Agriculture News: खेेती और किसान:एक चमत्कार है लघु धान्य की फसलें

Agriculture News
बता दें, वैश्विक जलवायु परिवर्तन आज के दौर में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है और जीवन के सभी आयामों का प्रभावित करता है। इससे अछूता कृषि क्षेत्र भी नहीं है। खरीफ के मौसम में की जाती है लघु धान्य फसलों की खेती: लघु धान्य फसलों की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है। सांवा, काकुन एवं रागी को मक्का के साथ मिश्रित फसल के रूप में लगाते हैं। रोगी को कोदो के साथ भी मिश्रित फसल के रूप में लेते हैं। ये फसलें गरीब एवं आदिवासी क्षेत्रों में उस समय लगाई जाने वाली खाद्यान्न फसलें है जिस समय पर उनके पास किसी प्रकार अनाज खाने को उपलब्ध नहीं हो पाता है। ये फसलें अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितम्बर के प्रारंभ में पककर तैयार हो जाती है जबकि अन्य खाद्यान्न फसलें इस समय पर नहीं पक पाती और बाजार में खाद्यान्नों का मूल्य बढ़ जाने से गरीब उन्हें नहीं खरीद पाते है। इसलिए समय पर 60-80 दिनों में पकने वाली सांवा, कुटकी एवं कंगनी जैसी फसलें महत्वपूर्ण खाद्यान्न के रूप प्राप्त होती है। [caption id="attachment_51125" align="alignnone" width="252"]
Agriculture News[/caption]
हर प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है:
ये फसलें प्राय: हर प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है। जिस भूमि में अन्य कोई धान्य फसल उगाना सम्भव नहीं होता वहां भी ये फसलें सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। उतार-चढ़ाव वाली, कम जल धारण क्षमता वाली, उथली सतह वाली आदि कमजोर किस्म में ये फसलें अधिकतर उगाई जा रही है। हल्की भूमि में जिसमें पानी का निकास अच्छा हो इनकी खेती के उपयुक्त होती है। बहुत जल निकास होने पर लघु धान्य फसलें प्राय: सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है।
भूमि की किस्म अनुसार बीज करें चुनाव:
भूमि की किस्म के अनुसार उन्नत किस्म के बीज का चुनाव करें। हल्की पथरीली व कम उपजाऊ भूमि में जल्दी पकने वाली जातियों का तथा मध्यम गहरी व दोमट भूमि में एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में देर से पकने वाली जातियों की बोनी करें। लघु धान्य फसलों की कतारों में बुवाई के लिये 8-10 किलोग्राम बीज तथा छिटकवां बोनी के लिये 12-15 किलोग्राम बीज प्रति हे. पर्याप्त होता हेै। लघु धान्य फसलों को अधिकतर छिटकवां विधि से बोया जाता है।
समय, बीजोपचार एवं बोने का तरीका:
वर्षा आरंभ होने के तुरंत बाद लघु धान्य फसलों की बोनी कर दें। शीघ्र बोनी करने से उपज अच्छी प्राप्त होती है एवं रोग, कीट का प्रभाव कम होता है। कोदों में सूखी बोनी मानसून आने के दस दिन पूर्व करने पर उपज में अन्य विधियों से अधिक उपज प्राप्त होती है। जुलाई के अंत में बोनी करने से तना मक्खी कीट का प्रकोप बढ़ता है। बोनी से पूर्व बीज को मेन्कोजेब या थायरम दवा 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीजोपचार करें। ऐसा करने से बीज जनित रोगों से फसल की सुरक्षा होती है। कतारों में बोनी करने कतार के कतार की दूरी 20-25 सेमी तथा पौधों से पौधों की दूरी 7 सेमी उपयुक्त पाई गई है। इसकी बोनी 2-3 सेमी गहराई पर की जाए। कोदों में 6-8 लाख एवं कुटकी में 8-9 लाख एवं कुटकी में 8-9 लाख पौधे प्रति हे. हो।
