आन-बान-शान की प्रतीक हैं राजस्थान की पगड़ी, दुनिया भर में प्रसिद्ध

रंग बदलती पगड़ी का कारण
आपने भारत के राजस्थान (Rajasthan) प्रदेश के लोगों को अक्सर अपने सिर पर मौसम के हिसाब से पगड़ी बांधे हुए देखा होगा। कई बार आपके दिमाग में ये सवाल भी आया होगा कि आखिर ये बदलते मौसम के साथ अपने पगड़ी का रंग भी क्यों बदल देते हैं। राजस्थान के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग जाति के लोग रहते हैं और अलग-अलग कलर की पगड़ी पहनते हैं। पगड़ी राजस्थान के राजपूतों की पहचान है इसलिए पगड़ी को आन-बान-शान माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पगड़ी में मौजूद अलग-अलग रंगों की लहरें राजपूतों के शौर्य और वीरता का प्रतीक है। राजस्थान में पुराने समय से ही साफा और पगड़ी बांधने की परंपरा चली आ रही है। पगड़ी के बगैर शादी तथा दूसरे समारोह फीके और अधूरे लगते हैं। आसान शब्दों में कहा जाए तो पगड़ी धारण करने के बाद हर समारोह में चार चांद लग जाते हैं। क्या आप जानते हैं Rajasthan की शान के नाम से पुकारे जाने वाली पगड़ी हीटवेव और लू से बचाने में मददगार साबित होती है। राजस्थान में जगह के मुताबिक पगड़ी का तरीका बदल जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि उदयपुर में अमरशाही, डूंगरपुर में उदयशाही, बूंदी में बूंदीशाही, जोधपुर में विजयशाही या साफा और जयपुर मे मानसाही पगड़ी पहनने का प्रचलन है। जो लोग शाही खानदान से ताल्लुक रखते हैं वो अपनी पगडिय़ों पर सोने-चांदी का तुरा, सरपेच, बालाबंदी, गोशपेच और लटकन जैसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं। आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि पगड़ी हीटवेव (Heatwave) से बचाने का काम करती है। गर्मी की चिलचिलाती धूप से बचने के लिए राजस्थान के लोग सिर पर साफा या पगड़ी बांधते हैं। इतना ही नहीं राजस्थान में बदलते मौसम के अनुसार पगड़ी का रंग भी बदल दिया जाता है। राजस्थान के लोग गर्मी में केसरिया रंग की पगड़ी पहनते हैं ताकि गर्मी से बचा जा सके। वहीं बारिश में गहरे रंग की पगड़ी पहनी जाती है जबकि सर्दी में गहरे लाल रंग की पगड़ी को लोग ज्यादा तवज्जो देते हैं।भारतीय संस्कृति की पहचान है पगड़ी
भारत का हर नागरिक जनता है कि पगड़ी भारत में आन, बान और शान की पहचान है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की परिचायक है पगड़ी। संस्कृत में पगड़ी को शिरोस्त्राण या शिरोवेश कहा जाता है। प्राचीन काल से लोग शिरस्त्राण धारण करते रहे हैं। इसे पाग,पागड़ी,पोतिया, फेंटा और साफा के रूप में भी जाना जाता है। पगड़ी को सुरक्षा, सामाजिक व्यवस्था, सौंदर्य बोध, प्रगतिशीलता और वर्ग विशेष की पहचान के रूप में देखा जाता रहा है। पगड़ी समाज के विभिन्न वर्गों, भौगोलिक स्थान, मौसम और दैनिक जीवन का द्योतक है। लेकिन हम यह नहीं जानते कि दशकों पहले कौनसा समुदाय किस प्रकार की पगड़ी पहनता था और इसका क्या महत्व था। क्योंकि राजा, महाराजा, ठाकुरों और नवाबों की पगडिय़ों की विशिष्ट शैली रही है। इसके साथ ही किसान, व्यापारी, चरवाहा, पुजारी की पगड़ी अलग होती है। [caption id="attachment_155006" align="aligncenter" width="551"]
Credit by Social Media[/caption]
मुंशी की पग
इस तस्वीर में जो पगड़ी आप देख रहे हैं उस पगड़ी को मुनीम या मुंशी की पाग कहा जाता है। मोल्ड पर कोड लपेटकर बांधी गई इस पाग में अगला सिरा थोड़ा ऊपर रखा जाता है। पाग के पल्लू को बंट देकर चौकड़ीनुमा लपेटा जाता है। [caption id="attachment_154994" align="aligncenter" width="561"]
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सेठों या बनियों की पगड़ी
इस तस्वीर (Photo) में जो पगड़ी आप देख रहे हैं इसे सेठों की पाग कहा जाता था। इसे महाजन पहना करते थे। मोल्ड पर कोड लपेटकर बांधी गई इस पाग में अगला सिरा थोड़ा ऊपर रखा जाता है। बंधी हुई पगड़ी पर चांदी की गोट को चौकड़ीनुमा डिजाइन देते हुए लपेटा जाता है। [caption id="attachment_154996" align="aligncenter" width="553"]
