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तलाकशुदा कामकाजी महिला को बच्चा गोद लेने से रोकना विकृत मानसिकता : अदालत

Perverse mindset to stop divorced working woman from adopting child: Court

Perverse mindset to stop divorced working woman from adopting child: Court

मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी तलाकशुदा महिला को इस आधार पर बच्चा गोद लेने की अनुमति न देना कि वह कामकाजी है और बच्चे पर व्यक्तिगत रूप से पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाएगी, ‘मध्यकालीन रूढ़िवादी मानसिकता’ को दर्शाता है।

Bombay High Court

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हाईकोर्ट ने दी भांजी को गोद लेने की इजाजत

मंगलवार को पारित आदेश में उच्च न्यायालय ने 47 साल की एक तलाकशुदा महिला को उसकी चार साल की भांजी को गोद लेने की इजाजत दे दी। न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा कि एकल अभिभावक (सिंगल पेरेंट) कामकाजी होने के लिए बाध्य है। किसी एकल अभिभावक को इस आधार पर बच्चों को गोद लेने के लिए अनुपयुक्त नहीं माना जा सकता कि वह कामकाजी है। उच्च न्यायालय ने पेशे से शिक्षिका शबनमजहां अंसारी की याचिका पर यह आदेश पारित किया। अंसारी ने भूसावल (महाराष्ट्र) की एक दीवानी अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, जिसने मार्च 2022 में एक नाबालिग बच्ची को गोद लेने की उसकी अर्जी इस आधार पर खारिज कर दी थी कि वह तलाशुदा और कामकाजी महिला है। अंसारी ने अपनी बहन की बेटी को गोद लेने की इच्छा जाहिर की थी।

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निचली अदालत का नजरिया विकृत और अन्यायपूर्ण

दीवानी अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि चूंकि, अंसारी एक कामकाजी महिला होने के साथ-साथ तलाकशुदा है, इसलिए वह बच्ची पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान नहीं दे पाएगी और बच्ची का उसके जैविक माता-पिता के साथ रहना ज्यादा उपयुक्त है। दीवानी अदालत के खिलाफ उच्च न्यायालय में दायर याचिका में अंसारी ने कहा था कि निचली अदालत का इस तरह का दृष्टिकोण विकृत और अन्यायपूर्ण है।

गोद लेने वाली महिला तलाकशुदा और कामकाजी

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि अंसारी का अनुरोध ठुकराने के लिए निचली अदालत द्वारा दिया गया कारण व्यर्थ और बेबुनियाद है। न्यायमूर्ति गोडसे ने कहा कि निचली अदालत द्वारा की गई यह तुलना कि बच्ची की जैविक मां गृहणी है और गोद लेने की अर्जी देने वाली संभावित दत्तक मां (अकेली अभिभावक) कामकाजी है, परिवारों को लेकर मध्यकालीन रूढ़िवादी मानसिकता को दर्शाती है। पीठ ने कहा कि जब कानून एकल माता-पिता को दत्तक माता-पिता होने के योग्य मानता है, तो निचली अदालत का ऐसा दृष्टिकोण कानून के मूल उद्देश्य को ही विफल कर देता है।

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