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भारत के महान सपूत के नाम पर बसे हैं नोएडा के तीन सेक्टर, आप भी जान लीजिए उस महान सपूत को

Arun Khetarpal

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Noida News / Arun Khetarpal : उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्रदेश है। इसी प्रदेश का एक प्रसिद्ध शहर है नोएडा। नोएडा शहर को एशिया की श्रेष्ठ औद्योगिक नगरी भी कहा जाता है। इसी नोएडा शहर के तीन प्रमुख सेक्टरों का नामकरण भारत के महान सपूत लेफ्टिनेंट अरूण खेत्रपाल के नाम हुआ है। यह बात शायद नोएडा शहर में रहने वाले नागरिक भी नहीं जानते। आज हम आपको बता रहे हैं भारत के उस महान सपूत अरूण खेत्रपाल के विषय में जिन पर हर भारतीय गर्व कर सकता है।

Noida News | Shahid Arun Khetarpal

कौन से सेक्टर हैं अरूण खेत्रपाल के नाम पर

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के नोएडा शहर की स्थापना उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास अधिनियम 1976 के तहत 17 अप्रैल 1976 को हुई थी। शुरू के दिनों में नोएडा में बसने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ था। लोगों का लगता था कि यहां तो घना जंगल है। यहां शहर कैसे बसेगा ? उस समय नोएडा प्राधिकरण ने यहां सबसे पहले सेना के अफसरों तथा सैन्य कर्मियों के लिए सेक्टर विकसित करने शुरू किए। नोएडा के सेक्टर-21, 25, 28, 29 तथा सेक्टर-37 सेना के बहादुर वीर जवानों के लिए बसाए गए। नोएडा शहर के इन्हीं सेक्टरों में सेना के अफसरों के लिए बसाए गए सेक्टर-28, 29 तथा सेक्टर-37 को मिलाकर इस पूरे क्षेत्र का नाम अरूण विहार रखा गया। शायद यह बात आपको भी पता ना हो कि नोएडा का अरूण विहार हमारे महान सपूत सेना के लेफ्टिनेंट अरूण खेत्रपाल के नाम पर रखा गया है। अरूण खेत्रपाल को परमवीर चक्र से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष-1971 में भारत तथा पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में अरूण खेत्रपाल ने वह करिश्मा किया था जिसकी कोई कल्पना तक भी नहीं कर सकता था।

कौन थे अरूण खेत्रपाल

आपको बता दें कि जिन अरूण खेत्रपाल के नाम पर नोएडा शहर के तीन सेक्टरों सेक्टर-28, 29 तथा 37 को मिलाकर अरूण विहार बना है वे अरूण खेत्रपाल भारतीय सेना के एक अदभुत सेना नायक थे। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करते हुए शहीद हुए अरूण खेत्रपाल का जीवन साहस की एक पवित्र पुस्तक की तरह से है।

अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पुणे में हुआ था। वे एक फौजी परिवार में जन्मे थे। उनके बाप दादाओं ने विश्व युद्ध में भाग लिया था और इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अरुण ने 1967 में एनडीए (NDA) ज्वाइन किया। 4 साल बादवर्ष 1971 में वें 17 पूना हॉर्स में कमीशन हो गए। रेजिमेंट जॉइन करने के कुछ ही दिनों बाद अरुण अहमदनगर में यंग ऑफिसर्स ट्रेनिंग कोर्स के लिए चले गए। ट्रेनिंग चल ही रही थी कि इसी बीच 3 दिसंबर 1871 को पाकिस्तान के साथ युद्ध की घोषणा हो गई। अरुण को अपनी यूनिट जॉइन करने का बुलावा आया। उन्हें जम्मू जाना था। इसलिए उन्होंने पहले दिल्ली की ट्रेन पकड़ी और यहां पंजाब मेल का इंतजार करने लगे। अरुण के पास एक जावा मोटरसाइकिल हुआ करती थी, जिसे उनके पिता ने तोहफे में दिया था और वो उसे अपने साथ ही लेकर चलते थे। उस दिन पंजाब मेल आने में कुछ वक्त था, इसलिए अरुण ने अपनी मोटरसाइकिल निकाली और घर पहुंच गए। घर पर सबने उसका खूब सत्कार किया था।

बहादुरी को सलाम

लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की रेजिमेंट 17 पूना हॉर्स को इंडियन आर्मी की 47 ह्लद्ध इन्फैंट्री ब्रिगेड के कमांड दी गयी थी. जिसे जम्मू पंजाब के शकरगढ़ सेक्टर में तैनात किया गया था. ये सैक्टर दोनों देशों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण था. क्योंकि यहां से जाने वाली रोड जम्मू को पंजाब से जोड़ती थी। इस रोड के बीच से बहने वाले नदी बसंतर के पुल पर अगर पाकिस्तान का कब्जा हो जाता तो वो जम्मू को पंजाब से तोड़ सकता था. 15 दिसंबर, रात नौ बजे थे, जब 47ह्लद्ध इन्फैंट्री ब्रिगेड ने इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया था। लेकिन इस बावजूद स्थिति बड़ी नाजुक थी. क्योंकि पाकिस्तान ने वहां माइंस बिछाई हुई थीं। जिसके चलते 17 पूना हॉर्स के टैंक्स आगे नहीं बढ़ सकते थे। इन माइंस को हटाने की जिम्मेदारी इंजीनियर कोर की थी। जो अभी आधी ही माइंस हटा पाई थी जब पता चला कि पाकिस्तान अपने टैंक्स लेकर आगे बढ़ रहा था। ऐसे में 17 पूना हॉर्स ने तय किया कि माइंस के बीच ही टैंक उतारने होंगे।