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बसंती पाग
इस फोटो में जो पगड़ी है इसे बसंती पाग कहा जाता है। इसे मेवाड़ी राजपूत समुदाय बसंत ऋतु में पहनते थे। पट्टी दर पट्टी बांधी गई इस पाग को स्प्रे से रंगा जाता था। इसे बसंती पाग कहा जाता है। इसे मेवाड़ी राजपूत समुदाय बसंत ऋतु में पहनते थे। पट्टी दर पट्टी बांधी गई इस पाग को स्प्रे से रंगा जाता था। [caption id="attachment_154997" align="aligncenter" width="547"]
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केसरिया पाग
इस फोटो में जो पगड़ी है इसे केसरिया पाग कहा जाता है। इसे मेवाड़ (उदयपुर) में दशहरे और विवाह उत्सव में पहनने की परंपरा है। सूती कपड़े का यह साफा 18 मीटर लंबा होता है। पट्टी दर पट्टी बंधी इस पाग में पचेवड़ी लगाई जाती है। [caption id="attachment_154999" align="aligncenter" width="513"]
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मोठड़ा पाग
इस फोटो में जो पगड़ी है इस पगड़ी को मोठड़ा कहते हैं। इसे मेवाड़ी राजपूत,व्यापारी और ब्राम्हण रोजाना पहनते थे। इसे सूती कपड़ा और चांदी के छल्ले का उपयोग कर बांधा जाता था। [caption id="attachment_155000" align="aligncenter" width="515"]
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रेबारी साफा
इस तस्वीर में जो पगड़ी दिख रही है यह रेबारी समुदाय का साफा है। इस 16 मीटर लंबे और 36 इंच चौड़े साफे को बंट देकर सिर में लपेटा जाता है। यह सिंथेटिक कपड़े का होता है। इस भारी भरकम साफे में कंघा,चिलम और कांच रखने की जगह भी बनाई जाती है। [caption id="attachment_155001" align="aligncenter" width="517"]
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पटेल साफा
इस तस्वीर में जो पगड़ी आप देख रहे हैं यह पटेल (डांगी) का साफा सूती केंब्रिक कपड़े से बांधा जाता है। नौ मीटर लंबे इस साफे पर बेल-बूटे छापे जाते हैं। पूरे सिर को घेरने वाले इस साफे का छोगा लटकाया भी जाता है। पीछे से अंदर खोंसा भी जाता है। [caption id="attachment_155002" align="aligncenter" width="520"]
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गायरी का साफा
इस पगड़ी में जो पगड़ी आप देख रहे हैं इसे गायरी का साफा कहा जाता है। सूती केंब्रिक कपड़े पर बेल-बूटे छापे जाते हैं। पूरे सिर को घेरने वाले इस साफे का छोगा लटकाया जाता है और पीछे से खोंसा भी जाता है। [caption id="attachment_155003" align="aligncenter" width="520"]
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30 मीटर की होती है पगड़ी
आपको बता दें कि भारत में पगड़ी 30 मीटर तक लम्बी होती है। जानकारों के अनुसार आम तौर पर पगड़ी की लंबाई 18 से 30 मीटर और चौड़ाई 8 से 9 इंच होती है। इसी प्रकार साफे की लंबाई 9 से 12 मीटर ओर चौड़ाई 36 से 45 इंच तक होती है। वहीं 30 किलो की इस पगड़ी की परिधि 11 फीट, लम्बाई 151 फीट और ऊंचाई 30 इंच है। [caption id="attachment_155004" align="aligncenter" width="525"]
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इज्जत का प्रतीक होती है पगड़ी
भारत में पगड़ी का सामान्रू महत्व तो आपने ऊपर जान और समझ लिया। हम आपको यह भी बता दें कि भारत में पगड़ी इज्जत यानि की मान-सम्मान का भी प्रतीक है। जब कोई व्यक्ति किसी गलती के कारण समाज में बेइज्जत या अपमानित होता है तो कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति की तो पगड़ी उतर गई। भारत में होने वाली पंचायतों में बड़ी से बड़ी गलती करने वाले को पगड़ी उतारकर पंचों के चरणों में रखने पर माफी मिल जाती है। जब कोई व्यक्ति पंचायत में अपनी पगड़ी उतारकर दूसरे के सामने रख देता है तो माना जाता है कि पगड़ी उतारने वाले ने अपनी पूरी सजा भुगत ली है।सुप्रीम कोर्ट का सबसे बड़ा फैसला, मजाक नहीं है हिन्दु विवाह संस्कार
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रंग बदलती पगड़ी का कारण
