घर की शांति और समृद्धि में सहायक होते हैं ये ज्योतिषीय उपाय

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userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 11:28 PM
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ज्योतिष (Astrology) के अनुसार कुछ अच्छे और सफलता दायक प्रयोग जो सुख शांति और समृद्धि में सहायक हो सकते हैं। ज्योतिषियों के बताए गए कुछ उपायों का प्रयोग करके जातक अपने भाग्य को काफी हद तक अच्छा और सफल बना सकता है। कहा जाता है कि व्यक्ति के कर्मों का फल उसको उसके भाग्य के रूप में ही मिलता है। व्यक्ति के अगर अच्छे कर्म होते हैं तो उसको अच्छा फल मिलता है और बुरे कर्म होते हैं तो बुरा फल मिलता है और बुरा भाग्य भी मिलता है। ज्योतिष (Astrology) के कुछ उपायों से व्यक्ति अपने भाग्य को कुछ हद तक अच्छा बना सकता है। भगवान अपनी कृपा उन्हीं पर बरसाते हैं जिनके कर्म अच्छे होते हैं। यहां कुछ विशेष और सरल उपाय (astrological remedies) बताए गए हैं, जिससे आप अपने भाग्य को कुछ हद तक अच्छा बना सकते हैं।

जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो गुड पीसकर खानी चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को सांस से संबंधित परेशानियां परेशान नहीं रहती और वह पूरे साल निरोग और स्वस्थ रहता है। जिस भी व्यक्ति को बहुत ही जल्दी गुस्सा आता हो या हर बात पर चिड़चिड़ापन महसूस होता हो तो उसके ऊपर राई मिर्ची को घुमा करके जला देनी चाहिए। इस बात का ध्यान जरूर रखें कि पीड़ित इंसान उसको ना देखे। सुबह उठने के बाद बिना कुल्ला करें पानी, दूध या चाय किसी भी चीज का सेवन ना करें। सुबह उठते एक काम जरूर करें कि आप अपनी दोनों हथेलियां बहुत ही ढंग से देखें ऐसा करने से स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है और भाग्य अभी चमक उठता है। अगर किसी व्यक्ति के जीवन में बार-बार दुर्घटना हो रही हैं या बार-बार बहुत परेशानी आ रही है तो शुक्ल पक्ष के पहले मंगलवार को 400 ग्राम दूध से चावल धोकर एक बहती हुई नदी में प्रभावित कर दें। सात मंगलवार लगातार ये उपाय करने से दुर्घटनाएं होनी बंद हो जाएंगी। अगर कोई व्यक्ति किसी पुराने रोग से पीड़ित हो तो उसको गोमती चक्र एक चांदी के तार में पिरो कर दें दें और उसके पलंग के सिरहाने में बांधे। ऐसा करने से रोग पीछा छोड़ देगा यदि कोई व्यक्ति किसी रोग से पीड़ित हो लेकिन औषधि काम करना बंद कर देती है तो जो इंसान अपने सिरहाने के नीचे रात को एक तांबे का सिक्का रखकर सजाएं और सुबह उसके को शमशान में जाकर फेंक दे। ऐसा करने से दवाइयां असर दिखाना शुरू कर देंगे और जो बीमारी है वह जल्द से जल्द दूर हो जाएगी।

पंडित रामपाल भट्ट ज्योतिषाचार्य, भीलवाड़ा

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घर की शांति और समृद्धि में सहायक होते हैं ये ज्योतिषीय उपाय

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ज्योतिष (Astrology) के अनुसार कुछ अच्छे और सफलता दायक प्रयोग जो सुख शांति और समृद्धि में सहायक हो सकते हैं। ज्योतिषियों के बताए गए कुछ उपायों का प्रयोग करके जातक अपने भाग्य को काफी हद तक अच्छा और सफल बना सकता है। कहा जाता है कि व्यक्ति के कर्मों का फल उसको उसके भाग्य के रूप में ही मिलता है। व्यक्ति के अगर अच्छे कर्म होते हैं तो उसको अच्छा फल मिलता है और बुरे कर्म होते हैं तो बुरा फल मिलता है और बुरा भाग्य भी मिलता है। ज्योतिष (Astrology) के कुछ उपायों से व्यक्ति अपने भाग्य को कुछ हद तक अच्छा बना सकता है। भगवान अपनी कृपा उन्हीं पर बरसाते हैं जिनके कर्म अच्छे होते हैं। यहां कुछ विशेष और सरल उपाय (astrological remedies) बताए गए हैं, जिससे आप अपने भाग्य को कुछ हद तक अच्छा बना सकते हैं।

जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो गुड पीसकर खानी चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को सांस से संबंधित परेशानियां परेशान नहीं रहती और वह पूरे साल निरोग और स्वस्थ रहता है। जिस भी व्यक्ति को बहुत ही जल्दी गुस्सा आता हो या हर बात पर चिड़चिड़ापन महसूस होता हो तो उसके ऊपर राई मिर्ची को घुमा करके जला देनी चाहिए। इस बात का ध्यान जरूर रखें कि पीड़ित इंसान उसको ना देखे। सुबह उठने के बाद बिना कुल्ला करें पानी, दूध या चाय किसी भी चीज का सेवन ना करें। सुबह उठते एक काम जरूर करें कि आप अपनी दोनों हथेलियां बहुत ही ढंग से देखें ऐसा करने से स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है और भाग्य अभी चमक उठता है। अगर किसी व्यक्ति के जीवन में बार-बार दुर्घटना हो रही हैं या बार-बार बहुत परेशानी आ रही है तो शुक्ल पक्ष के पहले मंगलवार को 400 ग्राम दूध से चावल धोकर एक बहती हुई नदी में प्रभावित कर दें। सात मंगलवार लगातार ये उपाय करने से दुर्घटनाएं होनी बंद हो जाएंगी। अगर कोई व्यक्ति किसी पुराने रोग से पीड़ित हो तो उसको गोमती चक्र एक चांदी के तार में पिरो कर दें दें और उसके पलंग के सिरहाने में बांधे। ऐसा करने से रोग पीछा छोड़ देगा यदि कोई व्यक्ति किसी रोग से पीड़ित हो लेकिन औषधि काम करना बंद कर देती है तो जो इंसान अपने सिरहाने के नीचे रात को एक तांबे का सिक्का रखकर सजाएं और सुबह उसके को शमशान में जाकर फेंक दे। ऐसा करने से दवाइयां असर दिखाना शुरू कर देंगे और जो बीमारी है वह जल्द से जल्द दूर हो जाएगी।

