ग्रुप कैप्‍टन वरुण सिंह का भी निधन, CDS बिपिन रावत संग हेलिकॉप्‍टर हादसे में हुए थे घायल

Varun singh
ग्रुप कैप्‍टन वरुण सिंह गंभीर रूप से हुए थे घायल. (pc- Twitter)
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 02:46 AM
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नई दिल्ली. तमिलनाडु (Tamil Nadu) के कुन्‍नूर जिले के जंगलों में पिछले दिनों हुए हेलिकॉप्‍टर हादसे (Helicopter Accident) में चीफ ऑफ डिफेंस स्‍टाफ जनरल बिपिन रावत (CDS Gen Bipin Rawat) और उनकी पत्‍नी मधुलिका रावत सहित 13 लोगों का निधन हुआ था। इस हादसे में ग्रुप कैप्‍टन वरुण सिंह (Group Captain Varun Singh) ही एकमात्र जीवित बचे थे। उनका बुधवार सुबह निधन हो गया है। हादसे में वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे और बेंगलुरु के सैन्‍य अस्‍पताल में इलाज चल रहा था। भारतीय वायुसेना (IAF) ने जानकारी दी है कि बहादुर ग्रुप कैप्टन (Group Captain Varun Singh) ने आज सुबह दम तोड़ दिया. वायुसेना ने ट्वीट किया, ‘आईएएफ को यह बताते हुए बेहद दुख हो रहा है कि बहादुर ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह, जो आठ दिसंबर 2021 को हुए हेलीकॉप्टर हादसे में घायल हो गए थे। उनका आज सुबह निधन हो गया। भारतीय वायुसेना गहरी संवेदना व्यक्त करती है और शोक संतप्त परिवार के साथ दृढ़ता से खड़ी है।’ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में एक बड़ी तकनीकी खामी की चपेट में आए लड़ाकू विमान तेजस को संभावित दुर्घटना से सफलतापूर्वक बचा लेने के चलते ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह को अगस्त महीने में शौर्य चक्र से नवाजा गया था। इस हादसे को लेकर वायुसेना की ओर से कोर्ट ऑफ इंक्‍वायरी जांच के आदेश दिए गए हैं. हेलिकॉप्‍टर का ब्‍लैक बॉक्‍स भी बरामद कर लिया गया है. हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु से एक दिन पहले अपने सार्वजनिक संदेश में सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने कहा था, 'अपनी सेनाओं पर है हमें गर्व, आओ मिलकर मनाएं विजय पर्व।' भारतीय थलसेना ने 1.09 मिनट की एक वीडियो जारी किया है, जिसमें जनरल रावत ने 1971 के युद्ध की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर सशस्त्र बलों के कर्मियों को बधाई दी थी।
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कल से शुरु हो रहा है खरमास, धन व सुख-समृद्धि प्राप्ति के लिए आजमाएं ये उपाय

Kharmaas 2021
Kharmaas-2021
locationभारत
userचेतना मंच
calendar15 Dec 2021 07:01 PM
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Kharmaas 2021 : सर्दी के परवान चढ़ते मौसम से जब धीरे-धीरे कोहरे की कोपलें फूटती हैं और गुनगुनी धूप के बीच जब सिहरन बढ़ने लगती है तब अचानक शुभ और मांगलिक कार्य थम जाते हैं। शादी ब्याह का मुहूर्त नहीं होता। यह कालखंड यानी दिसंबर का उत्तरार्ध और जनवरी का पूर्वार्ध भारतीय मान्यताओं में खरमास (Kharmaas 2021) कहलाता है।

