देवउठनी पर क्यों बजती हैं शहनाइयां? जानें इस दिन का धार्मिक महत्व

देवउठनी पर क्यों बजती हैं शहनाइयां? जानें इस दिन का धार्मिक महत्व
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Oct 2025 09:35 AM
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देवउठनी एकादशी, जिसे देवप्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के सबसे पावन और प्रतीकात्मक पर्वों में से एक है। यह उत्सव कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं यही क्षण देवप्रबोधन कहलाता है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का यह चार माह का समय चातुर्मास कहलाता है, जब देवता विश्राम में रहते हैं और सभी शुभ कार्य स्थगित कर दिए जाते हैं।    Devuthani Ekadashi

देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के जागने के साथ ही सृष्टि में फिर से मंगल ऊर्जा और शुभता का संचार होता है। यही वजह है कि इस दिन से विवाह, गृहप्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत को अत्यंत शुभ माना जाता है। पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में देवउठनी एकादशी का व्रत 1 नवंबर (शनिवार) को रखा जाएगा जब भक्त भगवान विष्णु के जागरण का स्वागत भक्ति, दीपदान और तुलसी पूजा से करेंगे।    Devuthani Ekadashi

चातुर्मास: जब देवता करते हैं विश्राम

हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का चार महीने का काल चातुर्मास कहलाता है। इस अवधि की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं  यानी, सृष्टि के पालनहार स्वयं विश्राम करते हैं। यही कारण है कि इन चार महीनों में विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन या उपनयन जैसे मांगलिक कार्यों को शुभ नहीं माना जाता। मान्यता है कि जब देवता विश्राम में रहते हैं, तब संसार में शुभ ग्रह-ऊर्जाओं का प्रवाह स्थिर हो जाता है, इसलिए यह समय भक्ति, व्रत, साधना और आत्मचिंतन के लिए सर्वोत्तम बताया गया है।

जब कार्तिक शुक्ल एकादशी का सूर्योदय होता है, तो भगवान विष्णु की योगनिद्रा समाप्त होती है और देवप्रबोधिनी एकादशी के साथ ही शुभता का नया दौर शुरू होता है। इस दिन को देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है  जो देवशयन काल की समाप्ति और मांगलिक कार्यों के पुनः आरंभ का प्रतीक है। कहा जाता है कि जैसे ही विष्णु जी जागते हैं, वैसे ही ब्रह्मांड में मंगल ऊर्जा का संचार होता है और संसार में एक बार फिर से शुभ कार्यों की बहार लौट आती है।

यह भी पढ़े: कब है गोपाष्टमी? जानें गौ माता की पूजा का शुभ मुहूर्त

भगवान विष्णु के जागने संग खुलते हैं सौभाग्य के द्वार

चातुर्मास की समाप्ति के साथ ही देवउठनी एकादशी का दिन सृष्टि में शुभता की नई सुबह लेकर आता है। इस पावन तिथि पर तुलसी विवाह का आयोजन विशेष महत्व रखता है, जिसे भगवान विष्णु (शालिग्राम) और देवी तुलसी के दिव्य मिलन का प्रतीक माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी देवी स्वयं माता लक्ष्मी का अवतार हैं, और उनका यह विवाह समृद्धि, सौभाग्य और कल्याण का प्रतीक है। तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह संकेत देता है कि अब शुभ कार्यों का समय लौट आया है।    Devuthani Ekadashi जब तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं, तब तक सभी मांगलिक कार्य स्थगित रहते हैं; परंतु उनके जागरण के साथ ही शुभ मुहूर्त पुनः प्रारंभ हो जाते हैं। इसी कारण देवउठनी एकादशी के बाद से विवाह, गृहप्रवेश, नामकरण, अन्नप्राशन और अन्य मांगलिक संस्कारों का शुभारंभ किया जाता है।  Devuthani Ekadashi
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देवउठनी एकादशी, जिसे देवप्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के सबसे पावन और प्रतीकात्मक पर्वों में से एक है। यह उत्सव कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं यही क्षण देवप्रबोधन कहलाता है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का यह चार माह का समय चातुर्मास कहलाता है, जब देवता विश्राम में रहते हैं और सभी शुभ कार्य स्थगित कर दिए जाते हैं।    Devuthani Ekadashi

देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के जागने के साथ ही सृष्टि में फिर से मंगल ऊर्जा और शुभता का संचार होता है। यही वजह है कि इस दिन से विवाह, गृहप्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत को अत्यंत शुभ माना जाता है। पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में देवउठनी एकादशी का व्रत 1 नवंबर (शनिवार) को रखा जाएगा जब भक्त भगवान विष्णु के जागरण का स्वागत भक्ति, दीपदान और तुलसी पूजा से करेंगे।    Devuthani Ekadashi

चातुर्मास: जब देवता करते हैं विश्राम

हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का चार महीने का काल चातुर्मास कहलाता है। इस अवधि की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं  यानी, सृष्टि के पालनहार स्वयं विश्राम करते हैं। यही कारण है कि इन चार महीनों में विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन या उपनयन जैसे मांगलिक कार्यों को शुभ नहीं माना जाता। मान्यता है कि जब देवता विश्राम में रहते हैं, तब संसार में शुभ ग्रह-ऊर्जाओं का प्रवाह स्थिर हो जाता है, इसलिए यह समय भक्ति, व्रत, साधना और आत्मचिंतन के लिए सर्वोत्तम बताया गया है।

