बिहार की एक गुफा में सदियों से छिपा हुआ है सोने का भंडार

बिहार की एक गुफा में सदियों से छिपा हुआ है सोने का भंडार
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 05:25 PM
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Bihar News : भारत का प्रमुख राज्य बिहार अनेक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। बिहार ही वह प्रदेश है जहां पर एक जमाने में दुनिया का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हुआ करता था। बिहार प्रदेश ही दुनिया के सबसे बुद्धिमान राजनीतिज्ञ चाणक्य की जन्मभूमि रहा है। इसी बिहार राज्य में सदियों से एक गुफा में स्वर्ण भंडार छिपा हुआ है। लाखों बार कोशिश करने के बाद भी बिहार की गुफा से स्वर्ण भंडार को निकाला नहीं जा सका है।

राजगीर की गुफाओं में छुपा है स्वर्ण भंडार

बिहार प्रदेश का एक प्रसिद्ध जिला है नालंदा जिला। बिहार के इस जिले में इतिहास के अनेक दस्तावेज फैले हुए हैं। बिहार के इसी जिले में दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय भी रहा है। बिहार के इस विश्वविद्यालय का नाम नालंदा विश्वविद्यालय था। नालंदा विश्वविद्यालय के नाम पर ही इस जिले का नाम नालंदा पड़ा है। इसी नालंदा जिले में सदियों से छुपा हुआ है बड़ा भारी स्वर्ण भंडार। जहां यह स्वर्ण भंडार छिपा होने का दावा किया जाता है बिहार के उस स्थान का नाम राजगीर की गुफा है। राजगीर की गुफा को लेकर तरह-तरह की कहानिया दुनिया भर में प्रचलित हैं। हाल ही में भूपेन्द्र कुमार नाम के विश्लेषक ने बिहार में मौजूद राजगीर की गुफाओं को लेकर बड़ा आलेख लिखा है।

गुफा में खजाने का रहस्य Bihar News

'देवेन्द्र कुमार ने लिखा है कि बिहार के नालंदा जिले में कदम-कदम पर पुरावशेष बिखरे हैं। इन्हीं में से एक है सोन भंडार यानी स्वर्ण भंडार। जैसा नाम है, वैसा ही इसका मिथक है। हरे-भरे जंगल के बीच स्थित इन गुफाओं का रास्ता बेहद सुरम्य है। इस आख्यान की शुरुआत छठी शताब्दी ईसा पूर्व हर्यक वंश के प्रतापी शासक महाराज बिंबिसार से होती है, जिन्होंने राजगृह (राजगीर) का निर्माण कराया था। बिंबिसार 543 ईसा पूर्व में मगध पर राज करते थे। बताया जाता है कि उन्हीं के काल में सोन भंडार गुफाओं का निर्माण खजाने को रखने के लिए किया गया। इस आयताकार गुफा में दो हिस्से हैं। एक हिस्सा सैनिकों के लिए था, जो खजाने की रक्षा करते थे और दूसरा हिस्सा बताया जाता है। अंग्रेजों ने खजाने की खोज के लिए तोपों का सहारा लिया, लेकिन दीवार को तोड़ नहीं पाए। दरअसल खजाने का तिलिस्म एक ऐसी प्राचीन शंख लिपि से जुड़ा है, जिसे कभी पढ़ा नहीं जा सका। किंवदंती है कि गुफा की दीवार पर शंख लिपि में खजाने के दरवाजे को खोलने का तरीका लिखा है। ये गुफाएं विभागिरी पहाडय़िों की तलहटी में हैं। सम्राट बिंबिसार के पुत्र अजातशत्रु ने जब उन्हें बंदी बनाकर कारागार में डाला, तो उनकी रानी ने खजाना इन गुफाओं में छिपा दिया। बाद में 'बिंबिसार की मौत हो गई थी। इसके बाद खजाने के बारे में कहीं कोई लिखित वृतांत नहीं मिलता। वायु पुराण में लिखा है कि हर्यक वंश से 2500 साल पहले मगध पर सम्राट वृहद्रथ का शासन था। उनका पुत्र जरासंध महाप्रतापी शासक था, जिसने 80 राजाओं को हराकर जो संपत्ति अर्जित की, उसे इसी गुफा में छिपा दिया था। महाभारत से जुड़े प्रसंग के अनुसार, जरासंध को भीम ने मार डाला था और इसी के साथ खजाने का राज भी दफन हो गया। हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संस्थापक सर अलेक्जेंडर कनिंघम और कुछ अन्य इतिहासकार इन गुफाओं को बौद्ध धर्म से जोड़ते हैं। वहीं दर्ज इतिहास में इन गुफाओं को जैन मुनियों द्वारा ईसा पूर्व चौथी सदी में निर्मित माना जाता है। यहां जैन धर्म से जुड़ी छह मूर्तियां मिली हैं। भगवान विष्णु की प्रतिमाएं भी मिली हैं। चौथी शताब्दी के एक शिलालेख पर लिखा है कि मुनि वैरादेव ने दो शुभ गुफाओं का निर्माण कराया, जो तपस्वियों के योग्य हैं और जिनमें अर्हतों (तीर्थंकरों) की मूर्तियां स्थापित हैं। हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं, यह गुफाओं का पुनर्निर्माण भी हो सकता है। बहरहाल, इन गुफाओं के अंदर की चमक बेमिसाल है, जो किसी खजाने से कम नहीं है। Bihar News

