Jharkhand News जबरन उड़ान भरने वाले दो भाजपा सांसदों समेत 9 पर मुकदमा

Devghar
Jharkhand News
locationभारत
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calendar29 Nov 2025 05:30 PM
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Jharkhand News : खबर झारखंड के देवघर से है, दो भाजपा सांसदों समेत नौ लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। आरोप है कि भाजपा सांसदों और उनके सहयोगियों ने देवघर एयरपोर्ट के ऐयर ट्रैफिक कंट्रोलर पर दबाव बनाकर रात में चार्टर्ड प्लेन टेक ऑफ किया और उड़ान भरी। जिनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है, उनमें गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे, उनके दो बेटे, सांसद मनोज तिवारी और भाजपा नेता कपिल मिश्रा का नाम शामिल हैं।

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यह मुकदमा देवघर एयरपोर्ट पर तैनात डीएसपी सुमन अमन ने देवघर जनपद के कुंडा थाना में दर्ज शिकायत पर किया गया है। डीएसपी सुमन अमन के मुताबिक, 31 अगस्त को गोड्डा के सांसद, उनके दोनों बेटे, मनोज तिवारी और अन्य लोग देवघर एयरपोर्ट के एयर टै्रफिक कंट्रोलर में जबरन घुसे और कर्मचारियों पर जबरन क्लियरेंस लेने का दबाव बनाया। उन्होंने अपनी शिकायत में यह भी कहा कि देवघर एयरपोर्ट में नाइट टेक ऑफ और लैंडिंग की सुविधा अभी तक नहीं है।

अपनी शिकायत में डीएसपी ने कहा था कि ब वह एटीसी कंट्रोल रूम पहुंचे, तो वहां एयरपोर्ट के डायरेक्टर संदीप ढींगरा और चार्टर्ड प्लेन के पायलट पहले से मौजूद थे। उस समय चार्टर्ड प्लेन के पायलट ने एटीसी स्टाफ पर दबाव डाला। कुछ ही देर बाद सांसद और उनके दोनों बेटे भी वहां पहुंच गए। डीएसपी ने कहा कि दबाव से उन्हें उन्हें क्लियरेंस मिल भी गया। पायलट और बाकी लोग थोड़ी देर में देवघर एयरपोर्ट से निकल गए। डीएसपी अमन ने अपनी शिकायत में कहा कि इन चीजों को देखते हुए यह साफ है कि एयरपोर्ट ऑपरेशन के सुरक्षा मानकों का उल्लंघन किया गया है।

इस मामले में गोड्डा सांसद निशिकांत ने हेमंत सोरेन पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि पीड़ित परिवार से हम मिलने गए तो आप इतने बौखला गए कि पेड सिस्टम हमें गाली देने लगा। झारखंड के इस्लामीकरण से त्रस्त परिवार के इंसाफ की लड़ाई केस-मुकदमे से बंद नहीं होगी।

31 अगस्त को सांसद निशिकांत दुबे, मनोज तिवारी, कपिल मिश्रा देवघर से दुमका गए थे। ये सभी दुमका में पेट्रोल अटैक में मारी गई नाबालिग के पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे थे। दरअसल, दुमका में 23 अगस्त को एक नाबालिग लड़की को पड़ोस में ही रहने वाले शाहरुख हुसैन ने घर में ही पेट्रोल डालकर जला दिया था। रांची के रिम्स में उसका इलाज चला और 28 अगस्त को उसकी मौत हो गई थी।

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NCRB : जेल सुधार के साथ ही अपराधों में भी अव्वल उत्तर प्रदेश