जब कार्तिक शुक्ल एकादशी का सूर्योदय होता है, तो भगवान विष्णु की योगनिद्रा समाप्त होती है और देवप्रबोधिनी एकादशी के साथ ही शुभता का नया दौर शुरू होता है। इस दिन को देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है  जो देवशयन काल की समाप्ति और मांगलिक कार्यों के पुनः आरंभ का प्रतीक है। कहा जाता है कि जैसे ही विष्णु जी जागते हैं, वैसे ही ब्रह्मांड में मंगल ऊर्जा का संचार होता है और संसार में एक बार फिर से शुभ कार्यों की बहार लौट आती है।

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भगवान विष्णु के जागने संग खुलते हैं सौभाग्य के द्वार

चातुर्मास की समाप्ति के साथ ही देवउठनी एकादशी का दिन सृष्टि में शुभता की नई सुबह लेकर आता है। इस पावन तिथि पर तुलसी विवाह का आयोजन विशेष महत्व रखता है, जिसे भगवान विष्णु (शालिग्राम) और देवी तुलसी के दिव्य मिलन का प्रतीक माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी देवी स्वयं माता लक्ष्मी का अवतार हैं, और उनका यह विवाह समृद्धि, सौभाग्य और कल्याण का प्रतीक है। तुलसी विवाह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह संकेत देता है कि अब शुभ कार्यों का समय लौट आया है।    Devuthani Ekadashi जब तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं, तब तक सभी मांगलिक कार्य स्थगित रहते हैं; परंतु उनके जागरण के साथ ही शुभ मुहूर्त पुनः प्रारंभ हो जाते हैं। इसी कारण देवउठनी एकादशी के बाद से विवाह, गृहप्रवेश, नामकरण, अन्नप्राशन और अन्य मांगलिक संस्कारों का शुभारंभ किया जाता है।  Devuthani Ekadashi
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कब है गोपाष्टमी? जानें गौ माता की पूजा का शुभ मुहूर्त

कब है गोपाष्टमी? जानें गौ माता की पूजा का शुभ मुहूर्त
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userचेतना मंच
calendar28 Oct 2025 04:40 PM
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दीपावली,गोवर्धन पूजा,भेया दूज और छठ के बाद अब हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण, राधा रानी, गोपियों और गौ माता की आराधना के लिए बेहद ही शुभ माना जाता है। गोपाष्टमी को “गायों की पूजा का पर्व” भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन नंद बाबा ने भगवान श्रीकृष्ण को पहली बार गौ-सेवा का उत्तरदायित्व सौंपा था।  Gopashtami 2025 सनातन परंपराओं  के अनुसार इस पावन दिन गौमाता की पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख, समृद्धि व शांति आती है। इस दिन गोपियों की पूजा का विधान है क्योंकि उनकी पूजा करने से व्यक्ति में प्रेम और समर्पण का भाव भगवान के प्रति बढ़ता है। ऐसे  हम आपको बताएगें हैं। कि इस साल कब मनाई जाएगी गोपाष्टमी, क्या है। पूजा का शुभ मुहूर्त।   Gopashtami 2025

गोपाष्टमी का धार्मिक महत्व 

गोपाष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि “सेवा और समर्पण” का भी प्रतीक है। इस दिन गौमाता की सेवा करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है, बल्कि मन की शुद्धि और आत्मिक शांति भी प्राप्त होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बाल्यावस्था में जब श्रीकृष्ण ने नंद महाराज से कहा कि अब वे गायों की सेवा करेंगे, तभी से यह दिन गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा। गौमाता में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास माना गया है, इसलिए इस दिन गाय की पूजा से भगवान विष्णु, ब्रह्मा, महेश और समस्त देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। गोपाष्टमी पर राधा-कृष्ण और गोपियों की भी आराधना की जाती है, जिससे व्यक्ति के भीतर प्रेम, करुणा और भक्ति की भावना जागृत होती है।

2025 में कब है गोपाष्टमी ?

इस वर्ष में गोपाष्टमी 30 अक्टूबर 2025, गुरुवार को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार अष्टमी तिथि की शुरुआत 29 अक्टूबर, बुधवार सुबह 9:23 बजे से होगी और इसका समापन 30 अक्टूबर, गुरुवार सुबह 10:06 बजे होगा। उदय तिथि के अनुसार पर्व 30 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। गोपाष्टमी पर गौ पूजन का शुभ मुहूर्त समय सुबह 7:57 बजे से 8:25 बजे तक रहेगा। इस दौरान गायों, बछड़ों और श्रीकृष्ण-राधा की विधिवत पूजा करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है और व्यक्ति के जीवन से नकारात्मकता दूर होती है।

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गोपाष्टमी पूजा विधि

1.प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। 2.पूजा स्थल को साफ कर रंगोली और दीपक से सजाएं। 3.गौमाता और बछड़े को स्नान कराएं, फिर हल्दी, रोली, फूल और चंदन से श्रृंगार करें। 4.उन्हें हरा चारा, गुड़, फल और रोटी खिलाएं। 5.श्रीकृष्ण और राधा की पूजा करें, फिर गौमाता की आरती कर उनकी परिक्रमा करें। 6.पूजा के बाद गौशाला में चारा या दान देना शुभ माना जाता है।  Gopashtami 2025

ब्रजभूमि में गोपाष्टमी उत्सव

उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन और गोकुल में यह पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। भक्तजन सुबह से ही गौशालाओं में जाकर गायों को सजाते हैं, उन्हें पुष्पमालाएं पहनाते हैं। श्रीकृष्ण के भजन-कीर्तन करते हैं। माना जाता है कि इस दिन गाय की चरणरज माथे पर लगाने से पापों से मुक्ति मिलती है। जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।  Gopashtami 2025