Inspirational Story : निदा हसन, जो लाखों लोगों की मदद कर उनकी आवाज़ बनीं, जानें इनके बारे में...
भारत
चेतना मंच
01 Dec 2025 08:13 AM
कहते हैं कि सपने तभी पूरे होते हैं, जब हम उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत को लग जाएं, वरना सपना देखते-देखते लोगों की जिंदगी गुजर जाती है, लेकिन कोई साकार नहीं होता. खास तौर पर दूसरों की मदद के लिए जिन्हें सपने देखने की आदत हो जाती है, उन्हें रात छोटी लगती है और जिनमें इन्हें पूरा करने की ललक होती है, उन्हें दिन छोटा लगता है. निदा हसन (Nida Hasan) भी एक ऐसा ही नाम है, जिन्होंने मेहनत के बलबूते दूसरों की मदद के नए आयाम स्थापित किए. Change.org की कंट्री डायरेक्टर निदा अपनी संस्था के लिए काम करते समय लाखों लोगों की आवाज बनी हैं. ऐसे ना जाने कितने ही किस्से हैं, जो लोगों की मदद के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों के विरले उदाहरण हैं.
ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट रहीं निदा हसन (Nida Hasan) बताती हैं कि जर्नलिज्म करने के दौरान उन्हें यह महसूस हुआ कि उन्हें समाज के लिए कुछ करना है. उन्होंने तभी से गैर सरकारी संगठन change.org से जुड़ने का फैसला किया. और ऐसा करना उनके लिए कतई आसान नहीं था, क्योंकि ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट के तौर पर वह इस फील्ड में अपने पैर गहरे जमा चुकी थीं. वह कहती हैं, एक दिन मुझे लगा कि अब पत्रकारिता से अलविदा कहकर उन लोगों की आवाज बनने का वक्त आ गया है, जिनके बारे में लोग कम सोचते हैं और वह किन्हीं वजहों से अपनी आवाज नहीं उठा पाते. यही वजह थी कि मैं change.org से जुड़ी.
Nida Hasan बताती हैं कि, एक रोज़ 11 साल के एक बच्चे आर्यन के पिता शिव शंकर चौधरी उनके पास आए और फूट-फूटकर रोने लगे. उनके बेटे को हंटर्स डिजीज थी, जोकि एक रेअर जेनेटिक डिसऑर्डर था. इसकी इलाज को दवाएं काफी महंगी थीं. दवाएं न मिलने पर बच्चा सालभर से ज्यादा जी नहीं पाता. निदा इस बच्चे के लिए आगे आईं और इस कैंपेन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने संचार माध्यमों का सहारा लिया और लोगों तक पहुंचाया. इस काम में महीनों लग गए, लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और शिवशंकर चौधरी की पुकार स्वास्थ्य मंत्री तक पहुंची और आर्यन का इलाज हो पाया. शिवशंकर चौधरी ने जब निदा को इसके लिए शुक्रिया कहा, तो दोनों फूट-फूटकर रोए. ये आंसू एक बच्चे को जीवनदान देने के सुख के थे.
Inspirational Story : वह मौत से बचा लाया अपनी पत्नी को…
ठीक इसी तरह, चाइल्ड अब्यूज का शिकार हुईं 40 की पूर्णिमा गोविंदराजू जब इतने लंबे वक्त बाद इसकी शिकायत दर्ज कराने थाने पहुंचीं, तो पुलिस ने इसे बरसों पुराना केस बताते हुए रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया गया. इस मामले में भी निदा पूर्णिमा की अवाज बनीं और पूर्णिमा को इंसाफ दिलाने के अभियान में उन्होंने कई लोगों से बात की. निदा कहती हैं कि ज्यादातर लोगों ने स्वीकारा कि बचपन में उनके साथ भी ऐसी घटनाएं हुईं, लेकिन उम्र की परिपक्वता न होने के चलते वे इसे गंभीरत से समझ न सके. निदा ने इस अभियान के लिए दिन-रात एक कर दिया. नतीजतन, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने घोषणा की कि चाइल्ड अब्यूज से जुड़े मामलों की एफआईआर दर्ज कराने के लिए उम्र सीमा तय नहीं होनी चाहिए. उक्त नियम से एक और फायदा यह हुआ था कि यौन शोषण करने वाले अपराधियों के मन में कानून का डर पैदा हो गया.
