Himachal News: हिमाचल प्रदेश के आदिवासी बहुल किन्नौर जिले के दूर-दराज और दुर्गम इलाकों में सेब उत्पादक एक नयी क्रांति की ओर बढ़ रहे हैं क्योंकि ड्रोन तकनीक के जरिए सेब का परिवहन जल्द ही एक हकीकत बन जाएगा।
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किन्नौर जिले के निचार प्रखंड के रोहन कांडा गांव में 20 किलोग्राम सेब के बक्सों के परिवहन का सफल परीक्षण किया गया और स्काईयर के सहयोग से वेग्रो सेब खरीद एजेंसी द्वारा छह मिनट में बक्सों को करीब 12 किलोमीटर की दूरी तय कर एक बाग से मुख्य सड़क तक पहुंचाया गया।
व्यवहार्यता, बैटरी और रोटेशन समय की जांच करने और नवंबर में एक रोटेशन में उठाए गए भार का आकलन करने के लिए सेब के बक्से को उठाने का परीक्षण किया गया था और अब लागत पहलू पर काम किया जा रहा है। वेग्रो के प्रभारी दिनेश नेगी ने कहा, ‘‘हमारा लक्ष्य सेब उत्पादकों के लिए परिवहन को किफायती बनाने के मकसद से एक बार में लगभग 200 किलोग्राम भार उठाने का है और हमें उम्मीद है कि उपयोगी मॉडल अगले सीजन तक लागू हो जाएगा।’’
किन्नौर के उपायुक्त आबिद हुसैन सादिक ने कहा कि वित्तीय व्यवहार्यता को चाक-चौबंद किया जा रहा है और प्रशासन कंपनी को लाइसेंस तथा अन्य आवश्यकताओं को प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करेगा, लेकिन सौदा निजी कंपनी और बागवानों के बीच होना है।
निचार से एक सेब उत्पादक मनोज मेहता ने कहा, ‘‘किन्नौर के निचार ब्लॉक में रोहन कांडा और छोटा कांडा के गांवों से कोई सड़क संपर्क नहीं है और सेब के बक्से को पैदल ले जाया जाता है और एक यात्रा में अधिकतम तीन बक्से (90 किलोग्राम) सड़क पर लाए जाते हैं। पहाड़ी इलाके के कारण एक चक्कर लगाने में चार घंटे से अधिक का समय लगता है और एक कुली एक दिन में अधिकतम तीन चक्कर लगा सकता है।’’ उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में समय लगता है जिससे फलों की ताजगी से समझौता करना पड़ता है और श्रम की कमी एक और समस्या है।
ग्राम पंचायत निचार के उप प्रधान जगदेव ने कहा कि सफल परीक्षण ने विशेष रूप से शुरुआती हिमपात के समय में सुरक्षित परिवहन की उम्मीद जगाई है और कीमतें तय करने के लिए निजी कंपनी के साथ बातचीत चल रही है तथा लागत कम करने के लिए एक बार में 200 किलोग्राम सेब के बक्सों का परिवहन करने के प्रयास जारी हैं।
उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा कि इस कदम से समय की बचत के अलावा परिवहन लागत कम करने में मदद मिलेगी क्योंकि सेब को पहाड़ी इलाकों से ट्रकों में लदान के लिए मुख्य सड़क पर लाना महंगा, काफी समय लेने वाला और कठिन काम है क्योंकि ये बाग सड़कों से जुड़े नहीं हैं।
जिले में 10,924 हेक्टेयर में सेब उगाया जाता है। किन्नौर के निचले इलाकों से सेब की ढुलाई अगस्त के अंत में शुरू होती है, लेकिन ढुलाई का बड़ा हिस्सा 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच होता है।
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