भारत की पौराणिक महिलायें: प्रथम ऋषिका,अगस्त्य ऋषि की पत्नी लोपामुद्रा

Lopa
Mythological women of India
locationभारत
userचेतना मंच
calendar26 Feb 2024 06:40 PM
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Mythological women of Indiaभारत की पौराणिक महिलायें जिन पर हमें गर्व है। प्रथम ऋषिका वीर दृढस्यु की माता लोपामुद्रा :

अगस्त्य ऋषि की पत्नी कौन थी

सनातन वैदिक साहित्य और संस्कृति में नारी का स्थान सदा ही सबसे ऊंचा रहा । इसी लिये उसके नाम के साथ सदैव सम्मान में देवी शब्द जोड़ा जाता है। प्रथम ऋषिका के रूप में ऋग्वेद की ऋचाओं की दृष्टा के रूप में अगस्त्य ऋषि की पत्नी लोपामुद्रा का नाम उल्लेखनीय है । उन्हें कौशिकी और कावेरी के नाम से जाना जाता है। इस पृथ्वी पर वह स्वयं एक क्रियाशील रचनात्मक नारी के रूप में प्रकट हुईं दो विपरीत ध्रुवों का सुंदर समन्वय हैं ऋषिका लोपामुद्रा । विदर्भ देश की राजकुमारी होकर राजसी ऐश्वर्य सुख भोग में पली लोपामुद्रा का एक ऋषि की पत्नी होकर कौशेय वस्त्र धारण करना उनके त्याग और बलिदान की कहानी कहता है।

राजकुमारी होकर जिया तपस्विनी का जीवन

अगस्त्य ऋषि के विदर्भ राज से विवाह के लिये उनकी राजकन्या का हाथ मांगना विदर्भ राज को संकोच में डाल देता है । वह कैसे राज वैभव में पली अपनी एकमात्र कन्या को वन-वन मे भटकते हुये एक तपस्वी को सौप दें । वह उसे कैसे राज सुख दे पायेगा । विषय चिंतनीय था दूसरी ओर मना करने पर उनके क्रोध का शिकार होकर शापित होना । अजीब दुविधा में फंसा मन ऐसे मैं स्वयं आगे आकर लोपामुद्रा ऋषि अगस्त्य का पति रूप में वरण कर अपने पिता और विदर्भ की जनता को इस धर्मसंकट से उबार कर उनके साथ विवाह करती हैं।विदा होकर उनके साथ जाने से पहले अगस्त्य ऋषि कहते हैं कि मेरे आश्रम में तुम इस राजसी वेष को त्याग कौशेय वस्त्र धारण कर तपस्विनी के रूप मे ही आश्रम मे प्रवेश कर सकती हो । लोपामुद्रा पति की बात सारे राजसी वस्त्राभूषण उतार कर कौशेय वस्त्र धारण कर तपस्विनी के रूप में परिवर्तित होकर एक नया जन्म ले आश्रम में प्रवेश करती है। अब उसका एकमात्र कार्य तपस्या के साथ पति की सेवा करना था । वह अपनी साधना के द्वारा वेद के ऋचाओं की मंत्रदृष्टा बनकर प्रथम ऋषिका बन चुकी थी । अगस्त्य ऋषि ने संतान की इच्छा से जब उनके साथ समागम करना था तो लोपामुद्रा ने उन महान ऋषि को अपनी ही शर्तों पर झुकने के लिये विवश कर दिया।

ऋषि को अपनी शर्तों पर झुकने के लिये विवश किया

लोपामुद्रा का स्पष्ट कथन था यह शरीर योग की साधना और तपस्या में इतना कृशकाय हो चुका है कि इससे मैं आपकी इच्छा पूर्ण नहीं कर सकती । यदि आपको संतान की इतनी ही कामना है तो विवाह के पूर्व में जिस राजसी शैय्या पर शयन कर तमाम सुखों को भोगती पली हूं उसी रूप में ही आने पर उस सुख वैभव के साथ ही आपको आपके योग्य संतान संतान दे पाऊंगी । अब परीक्षा की बारी अगस्त्य ऋषि की थी । एक सन्यासी कहां से यह सब जुटाये । समस्या का समाधान भी लोपामुद्रा ने ही सुझाया । आपकी तपस्या और बल के समक्ष सभी नत मस्तक आप जिसके पास भी जाओगे वह आपको मना नही कर सकता । सत्य और धर्म पर आधारित धन ही स्वीकार होगा । इसके लिये राजाओं के पास से निराश होकर उनके साथ ही वह दैत्यराज प्रहलाद के वंशज इल्विल के पास गये । इल्विल ने उनका स्वागत सत्कार करते हुये आने का उद्देश्य जानकर कहा कि यदि आप मेरे सभी प्रश्नो का सही उत्तर देंगे तभी मैं आपकी मुंह मांगी मुराद पूरी करूंगा । अंत में इल्विल के प्रश्नों का सटीक उत्तर देने के बाद परितोष मैं उन राजाओं को भी उपहार देक अगस्त्य ऋषि अपने आश्रम आये और उस धन से सभी प्रकार के राजसी वैभव जुटा कर एक राजकुमारी के रूप में ही लोपामुद्रा के सज्जित हो श्रृंगार करने पर उसी प्रकार की शैय्या का सुख भोगते हुये लोपामुद्रा के साथ संतान प्राप्ति की इच्छा पूर्ण की।