पंडित रामपाल भट्ट ज्योतिषाचार्य, भीलवाड़ा

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धर्म - अध्यात्म : भगवान भाव के भूखे!

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भगवान को कभी खरीदा नहीं जा सकता.
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calendar16 Nov 2021 05:24 AM
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विनय संकोची

कण-कण में भगवान व्याप्त है और भगवान का कहीं भी अभाव नहीं है, बस दृष्टि का फेर है। जिनकी दृष्टि संसार पर टिकी होती है, वे भगवान को न देख पाते हैं और न ही पा सकते हैं। इसके विपरीत जिनकी दृष्टि भगवान पर टिकी होती है, उन्हें प्रकृति के प्रत्येक अंश में भगवान के दर्शन होते हैं। संसार प्रतिपल बदलने वाला है और जब मनुष्य उस पर विश्वास करता है, उसके परिवर्तन का हिस्सा बन जाता है, तो स्वत: भगवान से दूर होता चला जाता है। भगवान से दूर होने का अर्थ प्रकाश से अंधकार की ओर जाना है।

संसार अभाव रुप है और भगवान भाव स्वरुप। भगवान के भाव स्वरूप होने का सबसे बड़ा बड़ा प्रमाण यह है कि मनुष्य भगवान को जिस रूप में देखना चाहता है, भगवान उसी रूप में प्रत्यक्ष हो जाते हैं। भगवान उसके भाव के अनुसार अपना रूप बना लेते हैं। भगवान भगत के भाव देखते हैं, उसकी अवस्था, उसका वर्ण, उसका संप्रदाय आदि नहीं देखते हैं और जो सच्चे भक्त होते हैं वे इस बात से ही संतुष्ट रहते हैं कि भगवान हैं, वे यह नहीं सोचते कि कैसे हैं। जो लोग यह सोचते हैं कि भगवान का स्वरूप क्या है, भगवान कैसे हैं, उनका जीवन यूं ही व्यतीत हो जाता है, सोच में संशय में।

सच्ची भक्त इस सच्चाई को जानते हैं कि अभी तक भगवान का जितना भी जिस रूप में भी, जिनके भी द्वारा वर्णन हुआ है, वह सारे का सारा मिलकर भी भगवान का पूरा वर्णन नहीं है। भगवान असीम हैं और असीम का यदि सम्पूर्ण वर्णन हो गया तो यह असीम कहां रह जाएगा, वह तो सीमित हो जाएगा और यह संभव नहीं है। इसलिए जो भक्त होते हैं वे झगड़े में पड़ते ही नहीं हैं कि भगवान कैसे हैं, उनका स्वरूप कैसा है, वह क्या पहनते हैं, क्या खाते हैं, शयन कैसे करते हैं, कैसे जागते हैं आदि। उन भक्तों के लिए तो इतना ही पर्याप्त है कि परमात्मा है। यही सोच भक्तों को भगवान के पास और पास ले जाता है।

यहां एक बात और समझने व सोचने वाली है कि भक्ति तब प्राप्त होती है, जब व्यक्ति पर भगवान और उसके निष्काम भक्तों की विशेष कृपा व्यक्ति होती है। नारद भक्ति के अनुसार- 'भक्ति मुख्य रूप से भगवत प्रेमी महापुरुषों की कृपा से अथवा भगवत कृपा के लेश मात्र से प्राप्त होती है।' रामचरितमानस के अरण्यकांड में तुलसीदास जी ने भी कहा है-

भगति तात अनुपम सुखमूला। मिलए जो संत होई अनुकूला।।

प्रश्न यह भी है कि भक्ति का प्रसाद किन्हें प्राप्त होता है और कौन है जिन्हें भगवत भक्तों की श्रेणी में रखा जा सकता है। शास्त्रों का कथन है कि जो संपूर्ण जीवों के हितेषी हैं, जिन्हें दूसरों में दोष देखने की आदत नहीं होती है, जो किसी से जाने अनजाने ईर्ष्या नहीं करते हैं, मन और इंद्रियों को वश में रखते हैं, निष्काम और शांत रहते हैं, वह भक्त कहलाने के अधिकारी हैं। इसके अतिरिक्त श्रेष्ठ भगवद्भक्त वे हैं, जो मन, वाणी तथा क्रिया द्वारा किसी को भी कभी पीड़ा नहीं देते हैं और जिनमें संग्रह की प्रवृत्ति नहीं है, जो माता-पिता के प्रति गाय और विश्वनाथ का भाव रखकर उनकी सेवा करते हैं और यतीमों की सेवा में संलग्न रहते हैं, वे श्रेष्ठ भागवत हैं। जो पराई निंदा से दूर रहते हैं, सबके लिए हित कारक वचन बोलते हैं और सब के गुणों को ही ग्रहण करने वाले हैं उन्हें सच्चा भगवद्भक्त माना जा सकता है।