राजपूतों को अपनी बेटियां देते थे मुगल बादशाह, ऐतिहासिक सच

राजनीति के कारण राजपूतों को अपनी बेटियां देते थे मुगल
ऐतिहासिक तथ्य यह है कि मुगल अपनी बेटियों की शादी राजपूत राजाओं अथवा राजकुमारों के साथ करते थे। इन शादियों को करने के पीछे शुद्ध राजनीतिक कारण होते थे। इतिहासकारों का मत है कि राजपूत अपनी बेटी की शादी किसी मुगल से करें अथवा मुगल अपनी बेटी की शादी किसी राजपूत राजा, राजपूत सेनापति या राजपूत राजकुमार के साथ करें उन शादियों के पीछे केवल और केवल राजनीतिक कारण होते थे। "रोटी-बेटी" का रिश्ता हो जाने के बाद मुगल तथा राजपूतों के बीच दोस्ताना संबंध बन जाया करते थे। इन दोस्ताना संबंधों का लाभ युद्ध समाप्त करने, अपने-अपने राज्यों की सीमा की सुरक्षा करने तथा दूसरे राजाओं पर विजय प्राप्त करने के रूप में मिलता था। इतिहास में अनेक उदाहरण मौजूद हैं कि जब मुगल बादशाहों ने अपनी बेटियों के विवाह राजपूत समाज (ठाकुर) के राजाओं, राजपूत सेनापतियों अथवा राजपूत राजकुमारों के साथ किए थे। यहां तक कि सबसे चर्चित मुगल बादशाह अकबर की बेटी का विवाह भी राजपूत राजा के साथ हुआ था।राजपूत के साथ हुआ था अकबर की बेटी का विवाह
जी हां अनेक इतिहासकार दावा करते हैं कि अबकर बादशाह की बेटी का विवाह राजपूत राजा के साथ हुआ था। इतिहासकारों के मिलते-जुलते दावे में कहा गया है कि अकबर ने अपनी बेटी शहजादी खानूम की शादी राजपूत महाराणा अमरसिंह के साथ की थी। इस शादी का जिक्र करते हुए इतिहासकार लिखते हैं कि राजपूत महाराणा अमर सिंह 1597 से 1620 तक मेवाड़ के शासक रहे। वह महाराणा प्रताप के बड़े बेटे और महाराणा उदय सिंह द्वितीय के पौत्र थे। महाराणा प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद वह मेवाड़ की गद्दी पर बैठे थे। इसके बाद अमर सिंह ने मुगलों पर एक के बाद एक कई हमले किए थे। अमर सिंह के हमलों से घबराकर मुगलों को मेवाड़ छोडक़र भागना पड़ा था। अकबर ने मेवाड़ को नहीं जीत पाने के कारण संधि के तौर पर अपनी बेटी शहजादी खानूम की शादी अमर सिंह से की थी। महराणा अमर सिंह का निधन 26 जनवरी 1620 को हुआ था। इसके अलावा इतिहास में राजा मानसिंह के बेटे कुंवर जगत सिंह की शादी एक मुस्लिम शहजादी के साथ होने का जिक्र भी मिलता है। उन्होंने उड़ीसा (अब ओडिशा) के अफगान नवाब कुतुल खां की बेटी मरियम से शादी की थी। इतिहासकार छाजू सिंह के मुताबिक, 1590 में राजा मानसिंह ने उड़ीसा में अफगान सरदारों के विद्रोह को कुचलने के लिए कुंवर जगत सिंह के नेतृत्व में एक सेना भेजकर अभियान चलाया था। इतिहासकार छाजू सिंह के मुताबिक, कुंवर जगत सिंह का मुकाबला नवाब कुतलू खां की सेना से हुआ। युद्ध में कुंवर जगत सिंह घायल हो गए और हार गए. इसके बाद कुतुल खां की बेटी मरियम ने जगत सिंह को गुप्त रूप से अपने पास रखा और उनकी सेवा की। दिन ठीक होने पर मरियम ने जगत सिंह को विष्णुपुर के राजा हमीर को सौंप दिया. कुछ समय बाद कुतलू खां की मौत हो गई. कुतलू खां के बेटे ने राजा मान सिंह की अधीनता स्वीकार कर ली. वहीं, मरियम की सेवा से प्रभावित होकर कुंवर जगत सिंह ने उससे शादी कर ली। उपन्यासकार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘दुर्गेशनंदिनी’ में कुंवर जगत सिंह के युद्ध में घायल होने और एक मुस्लिम लडक़ी के उनकी सेवा करने के बारे में लिखा है।