छात्र राजनीति से गैंगस्टर तक: लॉरेंस कैसे बन गया अंडरवर्ल्ड का खतरनाक डॉन

छात्र राजनीति से गैंगस्टर तक: लॉरेंस कैसे बन गया अंडरवर्ल्ड का खतरनाक डॉन
locationभारत
userचेतना मंच
calendar11 Sep 2025 04:33 PM
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पंजाब के छोटे से गांव दुतरावाली में जन्मा बलकरन बरार आज अपराध की दुनिया का ऐसा नाम है, जिसे सुनते ही डर का साया फैल जाता है। छात्र राजनीति के गलियारों से निकलकर इस युवा ने अपराध की दुनिया में वह मुकाम हासिल किया, जिसे हासिल करना किसी के बस की बात नहीं। छोटे-मोटे अपराधों से शुरू हुआ यह सफर अब लॉरेंस बिश्नोई को न केवल भारत में बल्कि विदेशों तक सबसे कुख्यात गैंगस्टर बना चुका है। चाहे राजनीति का अखाड़ा हो या फिल्मी दुनिया की चमक-दमक, उसका नाम सुनते ही लोग कांप जाते हैं। जेल की सलाखों के पीछे रहते हुए भी लॉरेंस अपने अपराध नेटवर्क को लगातार पुख्ता करता रहा है। आइए, जानते हैं उन अंधेरे किस्सों और रहस्यों के बारे में, जो अब तक दुनिया की नजरों से छुपे हुए हैं।      Lawrence Bishnoi

12 फरवरी 1993 को पंजाब के फाजिल्का जिले में जन्मे बलकरन बरार का बचपन अबोहर में बीता। परिवार आर्थिक रूप से सबल था—पिता लविंदर सिंह पहले हरियाणा पुलिस में थे और बाद में बड़े जमींदार बनकर खेती-बाड़ी में जुट गए, जबकि मां ममता घर की देखभाल में व्यस्त रहती थीं। पिता का सपना था कि उनका बेटा आईएएस बने और देश सेवा में आगे बढ़े, लेकिन किस्मत ने बलकरन को एक अलग राह दिखाई। वह वह बच्चा, जिसे घर में प्यार से बलकरन कहा जाता था, धीरे-धीरे अपराध की दुनिया की ओर खिंचता चला गया।    Lawrence Bishnoi

छात्र राजनीति से अपराध की ओर

2010 में चंडीगढ़ के सेक्टर-10 स्थित डीएवी कॉलेज में लॉ की पढ़ाई शुरू करने वाला बलकरन, यानी भविष्य का लॉरेंस बिश्नोई, शुरू से ही शांत और शर्मिला लड़का था। पढ़ाई के दौरान उसका झुकाव राजनीति और हल्की-फुल्की बदमाशी की ओर बढ़ा। इसी दौरान उसकी दोस्ती गोल्डी बराड़ से हुई, जो आज कनाडा में बैठकर लॉरेंस गैंग का प्रमुख सदस्य और उसका “राइड हैंड” बन चुका है। 2011 में SOPU के छात्र संगठन की छात्र विंग का प्रेसिडेंट बनकर लॉरेंस ने कॉलेज में अपना दबदबा कायम किया।    Lawrence Bishnoi

हालांकि, कई जगह यह अफवाह फैलती रही कि वह पंजाब यूनिवर्सिटी का प्रेसिडेंट भी रह चुका है, लेकिन सच्चाई यह है कि वह केवल कॉलेज स्तर का छात्र संगठन प्रेसिडेंट था। डीएवी कॉलेज आज भी लॉरेंस से जुड़े किस्से सुनाता है, लेकिन कॉलेज मैनेजमेंट उसे अपना एलुमनी मानने से साफ इनकार करता है। उसके साथ पढ़ने वाले छात्रों का कहना है कि लॉरेंस कम बोलने वाला लड़का था, लेकिन उसके चारों ओर हमेशा एक गुट रहता था। वहीं कुछ का मानना है कि वह कॉलेज में हल्की-फुल्की मारपीट करता था, लेकिन उस समय कोई गंभीर अपराध उसके बस की बात नहीं थी।

