Birthday Special: इंटरनेट' का जन्मदिन है आज

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 विनय संकोची

आज पूरी दुनिया इंटरनेट पर आश्रित हो चली है। विज्ञान के इस काल में इंटरनेट के बिना जीवन की कल्पना कर पाना संभव नहीं है। इंटरनेट यदि कुछ देर के लिए बंद हो जाए तो पूरी दुनिया ही थम जाती है। जिस इंटरनेट ने पूरी दुनिया पर कब्जा कर लिया है आज ही के दिन 29 अक्टूबर 1969 को इसका जन्म हुआ था।

इंटरनेट का प्रारंभिक विकास 1969 में अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा शुरू किया गया था जिसे एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी या इआरपीए कहा जाता है। इस एजेंसी ने अपने सैन्य उपयोग के लिए एआरपीएएनईटी (अरपानेट) नामक एक विश्वसनीय कंप्यूटर नेटवर्क बनाया जिसने आज के इंटरनेट की नींव रखी। 1972 में रेटामलिंसन ने पहला ईमेल संदेश भेजा और जैसे-जैसे ईमेल के माध्यम से सूचना भेजने के फायदों का पता चलता गया इसका उपयोग बढ़ता चला गया और इस तरह नेटवर्क लोकप्रिय हो गया। सन 1979 में ब्रिटिश डाकघर में पहली बार इंटरनेट का प्रयोग प्रौद्योगिकी के रूप में किया गया। 1984 में इस नेटवर्क से करीब एक हजार से ज्यादा कंप्यूटर जुड़ गए। धीरे-धीरे दूसरे देशों में भी सूचनाओं का आदान प्रदान करने के लिए इस नेटवर्क का प्रयोग होने लगा। 1986 में इसे एनएसएफनेट का नाम दिया गया और धीरे-धीरे सारी दुनिया को इंटरनेट ने अपने कब्जे में कर लिया।

शुरुआती दौर में इंटरनेट का इस्तेमाल प्राइवेट नेटवर्क की तरह किया गया और धीरे-धीरे जैसे-जैसे बदलाव आते गए इसे प्राइवेट से सार्वजनिक कर दिया गया। जैसे-जैसे इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ता गया, वैसे-वैसे इसके फायदे और नुकसान सामने आते गए। पहले फायदों की बात करें। ज्यादातर लोग सोशल नेटवर्किंग इंटरनेट मनोरंजन और ऑनलाइन जानकारी के लिए करते हैं, जो कि फायदेमंद है। किसी को मैसेज करना है या कोई ऑडियो- वीडियो संदेश भेजना है, तो व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्वीटर का उपयोग कर भेज सकते हैं। ईमेल का उपयोग कर भी संदेश भेजे जा सकते हैं। इंटरनेट से ऑनलाइन पढ़ाई की जा सकती है। घर बैठे शॉपिंग कर सकते हैं। ऑनलाइन बैंकिंग की सुविधा का लाभ ले सकते हैं। रेलवे और हवाई जहाज आदि के टिकट घर बैठे बुक करने की सुविधा इंटरनेट देता है। बहुत दूर बैठे प्रियजन से भी वीडियो कॉलिंग के माध्यम से रूबरू बात कर सकते हैं। ऑनलाइन गेम खेल सकते हैं, मनोरंजन के लिए उपलब्ध सामग्री का आनंद ले सकते हैं। बेरोजगार हैं, तो घर बैठकर इंटरनेट के माध्यम से तमाम तरह की नौकरियों की तलाश कर सकते हैं और भी भांति-भांति के लाभ आप इंटरनेट से ले सकते हैं।

यह इंटरनेट के उपयोग का एक पहलू है, जो फायदे वाला है लेकिन दूसरा पहलू नुकसान वाला भी है। इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल करते-करते जिसको इसकी लत लग जाती है तो वह अपना समय बर्बाद करने लगता है। कुछ लोग धन कमाने के लिए ऐसी जानकारी शेयर कर बैठते हैं जो कि गलत होती है और फिर इस गलती से कई तरह के नुकसान उठाने पड़ते हैं। इंटरनेट पर पॉर्नोग्राफी साइट बहुत ज्यादा हैं, जो कि बड़ों के साथ बच्चों के दिमाग को दूषित कर रही है। यह साइट समाज में सेक्स से जुड़े अपराधों को बढ़ावा देती हैं।