आपने भारत के राजस्थान (Rajasthan) प्रदेश के लोगों को अक्सर अपने सिर पर मौसम के हिसाब से पगड़ी बांधे हुए देखा होगा। कई बार आपके दिमाग में ये सवाल भी आया होगा कि आखिर ये बदलते मौसम के साथ अपने पगड़ी का रंग भी क्यों बदल देते हैं। राजस्थान के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग जाति के लोग रहते हैं और अलग-अलग कलर की पगड़ी पहनते हैं। पगड़ी राजस्थान के राजपूतों की पहचान है इसलिए पगड़ी को आन-बान-शान माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पगड़ी में मौजूद अलग-अलग रंगों की लहरें राजपूतों के शौर्य और वीरता का प्रतीक है। राजस्थान में पुराने समय से ही साफा और पगड़ी बांधने की परंपरा चली आ रही है। पगड़ी के बगैर शादी तथा दूसरे समारोह फीके और अधूरे लगते हैं। आसान शब्दों में कहा जाए तो पगड़ी धारण करने के बाद हर समारोह में चार चांद लग जाते हैं। क्या आप जानते हैं Rajasthan की शान के नाम से पुकारे जाने वाली पगड़ी हीटवेव और लू से बचाने में मददगार साबित होती है। राजस्थान में जगह के मुताबिक पगड़ी का तरीका बदल जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि उदयपुर में अमरशाही, डूंगरपुर में उदयशाही, बूंदी में बूंदीशाही, जोधपुर में विजयशाही या साफा और जयपुर मे मानसाही पगड़ी पहनने का प्रचलन है। जो लोग शाही खानदान से ताल्लुक रखते हैं वो अपनी पगडिय़ों पर सोने-चांदी का तुरा, सरपेच, बालाबंदी, गोशपेच और लटकन जैसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं। आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि पगड़ी हीटवेव (Heatwave) से बचाने का काम करती है। गर्मी की चिलचिलाती धूप से बचने के लिए राजस्थान के लोग सिर पर साफा या पगड़ी बांधते हैं। इतना ही नहीं राजस्थान में बदलते मौसम के अनुसार पगड़ी का रंग भी बदल दिया जाता है। राजस्थान के लोग गर्मी में केसरिया रंग की पगड़ी पहनते हैं ताकि गर्मी से बचा जा सके। वहीं बारिश में गहरे रंग की पगड़ी पहनी जाती है जबकि सर्दी में गहरे लाल रंग की पगड़ी को लोग ज्यादा तवज्जो देते हैं।भारतीय संस्कृति की पहचान है पगड़ी
भारत का हर नागरिक जनता है कि पगड़ी भारत में आन, बान और शान की पहचान है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की परिचायक है पगड़ी। संस्कृत में पगड़ी को शिरोस्त्राण या शिरोवेश कहा जाता है। प्राचीन काल से लोग शिरस्त्राण धारण करते रहे हैं। इसे पाग,पागड़ी,पोतिया, फेंटा और साफा के रूप में भी जाना जाता है। पगड़ी को सुरक्षा, सामाजिक व्यवस्था, सौंदर्य बोध, प्रगतिशीलता और वर्ग विशेष की पहचान के रूप में देखा जाता रहा है। पगड़ी समाज के विभिन्न वर्गों, भौगोलिक स्थान, मौसम और दैनिक जीवन का द्योतक है। लेकिन हम यह नहीं जानते कि दशकों पहले कौनसा समुदाय किस प्रकार की पगड़ी पहनता था और इसका क्या महत्व था। क्योंकि राजा, महाराजा, ठाकुरों और नवाबों की पगडिय़ों की विशिष्ट शैली रही है। इसके साथ ही किसान, व्यापारी, चरवाहा, पुजारी की पगड़ी अलग होती है। [caption id="attachment_155006" align="aligncenter" width="551"]
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मुंशी की पग
इस तस्वीर में जो पगड़ी आप देख रहे हैं उस पगड़ी को मुनीम या मुंशी की पाग कहा जाता है। मोल्ड पर कोड लपेटकर बांधी गई इस पाग में अगला सिरा थोड़ा ऊपर रखा जाता है। पाग के पल्लू को बंट देकर चौकड़ीनुमा लपेटा जाता है। [caption id="attachment_154994" align="aligncenter" width="561"]
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सेठों या बनियों की पगड़ी
इस तस्वीर (Photo) में जो पगड़ी आप देख रहे हैं इसे सेठों की पाग कहा जाता था। इसे महाजन पहना करते थे। मोल्ड पर कोड लपेटकर बांधी गई इस पाग में अगला सिरा थोड़ा ऊपर रखा जाता है। बंधी हुई पगड़ी पर चांदी की गोट को चौकड़ीनुमा डिजाइन देते हुए लपेटा जाता है। [caption id="attachment_154996" align="aligncenter" width="553"]
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बसंती पाग