अधूरी प्रेम कहानी

लॉरेंस की जिंदगी में एक अधूरी प्रेम कहानी भी छुपी है। शहर में आने के बाद उसकी एक प्रेमिका थी, जिससे उसकी शादी की योजना थी, लेकिन किसी अज्ञात कारण से वह अचानक गायब हो गई। यह रहस्य लॉरेंस की निजी दुनिया को और भी गुप्त और रहस्यमय बना गया। उसी समय, उसने दोस्तों के साथ मिलकर छोटे-मोटे अपराधों की दुनिया में कदम रखा—जमीन पर कब्जा, लोगों को डराना और हल्की-मोटी मारपीट। शुरुआती मुकदमें ज्यादातर धमकाने और मारपीट के थे, लेकिन धीरे-धीरे उसका कद अपराध की दुनिया में बढ़ता गया। जल्द ही हत्या, डकैती और अतिक्रमण जैसे गंभीर मामलों में उसका नाम सामने आने लगा। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली की बड़ी घटनाओं में पुलिस सबसे पहले लॉरेंस को संदिग्ध मानकर कार्रवाई करती रही, और इसी वजह से उसका खौफ हर जगह फैल गया।

कैसे हुई अपराध की दुनिया में एंट्री ?

लॉरेंस बिश्नोई का अपराध की दुनिया में कदम रखना किसी योजनाबद्ध कहानी जैसा था। दोस्तों के साथ मिलकर उसने जमीनों पर कब्जा करने, लोगों को डराकर संपत्ति हड़पने और छोटे-मोटे अपराध करने की शुरुआत की। शुरुआती मुकदमें ज्यादातर क्रिमिनल ट्रेसपास, धमकाने और मारपीट जैसे मामलों के थे, लेकिन गंभीर अपराधों में उसका नाम उस समय नहीं था। धीरे-धीरे उसका कद अपराध की दुनिया में बढ़ने लगा और जल्द ही हत्या के प्रयास, हमले, अतिक्रमण और डकैती जैसे गंभीर मामलों में लॉरेंस का नाम आने लगा।

उत्तर भारत में बड़ी घटनाओं की जांच में पुलिस अब सबसे पहले लॉरेंस को संदिग्ध मानकर कार्रवाई करती है—चाहे वह फरीदकोट में गुरलाल पहलवान का कत्ल हो, चंडीगढ़ में सोनू शाह की हत्या, या दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में ओलंपियन पहलवान सागर धनखड़ की मौत। इन घटनाओं में लॉरेंस बिश्नोई की मौजूदगी ने उसे उत्तर भारत का मोस्ट वांटेड अपराधी बना दिया। उसके आतंक और प्रभाव के चलते पुलिस उसे राजस्थान, दिल्ली की तिहाड़, पंजाब या गुजरात की साबरमती जेल में शिफ्ट करती रही है। जेल बदलना उसके लिए अब आम बात हो गई है, लेकिन उसकी पकड़ अपराध की दुनिया पर लगातार मजबूत होती जा रही है।    Lawrence Bishnoi

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हाई-प्रोफाइल केस

अपराध की दुनिया में लॉरेंस बिश्नोई की पहचान उसके दर्ज मामलों से ही नहीं, बल्कि कुछ हाई-प्रोफाइल हत्याओं से भी हुई है। इनमें सबसे चर्चित घटना 2022 में पंजाब के उभरते सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या थी। 29 मई 2022 को मानसा के गांव जवाहरके में मूसेवाला को गोली मार दी गई। इस हत्याकांड की जिम्मेदारी कनाडा में बैठे लॉरेंस गैंग के गैंगस्टर गोल्डी बराड़ ने ली। गोल्डी ने इसे गैंगवार का हिस्सा बताते हुए कहा कि मूसेवाला का हाथ गुरलाल बराड़ और विक्की मिद्दुखेड़ा की हत्या में था। 2023 में राजस्थान के जयपुर में दिनदिहाड़े करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या ने भी पूरे राज्य को हिला दिया। इस हत्याकांड की जिम्मेदारी बिश्नोई गैंग ने ली। गोल्डी बराड़ ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन्हें चेतावनी दी गई थी कि गोगामेड़ी उनके काम में दखल न दें, लेकिन उन्होंने नहीं माना, इसलिए उन्हें मारना पड़ा।

