भक्तों के लिए बड़ी खुशखबरी रेल नेटवर्क से जुड़ेगा खाटू श्याम मंदिर Khatu Shyam

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 10:52 AM
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Khatu Shyam Maharaj : नई दिल्ली। खाटू श्याम जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ी ख्रुशखबरी है। बाबा के दर्शन के लिए जाने के लिए उन्हें अब रेलवे द्वारा विशेष तोहफा दिया जा रहा है। खाटू श्याम मंदिर को जल्द ही रेलवे नेटवर्क से जोड़ा जाएगा और यात्रियों को सीधे ट्रेन मिल सकेगी।

Khatu Shyam Maharaj

आपको बता दें कि इस आशय के संकेत केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दिए हैं। रेल मंत्री ने कहा कि साल में करीब 50-60 लाख श्रद्धालु खाटू श्याम जी जाते हैं। जितने भी हमारे सांस्कृतिक धरोहर और श्रद्धा के स्थान है उनको जोड़ने की योजना रेलवे ने बनाई है। खाटू श्याम रेलवे के नेटवर्क से जुड़े सके उसकी व्यवस्था की गई है। हाल ही में इसके सर्वे को अनुमति मिली है। जल्द सर्वे पूरा कर काम शुरू करेंगे।

खाटू श्याम जाने के लिए अभी तक श्रद्धालुओं को जयपुर रेलवे स्टेशन जाना पड़ता है। जयपुर रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर बस या टैक्सी द्वारा खाटू श्याम पहुंचा जाता है, लेकिन खाटू श्याम मंदिर रेलवे नेटवर्क से जुड़ने के बाद सीधे ट्रेन सेवा मिल सकेगी।

खाटू श्याम का इतिहास

Khatu Shyam Maharaj जी का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के साथ पांडव पुत्र भीम के पोते बर्बरीक की पूजा की जाती है। खाटू श्याम मंदिर पर हर साल फागुन महीने की एकादशी से पांच दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में देश-विदेश के श्रद्धालु खाटू श्याम महाराज जी का दर्शन करने आते है।

अगर आपने महाभारत देखा होगा तो आप जरूर पांडु पुत्र भीम के पोते बर्बरीक का नाम जानते होंगे, जिसने अपनी तप साधना से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। भगवान शिव प्रसन्न होकर उसे तीन ऐसे बाण दिए थे, जिससे वह किसी भी को हरा सकता था। इसीलिए जब कौरव और पांडव के बीच युद्ध हुआ तो बर्बरीक पांडवों की तरफ से लड़ने की इच्छा जाहिर की।

लेकिन भगवान श्री कृष्ण जानते थे अगर बर्बरीक इस युद्ध में भाग लेगा तो पांडव आसानी से जीत जाएंगे, मगर यह धर्म विरुद्ध युद्ध माना जाएगा। इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ब्राह्मण का वेश रखकर बर्बरीक से दान में उसका सिर मांग लेते हैं, बर्बरीक बिना देरी किए उस ब्राह्मण को अपना सिर दान कर देता है।

बर्बरीक द्वारा सिर दान किए जाने पर भगवान श्री कृष्ण अति प्रसन्न होते हैं और उसे वरदान देते हैं, कि तुम तीनों लोक में खाटू श्याम के नाम से जाने जाओगे और तभी से बर्बरीक को खाटू श्याम जी महाराज के नाम से जाना जाने लगा।

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Khatu Shyam Maharaj : नई दिल्ली। खाटू श्याम जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ी ख्रुशखबरी है। बाबा के दर्शन के लिए जाने के लिए उन्हें अब रेलवे द्वारा विशेष तोहफा दिया जा रहा है। खाटू श्याम मंदिर को जल्द ही रेलवे नेटवर्क से जोड़ा जाएगा और यात्रियों को सीधे ट्रेन मिल सकेगी।