राजपूत राजा राणा सांगा की चार पत्नी मुस्लिम थीं
मेवाड़ के राजपूत राजा राणा सांगा ने मुस्लिम सेनापति की बेटी मेरूनीसा से शादी की. इसके अलावा उन्होंने तीन और मुस्लिम लड़कियों से विवाह किया था. राणा सांगा महाराणा संग्राम सिंह और महाराणा कुंभा के बाद सबसे प्रसिद्ध महाराजा थे। इन्होंने अपनी शक्ति के बल पर मेवाड़ का विस्तार किया और राजपूताना के सभी राजाओं को संगठित किया। राणा रायमल की मृत्यु के बाद 1509 में राणा सांगा मेवाड़ के महाराणा बन गए। फरवरी 1527 में खानवा के युद्ध से पहले बयाना के युद्ध में राणा सांगा ने मुगल बादशाह बाबर की सेना को हराकर बयाना का किला जीता था। राणा सांगा की मृत्यु 30 जनवरी 1528 को हुई थी। अपराजित योद्धा के तौर पर पहचान बनाने वाले महाराणा कुंभा ने जागीरदार वजीर खां की बेटी से शादी की थी। महाराणा कुंभा ने 1437 में मालवा के सुलतान महमूद खिलजी को सारंगपुर के पास बुरी तरह से हराया था। महाराणा कुंभा ने इस विजय के स्मारक के तौर पर चित्तौड़ का विख्यात विजय स्तंभ बनवाया. पिता महाराणा माकल की हत्या के बाद सिंहासन पर बैठे महाराणा कुंभा ने सात साल के भीतर सारंगपुर, नागौर, नराणा, अजमेर, मंडोर, मांडलगढ़, बूंदी, खाटू, चाटूस के किलों को जीत लिया था. फिर उन्होंने दिल्ली के सुल्तान सैयद मुहम्मद शाह और गुजरात के सुल्तान अहमदशाह को भी हराया।राजपूत बप्पा रावल का इतिहास
फादर ऑफ रावलपिंडी के नाम से विख्यात बप्पा रावल ने गजनी के मुस्लिम शासक की बेटी से शादी की थी। बप्पा रावल को मेवाड़ का संस्थापक भी कहा जाता है। उन्होंने मेवाड़ क्षेत्र में 728 से लेकर 753 तक राज किया। वह मेवाड़ में क्षत्रिय कुल के गुहिल राजवंश के संस्थापक शासक थे। बप्पा रावल का जन्म मेवाड़ के महाराजा गुहिल की मृत्यु के 191 साल बाद 712 में ईडर में हुआ था। उनके पिता ईडर के शासक महेंद्र द्वितीय थे। बप्पा रावल का नाम कुछ जगहों पर कालाभोज है। गुहिल वंश में से ही सिसोदिया वंश था, जिसमें आगे चलकर राणा कुभा, रसणा सांगा और महाराणा प्रताप हुए। इसी प्रकार राजा छत्रसाल ने हैदराबाद के निजाम की बेटी रूहानी बाई से शादी की थी। महाराजा छत्रसाल बुंदेला महान प्रतापी राजपूत योद्धा थे। उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब को युद्ध में हराकर बंदेलखंड में अपना स्वतंत्र बुंदेला राज्य स्थापित किया और महाराजा की पदवी हासिल की। बुंदेलखंड आजकल मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा का हिस्सा है. महाराज छत्रसाल जू देव बुंदेला ओरछा के रुद्र प्रताप सिंह बुंदेला के वंशज थे। वह पूरा जीवन मुगलों की सत्ता के खिलाफ संघर्ष और बुंदेलखंड की आजादी बनाए रखने के लिए जूझते रहे. वहीं, राजपूत राजा बिंदुसार ने मीर खुरासन की बेटी नूर खुरासन से शादी की थी। इतिहास में इनके अलावा कई दूसरे राजाओं के मुस्लिम शासकों की बेटियों से शादी का जिक्र भी अनेक स्थानों पर मिलता है।राजपूत और मुगलों के विवाह शुद्घ राजनीतिक थे
