Gautam Adani Case : नई दिल्ली। दुनिया के सबसे बड़े अमीर रहे अडानी समूह के मुखिया गौतम अडानी (Gautam Adani ) का मामला चर्चित घोटालेबाज हर्षद मेहता से भी बड़ा है। इतने बड़े मामले के बावजूद अडानी समूह के विरूद्ध जांच शुरू न होना ‘‘दाल में कुछ काला है’’ की तरफ इशारा कर रहा है। सभी विपक्षी दल चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि इस प्रकरण में तुरंत जेपीसी (ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी) का गठन किया जाना चाहिए। किन्तु सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है। लोगों का कहना है कि यह प्रकरण बेहद गंभीर है जो देश की पूरी अर्थव्यवस्था के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर रहा है।
Gautam Adani Case
संसद में गतिरोध बरकरार
अडानी समूह के मामले को लेकर भारत की संसद में गतिरोध लगातार बना हुआ है। तमाम विपक्षी दल हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह पर लगाए गए गंभीरतम आरोपों की जेपीसी से जांच कराने पर अड़े हुए है। सरकार किसी भी प्रकार की जांच नहीं कराना चाहती बल्कि सरकार के मंत्री बार-बार कह रहे हैं कि यह कोई खास मामला नहीं है। आर्थिक विश्लेषकों का दावा है कि अडानी प्रकरण पूर्व में हुए हर्षद मेहता प्रकरण से भी बड़ा है। सब जानते हैं कि वर्ष-1990 के दशक में हर्षद मेहता ने देश का आर्थिक साम्राज्य हिलाकर रख दिया था। शेयर मार्केट में की गई उस धोखाधड़ी में 4 लाख करोड़ रूपये से भी बड़ा घोटाला हुआ था। विश्लेषक अडानी के घोटाले को हर्षद मेहता से भी बड़ा घोटाला मान रहे हैं। इस घोटाले में 38 लाख करोड़ रूपए दांव पर हैं।
फर्जी कंपनी बनाकर खेला खेल
आर्थिक विश्लेषकों का साफ दावा है कि टैक्स हैवन (जहां टैक्स नहीं लगता) देशों में फर्जी कंपनियां बनाकर जिस प्रकार अडानी समूह ने शेयर मार्केट में खेल खेला है उसका दूसरा कोई उदाहरण दुनिया भर में कहीं नहीं मिलता है। इस मामले में निवेशकों के 33 लाख करोड़ रूपये अब तक डूब चुके हैं। आरोप है कि विपक्ष द्वारा बार-बार जांच की मांग करने के बावजूद सरकार इस प्रकरण में जान-बूझकर जांच को टाल रही है। सरकार का तर्क है कि यह कोई बड़ा मामला नहीं है। संबंधित एजेंसियां पूरे प्रकरण पर नजर बनाए हुए हैं। सरकार के कई कर्ताधर्ता तो इसे विदेशी शक्तियों द्वारा फैलाई गई अफवाह बता रहे हैं।
उच्च स्तर तक अडानी की पहुंच
सब जानते हैं कि भारत सरकार के उच्च स्तर तक अडानी की सीधी पहुंच है। इतने बड़े घोटाले के बावजूद भी कार्रवाई तो दूर जांच तक के आदेश नहीं दिए जा रहे हैं। अधिकतर लोगों का कहना है कि देश में भगवान राम को मानने वालों की सरकार है। राम ने तो एक साधारण नागरिक के सवाल उठाने भर से सीता माता को घर से निकाल दिया था। यह तो खुलेआम किया गया अपराध है जिसमें जांच तक नहीं कराई जा रही है। इसी प्रकार के ढ़ेर सारे सवाल अडानी प्रकरण पर उठाए जा रहे हैं। अधिकतर लोगों का मत है कि जिस प्रकार गौतम अडानी का नाम सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जुड़ा है उससे तो बिल्कुल नहीं लगता कि इस मामले की जांच कराई जाएगी।
आपको बता दें क्या था हर्षद मेहता प्रकरण
हर्षद मेहता एक ऐसा प्रकरण रहा, जिसने 1990 दशक में भारत के पूरे वित्तीय बाजार को हिला कर रख दिया था। भारतीय वित्त बाजार के लिए 1990 से 1992 का समय बड़े बदलाव का वक्त था। इस बीच एक ऐसा घोटाला सामने आया, जिसने शेयर बाजार को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया। इस घोटाले के जिम्मेदार हर्षद मेहता थे। यह घोटाला करीब 4,000 करोड़ रुपये का था और इसके बाद ही सेबी को शेयर मार्केट में गड़बड़ी रोकने की ताकत दी गई। घोटाले के मुख्य आरोपी हर्षद मेहता का 2002 में निधन हुआ था। लेकिन बहुचर्चित इस प्रकरण की याद आज भी लोगों के दिमाग से नहीं गई है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद हर्षद मेहता प्रकरण की यादें एक बार फिर ताजा हो गई।
हर्षद मेहता ने कैसे किया गोलमाल?
1990 में शेयर बाजार तेजी से बढ़ा जिसके लिए ब्रोकर मेहता को जिम्मेदार माना गया और उन्हें ‘बिग बुल’ का दर्जा दिया गया। अप्रैल 1992 में पैसों का खुलासा हुआ। मेहता बैंकिंग नियमों का फायदा उठाकर बैंकों को बिना बताए उनके करोड़ों रुपये शेयर मार्केट में लगाते थे। मेहता दो बैंकों के बीच बिचौलिया बनकर 15 दिन के लिए लोन लेकर बैंकों से पैसा उठाते थे और फिर मुनाफा कमाकर बैंकों को पैसा लौटा देते थे। इस यह बात जब सामने आई तो शेयर मार्केट में तेज गिरावट आनी शुरू हो गई।
मेहता एक बैंक से फेक बैंक समाधान विवरण (बीआर) बनावाता था, जिसके बाद उसे दूसरे बैंक से भी आराम से पैसा मिल जाता था। कैश बुक और पास बुक के शेष में होने वाले अंतर को मिलाने के लिए जो लेखा तैयार होता है, उसे बैंक समाधान विवरण कहा जाता है। खुलासा होने के बाद मेहता के ऊपर 72 क्रमिनल चार्ज लगाए गए और सिविल केस फाइल हुए। हर्षद मेहता पर कई केस चल रहे थे, मगर उसे मात्र एक केस में दोषी पाया गया था। उसे दोषी पाते हुए उच्च न्यायालय ने पांच साल की सजा और 25000 रुपये का जुर्माना ठोका था। मेहता थाणे जेल में बंद था। 31 दिसंबर 2001 को देर रात उसे दर्द की शिकायत हुई, जिसके बाद उसे ठाणे सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल में ही उसकी मौत हो गई।
कैसे हुई पैसों की वसूली
घोटाले के 25 साल बाद भी इसकी वसूली उनके परिवार से चल रही थी। कस्टोडियन ने मेहता की संपत्तियों को बेचकर 6,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि बैंकों व आयकर विभाग के नाम जारी कराई। 2017 में ही मेहता के पारिवारिक सदस्यों ने 614 करोड़ रुपये की रकम बैंक को दी।
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