इंटरनेट ने दुनिया को बहुत छोटा कर दिया है। आज दुनिया के सभी देशों के नेटवर्क आपस में जुड़ गए हैं, जिससे सूचना का आदान प्रदान, शोध, वित्तीय लेनदेन समेत तमाम ऐसी चीजें अल्प समय में ही होने लगी हैं, जिसके बारे में पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

इंटरनेट के नाम की कहानी भी कम रोचक नहीं है। 1960 में इंटरनेट ट्रांजिस्टर का ब्रांड नेम होता था। नीदरलैंड में 1954 में इस ट्रांजिस्टर का निर्माण शुरू हुआ था, जिसे 60 के दशक में नई पहचान मिली। माना जाता है कि 60 के दशक में सबसे पहले इंटरनेट शब्द का इस्तेमाल किया गया था। आगे चलकर जैसे-जैसे तकनीक विकसित हुई, इंटरनेट ट्रांजिस्टर गायब हो गया और इंटरनेट रह गया।

भारत में इंटरनेट की शुरुआत 15 अगस्त 1995 में हुई थी। शुरुआती दौर में भारत में लगभग 20-30 कंप्यूटर इंटरनेट से जुड़े थे। आज तो लगभग 90% स्मार्टफोन धारक भारत में इंटरनेट का प्रयोग कर रहे हैं। आज इंटरनेट इस्तेमाल करने के मामले में भारत दुनिया का दूसरे नंबर का देश है। इंटरनेट की दुनिया में जितनी क्रांति भारत में जिस रफ्तार से हुई है, शायद ही किसी अन्य विकासशील देश में हुई हो। आज औसतन प्रत्येक भारतीय हर महीने 12 जीबी डाटा खर्च कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन, लर्निंग और ब्लॉक चेन जैसी तकनीक का इस्तेमाल भी पूरी तरह से इंटरनेट पर ही आधारित होगा।

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धर्म-अध्यात्म : परमात्मा के अतिरिक्त कोई अपना नहीं!

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calendar29 Oct 2021 04:36 AM
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विनय संकोची

अपना का शाब्दिक अर्थ है - निज का, निजी, स्वकीय, स्वयं का, आत्मीय। अपना से ही अपनापन, अपना-पराया और अपनाना बनता है। सबसे पहले अपना के अर्थ 'निज का' पर विचार करते हैं। व्यक्ति का 'निज का' है ही क्या? न यह तन उसका, न यह धन संपत्ति उसकी है, न संबंध उसके हैं, न संसार उसका है, तो फिर उस का 'निज का' है क्या, कुछ भी नहीं। सब कुछ तो उस परमपिता परमात्मा का दिया हुआ है, जिसे व्यक्ति अपना मान बैठता है, उसमें से वह कुछ भी तो अपने साथ लेकर जा नहीं सकता है। यदि धन-संपत्ति, पत्नी, पुत्र-पुत्री, माता-पिता, भाई-बहन मनुष्य के होते, तो वह मृत्यु के समय उन्हें अपने साथ लेकर जा सकता। परंतु वह ऐसा कर नहीं पाता है, ऐसा कर ही नहीं सकता है, इसलिए इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए कि हमारा अपना कुछ है ही नहीं। यह देह भी नहीं जिस पर हम अभिमान करते हैं और उसकी तुष्टि-पुष्टि के लिए गलत सही काम करते हैं। सत्य तो यही है कि न तो जीवन हमारा है और न ही जीवन में कोई हमारा है। हम खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही जाना है, यही शाश्वत सत्य है तो फिर अपना रहा ही क्या?

जान लें अपना है तो सिर्फ वही परमात्मा जो हमें जीव-रूप इस धरा धाम पर भेजता है। वही अपना है, इसीलिए आत्मा के रूप में हमारे भीतर विराजित होकर हमें नियंत्रित-निर्देशित करता है। भीतर बसा हुआ परमात्मा हमारे को अपने से एक पल को भी अलग नहीं रखता है। वही हमारा अपना है और हम वास्तव में केवल उसके हैं। यह ऐसा संबंध है जो अटूट है, अलौकिक है, शाश्वत है।

हमारी योग्यता, पात्रता और अधिकारिता आदि उस अपनेपन के सामने कुछ भी नहीं है, जो कहता है- 'मैं भगवान का हूं, भगवान मेरे हैं।' इस अपनेपन के आगे सब गौण हैं। शास्त्र कहते हैं - भगवान में अपनापन सबसे सरल सुगम और श्रेष्ठ साधन है। सच तो यही है कि भगवान के अतिरिक्त मेरा कोई नहीं है ऐसा मान लेना, यह बात ह्रदय की गहराइयों में उतार लेना ही असली भगवत भक्ति है।

