Thursday, 14 November 2024

महाराजा शिवाजी तथा महाराणा प्रताप जैसे वीर योद्धा थे लाचित बोरफुकन, मुगलों को चटाई थी धूल

Lachit Borphukan news : क्या आप लाचित बोरफुकन को जानते हैं? नहीं जानते तो हम बता रहे हैं भारत के…

महाराजा शिवाजी तथा महाराणा प्रताप जैसे वीर योद्धा थे लाचित बोरफुकन, मुगलों को चटाई थी धूल

Lachit Borphukan news : क्या आप लाचित बोरफुकन को जानते हैं? नहीं जानते तो हम बता रहे हैं भारत के इस महान नायक लाचित बोरफुकन के विषय में सटीक जानकारी। सबसे पहले यह जान लीजिए कि लाचित बोरफुकन भारत के महान सेना नायक वीर शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप तथा गुरू गोविंद सिंह की तरह से ही भारत के एक महान सपूत थे। शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने असम में लाचित बोरफुकन की 125 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया है। जबसे लाचित बोरफुकन की प्रतिमा का अनावरण हुआ है। तभी से लाचित बोरफुकन को पूरी दुनिया में खूब सर्च किया जा रहा है।

Lachit Borphukan news

जानिए कौन थे लाचित बोरफुकन

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 9 मार्च 2024 को असम राज्य के जोरहाट में वीर नायक लाचित बोरफुकन की 125 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया गया। असम राज्य में प्रत्येक वर्ष 24 नवंबर को जिनकी याद में लाचित दिवस मनाया जाता है तथा जिन लाचित बोरफुकन के सम्मान में नेशनल डिफेंस अकादमी द्वारा 1999 से प्रत्येक वर्ष अपने सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लाचित गोल्डमेडल दिया जाता है वह लाचित बोरफुकन कौन है? आपकी जानकारी के लिए आपको बता दें कि लचित बोरफुकन असम राज्य के ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में विस्तारित अहोम साम्राज्य की सेना के जनरल थे, जिनका जन्म 24 नवंबर 1622 को हुआ था। उनके पिता मोमई तमूली बार बरुआ व माता  कुंती मोरान थी अहोम साम्राज्य की स्थापना 1228 ईस्वी में ताई चाऊ लुन्ग सुकफा द्वारा की गई थी ,जो की 16वीं शताब्दी में अपने उत्कर्ष पर पहुंच गया। अहोम साम्राज्य को लगातार बंगाल के अफ़गानों एवं तुर्कों के आक्रमण का सामना करना पड़ा लेकिन अहोमों ने इ न आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया और तुर्कों एवं अफ़गानों को सफल नहीं होने दिया।

मुगलों को चटाई थी धूल

मुगलों की विस्तारवादी एवं साम्राज्यवादी नीतियों के कारण मुगल और अहोम संघर्ष 1615- 16 में ही प्रारंभ हो गए थे किंतुवर्ष 1967 में जब मुगल बादशाह औरंगजेब को जानकारी मिली कि अहोमो ने गुवाहाटी पर कब्जा कर लिया है तो उसने मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र राजा राम सिंह  के सेनापतित्व में एक विशाल सेना अहोमो पर आक्रमणके लिए भेजी।सन 1669 ई के तेजपुर युद्ध व सुवाल सूची युद्ध में यद्यपि अहोमो को पराजय का मुख देखना पड़ा किंतु 1970 ई के अलाबोई के युद्ध एवं 1671 ई के सरईघाट(गुवाहाटी असम ) युद्ध में निर्णायक रूप से अहोमो की जीत हुई और मुगलों को कामरूप से बाहर होना पड़ा। 1671 ई के सराय घाट युद्ध के महा नायक लाचित बोरफुकन थे। यद्यपि युद्ध के पूर्व वह घायल  एवं बीमार थे किंतु अपनी वीरता एवं धीरता द्वारा अपने सैनिकों के अंदर जोश एवं उत्साह का संचार करते हुए राम सिंह के नेतृत्व वाली विशाल मुगल सेना को पराजित कर मुगलों को निर्णायक शिकस्त दी।  लाचित बोरफुकन ने न केवल अपने साम्राज्य की सीमाओं को सुरक्षित किया बल्कि उनका विस्तार भी किया। इस युद्ध मे उनकी विजय का मुख्य कारण उनका रणनीति कौशल था उनके द्वारा युद्ध नीति के रूप में गोरिल्ला युद्ध एवं नौसेना का प्रयोग कर मुगलों की विशाल सेना को पराजित कर उन्हें धूल चटा दी गई।सरईघाटकी लड़ाई मुगलों द्वारा पूर्वोत्तर में अपने साम्राज्य विस्तार हेतु की गई आखिरी कोशिश सिद्ध हुई।

लाचित बोरफुकन (बोरफुकन- जनरल या कमांडर इन चीफ) को असम राज्य की स्वायत्तता व स्वतंत्रता का महानायक माना जाता है जिसने असम /अहोम राज्य पर मुसलमान मुगलों को पराजित कर स्वतंत्र राज्य का परचम फहराया ।इन्हीं कारणों से वर्ष 1999 से इंडियन डिफेंस अकादमी द्वारा प्रत्येक वर्ष अपने अपने सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लाचित गोल्ड मेडल से सम्मानित किया जाता है।

प्रसिद्ध इतिहासकार सूर्यकुमार भुइया ने लचित बोरफुकन को पूर्वोत्तर भारत का शिवाजी माना है। लाचित बोरफुकन को उसी प्रकार महानायक माना जाता है जैसे राजस्थान में महाराणा प्रताप दक्षिण में शिवाजी और पंजाब में गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों के विरुद्ध आजीवन संघर्ष किया ।वर्ष  1672 में 25 अप्रैल को लचित बोरफुकन की मृत्यु हो गई

नवंबर 1922 में लचित बोरफुकन की 400वी जयंती मनाई गई। जयंती आयोजन के दौरान लाचित बोरफुकन पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित की गई। इस प्रतियोगिता में इतनी अधिक प्रविष्टियां प्राप्त हुई कि यह एक विश्व रिकॉर्ड बन गया जिसके लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड द्वारा असम के मुख्यमंत्री श्री हेमंत विश्व शर्मा को प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।

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