रेगिस्तान में छिपा खजाना! आस्ट्रेलिया में मिला दुनिया का सबसे बड़ा लौह अयस्क भंडार

कहां और कैसे मिला यह खजाना?
पिलबारा क्षेत्र पहले से ही खनिज संपदा के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन इस बार भूवैज्ञानिकों की टीम को जो सफलता मिली है, वह अभूतपूर्व है। टीम ने बताया कि यह भंडार हजारों किलोमीटर में फैला हुआ है और इसकी क्वालिटी बेहद उच्च स्तर की है। इस खोज में वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक आइसोटोपिक डेटिंग, भू-रासायनिक विश्लेषण और सेडिमेंट एनालिसिस जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया। इन्हीं तकनीकों की मदद से चट्टानों की उम्र का भी नया निर्धारण किया गया। पहले इनकी उम्र 2.2 अरब साल मानी जाती थी, जो अब घटाकर 1.4 अरब साल मानी जा रही है। इसका मतलब है कि ये चट्टानें और खनिज अपेक्षाकृत कम उम्र के हैं और अब खनन के लिहाज से ज्यादा उपयोगी साबित हो सकते हैं।आस्ट्रेलिया को क्या मिलेगा?
इस खोज से आस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था को नया बल मिलेगा। पहले से ही लौह अयस्क के वैश्विक निर्यात में उसकी अहम हिस्सेदारी है, अब यह दबदबा और बढ़ जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे आॅस्ट्रेलिया की जीडीपी में तेजी, निवेश बढ़ोतरी और रोजगार के नए अवसरों की बाढ़ आ सकती है।दुनिया पर पड़ेगा असर
वैश्विक स्तर पर लोहे की कीमतों में गिरावट आ सकती है। चीन, भारत और यूरोपीय देश, जो बड़े पैमाने पर लोहा आयात करते हैं, उन्हें इसका फायदा मिलेगा। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में संतुलन बदल सकता है और खनन आधारित कूटनीति की दिशा भी। इस खोज ने न सिर्फ आर्थिक बल्कि भूवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी एक क्रांति ला दी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे धरती के भूगर्भीय इतिहास को दोबारा लिखने की जरूरत पड़ेगी।अगली खबर पढ़ें
कहां और कैसे मिला यह खजाना?
पिलबारा क्षेत्र पहले से ही खनिज संपदा के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन इस बार भूवैज्ञानिकों की टीम को जो सफलता मिली है, वह अभूतपूर्व है। टीम ने बताया कि यह भंडार हजारों किलोमीटर में फैला हुआ है और इसकी क्वालिटी बेहद उच्च स्तर की है। इस खोज में वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक आइसोटोपिक डेटिंग, भू-रासायनिक विश्लेषण और सेडिमेंट एनालिसिस जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया। इन्हीं तकनीकों की मदद से चट्टानों की उम्र का भी नया निर्धारण किया गया। पहले इनकी उम्र 2.2 अरब साल मानी जाती थी, जो अब घटाकर 1.4 अरब साल मानी जा रही है। इसका मतलब है कि ये चट्टानें और खनिज अपेक्षाकृत कम उम्र के हैं और अब खनन के लिहाज से ज्यादा उपयोगी साबित हो सकते हैं।आस्ट्रेलिया को क्या मिलेगा?
इस खोज से आस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था को नया बल मिलेगा। पहले से ही लौह अयस्क के वैश्विक निर्यात में उसकी अहम हिस्सेदारी है, अब यह दबदबा और बढ़ जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे आॅस्ट्रेलिया की जीडीपी में तेजी, निवेश बढ़ोतरी और रोजगार के नए अवसरों की बाढ़ आ सकती है।दुनिया पर पड़ेगा असर
वैश्विक स्तर पर लोहे की कीमतों में गिरावट आ सकती है। चीन, भारत और यूरोपीय देश, जो बड़े पैमाने पर लोहा आयात करते हैं, उन्हें इसका फायदा मिलेगा। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में संतुलन बदल सकता है और खनन आधारित कूटनीति की दिशा भी। इस खोज ने न सिर्फ आर्थिक बल्कि भूवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी एक क्रांति ला दी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे धरती के भूगर्भीय इतिहास को दोबारा लिखने की जरूरत पड़ेगी।संबंधित खबरें
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