अगली सुबह 8 बजे पाकिस्तान के 13 लांसर्स ने अटैक किया। 13 लांसर्स के पास अमेरिकी मेड 50 टन के पैटन टैंक थे। वहीं दूसरी तरफ 17 पूना हॉर्स के पास वर्ल्ड वॉर के जमाने के ब्रिटिश मेड सेंचुरियन टैंक थे। 17 पूना हॉर्स की A और B दो स्वाड्रन थीं. लांसर्स ने B स्क्वाड्रन पर हमला किया तो उन्होंने A स्क्वाड्रन से मदद की गुहार की स्क्वाड्रन के टैंक मदद के लिए आगे बढ़े। इनमें से एक पर अरुण खेत्रपाल सवार थे। कई घंटे चली भीषण लड़ाई में क्च स्क्वाड्रन ने पाकिस्तान के 7 टैंक उड़ा दिए। अरुण खेत्रपाल के टैंक पर भी एक गोला लगा। जिससे उनके टैंक में आग लग गई। उनके सीनियर ने उन्हें टैंक छोडऩे का आदेश दिया, लेकिन अरुण तैयार नहीं हुए। उन्होंने रेडियो से सन्देश भेजा।

अरुण खेत्रपाल का ये आखिरी मेसेज था। इसके बाद उनका रेडियो बंद हो गया। जलते हुए टैंक से ही उन्होंने पाकिस्तान के चार टैंक ठीक ऐसे उड़ा दिए कि मानो कोई खिलौना उड़ाया हो और वहीं डटे रहे। उनके सामने अब सिर्फ एक पाकिस्तानी टैंक बचा था। जिस पर सवार थे लेफ्टिनेंट नासेर। दोनों टैंकों की बीच क 200 मीटर की दूरी थी. दोनों टैंकों ने बिना देरी किए एक साथ, एक दूसरे की ओर फायर कर दिया।

ये सब 16 दिसंबर को हो रहा था। युद्ध के आखिरी दिन। इसी समय वहां से कई मील दूर दिल्ली में अरुण के पिता और भाई एक इम्पोर्टेड हिताची ट्रांजिस्टर पर कान लगाकर युद्ध की खबरें सुन रहे थे. रेडियो सीलोन शकरगढ़ में चल रही टैंक बैटल का ब्यौरा बता रहा था। जैसे ही खेत्रपाल फैमली ने शकरग ? का नाम सुना, उनका दिल बैठ गया। उन्हें पता था कि अरुण भी इसी सेक्टर में तैनात था. सबको किसी अनहोनी का डर सता रहा था। लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं। अगली सुबह रेडियो पर एक और खबर आई। इंदिरा गांधी ने युद्धविराम की घोषणा कर दी थी। खेत्रपाल परिवार ने राहत की सांस ली। सब अरुण के घर आने की तैयारी में लग गए। तीन दिन बाद, 19 दिसंबर की सुबह दरवाजे की घंटी बजी। पोस्टमैन के हाथों एक खत आया था। जिस पर लिखा था।

‘गहरे खेद के साथ आपको सूचित किया जाता है कि आपके पुत्र, IC 25067, सेकेंड लेफ़्टिनेंट खेत्रपाल, 16 दिसंबर को युद्धक्षेत्र में लड़ते हुए मारे गए, कृपया हमारी संवेदनाएं स्वीकार करें’। इस जंग में वीरता दिखाने के लिए सेकेण्ड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को परम वीर चक्र से नवाजा गया। इस युद्ध में अरूण खेत्रपाल ने दुशन पाकिस्तान के टैंकों को खिलौनों की तरह उड़ाकर एक अमर गाथा लिख दी थी। ऐसे थे महान सपूत अरूण खेत्रपाल। उनके परिजन तथा पूरा भारत देश आज भी उनके ऊपर गर्व करता है।

सेक्टर-37 में है प्रतिमा

नोएडा शहर के सेक्टर-37 में महान सपूत अरूण खेत्रपाल की एक सुंदर प्रतिमा स्थापित है। हर साल भारतीय सेना 16 दिसंबर को अपनी जीत का जश्न मनाते समय भारत के महान सपूत अरूण खेत्रपाल को पूरी शिददत के साथ याद करती है। नोएडा में हर वर्ष सेना दिवस के मौके पर अरूण खेत्रपाल को सलाम बजाया जाता है।

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