Mythological women of India  सात वर्ष तक दृढस्यु को गर्भ में रखा

लोपामुद्रा ने सात वर्ष तक उनकी संतान को गर्भ में रख कर उसको एक सुंदर सुदृढ़ ऋषि बालक के रूप में जन्म दिया । जिसका नाम दृढस्यु था । वह अपने पिता के समान ही वेदवेदांग शस्त्र-शास्त्र सभी का अध्ययन करते हुये वेद की ऋचाओं के मंत्रदृष्टा बने उनके पराक्रम से उनका नाम सुनकर ही शत्रु धराशायी हो जाते । भगवान श्री राम जब 14 वर्ष के वनवास के समय दण्डकारण्य आये तो वह अपने गुरु वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई अगस्त्य ऋषि के आश्रम में आकर रुके उस समय लोपामुद्रा ने देवी सीता को बला और अति बला विद्या के साथ ही *त्रिपुर सुंदरी रहस्य *एवं *श्रीविद्या *का ज्ञान दिया जिसके कारण वह रावण की कैद में भूख प्यास को सहन करती 13 माह तक रह सकीं । श्री राम और लक्ष्मण को रावण से जीतने के लिये आदित्य स्त्रोत के साथ ही कभी समाप्त न होने वाले तूणीर से भरा तरकस प्रदान किया । युद्ध विद्या में पूर्ण रूप से पारंगत करने का कार्य उनके पुत्र दृढस्यु का था । ऐसे वीर ऋषि पुत्र की माता थी लोपामुद्रा जिनके आगे स्वयं अगस्त्य ऋषि को भी नत मस्तक होना पड़ा । Mythological women of India उषा सक्सेना

इस साल बनने जा रहा है अति शुभ गुरु पुष्य योग, पाएं सफलता का सुख

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Mythological women of Indiaभारत की पौराणिक महिलायें जिन पर हमें गर्व है। प्रथम ऋषिका वीर दृढस्यु की माता लोपामुद्रा :

अगस्त्य ऋषि की पत्नी कौन थी

सनातन वैदिक साहित्य और संस्कृति में नारी का स्थान सदा ही सबसे ऊंचा रहा । इसी लिये उसके नाम के साथ सदैव सम्मान में देवी शब्द जोड़ा जाता है। प्रथम ऋषिका के रूप में ऋग्वेद की ऋचाओं की दृष्टा के रूप में अगस्त्य ऋषि की पत्नी लोपामुद्रा का नाम उल्लेखनीय है । उन्हें कौशिकी और कावेरी के नाम से जाना जाता है। इस पृथ्वी पर वह स्वयं एक क्रियाशील रचनात्मक नारी के रूप में प्रकट हुईं दो विपरीत ध्रुवों का सुंदर समन्वय हैं ऋषिका लोपामुद्रा । विदर्भ देश की राजकुमारी होकर राजसी ऐश्वर्य सुख भोग में पली लोपामुद्रा का एक ऋषि की पत्नी होकर कौशेय वस्त्र धारण करना उनके त्याग और बलिदान की कहानी कहता है।