NCRB
locationभारत
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calendar01 Dec 2025 05:50 AM
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New Delhi : नई दिल्ली। आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश अपराधों में भी अव्वल है। देश की जेलों में बंद कुल कैदियों की संख्या के 21.3 फीसदी कैदी अकेले उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद हैं। हालांकि जेल सुधार, प्रबंधन, बंदियों के कौशल विकास, कम्प्यूटर प्रशिक्षण, उच्च शिक्षा प्रदान करन, बंदियों के सुधार और पुर्नवास और असमर्थ एवं निर्धन बंदियों को विधिक सहायता उपलब्ध कराने में उत्तर प्रदेश की जेलों ने अपनी योग्यता साबित करते हुए नंबर वन का तमगा हासिल किया है। ये आंकड़े भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाले नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की ओर से जारी किए गए हैं। ब्यूरो की ओर से जारी प्रिजन स्टैटिक्स इण्डिया-2021 में कहा गया है कि देश की अन्य जेलों की तुलना में बंदियों की शिक्षा जैसे- कम्प्यूटर प्रशिक्षण, उच्च शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, महिला बंदियों के उत्थान और विकास, बंदियों के कौशल विकास, बंदियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं जैसे मामलों में उप्र ने देश की अन्य जेलों की तुलना में बेहतरीन एवं उत्साहजनक परिणाम दिये हैं। एनसीआरबी की वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार देश के सभी राज्यों की जेलों में कुल 5,54,034 बंदी निरूद्ध हैं। इनमें लगभग 21.3 प्रतिशत यानि 1,17,789 बंदी अकेले उप्र की कुल 75 जेलों में निरूद्ध हैं। यह संख्या देश में सबसे अधिक है। एनसीआरबी के ये आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि उत्तर प्रदेश अपराधों के मामले में देश में अव्वल है। हालांकि इतनी बड़ी आबादी और बंदियों की संख्या के बावजूद जेलों का बेहतरीन प्रबंधन सराहनीय है। रिपोर्ट के मुताबिक बंदियों को शिक्षण, प्रशिक्षण और कौशल विकास के कार्यों में सिद्धहस्त करने का सुखद परिणाम निकला है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार कौशल विकास के कार्यों जैसे कृषि, कॉरपेंटरी, सिलाई, बुनाई, साबुन और फिनायल निर्माण, हैण्डलूम आदि में वर्ष 2021 में उप्र की जेलों में निरूद्ध कुल 18.3 प्रतिशत बंदियों को दक्ष किया गया। यह देश में प्रथम स्थान है। जबकि राजस्थान तथा पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में क्रमशः मात्र 11.80 प्रतिशत व 0.40 प्रतिशत बंदियों को वोकेशनल ट्रेनिंग दी गयी है। यूपी की जेलों में वर्ष 2021 में जेल तोड़कर भागने की की एक भी घटना नहीं हुई। जबकि महाराष्ट्र और राजस्थान जैसी जेलों में जेल ब्रेक की क्रमशः 05 व 06 घटनायें हुयी हैं। इसके अतिरिक्त बंदियों के पलायन की दृष्टि से उप्र राज्य का देश में 13वां स्थान है। बंदियों के कम्प्यूटर प्रशिक्षण में यूपी देश में प्रथम स्थान पर है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार साल 2021 में 1162 बंदियों को कम्प्यूटर में दक्ष किया गया। बंदियों को उच्च शिक्षा प्रदान करने में भी यूपी की जेलों ने देश में प्रथम स्थाना हासिल किया है। कुल 4101 बंदियों को उच्च शिक्षित किया गया है। एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 के दौरान बंदियों के सुधार एवं पुर्नवास के कार्यों में गैर सरकारी संस्थाओं को प्रोत्साहित करके उनके सहयोग से जेलों में बंदियों के सुधार एवं पुर्नवास का कार्य कराया गया। उप्र में वर्तमान में कुल 96 एनजीओ काम कर रही हैं, जिसमें से 52 विशिष्ट रूप से जेलों में निरूद्ध महिलाओं और उनके साथ निरूद्ध 06 वर्ष तक बच्चों के स्वास्थ्य, कल्याण, सुधार और पुर्नवास के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। इन एनजीओ के सहयोग से जेलों में निरूद्ध महिलाओं और उनके बच्चों के कल्याण की दृष्टि से उल्लेखनीय कार्य किये गये हैं। इस दृष्टि से उप्र की जेलों का स्थान देश में सर्वोच्च है। एनजीओ के सहयोग से असमर्थ एवं निर्धन बंदियों को विधिक सहायता उपलब्ध कराने में भी यूपी देश में प्रथम स्थान पर है। एनजीओ के सहयोग से कुल 6717 बंदियों को विधिक सहायता उपलब्ध करायी गयी है, जो देश में सर्वोच्च है। हालांकि यूपी की जेलों में निरूद्ध निरक्षर बंदियों को शिक्षित और साक्षर बनाने के मामले में उप्र का स्थान देश में दूसरा है। यहां कुल 5292 प्रौढ़ बंदियों को साक्षर एवं शिक्षित किया गया है। एनसीआरबी की वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार उप्र की जेलों ने बंदियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की बिक्री से 15.4 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित करके देश में चौथा स्थान प्राप्त किया है। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र, पंजाब जैसे उद्योगों की दृष्टि से अग्रणी राज्य भी जेलों में उद्योगों के सफल संचालन के मामलें में उप्र से काफी पीछे हैं। महाराष्ट्र ने 12.75 करोड़ रुपये एवं पंजाब ने 1.33 करोड़ रुपये का ही लाभ अर्जित किया है। ये राज्य क्रमशः 5वें और 18वें स्थान पर हैं। उप्र की जेलों में अप्राकृतिक मृत्यु और पलायन की संख्या बेहद कम है। रिपोर्ट के अनुसार यूपी की जेलों में देश की जेलों के मुकाबले लगभग 22 प्रतिशत बंदी निरूद्ध हैं। बंदियों को जेल में रखने की क्षमता की दृष्टि से उप्र की जेलों में लगभग 184.8 प्रतिशत अधिक बंदी हैं। इसके बावजूद आत्महत्या, हत्या जैसे मामलों की संख्या उप्र में अन्य राज्यों के मुकाबले उल्लेखनीय रूप से काफी कम है। उप्र की जेलों ने आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस, सीसीटीवी कैमरों व मुख्यालय में वीडियो वॉल व अन्य आधुनिक उपकरणों तथा निरन्तर चौकसी के बेहतर उपयोग से जेलों में सुशासन स्थापित किया। यही कारण है कि हत्या, आत्महत्या व अन्य कारणों से होने वाली अप्राकृतिक मृत्यु के मामलों को नियन्त्रित करने में पूर्णतः सफलता मिली है। अप्राकृतिक मृत्यु की दृष्टि से उप्र की जेलों का स्थान देश में 11वां है। उत्तर प्रदेश में बंदियों की संख्या देश में सबसे अधिक है। इसके बावजूद बंदियों के पलायन की दृष्टि से उप्र का देश में 13वां स्थान है। जबकि यूपी की तुलना में काफी कम बंदी जनसंख्या वाले राज्यों में बंदी पलायन की काफी घटनायें हुयी हैं। राजस्थान का देश में तीसरा तथा पंजाब का नौवां स्थान है।
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Supreme Court : विचार के काबिल नहीं कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की याचिका : सुप्रीम कोर्ट

