हिंदी को हमारी मातृभाषा कहा जाता है। लोगों को हिंदी बोलने, लिखने, पढ़ने के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। साथ ही साथ कई तरह के कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेने का भी प्रोत्साहन किया जा रहा है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं अगले सप्ताह यानी कि 14 सितंबर 2021 को हिंदी दिवस का आयोजन किया जाएगा। लेकिन सवाल यह उठता है, इन सब चीजों को करने की हमें जरूरत है भी या नहीं। हम खुद ही हिंदी को अपनी मातृभाषा बताते हैं, मगर फिर भी भारत में बहुत लोग या तो हिंदी बोलना नहीं चाहते या फिर उन्हें हिंदी बोलने में शर्मसार महसूस होता है।
हम इस विषय पर खुद ही एक सवाल खड़ा करते हैं, कि क्या हमें इन आयोजनों की आवश्यकता है भी? विश्व की इतनी पुरानी और समृद्धि साहित्य वाली हिंदी भाषा असल में हमारी संस्कृति के केंद्र बिंदु मानी जाती है। इस तरह से हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति का अपना एक अलग संबंध है।
अगर हम चाहते हैं कि हमारी मातृभाषा और हमारी संस्कृति दोनों का संबंध बरकरार रहे तो हमें हिंदी भाषा की महत्वता को सही ढंग से समझना होगा। हम जब तक हिंदी भाषा की महत्वता को नहीं समझेंगे तब तक हम मातृभाषा और हमारी संस्कृति में संबंध बरकरार रखने में सक्षम नहीं हो पाएंगे।
हिंदी भाषा सिर्फ बोलने और समझने का माध्यम नहीं है बल्कि यह हमारी संस्कृति और संस्कार को जोड़े रखती है। जब तक हमें अपनी मातृभाषा का ही ज्ञान नहीं होगा तब तक हम अपने संस्कारों से अनभिज्ञ रहेंगे।
यह काफी दुख की बात है कि स्वतंत्रता के 7 दशकों बाद भी हम अपनी मातृभाषा को उस स्तर तक नहीं पहुंचा पाए हैं। ऐसे में हमें समझना होगा कि अपनी मातृभाषा को हम अपने व्यवहार में लाएं। हिंदी भाषा को हम बोलने से हिचके नहीं। यह हमारी मातृभाषा है अगर ऐसे ही हम बोलने से हिचकते हैं तो यह हमारे लिए और हमारी संस्कृति के लिए शर्म की बात होगी।
आज के समय में लोग अंग्रेजी का उपयोग करना ज्यादा अच्छा समझते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम अपनी मातृभाषा को ही भूलते चले जाएं। बहुत लोगों को लगता है कि अंग्रेजी ना आना शर्म की बात है, लेकिन बहुत लोगों को यही नहीं पता कि आपको अंग्रेजी आए चाहे ना आए लेकिन हिंदी ना आना यह शर्म की बात है।
तो हमें खुद से ही एक कदम आगे बढ़ाना होगा और हिंदी भाषा को प्रोत्साहन देना होगा। जब तक हम खुद से ही एक पहल नहीं करेंगे तब तक और लोगों में भी प्रोत्साहन नहीं आएगा।