वह अपने बचपन का एक किस्सा याद करते हुए बताती हैं कि वह जिस कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ती थीं, वहां लड़कियों को चोटी बांधकर आने को कहा गया. वह उस वक्त 9वीं कक्षा में पढ़ती थीं. इसके विरोध में वह प्रिंसिपल के पास यह तर्क करने पहुंच गई कि ‘पोनी टेल’ में भी तो बाल बंधे होते हैं, फिर चोटी बांधने की क्या जरूरत है? जैसे-जैसे वह बड़ी होती गईं तो उनके घरवालों, स्कूलवालों और बाहरवालों को भी यह पता चल चुका था कि यह लड़की अपनी तार्किक बातों को लेकर तब तक चुप नहीं बैठेगी, जब तक अपनी बात मनवा न ले.
Motivational Story : आज भी समाज में मौजूद हैं राम व लक्ष्मण जैसे भाई
निदा का एक ओर क्रांतिकारी कदम यह था कि रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार की लड़की होने के बावजूद उन्होंने फ्रांस के लड़के से शादी की. निदा द्वारा चलाए गए एक अन्य कैंपेन को भी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का सपोर्ट मिला और पासपोर्ट संबंधी पुराने नियमों की समीक्षा की गई, जिसके बाद उसमें बदलाव किया गया. उनकी इस मेहनत की बदौलत अब केवल एक पेरेंट के नाम के साथ भी पासपोर्ट बनाया जा सकता है.
निदा कहती हैं कि आज भी देश के कई इलाकों में आने वाली बाढ़ के कारण लोग अपना घर और सामान छोड़कर सुरक्षित जगहों पर चलते जाते हैं. ऐसे में उनके पास खाना फूड और कपड़ों की तो खूब मदद आती है, लेकिन महिलाओं की हाइजीन से जुड़ा एक बड़ा मुद्दा दरकिनार कर दिया जाता है, जोकि है सैनेटरी पैड की जरूरतों का. एक ऐसा ही अभियान चला रही असम की मयूरी भट्टाचार्य का साथ निदा ने दिया. उन्होंने इस अभियान को अपनी संस्था के जरिये समर्थन दिया और असम सरकार ने प्राकृतिक आपदा या बाढ़ग्रस्त इलाकों में पहुंचाए जाने वाली राहत सामग्री में सैनेटरी पैड की व्यवस्था की और हर जरूरतमंद महिला तक इसे पहुंचाने की राह आसान बनाई गई.
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01 Dec 2025 08:13 AM
कहते हैं कि सपने तभी पूरे होते हैं, जब हम उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत को लग जाएं, वरना सपना देखते-देखते लोगों की जिंदगी गुजर जाती है, लेकिन कोई साकार नहीं होता. खास तौर पर दूसरों की मदद के लिए जिन्हें सपने देखने की आदत हो जाती है, उन्हें रात छोटी लगती है और जिनमें इन्हें पूरा करने की ललक होती है, उन्हें दिन छोटा लगता है. निदा हसन (Nida Hasan) भी एक ऐसा ही नाम है, जिन्होंने मेहनत के बलबूते दूसरों की मदद के नए आयाम स्थापित किए. Change.org की कंट्री डायरेक्टर निदा अपनी संस्था के लिए काम करते समय लाखों लोगों की आवाज बनी हैं. ऐसे ना जाने कितने ही किस्से हैं, जो लोगों की मदद के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों के विरले उदाहरण हैं.
ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट रहीं निदा हसन (Nida Hasan) बताती हैं कि जर्नलिज्म करने के दौरान उन्हें यह महसूस हुआ कि उन्हें समाज के लिए कुछ करना है. उन्होंने तभी से गैर सरकारी संगठन change.org से जुड़ने का फैसला किया. और ऐसा करना उनके लिए कतई आसान नहीं था, क्योंकि ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट के तौर पर वह इस फील्ड में अपने पैर गहरे जमा चुकी थीं. वह कहती हैं, एक दिन मुझे लगा कि अब पत्रकारिता से अलविदा कहकर उन लोगों की आवाज बनने का वक्त आ गया है, जिनके बारे में लोग कम सोचते हैं और वह किन्हीं वजहों से अपनी आवाज नहीं उठा पाते. यही वजह थी कि मैं change.org से जुड़ी.