Supreme court
New constitution bench to hear petitions against polygamy, 'nikah halala'
locationभारत
userचेतना मंच
calendar27 Nov 2025 05:51 PM
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New Delhi : नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर (Jammu & Kashmir) में कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के नरसंहार (Massacre) को लेकर दाखिल याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से इनकार कर दिया। जस्टिस बीआर गवई (Justice BR Gavai) और सीटी रविकुमार (CT Ravikumar) की पीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया है। वी द सिटीजन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कश्मीर में 1990 से 2003 तक कश्मीरी पंडितों और सिखों के नरसंहार और अत्याचार की जांच के लिए एसआईटी के गठन की मांग की थी। याचिका में कश्मीर में हुए हिंदुओं के उत्पीड़न और विस्थापितों के पुनर्वास की मांग भी की गई थी। एनजीओ ‘वी द सिटिजन्स’ ने अधिवक्ता वरुण कुमार सिन्हा के माध्यम से याचिका दायर की गई थी। इसमें उन्होंने केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार से 90 के दशक में केंद्र शासित प्रदेश में हुए नरसंहार के बाद भारत के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले हिंदुओं और सिखों की जनगणना करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था। इसमें कहा गया था कि एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाए और साल 1989 से 2003 तक जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं और सिखों के नरसंहार में शामिल, उनकी सहायता करने वाले और उकसाने वाले अपराधियों की पहचान की जाए। एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर आरोपियों पर मुकदमा चलाने का निर्देश दिया जाए। इसमें हाल के महीनों में कश्मीर घाटी में मारे गए कश्मीरी पंडितों की हत्या की जांच की भी मांग की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि 1990 के बाद जो लोग अपनी अचल संपत्तियों को छोड़कर कश्मीर से चले गए हैं, वे भारत के अन्य हिस्सों में शरणार्थियों जैसा जीवन जी रहे हैं। उन लोगों की पहचान कर उनका पुनर्वास किया जाए। इससे पहले साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट में 1989-90 में कश्मीरी पंडितों की हत्याओं की जांच की मांग वाली पुनर्विचार याचिका दायर की गई थी। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। कोर्ट ने आदेश में कहा था कि नरसंहार के 27 साल बाद सबूत जुटाना मुश्किल है। मार्च में दायर नई याचिका में कहा गया कि 33 साल बाद 1984 के दंगों (सिख दंगों) की जांच करवाई जा सकती है तो ऐसा ही इस मामले में भी संभव है।