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रेलवे ने बदला वंदे मेट्रो का नाम, उद्घाटन से पहले हुआ बड़ा बदलाव

रेलवे ने बदला वंदे मेट्रो का नाम, उद्घाटन से पहले हुआ बड़ा बदलाव
locationभारत
userचेतना मंच
calendar27 Nov 2025 07:39 AM
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Vande Metro : देश की पहली वंदे मेट्रो के नाम में बदलाव किया गया है, यह बदलाव उद्घाटन से ठीक पहले हुआ है। अब वंदे मेट्रो का नया नाम नमो भारत रैपिड रेल होगा। जो पहली बार गुजरात के भुज से अहमदाबाद के बीच चलेगी। दरअसल इस वंदे मेट्रो का उद्घाटन 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने वालें है। इससे पहले इसी प्रकार आरआरटीएस ट्रेन का नाम रैपिडएक्स से बदलकर नमो भारत रैपिड रेल किया गया था। यह ट्रेन मेरठ से दिल्ली के बीच चलने वाली है।

उद्घाटन से पहले बदला ट्रेन का नाम

आपको बता दें कि केंद्र सरकार और रेल मंत्रालय ने वंदे भारत मेट्रो ट्रेन का नाम बदलने को मंजूरी दी हैं। पीएम मोदी सोमवार को अहमदाबाद और भुज के बीच चलने वाली देश की पहली वंदे भारत मेट्रो ट्रेन को हरी झंडी दिखने वाले है, ऐसे में ट्रेन का नाम बदलकर सबको हैरान कर दिया है। अब वंदे भारत मेट्रो ट्रेन नमो भारत रैपिड रेल के नाम से जाजी जाएगी। अपने जन्मदिन के मौके पर पीएम मोदी इस ट्रेन का हरी झंडी दिखाकर रवाना करेंगे। इस मौके पर वह कई वंदे भारत ट्रेनों को भी हरी झंडी दिखाएंगे। खासतौर पर नमो भारत रैपिड रेल ट्रेन को गुजरात वासियों के लिए बड़ी सौगात है।

वंदे भारत ट्रेनों की तर्ज बनी है यह ट्रेन

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नमो भारत रैपिड रेल को वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों की तर्ज पर बनाया गया है। हालांकि यह ट्रेने देश के कई हिस्सों में छोटी दूरी के लिए चलेंगी। फिलहाल इस तरह की प्रस्तावित ट्रेनों में से पहली ट्रेन का शुभारंभ गुजरात में अहमदाबाद से भुज के बीच होने वाला है। रेलवे अधिकारियों के मुताबिक छोटी दूरी की इन ट्रेनों का संचालन ईएमयू की तरह से ही होगा। इन दोनों तरह की ट्रेनों में अंतर यह होगा नमो भारत रैपिड रेल में अत्याधुनिक सुविधाएं होंगी और इनकी स्पीड काफी तेज होगी। Vande Metro

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आखिर क्यों मनाया जाता है इंजीनियरिंग दिवस? जरूरी है जानना

आखिर क्यों मनाया जाता है इंजीनियरिंग दिवस? जरूरी है जानना
locationभारत
userचेतना मंच
calendar15 Sep 2024 05:01 PM
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Engineers Day 2024 : आज यानी 15 सितंबर का दिन पूरी दुनिया के लिए बेहद महत्वपूर्ण दिन है ।आज के दिन को इंजीनियरिंग दिवस के रूप में मनाया जाता है । बदलते समय के साथ अब भारत सेमी कंडक्टर हब बनने जा रहा है,भारत में एआई ने भी क्रांति की है पर आज भी अमेरिका की सिलिकान वैली में तब तक कोई कंपनी सफल नहीं मानी जाती जब तक उसमें कोई भारतीय इंजीनियर कार्यरत न हो ।