Nida Hasan बताती हैं कि, एक रोज़ 11 साल के एक बच्चे आर्यन के पिता शिव शंकर चौधरी उनके पास आए और फूट-फूटकर रोने लगे. उनके बेटे को हंटर्स डिजीज थी, जोकि एक रेअर जेनेटिक डिसऑर्डर था. इसकी इलाज को दवाएं काफी महंगी थीं. दवाएं न मिलने पर बच्चा सालभर से ज्यादा जी नहीं पाता. निदा इस बच्चे के लिए आगे आईं और इस कैंपेन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने संचार माध्यमों का सहारा लिया और लोगों तक पहुंचाया. इस काम में महीनों लग गए, लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई और शिवशंकर चौधरी की पुकार स्वास्थ्य मंत्री तक पहुंची और आर्यन का इलाज हो पाया. शिवशंकर चौधरी ने जब निदा को इसके लिए शुक्रिया कहा, तो दोनों फूट-फूटकर रोए. ये आंसू एक बच्चे को जीवनदान देने के सुख के थे.
Inspirational Story : वह मौत से बचा लाया अपनी पत्नी को…
ठीक इसी तरह, चाइल्ड अब्यूज का शिकार हुईं 40 की पूर्णिमा गोविंदराजू जब इतने लंबे वक्त बाद इसकी शिकायत दर्ज कराने थाने पहुंचीं, तो पुलिस ने इसे बरसों पुराना केस बताते हुए रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया गया. इस मामले में भी निदा पूर्णिमा की अवाज बनीं और पूर्णिमा को इंसाफ दिलाने के अभियान में उन्होंने कई लोगों से बात की. निदा कहती हैं कि ज्यादातर लोगों ने स्वीकारा कि बचपन में उनके साथ भी ऐसी घटनाएं हुईं, लेकिन उम्र की परिपक्वता न होने के चलते वे इसे गंभीरत से समझ न सके. निदा ने इस अभियान के लिए दिन-रात एक कर दिया. नतीजतन, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने घोषणा की कि चाइल्ड अब्यूज से जुड़े मामलों की एफआईआर दर्ज कराने के लिए उम्र सीमा तय नहीं होनी चाहिए. उक्त नियम से एक और फायदा यह हुआ था कि यौन शोषण करने वाले अपराधियों के मन में कानून का डर पैदा हो गया.
वह अपने बचपन का एक किस्सा याद करते हुए बताती हैं कि वह जिस कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ती थीं, वहां लड़कियों को चोटी बांधकर आने को कहा गया. वह उस वक्त 9वीं कक्षा में पढ़ती थीं. इसके विरोध में वह प्रिंसिपल के पास यह तर्क करने पहुंच गई कि ‘पोनी टेल’ में भी तो बाल बंधे होते हैं, फिर चोटी बांधने की क्या जरूरत है? जैसे-जैसे वह बड़ी होती गईं तो उनके घरवालों, स्कूलवालों और बाहरवालों को भी यह पता चल चुका था कि यह लड़की अपनी तार्किक बातों को लेकर तब तक चुप नहीं बैठेगी, जब तक अपनी बात मनवा न ले.
Motivational Story : आज भी समाज में मौजूद हैं राम व लक्ष्मण जैसे भाई
निदा का एक ओर क्रांतिकारी कदम यह था कि रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार की लड़की होने के बावजूद उन्होंने फ्रांस के लड़के से शादी की. निदा द्वारा चलाए गए एक अन्य कैंपेन को भी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का सपोर्ट मिला और पासपोर्ट संबंधी पुराने नियमों की समीक्षा की गई, जिसके बाद उसमें बदलाव किया गया. उनकी इस मेहनत की बदौलत अब केवल एक पेरेंट के नाम के साथ भी पासपोर्ट बनाया जा सकता है.
निदा कहती हैं कि आज भी देश के कई इलाकों में आने वाली बाढ़ के कारण लोग अपना घर और सामान छोड़कर सुरक्षित जगहों पर चलते जाते हैं. ऐसे में उनके पास खाना फूड और कपड़ों की तो खूब मदद आती है, लेकिन महिलाओं की हाइजीन से जुड़ा एक बड़ा मुद्दा दरकिनार कर दिया जाता है, जोकि है सैनेटरी पैड की जरूरतों का. एक ऐसा ही अभियान चला रही असम की मयूरी भट्टाचार्य का साथ निदा ने दिया. उन्होंने इस अभियान को अपनी संस्था के जरिये समर्थन दिया और असम सरकार ने प्राकृतिक आपदा या बाढ़ग्रस्त इलाकों में पहुंचाए जाने वाली राहत सामग्री में सैनेटरी पैड की व्यवस्था की और हर जरूरतमंद महिला तक इसे पहुंचाने की राह आसान बनाई गई.
