Dr. Rajendra Prasad : आधी से भी ज्यादा तनख्वाह राष्ट्रीय कोष के नाम कर दी।

लगातार दो बार जीता राष्ट्रपति चुनाव
26 जनवरी 1950 को पहली बार देश के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद उन्होंने 1952 में अपना कार्यकाल शुरू किया और 1957 में पुनः राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतकर अपना कार्यकाल जारी रखा। हालांकि दूसरे कार्यकाल में ही उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा था। अपने जीवन के अंतिम समय में वे पटना के सदाक़त आश्रम में रहने लगे थे।अपना ही वेतन लगता था ज्यादा
सादगी परस्त जीवन जीने वाले Dr. Rajendra Prasad जिन्हें प्रेम से सभी राजेंद्र बाबू कहते थे, उस समय एक राष्ट्रपति के तौर पर 10000 मासिक वेतन और 2500 मासिक भत्ता प्राप्त करते थे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उन्हें यह वेतन खुद के लिए बहुत ज्यादा लगता था। ऐसे में उन्होंने खुद का वेतन घटाकर मात्र 2500 रुपये कर लिया था। बाकी की धनराशि वे राष्ट्रीय कोष में दे दिया करते थे।Dr. Rajendra Prasad
जब दूसरे कार्यकाल के दौरान ही उन्होंने अपने राष्ट्रपति पद का त्याग किया तब उन्होंने कहा कि अब से मैं पटना के छोटे से आश्रम में अपना जीवन बिताऊंगा। और उसके पीछे यह कारण नहीं है कि मैं इससे अपनी विनम्रता या महत्ता जाहिर करना चाहता हूँ बल्कि अब से मैं एक नये स्थान से अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करूंगा।Rare Disease Day – इस थीम के साथ मनाया जा रहा ‘दुर्लभ रोग दिवस’
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लगातार दो बार जीता राष्ट्रपति चुनाव
26 जनवरी 1950 को पहली बार देश के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद उन्होंने 1952 में अपना कार्यकाल शुरू किया और 1957 में पुनः राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतकर अपना कार्यकाल जारी रखा। हालांकि दूसरे कार्यकाल में ही उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा था। अपने जीवन के अंतिम समय में वे पटना के सदाक़त आश्रम में रहने लगे थे।अपना ही वेतन लगता था ज्यादा
सादगी परस्त जीवन जीने वाले Dr. Rajendra Prasad जिन्हें प्रेम से सभी राजेंद्र बाबू कहते थे, उस समय एक राष्ट्रपति के तौर पर 10000 मासिक वेतन और 2500 मासिक भत्ता प्राप्त करते थे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उन्हें यह वेतन खुद के लिए बहुत ज्यादा लगता था। ऐसे में उन्होंने खुद का वेतन घटाकर मात्र 2500 रुपये कर लिया था। बाकी की धनराशि वे राष्ट्रीय कोष में दे दिया करते थे।Dr. Rajendra Prasad
जब दूसरे कार्यकाल के दौरान ही उन्होंने अपने राष्ट्रपति पद का त्याग किया तब उन्होंने कहा कि अब से मैं पटना के छोटे से आश्रम में अपना जीवन बिताऊंगा। और उसके पीछे यह कारण नहीं है कि मैं इससे अपनी विनम्रता या महत्ता जाहिर करना चाहता हूँ बल्कि अब से मैं एक नये स्थान से अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करूंगा।Rare Disease Day – इस थीम के साथ मनाया जा रहा ‘दुर्लभ रोग दिवस’
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