खर का अर्थ है कर्कश, गधा, क्रूर या दुष्ट। सीधे-सीधे कहें, तो अप्रिय महीना। इस माह में महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत सूर्य निस्तेज और क्षीणप्राय हो जाता है। सूर्य 16 दिसंबर को जब वृश्चिक राशि की यात्रा समाप्त करके धनु राशि में लंगर डालेंगे, खरमास का आगाज होगा। अनोखी बात यह है कि देवगुरु बृहस्पति की राशि धनु या मीन में जब सूर्य चरण रखते हैं, वह काल खंड सृष्टि के लिए सोचनीय हो जाता है। यह जीव और जीवन के लिए उत्तम नहीं माना जाता। शुभ कार्य इस काल में वर्जित कहे जाते हैं, क्योंकि धनु बृहस्पति की आग्नेय राशि है। इसमें सूर्य का प्रवेश विचित्र, अप्रिय, अप्रत्याशित परिणाम का सबब बनता है। अंतर्मन में नकरात्मकता प्रस्फुटित होने लगती है।

खरमास का प्रभाव मार्गशीर्ष को अर्कग्रहण भी कहते हैं। इसका अपभ्रंश अर्गहण है, अर्कग्रहण एवं पौष का संगम है खरमास। इस दौरान सूर्य की रश्मियां दुर्बल होकर शक्तिहीन हो हो जाती हैं तथा नाना प्रकार के झमेलों का सूत्रपात करती हैं। सविता अर्थात सूर्य के धनु राशि के दरीचों से झांकते ही राशि के मालिक बृहस्पति अपने मूल स्वभाव के विपरीत आचरण करने लगते हैं। इस राशि में भास्कर के कदम पड़ते ही मानव मस्तिष्क में तमाम खुराफातें उपजती हैं। गुरु तेजहीन होकर बेअसर दृष्टिगोचर होने लगता हैं और मानव सृष्टि में आतंक, भय और अजीब परिस्थितियों का सृजन होता है। कई बड़े कांड जैसे कंधार हाइजैक और विदेशों में गोलाबारी जैसी आतंकवादी घटनाएं इसी दौरान हुई हैं। कहते हैं कि इस माह में मृत्यु होने पर व्यक्ति नरकगामी होता है।

पौराणिक मान्यताएं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस महीने में सूर्य के रथ के साथ महापद्म और कर्कोटक नाम के दो नाग, आप तथा वात नामक दो राक्षस, तार्क्ष्य एवं अरिष्टनेमि नामक दो यक्ष, अंशु व भग नाम के दो आदित्य, चित्रांगद और अरणायु नामक दो गन्धर्व, सहा तथा सहस्या नाम की दो अप्सराएं और क्रतु व कश्यप नामक दो ऋषि संग संग चलते हैं।

आत्म कल्याण का द्योतक मार्गशीर्ष और पौष का संधिकाल स्वयं में बेहद विशिष्ट है। यह माह आंतरिक कौशल और बौद्धिक चातुर्य से शीर्ष पर पहुंचने का मार्ग प्रकट करता है। इस दौरान यदि बाह्य जगत के बाहरी कर्मों से निर्मुक्त होकर, स्वयं में प्रविष्ट होकर खुद को तराशा, निखारा एवं संवारा जाए, तो व्यक्ति उत्कर्ष का वरण करता है।

मांगलिक कार्य अमांगलिक फल धनु राशि की यात्रा और पौष मास के संयोग से देवगुरु के स्वभाव में अजीब सी उग्रता के कारण इस मास के मध्य शादी-विवाह, गृह आरंभ, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण आदि मांगलिक कार्य अमांगलिक सिद्ध हो सकते हैं। इसीलिए शास्त्रों ने इस माह में इनका निषेध किया हैं।

सूर्य उपासना से बदलें जीवन ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, सूर्य अकेले ही सात ग्रहों के दुष्प्रभावों को नष्ट करने का सामर्थ्य रखते हैं। दक्षिणायन होने पर सूर्य के आंतरिक बल में कमी से अवांछित झमेलों का सूत्रपात होता है। पर उत्तरायण होते ही सूर्य नारायण समस्त ग्रहों के तमाम दोषों का उन्मूलन कर देते हैं। अतः दैविक, दैहिक और भौतिक कष्टों से मुक्ति के लिए दिनकर की उपासना असरदार मानी गई है। मोक्ष मुक्ति के इच्छुकों को गुरु सेवा, ध्यान, उपासना एवं आकाशीय ध्वनि सुनने का अभ्यास करना चाहिए।