भारत में रखी गई थी नींव Engineers Day 2024

भारत केआईआईएससी,आईआईटी जैसे संस्थानों के इंजीनियर्स ने विश्व में अपनी बुद्धि से भारतीय श्रेष्ठता का समीकरण अपने पक्ष में कर दिखाया है। इस तकनीकी क्रांति की नींव भारत में सर मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया ने एक सदी पहले डाली थी। उनका जन्मदिवस इंजीनियर्स डे के रूप में हर साल मनाया जाता है। हमारे पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने कल कारखानों को नये भारत के तीर्थ कहा था,इन्ही तीर्थों के पुजारी , निर्माता इंजीनियर्स को आज अभियंता दिवस पर बधाई। विगत कुछ दशकों में इंजीनियर्स की छवि में गिरावट हुई ,भ्रष्टाचार के घोलमाल में बढ़ोत्री हुई है,अनेक इंजीनियर्स प्रशासनिक अधिकारी या मैनेजमेंट की उच्च शिक्षा लेकर बड़े मैनेजर बन गये हैं ,आइये आज इंजीनियर्स डे पर कुछ पल चिंतन करे समाज में इंजीनियर्स की इस दशा पर। निरंतर हो रहे इन परिवर्तनो पर चिंतन जरूरी है।

इंजीनियर्स या राजनेताओं के इशारों पर चलने वाली कठपुतली ?

देश में आज इंजीनियरिंग शिक्षा के हजारों कालेज खुल गये हैं , लाखों इंजीनियर्स प्रति वर्ष निकल रहे हैं , पर उनमें से कितनों में वह जज्बा है जो भारत रत्न इंजीनियर सर मोक्षगुण्डम विश्वेवश्वरैया में था। मनन चिंतन का विषय है कि क्यों इंजीनियरिंग डिग्री धारी क्लर्क की नौकरी के आवेदन करने को मजबूर हो गए हैं।

भारत रत्न इंजीनियर सर मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया का जीवन सतत प्रेरणा... Engineers Day 2024