भगवान के साथ अपनापन, भगवान के साथ हमारा नाता स्वतः स्वाभाविक है और हमें इस सत्य को स्वीकार करते हुए स्वयं को भगवान को ही अपना मान लेना चाहिए। हमें भगवान का हो जाना चाहिए, जो अपना है वह तो हमारे भीतर है केवल उसे महसूस करना है क्योंकि हम संसार को अपना मानते हैं इसलिए अपने अंदर बैठे अपने को न महसूस कर पाते हैं, न देख पाते हैं। हम पूरी उम्र लोक से जुड़े रहकर 'लौकिक' को ही अपना मानते हुए परमात्मा से दूरी बनाकर 'अलौकिक' से वंचित रह जाते हैं।

'अपना' से 'अपनाना' बनता है। हम वास्तव में उसे अपनाते हैं, जो हमें प्रिय होता है या फिर जिससे हमारा कोई स्वार्थ पूरा होता है। हम किसी भी अप्रिय को प्रिय मानकर गले से नहीं लगाते हैं। अपनापन भी वहीं प्रकट होता है, जहां प्रियता हो। जिसे हम अपना मानेंगे उसी से अपनापन भी मानेंगे और अपनापन जताएंगे भी। जताना मनुष्य की प्रवृत्ति है, शौक है। अधिकांश लोग इस शौक का शिकार होते हैं, बिना जताए उनमें संतुष्टि का भाव आता ही नहीं है।

भगवान को हम प्रिय हैं, इसीलिए वह हमें अपनाता है, हमसे अपनापन मानता है। हमें भगवान की कृपा और भगवान तो प्रिय हैं लेकिन अपनापन हम नश्वर संसार से मानते हैं यही गड़बड़ है। चाहते सब कुछ भगवान से हैं, मांगते, हाथ फैलाते भगवान के सामने हैं, परंतु उसके साथ अपनापन मानते नहीं हैं। हम दो नावों पर सवार रहते हैं, इसी कारण से हमारी नाव डगमगा जाती है और हमारा चित्त स्थिर नहीं रह पाता है।

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शादी की है जल्दी तो इन 24 दिनों में करें, इसके बाद नहीं है शुभ मुहूर्त

Marriage 4 1
Vivah Muhurat 2022
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calendar28 Oct 2021 09:06 AM
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दीपावली (diwali( पर्व संपन्न होते ही शहनाईयां बजना शुरु हो जाएगी यानी शादी का सीजन (wedding season) शुरु हो जाएगा। यदि आपका भी रिश्ता हो चुका है या आप जल्द ही शादी (marriage) करने की योजना बना रहे हैं तो आपके लिए यह खबर फायदेमंद हो सकती है। क्योंकि दीपावली पर्व संपन्न होने के पंद्रह दिन बाद से शादी का सीजन (wedding season) शुरु हो रहा है। कुल 24 दिन का ही शादी का सीजन होगा और कुल 15 शुभ मुहूर्त होंगे। आपको बता दें कि 19 नवंबर 2021 से शादी का सीजन शुरु होगा और 13 दिसंबर 2021 तक रहेगा। इन 24 दिनों में केवल 15 मुहूर्त हैं। जिन मुहूर्तों को शुभ माना जाता है और ज्यादातर शादियां होती हैं। देवउठनी एकादशी से शादियां शुरू हो जाती हैं। 15 नवंबर 2021 को देवउठनी एकादशी है और शुभकार्य प्रारंभ हो जाएंगे।

कितने दिनों के हैं मुहूर्त? इस सीजन में देवउठनी एकादशी 15 नंवबर की है। पहला शुभ मुहूर्त 19 नंवबर 2021 का है और आखिरी मुहूर्त 13 दिसंबर 2021 का है। इस हिसाब से इन आगामी 2 महीनों में सिर्फ 15 शुभ मुहूर्त ही हैं। इसके बाद अगले साल 15 जनवरी 2022 से शुभ मुहूर्त प्रारंभ होंगे। देवउठनी एकादशी पर अबूझ मुहूर्त की वजह से भी खूब विवाह होंगे।

यह रहेंगे शादी के मुहूर्त माह नवंबर 2021 महीने 19, 20, 21, 26, 28, 29 व 30 को शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। इसके अलावा दिसंबर के महीने में 8 शुभ मुहूर्त हैं जोकि 1, 2, 5, 6, 7, 11, 12 और 13 तारीख को बन रहे हैं।

By- Yashraj Kaniya kumar