12 अक्टूबर 2024 को मुंबई में एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की गोली मारकर हत्या की गई। लॉरेंस गैंग ने अपने शार्प शूटरों को इस कत्ल की जिम्मेदारी सौंपी थी। बाद में मास्टरमाइंड जीशान अख्तर को कनाडा से गिरफ्तार किया गया। मुंबई पुलिस के अनुसार, बाबा सिद्दीकी के कत्ल की सुपारी लॉरेंस के भाई अनमोल बिश्नोई ने दी थी। इसके अलावा, बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान और बिहार के सांसद पप्पू यादव को भी धमकियां दी गईं। 2018 में काले हिरण के शिकार मामले में सलमान खान को जान से मारने की धमकी लॉरेंस ने दी। वहीं, पप्पू यादव को धमकी देने वाले गैंग सदस्य महेश पांडेय को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया। इन घटनाओं ने लॉरेंस बिश्नोई की छवि न केवल अपराध जगत में बल्कि देशभर में एक डरावने और कुख्यात गैंगस्टर के रूप में स्थापित कर दी।  Lawrence Bishnoi

लॉरेंस गैंग की पहुंच

आज लॉरेंस बिश्नोई का अपराधी नेटवर्क केवल भारत तक सीमित नहीं रहा; यह अंतरराष्ट्रीय स्तर तक फैल चुका है। सूत्रों के मुताबिक, उसके गैंग में 700 से अधिक सक्रिय सदस्य हैं, जो किसी भी समय उसके आदेश पर हर काम करने को तैयार रहते हैं। जेल की सलाखों के पीछे बैठते हुए भी लॉरेंस अपने नेटवर्क को बेहतरीन रणनीति और कुशलता के साथ संचालित करता है। लॉरेंस की कहानी उस युवा नेता की है, जिसने छात्र राजनीति से निकलकर अपराध की दुनिया में कदम रखा और धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंक का पर्याय बन गया। चेहरे पर शांतिपूर्ण खामोशी, और इरादों में तूफान—यही है लॉरेंस बिश्नोई की पहचान, जो उसे अपराध जगत का सबसे खतरनाक नाम बनाती है।   Lawrence Bishnoi

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भारत-नेपाल बॉर्डर पर खुली आवाजाही…जानिए इसके पीछे की असली कहानी

भारत-नेपाल बॉर्डर पर खुली आवाजाही…जानिए इसके पीछे की असली कहानी
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userचेतना मंच
calendar11 Sep 2025 03:09 PM
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भारत और नेपाल का रिश्ता केवल पड़ोसी देशों का नहीं, बल्कि सदियों पुराने धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक परंपराओं और पारिवारिक जुड़ाव की गहराई से बुना हुआ है। यही वजह है कि 1,751 किलोमीटर लंबी साझा सीमा आज भी दुनिया की उन चुनिंदा सरहदों में गिनी जाती है, जहां लोग बिना वीज़ा-पासपोर्ट हाथ में लिए बेरोक-टोक आवाजाही कर सकते हैं। इस अनोखी आज़ादी की जड़ें 31 जुलाई 1950 में खोजी जा सकती हैं, जब दोनों देशों ने ‘शांति और मैत्री संधि’ पर दस्तख़त करके रिश्तों की नींव और मज़बूत कर दी थी।   India-Nepal Border

संधि की अहमियत

1950 की इस संधि ने भारत-नेपाल रिश्तों को सिर्फ क़ागज़ी समझौते तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्हें एक नई पहचान दी। इसमें दोनों देशों ने एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करने और शांति कायम रखने का वादा किया, साथ ही यह भरोसा भी जताया कि किसी तीसरे मुल्क से रिश्तों के मसले पर आपस में राय-मशविरा करेंगे। इस समझौते की सबसे बड़ी खूबी यह रही कि इसने दोनों देशों के नागरिकों को अभूतपूर्व अधिकार दिए—जैसे संपत्ति खरीदने-बेचने की आज़ादी, व्यापार करने का मौका, रोज़गार हासिल करने का हक और कहीं भी आ-जा कर रहने की सुविधा। यही वजह है कि आज एक नेपाली बेरोक-टोक भारत में नौकरी कर सकता है, और कोई भारतीय आसानी से नेपाल में अपना घर या कारोबार खड़ा कर सकता है।