अनेक इतिहासकारों का मत है कि मुगल और राजपूत रिश्तों के मध्य सबसे उल्लेखनीय विवाह संबंध मान सिंह और मुबारक बेगम का है। मान सिंह जो अकबर के प्रमुख सेनापति थे। मान सिंह ने मुबारक बेगम से विवाह किया। यह विवाह संबंध न केवल दो परिवारों के मध्य सौहार्द पैदा करते थे बल्कि राजनीतिक स्थिरता को भी बढ़ावा देते थे। इतिहास के पन्नों में यह भी उल्लेख मिलता है कि महाराणा प्रताप की 11 रानियों में से एक मुस्लिम थी, जो इस बात का प्रमाण है कि राजपूत और मुगलों के मध्य संबंध सिर्फ शत्रुता पर आधारित नहीं थे बल्कि इनमें सहयोग और समझौते भी थे। ये विवाह संबंध न केवल दो संस्कृतियों के मेल को दर्शाते हैं बल्कि यह भी बताते हैं कि किस प्रकार इतिहास में शांति और समृद्धि के लिए समझौते किए गए थे। ये विवाह संबंध इतिहास में विभिन्न राजवंशों के मध्य सहयोग के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।ज्योतिषी बन गया तोता: तोते ने कर दी भविष्यवाणी तो पुलिस ने पकड़ा
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राजनीति के कारण राजपूतों को अपनी बेटियां देते थे मुगल
ऐतिहासिक तथ्य यह है कि मुगल अपनी बेटियों की शादी राजपूत राजाओं अथवा राजकुमारों के साथ करते थे। इन शादियों को करने के पीछे शुद्ध राजनीतिक कारण होते थे। इतिहासकारों का मत है कि राजपूत अपनी बेटी की शादी किसी मुगल से करें अथवा मुगल अपनी बेटी की शादी किसी राजपूत राजा, राजपूत सेनापति या राजपूत राजकुमार के साथ करें उन शादियों के पीछे केवल और केवल राजनीतिक कारण होते थे। "रोटी-बेटी" का रिश्ता हो जाने के बाद मुगल तथा राजपूतों के बीच दोस्ताना संबंध बन जाया करते थे। इन दोस्ताना संबंधों का लाभ युद्ध समाप्त करने, अपने-अपने राज्यों की सीमा की सुरक्षा करने तथा दूसरे राजाओं पर विजय प्राप्त करने के रूप में मिलता था। इतिहास में अनेक उदाहरण मौजूद हैं कि जब मुगल बादशाहों ने अपनी बेटियों के विवाह राजपूत समाज (ठाकुर) के राजाओं, राजपूत सेनापतियों अथवा राजपूत राजकुमारों के साथ किए थे। यहां तक कि सबसे चर्चित मुगल बादशाह अकबर की बेटी का विवाह भी राजपूत राजा के साथ हुआ था।राजपूत के साथ हुआ था अकबर की बेटी का विवाह