Deoghar: देवघर के त्रिकुट पहाड़ पर हादसा, रोप-वे की ट्रॉली टूटने से कई लोग घायल
Accident on Trikut mountain of Deoghar many people injured due to ropeway trolley breakdown
भारत
चेतना मंच
29 Nov 2025 09:06 PM
Deoghar News: बाबा नगरी देवघर में हादसा हुआ है. देवघर के त्रिकुट पहाड़ का रोप-वे की ट्राली टूटने (Ropeway trolley of Trikut mountain breaks) से कई लोग घायल हो गये हैं.
कई लोग रोप-वे में फंसे (People Stuck in Ropeway) हुए हैं. लग भग 70 से 100 लोगों के फंसे होने की सूचना है. राहत और बचाव का काम शुरू करने के लिए प्रशासन की टीम मौके के लिए रवाना हो गई है.
लोगों ने रोप-वे के मैनेजर पर आरोप लगाया है कि, उनकी लापरवाही से ही ये दुर्घटना हुई है. इस बीच स्थानीय सांसद निशिकांत दुबे ने इस हादसे में घायल लोगों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है.
>> ये भी पढ़े:- Greater Noida News: ग्रेटर नोएडा में पुलिस भर्ती की तैयारी कर रही छात्रा बीच सड़क से हुई अगवा
उन्होंने मुख्य सचिव और झारखंड सरकार और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से अविलंब एनडीआरएफ की टीम (NDRF team) के साथ आवश्यक बचाव दल मौके पर भेजने का आग्रह किया है.
जिसके बाद एनडीआरएफ की टीम घटनास्थल के लिए रवाना हो गई है. दुबे ने तुरंत मामले पर संज्ञान में लेने के लिए गृहमंत्री अमित शाह का आभार व्यक्त किया है.
देवघर डीसी ने बताया कि घटना में दो लोग घायल हुए हैं. जिन्हें अस्पताल भेज दिया गया है. कुछ लोग रेपवे के ट्रॉली में फंसे हुए हैं. (Deoghar)
एनडीआरआफ की टीम की मदद से उन्हें बाहर निकाला जा रहा है. रेपवे का एक ट्रॉली जगह से खिसक जाने के कारण ये हादसा पेश आया है.
>> ये भी पढ़े:- Pakistan Political Crisis: कौन बनेंगे पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री, जानिए विस्तार से
Deoghar: तीन शिखर का पर्वत होने के कारण नाम पड़ा त्रिकुट पहाड़
बता दें कि त्रिकूट पर्वत दुमका रोड पर देवघर से लगभग 13 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है. तीन शिखरों का पर्वत होने के कारण इस पहाड़ को त्रिकुट पहाड़ के नाम से जाना जाता है.
इस पहाड़ की तीनों चोटियों में सबसे ऊंची चोटी 2470 फीट की है. त्रिकुट रोपवे भारत का सबसे ऊंचा ऊर्ध्वाधर रोपवे है.
जिसका अधिकतम लेंस कोण 44 डिग्री है. रोपवे की लंबाई 766 मीटर (2512 फीट) है. झारखंड में त्रिकुट पहाड़ एकमात्र पर्यटन स्थल है जहां रोपवे का इस्तेमाल किया जाता है.
रोप-वे में पर्यटकों के लिए कुल 25 केबिन उपलब्ध हैं, जिसमें प्रत्येक केबिन में चार लोग बैठ सकते हैं. रोपवे से पहाड़ की चोटी तक पहुंचने के लिए केवल 8 मिनट समय लगता है. रोपवे की क्षमता 500 लोग प्रति घंटे का है.
>> ये भी पढ़े:- Amarnath Yatra Registration: आज से अमरनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन शुरू, यहां जानें जरुरी बातें
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भारत
चेतना मंच
29 Nov 2025 09:06 PM
Deoghar News: बाबा नगरी देवघर में हादसा हुआ है. देवघर के त्रिकुट पहाड़ का रोप-वे की ट्राली टूटने (Ropeway trolley of Trikut mountain breaks) से कई लोग घायल हो गये हैं.