नेपाल की आपत्तियां

लेकिन, इस संधि पर नेपाल ने समय-समय पर असहमति जताई है। उसका तर्क है कि 1950 का यह समझौता उस दौर में हुआ था, जब देश राणा शासन के अधीन था और जनता की राय इसमें शामिल ही नहीं थी। नेपाल के कई राजनीतिक दलों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि खासकर अनुच्छेद 2, 6 और 7 उनकी स्वतंत्र विदेश नीति और आर्थिक स्वायत्तता पर अंकुश लगाते हैं।

  • अनुच्छेद 2 नेपाल को बाध्य करता है कि अगर वह किसी तीसरे देश से संबंध मज़बूत करना चाहे या मतभेद सुलझाना चाहे, तो पहले भारत से राय-मशविरा करे।

  • अनुच्छेद 6 और 7 भारतीय और नेपाली नागरिकों को समान आर्थिक व सामाजिक अधिकार देते हैं, जिसे नेपाल का एक वर्ग असंतुलन की तरह देखता है।

यही वजह है कि नेपाल की राजनीति में यह मुद्दा बार-बार उछलता रहा है। कई राजनीतिक दल तो इसे भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने का आसान हथियार बनाते रहे हैं।

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हथियार विवाद और तनाव

साल 1988 में भारत-नेपाल रिश्तों में सबसे बड़ा तनाव तब पैदा हुआ, जब नेपाल ने चीन से हथियार खरीदे। भारत ने इसे 1950 की संधि का उल्लंघन मानते हुए कड़ा रुख अपनाया और सीमा पार व्यापार पर रोक लगा दी। यह प्रतिबंध लगभग 17 महीने चला और नेपाल की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रहार हुआ—खाद्य सामग्री से लेकर ईंधन तक की सप्लाई ठप पड़ गई, जिससे सुरक्षा चिंताएं भी बढ़ गईं। दूसरी ओर, नेपाल का कहना था कि उसने हथियार सीधे चीन से मंगाए थे, न कि भारत के रास्ते, इसलिए इस मामले में भारत से परामर्श करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं थी। यही घटना दोनों देशों के रिश्तों में अविश्वास की एक बड़ी दरार छोड़ गई।

भारत के लिए नेपाल क्यों अहम?

भारत की दृष्टि से नेपाल केवल एक पड़ोसी देश नहीं है, बल्कि चीन से सटे संवेदनशील क्षेत्रों के बीच एक अहम 'बफर स्टेट' की भूमिका निभाता है। यही वजह है कि भारत-नेपाल की खुली सीमा और आपसी सहयोग सिर्फ व्यापार या सांस्कृतिक आदान-प्रदान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी यह संबंध अत्यंत अहमियत रखते हैं। दोनों देशों की मित्रता और विश्वास की यह डोर क्षेत्रीय सुरक्षा और रणनीतिक संतुलन के लिहाज़ से भी अनिवार्य है।      India-Nepal Border

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तकनीक नहीं, अफवाहों का खेल है ई20 विवाद – नितिन गडकरी

तकनीक नहीं, अफवाहों का खेल है ई20 विवाद – नितिन गडकरी
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 04:10 AM
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ई20 फ्यूल को लेकर उठे बवाल पर केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने साफ कहा कि यह विवाद किसी तकनीकी खामी का परिणाम नहीं, बल्कि ताकतवर पेट्रोल लॉबी का सुनियोजित खेल है। गडकरी का आरोप है कि उनके खिलाफ पेड कैंपेन तक चलाए जा रहे हैं ताकि लोगों के बीच भ्रम फैलाया जा सके। ई20 फ्यूल—यानी 80% पेट्रोल और 20% इथेनॉल का यह मिश्रण—दरअसल भारत की ग्रीन एनर्जी क्रांति का अहम पड़ाव है। बावजूद इसके, सोशल मीडिया पर यह नैरेटिव गढ़ा जा रहा है कि इससे गाड़ियों का माइलेज गिरेगा और इंजन पर दबाव बढ़ेगा। गडकरी के मुताबिक, यह सब महज़ अफवाहें हैं, जिनका मकसद साफ-सुथरे बदलाव को रोकना है।    Nitin Gadkari

