बेटे को मिले सिर्फ 60% नंबर, अधिकारी पिता की ये पोस्ट हर मां-बाप को जरूर पढ़नी चाहिए

Picsart 25 05 19 11 32 57 126
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 04:17 PM
bookmark
हर साल बोर्ड रिजल्ट्स के आने के बाद कई घरों में जश्न होता है, तो कई घरों में मायूसी। अपेक्षित अंक न आने पर बच्चे टूट जाते हैं और माता-पिता की नाराज़गी से उनका आत्मविश्वास और भी गिर जाता है। लेकिन इस बार एक अधिकारी पिता की सोच और उसकी सोशल मीडिया पोस्ट लाखों छात्रों और अभिभावकों के लिए प्रेरणा बन गई है। बात हो रही है अलीगढ़ के बेसिक शिक्षा अधिकारी राकेश सिंह की, जिन्होंने अपने बेटे ऋषि सिंह की CBSE कक्षा 12वीं की मार्कशीट को सोशल मीडिया पर शेयर किया। उनके बेटे को मात्र 60% अंक मिले, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने ना केवल बेटे को बधाई दी, बल्कि एक ऐसा मोटिवेशनल संदेश लिखा, जो देखते ही देखते वायरल हो गया। “पापा, आपको गुस्सा नहीं आया?” – बेटे ने पूछा, और जवाब ने सबका दिल जीत लिया

राकेश सिंह ने X (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा:

“जीवन को कहीं से भी, कभी भी शुरू किया जा सकता है। मेरे बेटे ऋषि ने 60% अंकों के साथ इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण की है। बेटे को ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं।” जब उन्होंने बेटे की मार्कशीट सोशल मीडिया पर पोस्ट की, तो उनका बेटा ऋषि थोड़ा झिझकते हुए बोला: “पापा, आपको गुस्सा नहीं आया कि मुझे इतने औसत नंबर मिले?”

राकेश सिंह ने जवाब दिया:

“नहीं बेटा, मुझे गुस्सा नहीं है। बल्कि मैं आज उतना ही खुश हूं जितना मैं अपनी सरकारी नौकरी के चयन पर भी नहीं था।” रिजल्ट नहीं, नजरिया मायने रखता है

राकेश सिंह ने अपने अनुभव साझा करते हुए लिखा कि:

“तुम्हारे 60% अंक आए हैं, मेरे पास स्नातक में केवल 52%, हाई स्कूल में 60% और इंटर में 75% अंक थे। लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी।” उन्होंने आगे बताया कि वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक हैं। जब उन्होंने प्रवेश लिया था, तब उन्हें इतिहास विषय की ABC भी नहीं पता थी, लेकिन कड़ी मेहनत से उन्होंने 2000 में पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा में इतिहास में 80% अंक प्राप्त किए। “मैंने यह साबित किया कि मजबूत इच्छाशक्ति से कुछ भी संभव है। हर बच्चा प्रतिभाशाली होता है – जरूरत है बस सही मार्गदर्शन और हौसला देने की।”

कम अंक आने पर भी बच्चों का मनोबल बढ़ाएं

इस प्रेरणादायक पोस्ट के ज़रिए उन्होंने लाखों माता-पिताओं को संदेश दिया कि अगर बच्चे को कम अंक मिले या वह सफल नहीं हो पाया, तो घबराने की जरूरत नहीं है। जिंदगी में कभी भी, कहीं से भी नई शुरुआत की जा सकती है। “मैं विशेष रूप से उन माता-पिता को बधाई देना चाहता हूं, जिनके बच्चे इस बार सफल नहीं हो पाए। आपकी सकारात्मक सोच ही बच्चों को आगे बढ़ने की ताकत देती है।”

ऋषि सिंह का स्कोर और सपना

राकेश सिंह के बेटे ऋषि सिंह ने CBSE 12वीं परीक्षा में निम्नलिखित अंक प्राप्त किए: अंग्रेजी: 66 अंक, भूगोल: 62 अंक, शारीरिक शिक्षा: 70 अंक, राजनीति विज्ञान: 53 अंक और इतिहास: 50 अंक। ऋषि का सपना है वकील बनना, और वह CLAT (Common Law Admission Test) की काउंसलिंग शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं।