कई लोग रोप-वे में फंसे (People Stuck in Ropeway) हुए हैं. लग भग 70 से 100 लोगों के फंसे होने की सूचना है. राहत और बचाव का काम शुरू करने के लिए प्रशासन की टीम मौके के लिए रवाना हो गई है.
लोगों ने रोप-वे के मैनेजर पर आरोप लगाया है कि, उनकी लापरवाही से ही ये दुर्घटना हुई है. इस बीच स्थानीय सांसद निशिकांत दुबे ने इस हादसे में घायल लोगों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है.
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उन्होंने मुख्य सचिव और झारखंड सरकार और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से अविलंब एनडीआरएफ की टीम (NDRF team) के साथ आवश्यक बचाव दल मौके पर भेजने का आग्रह किया है.
जिसके बाद एनडीआरएफ की टीम घटनास्थल के लिए रवाना हो गई है. दुबे ने तुरंत मामले पर संज्ञान में लेने के लिए गृहमंत्री अमित शाह का आभार व्यक्त किया है.
देवघर डीसी ने बताया कि घटना में दो लोग घायल हुए हैं. जिन्हें अस्पताल भेज दिया गया है. कुछ लोग रेपवे के ट्रॉली में फंसे हुए हैं. (Deoghar)
एनडीआरआफ की टीम की मदद से उन्हें बाहर निकाला जा रहा है. रेपवे का एक ट्रॉली जगह से खिसक जाने के कारण ये हादसा पेश आया है.
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Deoghar: तीन शिखर का पर्वत होने के कारण नाम पड़ा त्रिकुट पहाड़
बता दें कि त्रिकूट पर्वत दुमका रोड पर देवघर से लगभग 13 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है. तीन शिखरों का पर्वत होने के कारण इस पहाड़ को त्रिकुट पहाड़ के नाम से जाना जाता है.
इस पहाड़ की तीनों चोटियों में सबसे ऊंची चोटी 2470 फीट की है. त्रिकुट रोपवे भारत का सबसे ऊंचा ऊर्ध्वाधर रोपवे है.
जिसका अधिकतम लेंस कोण 44 डिग्री है. रोपवे की लंबाई 766 मीटर (2512 फीट) है. झारखंड में त्रिकुट पहाड़ एकमात्र पर्यटन स्थल है जहां रोपवे का इस्तेमाल किया जाता है.
रोप-वे में पर्यटकों के लिए कुल 25 केबिन उपलब्ध हैं, जिसमें प्रत्येक केबिन में चार लोग बैठ सकते हैं. रोपवे से पहाड़ की चोटी तक पहुंचने के लिए केवल 8 मिनट समय लगता है. रोपवे की क्षमता 500 लोग प्रति घंटे का है.
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Amarnath Yatra Registration: आज से अमरनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन शुरू, यहां जानें जरुरी बातें
Amarnath Yatra Registration starts today know all the things of work here
भारत
चेतना मंच
01 Dec 2025 06:09 PM
Amarnath Yatra Registration: शिवभक्तों के लिए अच्छी खबर है। आज से अमरनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन (Amarnath Yatra Registration) शुरू हो गया है।
कोरोना संकट की वजह से पिछले 2 सालों से यह यात्रा रद चल रही थी, लेकिन इस साल यात्रा को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया गया है।
इसी क्रम में 11 अप्रैल 2022 सोमवार से यात्रा का रजिस्ट्रेशन आरंभ हो गया है। इस साल की अमरनाथ यात्रा 30 जून 2022 से आरंभ होकर 11 अगस्त 2022 तक चलेगी।
>> ये भी पढ़े:-Ram Mandir: अयोध्या में श्रीराम मंदिर लेने लगा आकार, जानिए गर्भगृह में कब विराजेंगे रामलला
अमरनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन करने के लिए श्रद्धालु ऑफिशल वेबसाइट www.jksasb.nic.in और मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं।
इसके साथ ही पीएनबी बैंक, जम्मू-कश्मीर बैंक, यस बैंक और एसबीआई बैंक की 446 शाखाओं में भी यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू हो जाएगा।