पेट्रोल लॉबी की भूमिका

FADA के ऑटो रिटेल कॉन्क्लेव में बोलते हुए नितिन गडकरी ने दो टूक कहा कि हर क्षेत्र में लॉबी काम करती है, लेकिन ई20 फ्यूल को लेकर जो झूठ फैलाया जा रहा है, उसके पीछे साफ तौर पर पेट्रोल लॉबी का हाथ है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह नई तकनीक भारत को न सिर्फ ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि प्रदूषण कम करने की दिशा में भी क्रांतिकारी बदलाव लाएगी। गडकरी का संदेश साफ था—ई20 भविष्य का ईंधन है और इसे रोकने की कोशिश करने वाले भारत की प्रगति के रास्ते में रोड़े अटका रहे हैं।  Nitin Gadkari

मंत्रालय की प्रतिक्रिया

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि ई20 फ्यूल को लेकर माइलेज पर असर पड़ने की चर्चाएं हकीकत से ज्यादा अफवाह हैं। मंत्रालय का तर्क है कि इन दावों को जानबूझकर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। उनका कहना है कि अगर भारत फिर से ई0 फ्यूल पर लौटेगा, तो यह न केवल प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में हुए अब तक के अहम कदमों को बेअसर कर देगा, बल्कि ऊर्जा आत्मनिर्भरता की यात्रा को भी वर्षों पीछे धकेल देगा।

वैकल्पिक ईंधन और बैटरी टेक्नोलॉजी पर जोर

गडकरी ने जोर देकर कहा कि भारत बैटरी टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। देश के स्टार्टअप्स सोडियम-आयन, लिथियम-आयन, जिंक-आयन और एल्युमिनियम-आयन जैसी अगली पीढ़ी की बैटरियों पर रिसर्च कर रहे हैं। वहीं, पुराने वाहनों की स्क्रैपिंग से रेयर अर्थ मेटल्स और अन्य बहुमूल्य धातुओं की आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है। उन्होंने याद दिलाया कि कुछ साल पहले तक भारत सेमीकंडक्टर चिप्स के लिए पूरी तरह चीन पर निर्भर था और ऑटोमोबाइल उद्योग को इसका खामियाजा उठाना पड़ा। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है—देश में ही चिप निर्माण शुरू हो गया है। गडकरी का संदेश साफ था, “जो आत्मनिर्भरता आज चिप्स के क्षेत्र में दिख रही है, वही कल ईंधन और बैटरी सेक्टर में भी भारत को नई ताकत देगी।

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पेट्रोल-डीजल वाहनों का भविष्य

गडकरी ने साफ किया कि फिलहाल पेट्रोल और डीजल वाहनों की मांग थमी नहीं है। हर साल ऑटोमोबाइल प्रोडक्शन 15 से 20 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है और अंतरराष्ट्रीय बाजार भी भारत के लिए अपार संभावनाएं रखता है। यानी आने वाले वर्षों तक पेट्रोल-डीजल गाड़ियों की बिक्री जारी रहेगी, लेकिन धीरे-धीरे वैकल्पिक ईंधन और नई तकनीक अपनी पैठ बनाएंगी और ऑटो सेक्टर का भविष्य तय करेंगी।    Nitin Gadkari

भारत की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री का विकास

गडकरी ने आंकड़ों के जरिये बताया कि मंत्रालय संभालते वक्त भारत की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री का आकार करीब ₹14 लाख करोड़ था, जो अब बढ़कर ₹22 लाख करोड़ तक पहुँच चुका है। वैश्विक स्तर पर अमेरिका ₹78 लाख करोड़ और चीन ₹47 लाख करोड़ के साथ पहले और दूसरे स्थान पर काबिज हैं, जबकि भारत मजबूती से तीसरे पायदान पर खड़ा है। उनका संदेश साफ था—सरकार ग्रीन मोबिलिटी और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की राह पर पूरी दृढ़ता के साथ आगे बढ़ रही है, और पेट्रोल लॉबी जैसी रुकावटें इस यात्रा की गति थाम नहीं पाएंगी।    Nitin Gadkari