Pratiksha Tondwalkar : प्रतीक्षा टोंडवलकर पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए एक बड़ी मिसाल हैं। प्रतीक्षा टोंडवालकर ने वह काम कर दिया है जिस काम की कल्पना करना भी असंभव लगता था। प्रतीक्षा टोंडवलकर ने साबित कर दिया है कि दुनिया में कुछ भी संभव नहीं होता। एक बहुत पुरानी कहावत है कि “असंभव शब्द मूर्खों के शब्दकोश में पाया जाता है” इस पुरानी कहावत को प्रतीक्षा टोंडवलकर ने पूरी तरह से चरितार्थ कर दिया है। अपनी हिम्मत तथा हौसले के दाम पर श्रीमती प्रतीक्षा टोंडवलकर उसी बैंक में अफसर बनी जिस बैंक में वह झाड़ू पोछा यहां तक की टॉयलेट तक साफ करती थी।
प्रतीक्षा टोंडवलकर ने किया है कमाल
प्रतीक्षा टोंडवलकर के किए गए कमाल के काम को जानकर आप भी प्रतीक्षा टोंडवलकर के मुरीद हो जाएंगे। प्रतीक्षा टोंडवलकर भारत के सबसे बड़े बैंक यानी कि भारतीय स्टेट बैंक के एजीएम के पद से रिटायर हुई है। भारतीय स्टेट बैंक वही बैंक है जिस बैंक में प्रतीक्षा टोंडवलकर झाड़ू तथा पोछा लगाती थी। इतना ही नहीं प्रतीक्षा टोंडवलकर को भारतीय स्टेट बैंक के टॉयलेट तक भी साफ करने पड़ते थे । प्रतीक्षा टोंडवलकर अपनी किस्मत से लड़ती रही और एक दिन उसने पूरी दुनिया की महिलाओं के लिए बड़ी मिसाल कायम करके बड़ा इतिहास बना दिया है। प्रतीक्षा टोंडवलकर यह इतिहास बनकर हमेशा के लिए याद करने लायक महिला बन गई है। हम आपको विस्तार से बता रहे हैं प्रतीक्षा टोंडवलकर की सफलता की कहानी।
मूल रूप से पुणे की रहने वाली है प्रतीक्षा टोंडवलकर
आपको बता दें कि प्रतीक्षा टोंडवलकर का जन्म 1964 में पुणे के एक गरीब परिवार में हुआ था। आर्थिक तंगी की वजह से वह दसवीं तक भी नहीं पढ़ सकीं। घरवालों ने महज 17 साल की उम्र में उनकी शादी सदाशिव कडू से कर दी। प्रतीक्षा के पति एसबीआई बैंक में बुक बाइंडिंग का काम किया करते थे। शादी के एक साल बाद ही प्रतीक्षा ने एक बेटे को जन्म दिया। हालांकि, कुछ समय बाद एक दुर्घटना में उनके पति की असमय मौत हो गई। बीस साल की उम्र में ही पति को खो देने से उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। पति की मौत ने प्रतीक्षा टोंडवलकर को जीवन की कड़वी वास्तविकताओं का सामना करवाया। ससुराल वालों ने बहू (प्रतीक्षा) को घर से निकाल दिया। यही नहीं मायके वालों ने भी उन्हें घर में जगह नहीं दी। दोनों ही परिवारों ने प्रतीक्षा से मुंह मोड़ लिया। वह कई दिनों तक अपने बेटे के साथ एक चॉल के बाहर रहीं। हालांकि, समाज और पड़ोसियों के ताने सुनने के बाद आखिरकार सास ने उन्हें घर में आने की इजाजत दे दी।
मात्र 60 रुपये वेतन मिलता था प्रतीक्षा टोंडवलकर को
प्रतीक्षा ने अपने बेटे को एक अच्छी जिंदगी देने के लिए खुद के पैरों पर खड़े होने का सोचा, लेकिन पैसों और शिक्षा का अभाव उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। वह इतनी भी योग्य नहीं थी कि पति की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति पा सकें। हालांकि, फिर भी उन्होंने बैंक के अधिकारियों से नौकरी की गुहार लगाई। बैंक ने उनकी मदद भी की और उसी ब्रांच में बतौर सफाईकर्मी पार्ट-टाइम नौकरी पर रख लिया। इस दौरान उन्हें शौचालय साफ करने से लेकर झाडू-पोंछा सहित कई काम करने पड़ते थे। इसके लिए उन्हें हर महीने 60 रुपये तनख्वाह मिलती थी। बेटे के लालन-पालन के लिए इतना पैसा पर्याप्त नहीं था। इसलिए वह कई अन्य जगहों पर भी छोटी-मोटी नौकरी करने लगीं।
सफाई वाली से एजीएम बन गई प्रतीक्षा टोंडवलकर
नौकरी के दौरान ही प्रतीक्षा ने दसवीं पूरी करने का मन बनाया। बैंक के अधिकारियों ने उन्हें फॉर्म भरने से लेकर पढ़ाई करने में मदद की। दोस्तों और साथी कर्मचारियों ने किताबों तथा स्टेशनरी का खर्च उठाया। प्रतीक्षा की मेहनत रंग लाई और उन्होंने 60 प्रतिशत अंकों के साथ 10वीं की परीक्षा और फिर 12वीं की भी परीक्षा पास कर ली। साथ ही, बैंकिंग परीक्षाओं की तैयारी भी शुरू कर दी। उनकी लगन को देखकर एसबीआई बैंक ने उन्हें प्रमोशन देते हुए उनकी नौकरी को अस्थायी से स्थायी कर दिया। प्रतीक्षा की सफलता और आर्थिक दिक्कतें साथ-साथ चल रही थीं। कई बार बेटे के लिए बिस्किट लेने तक के पैसे नहीं होते थे। ऐसे में, वह बस से एक स्टॉप पहले उतर जातीं थीं, ताकि बिस्किट खरीद सकें। नौकरी के साथ-साथ उन्होंने मनोविज्ञान विषय में स्नातक भी पूरा कर लिया। इसके बाद उन्हें बैंक क्लर्क के पद पर प्रमोशन मिल गया। कुछ वर्षों बाद प्रतीक्षा को ट्रेनी आॅफिसर के पद पर पदोन्नति मिल गई। इसके बाद उन्होंने बतौर आॅफिसर कई पदों पर काम किया और अंतत: रिटायर होने से पहले वह एसबीआई की सहायक महाप्रबंधक (एजीएम) के पद पर पहुंच गईं।,
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