एप्लीकेशन फॉर्म के साथ हेल्थ सर्टिफिकेट, 4 पासपोर्ट साइज फोटो की जरूरत रजिस्ट्रेशन में पड़ती है। आम तौर पर एक व्यक्ति को करीब 15,000 रुपया खर्च या सकता है।
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पहलगाम से शुरू होती है यात्रा
अमरनाथ यात्रा हर साल जम्मू और कश्मीर के पहलगाम (Pahalgam of Jammu and Kashmir) से आयोजित की जाती है। अमरनाथ यात्रा पहलगाम (Amarnath Yatra Pahalgam) से अमरनाथ की पवित्र गुफा पर खत्म होती है।
इस यात्रा को हिंदू धर्म में काफी पवित्र माना जाता है। अमरनाथ की पवित्र गुफा चारों ओर बर्फ के पहाड़ों से ढकी रहती है।
साल में केवल कुछ समय के लिए लिए गुफा से बर्फ हटती है, तब यह श्रद्धालुओं के लिए खोली जाती है। काफी चुनौतीपूर्ण पहाड़ी रास्तो से गुजरकर हर साल लाखो श्रद्धालु इस यात्रा को पूरा करते हैं।
पिछले 2 साल से कोरोना के सोशल डिस्टेंसिंग के नियमो का पालन करते हुए इस यात्रा को रद करना पड़ा था। इस यात्रा के लिए श्रद्धालुओं पहलगाम से अमनाथ गुफा तक करीब 43-48 किलोमीटर पैदल चलकर जाना होता है।
इसके अलावा अमरनाथ यात्रा का एक रूट बालटाल से होकर भी गुजरता है जो पहलगाम के मुकाबले छोटा है।
>> ये भी पढ़े:- यूपी से सुनील बंसल की विदाई लगभग तय, संघ की चिंतन बैठक में हुआ फैसला
भारत
चेतना मंच
01 Dec 2025 06:09 PM
Amarnath Yatra Registration: शिवभक्तों के लिए अच्छी खबर है। आज से अमरनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन (Amarnath Yatra Registration) शुरू हो गया है।
कोरोना संकट की वजह से पिछले 2 सालों से यह यात्रा रद चल रही थी, लेकिन इस साल यात्रा को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया गया है।
इसी क्रम में 11 अप्रैल 2022 सोमवार से यात्रा का रजिस्ट्रेशन आरंभ हो गया है। इस साल की अमरनाथ यात्रा 30 जून 2022 से आरंभ होकर 11 अगस्त 2022 तक चलेगी।
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अमरनाथ यात्रा का रजिस्ट्रेशन करने के लिए श्रद्धालु ऑफिशल वेबसाइट www.jksasb.nic.in और मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं।
इसके साथ ही पीएनबी बैंक, जम्मू-कश्मीर बैंक, यस बैंक और एसबीआई बैंक की 446 शाखाओं में भी यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू हो जाएगा।
एप्लीकेशन फॉर्म के साथ हेल्थ सर्टिफिकेट, 4 पासपोर्ट साइज फोटो की जरूरत रजिस्ट्रेशन में पड़ती है। आम तौर पर एक व्यक्ति को करीब 15,000 रुपया खर्च या सकता है।
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पहलगाम से शुरू होती है यात्रा
अमरनाथ यात्रा हर साल जम्मू और कश्मीर के पहलगाम (Pahalgam of Jammu and Kashmir) से आयोजित की जाती है। अमरनाथ यात्रा पहलगाम (Amarnath Yatra Pahalgam) से अमरनाथ की पवित्र गुफा पर खत्म होती है।
इस यात्रा को हिंदू धर्म में काफी पवित्र माना जाता है। अमरनाथ की पवित्र गुफा चारों ओर बर्फ के पहाड़ों से ढकी रहती है।
साल में केवल कुछ समय के लिए लिए गुफा से बर्फ हटती है, तब यह श्रद्धालुओं के लिए खोली जाती है। काफी चुनौतीपूर्ण पहाड़ी रास्तो से गुजरकर हर साल लाखो श्रद्धालु इस यात्रा को पूरा करते हैं।
पिछले 2 साल से कोरोना के सोशल डिस्टेंसिंग के नियमो का पालन करते हुए इस यात्रा को रद करना पड़ा था। इस यात्रा के लिए श्रद्धालुओं पहलगाम से अमनाथ गुफा तक करीब 43-48 किलोमीटर पैदल चलकर जाना होता है।
इसके अलावा अमरनाथ यात्रा का एक रूट बालटाल से होकर भी गुजरता है जो पहलगाम के मुकाबले छोटा है।
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