सोशल मीडिया पर वायरल हुई पोस्ट

राकेश सिंह की यह पोस्ट सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अब तक 230 से अधिक बार रीपोस्ट की जा चुकी है और हजारों लोगों ने इसे प्रेरणादायक बताया है। इस पोस्ट ने साबित कर दिया कि नंबर भले ही कम हों, लेकिन यदि माता-पिता का नजरिया सकारात्मक हो, तो हर बच्चा आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ सकता है। हर साल आने वाले बोर्ड रिजल्ट्स में कुछ बच्चे चमकते हैं, तो कुछ पीछे रह जाते हैं। लेकिन असली जीत तब होती है जब माता-पिता अपने बच्चों का साथ दें, चाहे परिणाम जैसा भी हो। राकेश सिंह की पोस्ट हर उस अभिभावक के लिए एक संदेश है – कि नंबर सिर्फ एक पड़ाव हैं, मंज़िल नहीं। बटन दबता और सब खत्म हो जाता! हैदराबाद में ISIS साजिश का पर्दाफाश
अगली खबर पढ़ें

चंबल से UPSC तक: मशहूर डाकू का पोता बना अफसर, पढ़ें देव तोमर के संघर्ष की बेमिसाल कहानी

Picsart 25 05 06 16 05 11 007
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 05:22 PM
bookmark
चंबल घाटी, जिसे कभी डाकुओं की धरती कहा जाता था, आज एक ऐसी कहानी का गवाह बनी है जो न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी साबित करती है कि जन्म से नहीं, कर्म से इंसान की पहचान बनती है। देव तोमर – एक ऐसा नाम, जिसने नकारात्मक विरासत को पीछे छोड़कर अपने जज़्बे और मेहनत से नया इतिहास रच दिया। देव मध्यप्रदेश के उस परिवार से हैं, जिसकी पहचान कभी भय और बंदूकों से होती थी। उनके दादा रामगोविंद सिंह तोमर कुख्यात डाकू थे। लेकिन देव ने उस विरासत को नहीं अपनाया। उन्होंने शिक्षा को अपना हथियार बनाया। उनके पिता बलवीर सिंह तोमर ने भी पढ़ाई को प्राथमिकता दी और वही संस्कार देव में भी आए। देव ने IIT Roorkee से पढ़ाई पूरी की और 88 लाख रुपये के पैकेज पर एक मल्टीनेशनल कंपनी में साइंटिस्ट बने। लेकिन उनका सपना कुछ और था — देश के लिए कुछ करने का। 2019 में उन्होंने UPSC की तैयारी शुरू की। शुरू के दो साल उन्होंने खुद के पैसों से पढ़ाई की, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते उनकी पत्नी ने नौकरी कर उन्हें सहारा दिया। परिवार ने भी हर मोड़ पर साथ निभाया। तानों, असफलताओं और कठिनाइयों के बावजूद देव ने हार नहीं मानी। 2025 में उन्होंने UPSC में 629वीं रैंक हासिल की और अब वे एक अफसर बनने जा रहे हैं। देव की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, एक पूरे समाज की सोच को बदलने की मिसाल है। ये बताता है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी अतीत आपके भविष्य को नहीं रोक सकता। भारत में 1971 के बाद सबसे बड़ी मॉकड्रिल , हमलो से कैसे बचेंगे सिखाएंगे
अगली खबर पढ़ें

कैसे एक हड़ताल ने बदल दी दुनिया? जानिए विश्व मजदूर दिवस का असली इतिहास

Picsart 23 05 01 08 30 10 291
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 May 2025 12:30 PM
bookmark
World Labour Day: हर साल 1 मई को 'अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस' या 'मई दिवस' के रूप में मनाया जाता है। यह दिन श्रमिकों के अधिकारों, संघर्षों और योगदान को सम्मानित करने के लिए समर्पित है। इसकी शुरुआत एक ऐतिहासिक हड़ताल से हुई थी, जिसने दुनिया भर में श्रमिक आंदोलनों की दिशा बदल दी।