भारत रत्न इंजीनियर सर मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर(कर्नाटक) के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में 15 सितंबर 1860 को हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री तथा माता का नाम वेंकाचम्मा था। पिता संस्कृत के विद्वान थे। विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा जन्मस्थान से ही पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने बंगलूर के सेंट्रल कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन यहां उनके पास धन का अभाव था। अत: उन्हें टयूशन करना पड़ा। विश्वेश्वरैया ने 1881 में बीए की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया। इसके बाद मैसूर सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के साइंस कॉलेज में दाखिला लिया। 1883 की एलसीई व एफसीई (वर्तमान समय की बीई उपाधि) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपनी योग्यता का परिचय दिया। इसी उपलब्धि के चलते महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया। दक्षिण भारत के मैसूर, कर्नाटक को एक विकसित एवं समृद्धशालीक्षेत्र बनाने में भारत रत्न इंजीनियर सर मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया का अभूतपूर्व योगदान है। तकरीबन 55 वर्ष पहले जब देश स्वंतत्र नहीं था, तब कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर समेत अन्य कई महान उपलब्धियां एमवी ने कड़े प्रयास से ही संभव हो पाई। इसीलिए इन्हें कर्नाटक का भागीरथ भी कहते हैं। जब वह केवल 32 वर्ष के थे, उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की पूर्ति करने का प्लान तैयार किया जोसभी इंजीनियरों को पसंद आया। सरकार ने सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के उपायों को ढूंढने के लिए समिति बनाई। इसके लिए भारत रत्न इंजीनियर सर मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया ने एक नए ब्लॉक सिस्टम को इजाद किया। उन्होंने स्टील के दरवाजे बनाए जो कि बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करता था। उनके इस सिस्टम की प्रशंसा ब्रिटिश अधिकारियों ने मुक्तकंठ से की। आज यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है। विश्वेश्वरैया ने मूसा व इसा नामक दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान तैयार किए। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया। उस वक्त राज्य की हालत काफी बदतर थी। विश्वेश्वरैया लोगों कीआधारभूत समस्याओं जैसे अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी आदि को लेकर भी चिंतित थे। फैक्टरियों का अभाव, सिंचाई के लिए वर्षा जल पर निर्भरता तथा खेती के पारंपरिक साधनों के प्रयोग के कारण समस्याएं जस की तस थीं। इन समस्याओं के समाधान के लिए विश्वेश्वरैया ने इकॉनोमिक कॉन्फ्रेंस के गठन का सुझाव दिया। मैसूर के कृष्ण राजसागर बांध का निर्माण कराया। कृष्णराजसागर बांध के निर्माण के दौरान देश में सीमेंट नहीं बनता था,इसके लिए इंजीनियरों ने मोर्टार तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था। 1912 में विश्वेश्वरैया को मैसूर के महाराजा ने दीवान यानी मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया। विश्वेश्वरैया शिक्षा की महत्ता को भलीभांति समझते थे। लोगों की गरीबी व कठिनाइयों का मुख्य कारण वह अशिक्षा को मानते थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में मैसूर राज्य में स्कूलों की संख्या को 4,500 से बढ़ाकर 10,500 कर दी। इसके साथ ही विद्यार्थियों की संख्या भी 1,40,000 से 3,66,000 तक पहुंच गई। मैसूर में लड़कियों के लिए अलग हॉस्टल तथा पहला फ‌र्स्ट ग्रेड कॉलेज (महारानी कॉलेज) खुलवाने का श्रेय भी विश्वेश्वरैया को ही जाता है। उन दिनों मैसूर के सभी कॉलेज मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्ध थे। उनके ही अथक प्रयासों के चलते मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई जो देश के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। इसके अलावा उन्होंने श्रेष्ठ छात्रों को अध्ययन करने के लिए विदेश जाने हेतु छात्रवृत्ति की भी व्यवस्था की। उन्होंने कई कृषि, इंजीनियरिंग व औद्योगिक कालेजों को भी खुलवाया। वह उद्योगों को देश की जान मानते थे, इसीलिए उन्होंने पहले से मौजूद उद्योगों जैसे सिल्क, संदल, मेटल, स्टील आदि को जापान व इटली के विशेषज्ञों की मदद से और अधिक विकसित किया। धन की जरूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने बैंक ऑफ मैसूर खुलवाया। इस धन का उपयोग उद्योग-धंधों को विकसित करने में किया जाने लगा। 1918 में विश्वेश्वरैया दीवान पद से सेवानिवृत्त हो गए औरों से अलग विश्वेश्वरैया ने 44 वर्ष तक और सक्रिय रहकर देश की सेवा की। सेवानिवृत्ति के दस वर्ष बाद भद्रा नदी में बाढ़ आ जाने से भद्रावती स्टील फैक्ट्री बंद हो गई। फैक्ट्री के जनरल मैनेजर जो एक अमेरिकन थे, ने स्थिति बहाल होने में छह महीने का वक्त मांगा। जो कि विश्वेश्वरैया को बहुत अधिक लगा। उन्होंने उस व्यक्ति को तुरंत हटाकर भारतीय इंजीनियरों को प्रशिक्षित कर तमाम विदेशी इंजीनियरों की जगह नियुक्त कर दिया। मैसूर में ऑटोमोबाइल तथा एयरक्राफ्ट फैक्टरी की शुरूआत करने का सपना मन में संजोए विश्वेश्वरैया ने 1935 में इस दिशा में कार्य शुरू किया। बंगलूर स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स तथा मुंबई की प्रीमियरऑटोमोबाइल फैक्टरी उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है। 1947 में वह आल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष बने। उड़ीसा की नदियों की बाढ़ की समस्या से निजात पाने के लिए उन्होंने एक रिपोर्ट पेश की। इसी रिपोर्ट के आधार पर हीराकुंड तथा अन्य कई बांधों का निर्माण हुआ। वह किसी भी कार्य को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने में विश्वास करते थे। 1928 में पहली बार रूस ने इस बात की महत्ता को समझते हुए प्रथम पंचवर्षीय योजना तैयार की थी। लेकिन विश्वेश्वरैया ने आठ वर्ष पहले ही 1920 में अपनी किताब रिकंस्ट्रक्टिंग इंडिया में इस तथ्य पर जोर दिया था। इसके अलावा 1935 में प्लान्ड इकॉनामी फॉर इंडिया भी लिखी। मजे की बात यह है कि 98 वर्ष की उम्र में भी वह प्लानिंग पर एक किताब लिख रहे थे। देशकी सेवा ही विश्वेश्वरैया की तपस्या थी। 1955 में उनकी अभूतपूर्व तथा जनहितकारी उपलब्धियों के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। जब वह 100 वर्ष के हुए तो भारत सरकार ने डाक टिकट जारी कर उनके सम्मान को और बढ़ाया। 101 वर्ष की दीर्घायु में 14 अप्रैल 1962 को उनका स्वर्गवास हो गया। 1952 में वह पटना में गंगा नदी पर पुल निर्माण की योजना के संबंध में गए। उस समय उनकी आयु 92 वर्ष थी। तपती धूप थी और साइट पर कार से जाना संभव नहीं था। इसके बावजूद वह साइट पर पैदल ही गए और लोगों को हैरत में डाल दिया। विश्वेश्वरैया ईमानदारी, त्याग, मेहनत जैसे सद्गुणों से संपन्न थे। उनका कहना था, कार्य जो भी हो लेकिन वह इस ढंग से किया गया हो कि वह दूसरों के कार्य से श्रेष्ठ हो। उनकी जीवनी हमारे लिये सतत प्रेरणा है। इंजीनियर्स डे वह दिन है जब स्वयं इंजीनियर्स और समाज , राजनेता और सरकार इंजीनियर्स के हित में बड़े फैसले ले , क्योंकि देश के विकास की तकदीर लिखने वाले अभियंता ही हैं । (विभूति फीचर्स)

भाषा की सीमाओं से परे सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार शरतचंद्र

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