जी हां अनेक इतिहासकार दावा करते हैं कि अबकर बादशाह की बेटी का विवाह राजपूत राजा के साथ हुआ था। इतिहासकारों के मिलते-जुलते दावे में कहा गया है कि अकबर ने अपनी बेटी शहजादी खानूम की शादी राजपूत महाराणा अमरसिंह के साथ की थी। इस शादी का जिक्र करते हुए इतिहासकार लिखते हैं कि राजपूत महाराणा अमर सिंह 1597 से 1620 तक मेवाड़ के शासक रहे। वह महाराणा प्रताप के बड़े बेटे और महाराणा उदय सिंह द्वितीय के पौत्र थे। महाराणा प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद वह मेवाड़ की गद्दी पर बैठे थे। इसके बाद अमर सिंह ने मुगलों पर एक के बाद एक कई हमले किए थे। अमर सिंह के हमलों से घबराकर मुगलों को मेवाड़ छोडक़र भागना पड़ा था। अकबर ने मेवाड़ को नहीं जीत पाने के कारण संधि के तौर पर अपनी बेटी शहजादी खानूम की शादी अमर सिंह से की थी। महराणा अमर सिंह का निधन 26 जनवरी 1620 को हुआ था। इसके अलावा इतिहास में राजा मानसिंह के बेटे कुंवर जगत सिंह की शादी एक मुस्लिम शहजादी के साथ होने का जिक्र भी मिलता है। उन्होंने उड़ीसा (अब ओडिशा) के अफगान नवाब कुतुल खां की बेटी मरियम से शादी की थी। इतिहासकार छाजू सिंह के मुताबिक, 1590 में राजा मानसिंह ने उड़ीसा में अफगान सरदारों के विद्रोह को कुचलने के लिए कुंवर जगत सिंह के नेतृत्व में एक सेना भेजकर अभियान चलाया था। इतिहासकार छाजू सिंह के मुताबिक, कुंवर जगत सिंह का मुकाबला नवाब कुतलू खां की सेना से हुआ। युद्ध में कुंवर जगत सिंह घायल हो गए और हार गए. इसके बाद कुतुल खां की बेटी मरियम ने जगत सिंह को गुप्त रूप से अपने पास रखा और उनकी सेवा की। दिन ठीक होने पर मरियम ने जगत सिंह को विष्णुपुर के राजा हमीर को सौंप दिया. कुछ समय बाद कुतलू खां की मौत हो गई. कुतलू खां के बेटे ने राजा मान सिंह की अधीनता स्वीकार कर ली. वहीं, मरियम की सेवा से प्रभावित होकर कुंवर जगत सिंह ने उससे शादी कर ली। उपन्यासकार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘दुर्गेशनंदिनी’ में कुंवर जगत सिंह के युद्ध में घायल होने और एक मुस्लिम लडक़ी के उनकी सेवा करने के बारे में लिखा है।राजपूत राजा राणा सांगा की चार पत्नी मुस्लिम थीं
मेवाड़ के राजपूत राजा राणा सांगा ने मुस्लिम सेनापति की बेटी मेरूनीसा से शादी की. इसके अलावा उन्होंने तीन और मुस्लिम लड़कियों से विवाह किया था. राणा सांगा महाराणा संग्राम सिंह और महाराणा कुंभा के बाद सबसे प्रसिद्ध महाराजा थे। इन्होंने अपनी शक्ति के बल पर मेवाड़ का विस्तार किया और राजपूताना के सभी राजाओं को संगठित किया। राणा रायमल की मृत्यु के बाद 1509 में राणा सांगा मेवाड़ के महाराणा बन गए। फरवरी 1527 में खानवा के युद्ध से पहले बयाना के युद्ध में राणा सांगा ने मुगल बादशाह बाबर की सेना को हराकर बयाना का किला जीता था। राणा सांगा की मृत्यु 30 जनवरी 1528 को हुई थी। अपराजित योद्धा के तौर पर पहचान बनाने वाले महाराणा कुंभा ने जागीरदार वजीर खां की बेटी से शादी की थी। महाराणा कुंभा ने 1437 में मालवा के सुलतान महमूद खिलजी को सारंगपुर के पास बुरी तरह से हराया था। महाराणा कुंभा ने इस विजय के स्मारक के तौर पर चित्तौड़ का विख्यात विजय स्तंभ बनवाया. पिता महाराणा माकल की हत्या के बाद सिंहासन पर बैठे महाराणा कुंभा ने सात साल के भीतर सारंगपुर, नागौर, नराणा, अजमेर, मंडोर, मांडलगढ़, बूंदी, खाटू, चाटूस के किलों को जीत लिया था. फिर उन्होंने दिल्ली के सुल्तान सैयद मुहम्मद शाह और गुजरात के सुल्तान अहमदशाह को भी हराया।राजपूत बप्पा रावल का इतिहास