मजदूर दिवस का इतिहास: 1886 की शिकागो हड़ताल और हेमार्केट घटना

1886 में अमेरिका के शिकागो शहर में मजदूरों ने 8 घंटे कार्यदिवस की मांग को लेकर एक बड़ा आंदोलन शुरू किया। 1 मई को लगभग 80,000 मजदूरों ने '8 घंटे काम, 8 घंटे आराम, 8 घंटे मनोरंजन' के नारे के साथ मार्च निकाला। इस आंदोलन में देशभर से लगभग 3,50,000 मजदूरों ने भाग लिया। 4 मई को शिकागो के हेमार्केट स्क्वायर में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान एक अज्ञात व्यक्ति ने बम फेंका, जिससे 7 पुलिसकर्मी और 4 नागरिक मारे गए। इस घटना के बाद कई मजदूर नेताओं को गिरफ्तार किया गया और उनमें से चार को फांसी दी गई। इस घटना को 'हेमार्केट नरसंहार' के नाम से जाना जाता है और यह मजदूर आंदोलन का एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया।

World Labour Day: 1 मई को ही क्यों चुना गया?

1889 में पेरिस में आयोजित 'द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय' सम्मेलन में निर्णय लिया गया कि 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा, ताकि हेमार्केट घटना में मारे गए मजदूरों को श्रद्धांजलि दी जा सके और 8 घंटे कार्यदिवस की मांग को वैश्विक स्तर पर उठाया जा सके। तब से, यह दिन दुनिया भर में श्रमिकों के संघर्ष और अधिकारों की याद में मनाया जाता है।

भारत में कब ही मजदूर दिवस की शुरुआत, जाने महत्व

भारत में पहली बार मजदूर दिवस 1 मई 1923 को चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में मनाया गया। लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान के नेता सिंगरावेलू चेट्यार ने इसकी शुरुआत की। इस दिन को 'लेबर डे' के रूप में मान्यता दी गई और तब से यह भारत में भी श्रमिकों के अधिकारों और योगदान को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है।

World Labour Day: 2025 की थीम:

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) हर साल मजदूर दिवस के लिए एक थीम निर्धारित करता है। 2025 की थीम है: "सामाजिक न्याय और सभी के लिए गरिमापूर्ण कार्य"।

इस थीम का महत्व:

समान अवसर: सभी श्रमिकों को बिना किसी भेदभाव के समान अवसर प्रदान करना। न्यायपूर्ण वेतन: श्रमिकों को उनके कार्य के अनुसार उचित वेतन सुनिश्चित करना। सुरक्षित कार्यस्थल: श्रमिकों के लिए सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण प्रदान करना। सामाजिक सुरक्षा: श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ देना। यह थीम विशेष रूप से उन श्रमिकों के लिए महत्वपूर्ण है जो असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं और जिन्हें अक्सर उनके अधिकारों से वंचित रखा जाता है। मजदूर दिवस केवल एक अवकाश नहीं है, बल्कि यह श्रमिकों के संघर्षों, बलिदानों और उपलब्धियों की याद दिलाता है। 1886 की शिकागो हड़ताल और हेमार्केट घटना ने दुनिया भर में श्रमिक आंदोलनों को प्रेरित किया और आज भी यह दिन हमें श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और उनके सम्मान की आवश्यकता की याद दिलाता है। 2025 की थीम 'सामाजिक न्याय और सभी के लिए गरिमापूर्ण कार्य' हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने समाज में श्रमिकों के लिए कितनी समानता और न्याय सुनिश्चित कर पा रहे हैं। World Dance Day: डांस सिर्फ मस्ती नहीं, सेहत का खजाना भी! जानिए कैसे?