शुभ रहेगी सूर्य की पूजा बेरोजगारों, मुकदमे में फंसे लोगों, प्रमोशन की चाहत रखने वालों, अटके हुए पैसे को वापस पाने वालों और राजनीति में झंडा बुलंद करने के आकांक्षियों, ह्रदय रोगों के साथ अनेक विकारों से ग्रस्त व त्रस्त लोगों को इस कालखंड में रक्त वर्ण के उगते मार्तण्ड की उपासना की सलाह दी जाती है। मान्यताएं कहती हैं कि जिनका बार-बार अपमान होता हो, कोई कलंक लग चुका हो, मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना झेलना पड़ता हो, या पक्षाघात, ब्रेन ट्यूमर या मानसिक समस्याओंसे पीड़ा मिल रही हो, जीवन कर्ज के दुष्चक्र में फंस गया हो, बार-बार अपमान का घूंट पीना पड़ता हो या बारम्बार पराजित होना पड़ता हो उन्हें इस संधिकाल में अभिजीत मुहूर्त में दिवाकर की उपासना करनी चाहिए।

क्यों करें सूर्य की उपासना भौतिक वस्तुओं व अन्न-धन की कमी से उबरने के लिए खरमाह में डूबते आदित्य की आराधना से लाभ होता है। ऐश्वर्य और सम्मान के अभिलाषियों को खरमास में ब्रह्म मुहूर्त में भास्कर की आराधना करनी चाहिए। मोक्ष मुक्ति के इच्छुक लोगों को इस समय में गुरु की सेवा और अधिक से अधिक ध्यान और आकाशीय ध्वनि सुनने का अभ्यास अनिवार्य रूप से करना चाहिए।

कैसे पड़ा खरमास नाम? खरमास नाम के प्रचलन में एक कथा प्रचलित है। प्रभाकर यानी सूर्य देव अपने सप्त अश्वों के घोड़ों के रथ में भ्रमण कर रहे थे। घोड़ों की प्यास बुझाने के लिए एक सरोवर के पास उन्होंने रथ को रोका और अश्वों को जल अर्पित किया। जलग्रहण करने के पश्चात घोड़ों को आलस्‍य आ गया और वो निद्रा के आगोश में चले गए। तब रविदेव को अहसास हुआ कि उनके रुकने से सृष्टि की निरंतरता व गतिशीलता प्रभावित हो सकती है। तभी अंशुमाली यानी सूर्यनारायण को उस जलाशय के किनारे गर्दभ दिखाई दिए। भानुदेव ने उन गधों को अपने रथ में बांध लिया। दिनेश देव पूर्ण मास भर निस्तेज होकर मंद रफ्तार से रासभ यानी गधों के खर रथ पर सवार रहे। खर की सवारी के कारण इस महीने को खरमास कहा गया।

पंडित रामपाल भट्ट, ज्योतिषाचार्य

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Sardar Vallabhbhai Patel: वल्लभ भाई पटेल कैसे बने 'सरदार', यहां जानिये पूरी कहानी

