National News : भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच अधिकारों का संतुलन एक संवेदनशील और जटिल मुद्दा है। हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद और न्यायपालिका के बीच के अधिकार विवाद पर एक विवादास्पद और महत्वपूर्ण बयान दिया है, जिसने नई बहस को जन्म दिया है। उनका कहना है कि संविधान के तहत संसद से ऊपर कोई भी प्राधिकरण नहीं है और संसद सर्वोच्च है। इस बयान ने जहां एक तरफ आलोचनाओं को जन्म दिया है, वहीं दूसरी तरफ यह मुद्दा भारतीय राजनीति और संविधान की समझ को और गहरा करता है। आइए जानते हैं इस महत्वपूर्ण विषय पर उपराष्ट्रपति के बयान और उससे जुड़ी बहस के बारे में विस्तार से।
1. संविधान में संसद से ऊपर कोई नहीं
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में यह स्पष्ट किया कि संविधान में कोई भी संस्था या प्राधिकारी संसद से ऊपर नहीं हो सकता। उनका मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का हालिया आदेश, जिसमें राज्यपालों द्वारा रोककर रखे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का आदेश दिया गया था, यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करता है। उन्होंने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि न्यायपालिका का कार्य केवल संविधान और कानून की व्याख्या करना है, न कि कार्यपालिका या संसद के अधिकारों में हस्तक्षेप करना।
2. न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन की आवश्यकता
उपराष्ट्रपति ने अपने बयान में यह भी कहा कि न्यायपालिका को कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उनके अनुसार, संविधान में कोई भी प्राधिकारी संसद से ऊपर नहीं है और इसे “सुपर संसद” के रूप में देखना संवैधानिक दृष्टि से सही नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी द्वारा की गई टिप्पणियाँ हमेशा राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में होती हैं।
3. सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल
उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का आदेश देने पर अपनी चिंता जताई थी। उन्होंने इस फैसले को लोकतांत्रिक संस्थाओं के अधिकारों में हस्तक्षेप बताया और कहा कि इस तरह का निर्णय संविधान के अनुरूप नहीं है। उनका यह भी कहना था कि भारत ने कभी इस तरह के लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जिसमें जज कानून बनाएंगे और शासकीय कार्य करेंगे।
4. लोकतंत्र और संविधान की सही समझ
उपराष्ट्रपति ने यह भी बताया कि संविधान में सभी संवैधानिक पदाधिकारियों की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रत्येक पदाधिकारी का कार्य राष्ट्रहित में होना चाहिए। उन्होंने यह जोर दिया कि संविधान में संसद को सर्वोच्च माना गया है और इसके ऊपर किसी भी प्राधिकरण की कल्पना नहीं की गई है।
5. आलोचनाओं का सामना करते हुए उपराष्ट्रपति का रुख
उपराष्ट्रपति की टिप्पणी पर कई आलोचनाएं सामने आईं। उनका यह कहना कि सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय असंवैधानिक है, कुछ लोगों को आपत्ति में आया। हालांकि, धनखड़ ने कहा कि उनके द्वारा दी गई प्रत्येक टिप्पणी संविधान और राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में है। उन्होंने आलोचकों पर यह भी निशाना साधा कि उनके बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। National News :
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