राजकुमारी होकर जिया तपस्विनी का जीवन

अगस्त्य ऋषि के विदर्भ राज से विवाह के लिये उनकी राजकन्या का हाथ मांगना विदर्भ राज को संकोच में डाल देता है । वह कैसे राज वैभव में पली अपनी एकमात्र कन्या को वन-वन मे भटकते हुये एक तपस्वी को सौप दें । वह उसे कैसे राज सुख दे पायेगा । विषय चिंतनीय था दूसरी ओर मना करने पर उनके क्रोध का शिकार होकर शापित होना । अजीब दुविधा में फंसा मन ऐसे मैं स्वयं आगे आकर लोपामुद्रा ऋषि अगस्त्य का पति रूप में वरण कर अपने पिता और विदर्भ की जनता को इस धर्मसंकट से उबार कर उनके साथ विवाह करती हैं।विदा होकर उनके साथ जाने से पहले अगस्त्य ऋषि कहते हैं कि मेरे आश्रम में तुम इस राजसी वेष को त्याग कौशेय वस्त्र धारण कर तपस्विनी के रूप मे ही आश्रम मे प्रवेश कर सकती हो । लोपामुद्रा पति की बात सारे राजसी वस्त्राभूषण उतार कर कौशेय वस्त्र धारण कर तपस्विनी के रूप में परिवर्तित होकर एक नया जन्म ले आश्रम में प्रवेश करती है। अब उसका एकमात्र कार्य तपस्या के साथ पति की सेवा करना था । वह अपनी साधना के द्वारा वेद के ऋचाओं की मंत्रदृष्टा बनकर प्रथम ऋषिका बन चुकी थी । अगस्त्य ऋषि ने संतान की इच्छा से जब उनके साथ समागम करना था तो लोपामुद्रा ने उन महान ऋषि को अपनी ही शर्तों पर झुकने के लिये विवश कर दिया।

ऋषि को अपनी शर्तों पर झुकने के लिये विवश किया

लोपामुद्रा का स्पष्ट कथन था यह शरीर योग की साधना और तपस्या में इतना कृशकाय हो चुका है कि इससे मैं आपकी इच्छा पूर्ण नहीं कर सकती । यदि आपको संतान की इतनी ही कामना है तो विवाह के पूर्व में जिस राजसी शैय्या पर शयन कर तमाम सुखों को भोगती पली हूं उसी रूप में ही आने पर उस सुख वैभव के साथ ही आपको आपके योग्य संतान संतान दे पाऊंगी । अब परीक्षा की बारी अगस्त्य ऋषि की थी । एक सन्यासी कहां से यह सब जुटाये । समस्या का समाधान भी लोपामुद्रा ने ही सुझाया । आपकी तपस्या और बल के समक्ष सभी नत मस्तक आप जिसके पास भी जाओगे वह आपको मना नही कर सकता । सत्य और धर्म पर आधारित धन ही स्वीकार होगा । इसके लिये राजाओं के पास से निराश होकर उनके साथ ही वह दैत्यराज प्रहलाद के वंशज इल्विल के पास गये । इल्विल ने उनका स्वागत सत्कार करते हुये आने का उद्देश्य जानकर कहा कि यदि आप मेरे सभी प्रश्नो का सही उत्तर देंगे तभी मैं आपकी मुंह मांगी मुराद पूरी करूंगा । अंत में इल्विल के प्रश्नों का सटीक उत्तर देने के बाद परितोष मैं उन राजाओं को भी उपहार देक अगस्त्य ऋषि अपने आश्रम आये और उस धन से सभी प्रकार के राजसी वैभव जुटा कर एक राजकुमारी के रूप में ही लोपामुद्रा के सज्जित हो श्रृंगार करने पर उसी प्रकार की शैय्या का सुख भोगते हुये लोपामुद्रा के साथ संतान प्राप्ति की इच्छा पूर्ण की।

Mythological women of India  सात वर्ष तक दृढस्यु को गर्भ में रखा

लोपामुद्रा ने सात वर्ष तक उनकी संतान को गर्भ में रख कर उसको एक सुंदर सुदृढ़ ऋषि बालक के रूप में जन्म दिया । जिसका नाम दृढस्यु था । वह अपने पिता के समान ही वेदवेदांग शस्त्र-शास्त्र सभी का अध्ययन करते हुये वेद की ऋचाओं के मंत्रदृष्टा बने उनके पराक्रम से उनका नाम सुनकर ही शत्रु धराशायी हो जाते । भगवान श्री राम जब 14 वर्ष के वनवास के समय दण्डकारण्य आये तो वह अपने गुरु वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई अगस्त्य ऋषि के आश्रम में आकर रुके उस समय लोपामुद्रा ने देवी सीता को बला और अति बला विद्या के साथ ही *त्रिपुर सुंदरी रहस्य *एवं *श्रीविद्या *का ज्ञान दिया जिसके कारण वह रावण की कैद में भूख प्यास को सहन करती 13 माह तक रह सकीं । श्री राम और लक्ष्मण को रावण से जीतने के लिये आदित्य स्त्रोत के साथ ही कभी समाप्त न होने वाले तूणीर से भरा तरकस प्रदान किया । युद्ध विद्या में पूर्ण रूप से पारंगत करने का कार्य उनके पुत्र दृढस्यु का था । ऐसे वीर ऋषि पुत्र की माता थी लोपामुद्रा जिनके आगे स्वयं अगस्त्य ऋषि को भी नत मस्तक होना पड़ा । Mythological women of India उषा सक्सेना

