉ. भीमराव अंबेडकर की बात सुनकर अमेरिका का वह चपरासी जीवन भर के लिए बाबा साहब का शिष्य बन गया था।

यहां दिए गए 15 फैक्ट्स से और अधिक जान सकते हैं डॉ. भीमराव अंबेडकर को :

1: भीमराव अंबेडकर अपने माता-पिता की चौदहवीं और आखिरी संतान थे।

2: डॉ. भीमराव अंबेडकर के पूर्वज काफी समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी में एम्प्लोयेड थे और उनके पिता ब्रिटिश इंडियन आर्मी के Mhow cantonment में तैनात थे।

3: डॉ. भीमराव अंबेडकर का मूल या ओरिजिनल नाम था अम्बावाडेकर था। लेकिन उनके शिक्षक महादेव अम्बेडकर जो उन्हें बहुत मानते थे ने स्कूल रिकार्ड्स में उनका नाम अम्बावाडेकर से अम्बेडकर कर दिया था।

4: बाबासाहेब के नाम से प्रसिद्घ डॉ. भीमराव अंबेडकर मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में दो साल तक प्रिंसिपल पद पर कार्यरत रहे थे।

5:  आज-कल के संदर्भ में यह बहुत बड़ी बात है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान की धारा 370, जो जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देता था उसके  खिलाफ थे।

6: बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर विदेश जाकर अर्थशास्त्र डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले पहले भारतीय थे।

7:  डॉ. भीमराव अंबेडकर बाद के सालों में डायबिटीज से बुरी तरह ग्रस्त थे।

8:  डॉ. भीमराव अंबेडकर ही एक मात्र भारतीय हैं जिनकी portrait लन्दन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगी हुई है।

9: इंडियन फ्लैग में अशोक चक्र को जगह देने का श्रेय भी डॉ. भीमराव अंबेडकर को जाता है।

10: B R Ambedkar Labor Member of the ViceroyÓs E&ecutive Council के सदस्य थे और उन्ही की वजह से फैक्ट्रियों में कम से कम 12 से 14 घंटे काम करने का नियम बदल कर सिर्फ 8 घंटे कर दिया गया था।

11:  यह भी जानना जरूरी है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने महिला श्रमिकों के लिए सहायक Maternity Benefit for women Labor, Women Labor welfare fund, Women and Child, Labor Protection Act जैसे कानून बनाए।

12: Economics · Nobel Prize जीत चुके अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन के विषय में कहा जाता है कि वे डॉ. भीमराव अंबेडकर को अर्थशास्त्र में अपना गुरू मानते हैं।

13: बेहतर विकास के लिए 50 के दशक में ही डॉ. भीमराव अंबेडकर ने मध्य प्रदेश तथा बिहार प्रदेश के विभाजन का प्रस्ताव रखा था। सब जानते हैं कि बाद में भारत सरकार ने वर्ष-2000 में मध्य प्रदेश तथा बिहार प्रदेश का विभाजन करके सन 2000 में जाकर ही छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड प्रदेश का गठन किया था।

14: बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को किताबें पढने का बड़ा शौक था। माना जाता है कि उनकी पर्सनल लाइब्रेरी दुनिया की सबसे बड़ी व्यक्तिगत लाइब्रेरी थी, जिसमे 50 हजार से अधिक पुस्तकें थीं।

15:  डॉ. भीमराव अंबेडकर की दो शादियाँ हुईं थीं, पहली शादी 9 वर्षीय बालिका रामाबाई के साथ हुई थी। तब बाबा साहेब मात्र 15 वर्ष के थे और दूसरी रामाबाई की मृत्यु के बाद हेल्थ इसूज की वजह से 57 साल की उम्र में डॉ. शारदा कबीर से उनकी शादी हुई थी।

डॉ. भीमराव अंबेडकर के ऊपर जितना लिखा जाए उतना ही कम पड़ेगा

डॉ. भीमराव अंबेडकर इतने महान नेता थे कि उनके ऊपर हजारों पुस्तकें लिखी गई हैं। अभी भी डॉ. भीमराव अंबेडकर  के ऊपर लेखन का काम चल रहा है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर के ऊपर जितना भी लिखा जाए वह लिखा हुआ कम ही पड़ेगा। लम्बे अर्से तक भारत का दलित समाज डॉ. भीमराव अंबेडकर को अपना आदर्श मानता था। उनके ऊपर लिखी गई पुस्तकों के कारण डॉ. भीमराव अंबेडकर का पूरा चाल-चरित्र तथा व्यक्तिगत दुनिया के सामने आया। यही कारण है कि वर्तमान में भारत का प्रत्येक वर्ग, भारत की सभी राजनीतिक पार्टियां, भारत के तमाम नेता डॉ. भीमराव अंबेडकर को देश का सच्चा राष्ट्रभक्त मानते हैं।

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