फादर ऑफ रावलपिंडी के नाम से विख्यात बप्पा रावल ने गजनी के मुस्लिम शासक की बेटी से शादी की थी। बप्पा रावल को मेवाड़ का संस्थापक भी कहा जाता है। उन्होंने मेवाड़ क्षेत्र में 728 से लेकर 753 तक राज किया। वह मेवाड़ में क्षत्रिय कुल के गुहिल राजवंश के संस्थापक शासक थे। बप्पा रावल का जन्म मेवाड़ के महाराजा गुहिल की मृत्यु के 191 साल बाद 712 में ईडर में हुआ था। उनके पिता ईडर के शासक महेंद्र द्वितीय थे। बप्पा रावल का नाम कुछ जगहों पर कालाभोज है। गुहिल वंश में से ही सिसोदिया वंश था, जिसमें आगे चलकर राणा कुभा, रसणा सांगा और महाराणा प्रताप हुए। इसी प्रकार राजा छत्रसाल ने हैदराबाद के निजाम की बेटी रूहानी बाई से शादी की थी। महाराजा छत्रसाल बुंदेला महान प्रतापी राजपूत योद्धा थे। उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब को युद्ध में हराकर बंदेलखंड में अपना स्वतंत्र बुंदेला राज्य स्थापित किया और महाराजा की पदवी हासिल की। बुंदेलखंड आजकल मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा का हिस्सा है. महाराज छत्रसाल जू देव बुंदेला ओरछा के रुद्र प्रताप सिंह बुंदेला के वंशज थे। वह पूरा जीवन मुगलों की सत्ता के खिलाफ संघर्ष और बुंदेलखंड की आजादी बनाए रखने के लिए जूझते रहे. वहीं, राजपूत राजा बिंदुसार ने मीर खुरासन की बेटी नूर खुरासन से शादी की थी। इतिहास में इनके अलावा कई दूसरे राजाओं के मुस्लिम शासकों की बेटियों से शादी का जिक्र भी अनेक स्थानों पर मिलता है।राजपूत और मुगलों के विवाह शुद्घ राजनीतिक थे
अनेक इतिहासकारों का मत है कि मुगल और राजपूत रिश्तों के मध्य सबसे उल्लेखनीय विवाह संबंध मान सिंह और मुबारक बेगम का है। मान सिंह जो अकबर के प्रमुख सेनापति थे। मान सिंह ने मुबारक बेगम से विवाह किया। यह विवाह संबंध न केवल दो परिवारों के मध्य सौहार्द पैदा करते थे बल्कि राजनीतिक स्थिरता को भी बढ़ावा देते थे। इतिहास के पन्नों में यह भी उल्लेख मिलता है कि महाराणा प्रताप की 11 रानियों में से एक मुस्लिम थी, जो इस बात का प्रमाण है कि राजपूत और मुगलों के मध्य संबंध सिर्फ शत्रुता पर आधारित नहीं थे बल्कि इनमें सहयोग और समझौते भी थे। ये विवाह संबंध न केवल दो संस्कृतियों के मेल को दर्शाते हैं बल्कि यह भी बताते हैं कि किस प्रकार इतिहास में शांति और समृद्धि के लिए समझौते किए गए थे। ये विवाह संबंध इतिहास में विभिन्न राजवंशों के मध्य सहयोग के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।ज्योतिषी बन गया तोता: तोते ने कर दी भविष्यवाणी तो पुलिस ने पकड़ा
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