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माघ पूर्णिमा के साथ समाप्त होगा माघ स्नान और कल्पवास का पर्व 

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Magh kalpwas
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 11:22 PM
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Magh kalpwas : माघ पवित्र स्नान के साथ पूर्ण होगा कल्पवास, देश भर के पवित्र स्थानों में दिखाई देगा आस्था भक्ति का सैलाब. माघ माह सबसे पवित्र महिनों में से एक है जहां देखने को मिलता है संगम की स्थली पर भक्तों का जमावड़ा. कल्पवास और माघ स्नान की परंपरा को निभाते हुए भक्त इस पूरे माह में भक्ति से सराओर दिखाई देते हैं. एक बड़े धार्मिक मेले का रंग कल्पवास के अंतिम पड़ाव के रुप में माघी पूर्णिमा के साथ में संपन्न होता है. इस समय पर देश भर में इसका उत्साह दिखाई देता है भक्ति में डूबे भक्त इस दिन को निष्ठा और श्रद्धा के साथ मनाते हैं. आइये जान लेते हैं क्या है इस समय का महत्व और जीवन पर प्रभाव. माघ पूर्णिमा के दिन पर कल्पवास की साधना पूर्ण होती है. माघ माह में किए जाने वाले स्नान जप तप एवं कल्पवास की महिमा का वर्णन पुराणों में उल्लेखित है. धार्मिक मान्यताओ के अनुसार बारह वर्षों तक कल्पवास की साधना पुर्ण कर लेने पर मोक्ष का द्वार भी खुल जाता है. ऎसे में माघ माह में आने वाला कल्पवास पर्व भक्तों के लिए स्वर्णिम अवसर होता है भक्ति एवं जागरण हेतु. जिसमें हर कोई आस्था की डूबकी लगाने के लिए उत्साहित दिखाई देता है.

माघ माह का कल्पवास साधना तपस्या का उत्सव 

माघ माह का कल्पवास एक बहुत बड़े धार्मिक अनुष्ठानों में स्थान पाता है. हिंदुओं में इसकी प्रति बहुत गहरी आस्था रही है. माघ माघ के पर्व में होने वाला कल्पवास एवं स्नान दान से जुड़े कार्य माघ पूर्णिमा के समय पर संपूर्ण हो जाते हैं. माघ पूर्णिमा का समय इस कारण बेहद विशेष होता है जो संपूर्ण माघ माह का सुख प्रदान करता है.

कल्पवास आध्य्यात्मिक पर्व जिसका आकर्षण देश विदेश में सभी को करता है प्रभावित 

कल्पवास का समय आत्मिक शुद्धि के साथ चेतना की जागृति का समय होता है. हर कोई इस भक्ति से ओतप्रोत समय को स्वयं में आत्मसात करने की इच्छा भी रखता है. कल्पवास का संकल्प देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भी लिया था. कल्पवास की महत्ता इतनी है कि देश विदेश सभी स्थानों से भक्त संगम स्थल पर आकर इस भक्ति पूर्ण आयोजन में अवश्य भाग लेते हैं.

माघ पूर्णिमा के पवित्र स्नान के साथ पूर्ण होता है अनुष्ठान 

माघ माह के समय को संगम स्नान एवं कल्पवास हेतु उत्तम माना गया है. मान्यताओं के अनुसार इस समय पर किया गया कल्पवास भक्तों के जीवन को मुक्ति का मार्ग प्रदान करने में सहायक होता है.माघी पूर्णिमा के दौरान देश भर में आस्था और भक्ति की लहर सब ओर बहती दिखाई देती है. हिंदू पंचांग प्रणाली को चंद्रमा के चक्र के बाद चंद्र कैलेंडर कहा जाता है. पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा का समय बेहद विशेष होता है. इस समय माघ स्नान के साथ साथ कल्पवास की परंपरा भी होती है. कल्पवास के समय को सभी पापों को धोने वाला माना गया है. वैदिक काल में ऋषि-मुनियों द्वारा कल्पवास की गणना की गई जिसे आज भी भक्ति भाव के साथ संपन्न किया जाता है. आचार्या राजरानी

माघी पूर्णिमा के दिन भगवान श्री हरि का होगा गंगा में निवास