खाद एवं उर्वरक का उपयोग समय से करें:
कुटकी में 20 नत्रजन, 20 स्फुर प्रति हे. तथा कोदों एवं रागी के लिए 40 किलो नत्रजन व 20 किलो स्फुर प्रति हे. के उपयोग करने से वृद्धि होती है। नत्रजन की आधी मात्रा व स्फुर की पूरी मात्रा बुआई के समय एवं नत्रजन के शेष आधी मात्रा बुआई के 3 से 5 सप्ताह के अन्दर निंदाई के बाद दें।
बुवाई के 30 दिन के अंदर हाथ से करें निंदाई:
बुआई के 20-30 दिन के अन्दर एक बार हाथ से निंदाई करें। तथा जहां पौधे न ऊगे हो वहां पर अधिक घने पौधों को ऊखाड़ कर पौधों की संख्या उपयुक्त करें। यह कार्य पानी गिरते समय सर्वोत्तम होता है। कोदों का भण्डारण कई वर्षो तक किया जा सकता है, क्योंकि इनके दानों में कीटों का प्रकोप नहीं होता है।
अन्य देशों में भी उगाए जाते हैं लघु धान्य की फसलें:
एशिया, अफ्रीका के विभिन्न उष्णकटिबंधीय देशों और कुछ हद तक दक्षिण अमेरिका में भी लघु धान्य उगाए जाते हैं। स्थानीय उत्पादकों को शिक्षित करके तथा नीतिगत बदलाव और तकनीकी हस्तक्षेप करके इन क्षेत्रों में लघु धान्य के उत्पादन में वृद्वि की जा सकती है।
दुनिया की अधिकांश आबादी अब उष्णकटिबंधीय जलवायु में रहती है। इस प्रकार सहिष्णु अनाज फसलों जैसे बाजरा और ज्वार को उगाने के लिए उपयोग की जाने वाली मृदा के क्षेत्र में वृद्वि करना जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने, पानी की कमी के मुद्दों और खाद्य सुरक्षा के लिए रणनीति बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
Delhi News: जेल में बंद पीएफआई नेता को नजरबंद नहीं किया जाएगा : दिल्ली हाईकोर्ट
अगली खबर पढ़ें
Agriculture News
बता दें, वैश्विक जलवायु परिवर्तन आज के दौर में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है और जीवन के सभी आयामों का प्रभावित करता है। इससे अछूता कृषि क्षेत्र भी नहीं है। खरीफ के मौसम में की जाती है लघु धान्य फसलों की खेती: लघु धान्य फसलों की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है। सांवा, काकुन एवं रागी को मक्का के साथ मिश्रित फसल के रूप में लगाते हैं। रोगी को कोदो के साथ भी मिश्रित फसल के रूप में लेते हैं। ये फसलें गरीब एवं आदिवासी क्षेत्रों में उस समय लगाई जाने वाली खाद्यान्न फसलें है जिस समय पर उनके पास किसी प्रकार अनाज खाने को उपलब्ध नहीं हो पाता है। ये फसलें अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितम्बर के प्रारंभ में पककर तैयार हो जाती है जबकि अन्य खाद्यान्न फसलें इस समय पर नहीं पक पाती और बाजार में खाद्यान्नों का मूल्य बढ़ जाने से गरीब उन्हें नहीं खरीद पाते है। इसलिए समय पर 60-80 दिनों में पकने वाली सांवा, कुटकी एवं कंगनी जैसी फसलें महत्वपूर्ण खाद्यान्न के रूप प्राप्त होती है। [caption id="attachment_51125" align="alignnone" width="252"]
Agriculture News[/caption]
हर प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है:
ये फसलें प्राय: हर प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है। जिस भूमि में अन्य कोई धान्य फसल उगाना सम्भव नहीं होता वहां भी ये फसलें सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। उतार-चढ़ाव वाली, कम जल धारण क्षमता वाली, उथली सतह वाली आदि कमजोर किस्म में ये फसलें अधिकतर उगाई जा रही है। हल्की भूमि में जिसमें पानी का निकास अच्छा हो इनकी खेती के उपयुक्त होती है। बहुत जल निकास होने पर लघु धान्य फसलें प्राय: सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है।