इस फोटो में जो पगड़ी है इसे बसंती पाग कहा जाता है। इसे मेवाड़ी राजपूत समुदाय बसंत ऋतु में पहनते थे। पट्टी दर पट्टी बांधी गई इस पाग को स्प्रे से रंगा जाता था। इसे बसंती पाग कहा जाता है। इसे मेवाड़ी राजपूत समुदाय बसंत ऋतु में पहनते थे। पट्टी दर पट्टी बांधी गई इस पाग को स्प्रे से रंगा जाता था। [caption id="attachment_154997" align="aligncenter" width="547"]
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केसरिया पाग
इस फोटो में जो पगड़ी है इसे केसरिया पाग कहा जाता है। इसे मेवाड़ (उदयपुर) में दशहरे और विवाह उत्सव में पहनने की परंपरा है। सूती कपड़े का यह साफा 18 मीटर लंबा होता है। पट्टी दर पट्टी बंधी इस पाग में पचेवड़ी लगाई जाती है। [caption id="attachment_154999" align="aligncenter" width="513"]
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मोठड़ा पाग
इस फोटो में जो पगड़ी है इस पगड़ी को मोठड़ा कहते हैं। इसे मेवाड़ी राजपूत,व्यापारी और ब्राम्हण रोजाना पहनते थे। इसे सूती कपड़ा और चांदी के छल्ले का उपयोग कर बांधा जाता था। [caption id="attachment_155000" align="aligncenter" width="515"]
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रेबारी साफा
इस तस्वीर में जो पगड़ी दिख रही है यह रेबारी समुदाय का साफा है। इस 16 मीटर लंबे और 36 इंच चौड़े साफे को बंट देकर सिर में लपेटा जाता है। यह सिंथेटिक कपड़े का होता है। इस भारी भरकम साफे में कंघा,चिलम और कांच रखने की जगह भी बनाई जाती है। [caption id="attachment_155001" align="aligncenter" width="517"]
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पटेल साफा
इस तस्वीर में जो पगड़ी आप देख रहे हैं यह पटेल (डांगी) का साफा सूती केंब्रिक कपड़े से बांधा जाता है। नौ मीटर लंबे इस साफे पर बेल-बूटे छापे जाते हैं। पूरे सिर को घेरने वाले इस साफे का छोगा लटकाया भी जाता है। पीछे से अंदर खोंसा भी जाता है। [caption id="attachment_155002" align="aligncenter" width="520"]
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गायरी का साफा
इस पगड़ी में जो पगड़ी आप देख रहे हैं इसे गायरी का साफा कहा जाता है। सूती केंब्रिक कपड़े पर बेल-बूटे छापे जाते हैं। पूरे सिर को घेरने वाले इस साफे का छोगा लटकाया जाता है और पीछे से खोंसा भी जाता है। [caption id="attachment_155003" align="aligncenter" width="520"]
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30 मीटर की होती है पगड़ी
आपको बता दें कि भारत में पगड़ी 30 मीटर तक लम्बी होती है। जानकारों के अनुसार आम तौर पर पगड़ी की लंबाई 18 से 30 मीटर और चौड़ाई 8 से 9 इंच होती है। इसी प्रकार साफे की लंबाई 9 से 12 मीटर ओर चौड़ाई 36 से 45 इंच तक होती है। वहीं 30 किलो की इस पगड़ी की परिधि 11 फीट, लम्बाई 151 फीट और ऊंचाई 30 इंच है। [caption id="attachment_155004" align="aligncenter" width="525"]
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इज्जत का प्रतीक होती है पगड़ी
भारत में पगड़ी का सामान्रू महत्व तो आपने ऊपर जान और समझ लिया। हम आपको यह भी बता दें कि भारत में पगड़ी इज्जत यानि की मान-सम्मान का भी प्रतीक है। जब कोई व्यक्ति किसी गलती के कारण समाज में बेइज्जत या अपमानित होता है तो कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति की तो पगड़ी उतर गई। भारत में होने वाली पंचायतों में बड़ी से बड़ी गलती करने वाले को पगड़ी उतारकर पंचों के चरणों में रखने पर माफी मिल जाती है। जब कोई व्यक्ति पंचायत में अपनी पगड़ी उतारकर दूसरे के सामने रख देता है तो माना जाता है कि पगड़ी उतारने वाले ने अपनी पूरी सजा भुगत ली है।सुप्रीम कोर्ट का सबसे बड़ा फैसला, मजाक नहीं है हिन्दु विवाह संस्कार
ग्रेटर नोएडा– नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें। देश–दुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।संबंधित खबरें
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