खामेनेई पर इजरायली रक्षा मंत्री का बड़ा बयान- 'अगर रेंज में होते तो मार देते'





यह शोध 'पीएलओएस पैथोजेन्स' नामक अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 से 2021 के बीच युन्नान इंस्टीट्यूट ऑफ एंडेमिक डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के वैज्ञानिकों ने 142 चमगादड़ों के गुर्दा (किडनी) नमूनों की जांच की। इनमें से दो वायरस—युन्नान बैट हेनिपावायरस 1 और 2—अपने जेनेटिक स्वरूप में निपाह और हेंड्रा वायरस के समान पाए गए हैं।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ये वायरस चमगादड़ों के मूत्र (पेशाब) में पाए गए, जिससे संक्रमण के एक नये रास्ते का संकेत मिलता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि चमगादड़ों के रहने वाले क्षेत्र में स्थित फल या पानी इनके मूत्र से दूषित हो जाएं, तो इनके ज़रिए इंसानों और पशुओं में वायरस का प्रसार संभव है। यह पहलू अब तक के वैज्ञानिक आकलनों में काफी हद तक उपेक्षित रहा है।
अध्ययन में शोधकर्ताओं को क्लोसिएला युन्नानेंसिस नामक एक नया प्रोटोजोआ परजीवी और फ्लेवोबैक्टीरियम युन्नानेंसिस नामक एक पूर्व-अज्ञात बैक्टीरिया भी मिला है। इनकी विशेषताओं और संभावित खतरों की जांच फिलहाल जारी है।
फिलहाल किसी महामारी के फैलने का प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन विशेषज्ञ इसे प्रकृति में छिपे संभावित खतरों का गंभीर संकेत मान रहे हैं। वायरोलॉजिस्ट का कहना है कि यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि प्रकृति में अभी भी अनेक वायरस मानव जीवन को प्रभावित कर सकते हैं—विशेष रूप से तब, जब पर्यावरणीय संतुलन से छेड़छाड़ की जा रही हो।
शोध में यह भी सामने आया है कि चमगादड़ गांवों के पास स्थित फलों के बागों में रहने लगे हैं। फल खाते समय ये चमगादड़ उन्हें दूषित कर सकते हैं, जिससे आसपास रहने वाले लोग अनजाने में वायरस की चपेट में आ सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण के चलते वन्यजीवों और मानव आबादी का संपर्क बढ़ा है, जो 'स्पिलओवर' घटनाओं की वृद्धि का कारण है।
वायरस के संभावित प्रसार को रोकने के लिए वैज्ञानिकों ने कुछ अहम सुझाव दिए हैं:
चमगादड़ों के सभी अंगों की विशेष रूप से किडनी की गहन जांच हो।
स्थानीय सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए।
लोगों को फल धोकर खाने, ढककर रखने और पानी उबालकर पीने की जागरूकता दी जाए।
वन्यजीवों की निगरानी और उनके संपर्क क्षेत्रों की वैज्ञानिक निगरानी को प्राथमिकता मिले। New Virus
यह शोध 'पीएलओएस पैथोजेन्स' नामक अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 से 2021 के बीच युन्नान इंस्टीट्यूट ऑफ एंडेमिक डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के वैज्ञानिकों ने 142 चमगादड़ों के गुर्दा (किडनी) नमूनों की जांच की। इनमें से दो वायरस—युन्नान बैट हेनिपावायरस 1 और 2—अपने जेनेटिक स्वरूप में निपाह और हेंड्रा वायरस के समान पाए गए हैं।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ये वायरस चमगादड़ों के मूत्र (पेशाब) में पाए गए, जिससे संक्रमण के एक नये रास्ते का संकेत मिलता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि चमगादड़ों के रहने वाले क्षेत्र में स्थित फल या पानी इनके मूत्र से दूषित हो जाएं, तो इनके ज़रिए इंसानों और पशुओं में वायरस का प्रसार संभव है। यह पहलू अब तक के वैज्ञानिक आकलनों में काफी हद तक उपेक्षित रहा है।
अध्ययन में शोधकर्ताओं को क्लोसिएला युन्नानेंसिस नामक एक नया प्रोटोजोआ परजीवी और फ्लेवोबैक्टीरियम युन्नानेंसिस नामक एक पूर्व-अज्ञात बैक्टीरिया भी मिला है। इनकी विशेषताओं और संभावित खतरों की जांच फिलहाल जारी है।
फिलहाल किसी महामारी के फैलने का प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन विशेषज्ञ इसे प्रकृति में छिपे संभावित खतरों का गंभीर संकेत मान रहे हैं। वायरोलॉजिस्ट का कहना है कि यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि प्रकृति में अभी भी अनेक वायरस मानव जीवन को प्रभावित कर सकते हैं—विशेष रूप से तब, जब पर्यावरणीय संतुलन से छेड़छाड़ की जा रही हो।
शोध में यह भी सामने आया है कि चमगादड़ गांवों के पास स्थित फलों के बागों में रहने लगे हैं। फल खाते समय ये चमगादड़ उन्हें दूषित कर सकते हैं, जिससे आसपास रहने वाले लोग अनजाने में वायरस की चपेट में आ सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण के चलते वन्यजीवों और मानव आबादी का संपर्क बढ़ा है, जो 'स्पिलओवर' घटनाओं की वृद्धि का कारण है।
वायरस के संभावित प्रसार को रोकने के लिए वैज्ञानिकों ने कुछ अहम सुझाव दिए हैं:
चमगादड़ों के सभी अंगों की विशेष रूप से किडनी की गहन जांच हो।
स्थानीय सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाए।
लोगों को फल धोकर खाने, ढककर रखने और पानी उबालकर पीने की जागरूकता दी जाए।
वन्यजीवों की निगरानी और उनके संपर्क क्षेत्रों की वैज्ञानिक निगरानी को प्राथमिकता मिले। New Virus