भूमि की किस्म अनुसार बीज करें चुनाव:
भूमि की किस्म के अनुसार उन्नत किस्म के बीज का चुनाव करें। हल्की पथरीली व कम उपजाऊ भूमि में जल्दी पकने वाली जातियों का तथा मध्यम गहरी व दोमट भूमि में एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में देर से पकने वाली जातियों की बोनी करें। लघु धान्य फसलों की कतारों में बुवाई के लिये 8-10 किलोग्राम बीज तथा छिटकवां बोनी के लिये 12-15 किलोग्राम बीज प्रति हे. पर्याप्त होता हेै। लघु धान्य फसलों को अधिकतर छिटकवां विधि से बोया जाता है।
समय, बीजोपचार एवं बोने का तरीका:
वर्षा आरंभ होने के तुरंत बाद लघु धान्य फसलों की बोनी कर दें। शीघ्र बोनी करने से उपज अच्छी प्राप्त होती है एवं रोग, कीट का प्रभाव कम होता है। कोदों में सूखी बोनी मानसून आने के दस दिन पूर्व करने पर उपज में अन्य विधियों से अधिक उपज प्राप्त होती है। जुलाई के अंत में बोनी करने से तना मक्खी कीट का प्रकोप बढ़ता है। बोनी से पूर्व बीज को मेन्कोजेब या थायरम दवा 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीजोपचार करें। ऐसा करने से बीज जनित रोगों से फसल की सुरक्षा होती है। कतारों में बोनी करने कतार के कतार की दूरी 20-25 सेमी तथा पौधों से पौधों की दूरी 7 सेमी उपयुक्त पाई गई है। इसकी बोनी 2-3 सेमी गहराई पर की जाए। कोदों में 6-8 लाख एवं कुटकी में 8-9 लाख एवं कुटकी में 8-9 लाख पौधे प्रति हे. हो।
खाद एवं उर्वरक का उपयोग समय से करें:
कुटकी में 20 नत्रजन, 20 स्फुर प्रति हे. तथा कोदों एवं रागी के लिए 40 किलो नत्रजन व 20 किलो स्फुर प्रति हे. के उपयोग करने से वृद्धि होती है। नत्रजन की आधी मात्रा व स्फुर की पूरी मात्रा बुआई के समय एवं नत्रजन के शेष आधी मात्रा बुआई के 3 से 5 सप्ताह के अन्दर निंदाई के बाद दें।
बुवाई के 30 दिन के अंदर हाथ से करें निंदाई:
बुआई के 20-30 दिन के अन्दर एक बार हाथ से निंदाई करें। तथा जहां पौधे न ऊगे हो वहां पर अधिक घने पौधों को ऊखाड़ कर पौधों की संख्या उपयुक्त करें। यह कार्य पानी गिरते समय सर्वोत्तम होता है। कोदों का भण्डारण कई वर्षो तक किया जा सकता है, क्योंकि इनके दानों में कीटों का प्रकोप नहीं होता है।
अन्य देशों में भी उगाए जाते हैं लघु धान्य की फसलें:
एशिया, अफ्रीका के विभिन्न उष्णकटिबंधीय देशों और कुछ हद तक दक्षिण अमेरिका में भी लघु धान्य उगाए जाते हैं। स्थानीय उत्पादकों को शिक्षित करके तथा नीतिगत बदलाव और तकनीकी हस्तक्षेप करके इन क्षेत्रों में लघु धान्य के उत्पादन में वृद्वि की जा सकती है।
दुनिया की अधिकांश आबादी अब उष्णकटिबंधीय जलवायु में रहती है। इस प्रकार सहिष्णु अनाज फसलों जैसे बाजरा और ज्वार को उगाने के लिए उपयोग की जाने वाली मृदा के क्षेत्र में वृद्वि करना जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने, पानी की कमी के मुद्दों और खाद्य सुरक्षा के लिए रणनीति बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
Delhi News: जेल में बंद पीएफआई नेता को नजरबंद नहीं किया जाएगा : दिल्ली हाईकोर्ट
संबंधित खबरें
अगली खबर पढ़ें