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सरदार वल्‍लभभाई पटेल की आज है पुण्‍यतिथि.
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 03:42 PM
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नई दिल्‍ली. आज भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री लौह पुरुष भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) की पुण्यतिथि है। वल्लभभाई एक गरीब किसान परिवार में जन्मे थे। उन्होंने खेतों में पिता के काम में हाथ बंटाया। यही कारण था कि पटेल 22 वर्ष की आयु में 10वीं कक्षा पास कर पाये। कॉलेज की पढ़ाई भी उन्हें घर से ही करनी पड़ी थी। वल्लभभाई को सरदार नाम बचपन से नहीं मिला था। स्वाधीनता के दौरान वर्ष 1928 में ब्रिटिश सरकार ने किसानों पर 30 प्रतिशत लगान थोप दिया था। इस पर वल्लभभाई (Sardar Vallabhbhai Patel) के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन हुआ जिसे इतिहास में ‘बारडोली सत्याग्रह’ के नाम से जाना जाता है। वल्लभ भाई ने आंदोलन के माध्यम से अंग्रेजी सरकार को लगान कम करके 6 प्रतिशत करने के लिए मजबूर कर दिया था। इसी ऐतिहासिक सत्याग्रह के सफल नेतृत्व ने वल्लभभाई को ‘सरदार’ की उपाधि दिलाई, जो आजीवन उनके नाम के साथ जुड़ी रही। किसे नहीं पता है कि सरदार पटेल आजीवन कांग्रेसी रहे। वे न केवल आजाद भारत की पहली सरकार के गृहमंत्री रहे, बल्कि राष्ट्र निर्माताओं में शीर्ष पर विराजमान हैं। देश के पहले उप प्रधानमंत्री भी सरदार पटेल ही थे। सरदार पटेल ने ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बापू की हत्या के बाद प्रतिबंध लगाया था। पटेल का स्पष्ट रूप से मानना था-‘आरएसएस की गतिविधियों के कारण देश में गांधी जी के विरोध का माहौल बना।' साथ ही उन्होंने संघ की गतिविधियों को सरकार और राज्य के लिए खतरा बताया था। सरदार पटेल संघ के विरोधी और आलोचक थे। फिर क्या वजह है कि नेहरू, कांग्रेस, धर्मनिरपेक्षता, संसदीय लोकतंत्र, तिरंगा झंडा और संविधान के शासन का खुलकर-जमकर विरोध करने वाले पटेल के नाम और उनकी राजनीतिक-विरासत पर अपना हक जमा रहे हैं। आज गांधी-नेहरू के अनन्य सहयोगी सरदार पटेल को नेहरू से अलग करके उन्हें हिंदुत्व की राजनीति का नायक घोषित कर रही है भाजपा। क्या इसके पीछे यह कारण नहीं हो सकता कि संघ और भाजपा ऐसा इसलिये कर रहे हैं क्योंकि आजादी की लड़ाई की विरासत के नाम पर इनके हाथ खाली है? क्या आजादी की लड़ाई में हिस्सा न ले पाने की शर्म से बचने के लिए उन्हें कांग्रेस से छीन लिया गया है? जिस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू कह रहे थे-‘यदि धर्म के नाम पर किसी अन्य व्यक्ति पर प्रहार करने के लिए हाथ उठाने की कोशिश करेगा तो मैं उससे अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक सरकार के प्रमुख और उससे बाहर दोनों हैसियत से लडूंगा।’-तब सरदार पटेल उनके साथ खड़े थे और उन्होंने हिंदू राज अर्थात् हिंदू राष्ट्र की चर्चा को एक पागलपन भरा विचार बताया था।’ आज भाजपा और संघ धर्म की राजनीति करते हुए सरदार पटेल के धर्म निरपेक्ष स्वरूप को विकृत करने का काम कर रहे हैं और साथ ही अपने आप को पटेल की सिरासत का असली हकदार साबित करने का ढोंग रच रहे हैं। 2014 के बाद से पटेल और नेहरू को बांटने का काम किया जा रहा है। इसी के साथ नेहरू को भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा खलनायक और सरदार पटेल को महानतम नायक के रूप में पेश करने का षडयंत्र रचा जा रहा है। सरदार पटेल और नेहरू के बीच आत्मीय रिश्तों के तमाम सबूत आज भी इतिहास के पन्नों में उपलब्ध हैं। दोनों नेता एक दूसरे के परम सहयोगी, विश्वासपात्र और प्रशंसक थे। छतरी लगाने से सूरज नहीं छिपता। सच तो सच ही रहेगा।