Khatu Shyam Maharaj

आपको बता दें कि इस आशय के संकेत केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दिए हैं। रेल मंत्री ने कहा कि साल में करीब 50-60 लाख श्रद्धालु खाटू श्याम जी जाते हैं। जितने भी हमारे सांस्कृतिक धरोहर और श्रद्धा के स्थान है उनको जोड़ने की योजना रेलवे ने बनाई है। खाटू श्याम रेलवे के नेटवर्क से जुड़े सके उसकी व्यवस्था की गई है। हाल ही में इसके सर्वे को अनुमति मिली है। जल्द सर्वे पूरा कर काम शुरू करेंगे।

खाटू श्याम जाने के लिए अभी तक श्रद्धालुओं को जयपुर रेलवे स्टेशन जाना पड़ता है। जयपुर रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर बस या टैक्सी द्वारा खाटू श्याम पहुंचा जाता है, लेकिन खाटू श्याम मंदिर रेलवे नेटवर्क से जुड़ने के बाद सीधे ट्रेन सेवा मिल सकेगी।

खाटू श्याम का इतिहास

Khatu Shyam Maharaj जी का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के साथ पांडव पुत्र भीम के पोते बर्बरीक की पूजा की जाती है। खाटू श्याम मंदिर पर हर साल फागुन महीने की एकादशी से पांच दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में देश-विदेश के श्रद्धालु खाटू श्याम महाराज जी का दर्शन करने आते है।

अगर आपने महाभारत देखा होगा तो आप जरूर पांडु पुत्र भीम के पोते बर्बरीक का नाम जानते होंगे, जिसने अपनी तप साधना से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। भगवान शिव प्रसन्न होकर उसे तीन ऐसे बाण दिए थे, जिससे वह किसी भी को हरा सकता था। इसीलिए जब कौरव और पांडव के बीच युद्ध हुआ तो बर्बरीक पांडवों की तरफ से लड़ने की इच्छा जाहिर की।

लेकिन भगवान श्री कृष्ण जानते थे अगर बर्बरीक इस युद्ध में भाग लेगा तो पांडव आसानी से जीत जाएंगे, मगर यह धर्म विरुद्ध युद्ध माना जाएगा। इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ब्राह्मण का वेश रखकर बर्बरीक से दान में उसका सिर मांग लेते हैं, बर्बरीक बिना देरी किए उस ब्राह्मण को अपना सिर दान कर देता है।

बर्बरीक द्वारा सिर दान किए जाने पर भगवान श्री कृष्ण अति प्रसन्न होते हैं और उसे वरदान देते हैं, कि तुम तीनों लोक में खाटू श्याम के नाम से जाने जाओगे और तभी से बर्बरीक को खाटू श्याम जी महाराज के नाम से जाना जाने लगा।

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Baisakhi 2023- फसल उत्सव और सिख नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है 'बैसाखी', जाने इस दिन का इतिहास और महत्व

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 03:07 AM
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Baisakhi 2023- 14 अप्रैल 2023, शुक्रवार को बैसाखी का पर्व है। आमतौर पर यह त्यौहार वैशाख महीने के पहले दिन मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से फसल उत्सव और सिख नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। वैशाखी के पर्व को 'वैसाखी' या 'बसोरा' के नाम से भी जाना जाता है। भारत के उत्तरी भाग में इस पर्व का खास महत्व है। यह त्यौहार मुख्य रूप से सिख धर्म के लोग मनाते हैं।

बैसाखी पर्व का इतिहास और महत्व -

सिख धर्म का पवित्र पर्व बैसाखी खालसा के गठन का प्रतीक है। साल 1699 में बैसाखी के दिन ही गुरु गोविंद सिंह ने खालसा की स्थापना की थी। इस दिन सिखों के धर्मगुरु गुरु गोविंद सिंह ने सभी जातियों के भेदभाव को समाप्त कर सभी मनुष्य को समान घोषित किया। इसके साथ ही इस दिन शाश्वत मार्गदर्शक और सिख धर्म की पवित्र पुस्तक की घोषणा की गई। वैशाखी पर्व को सिख धर्म में नव वर्ष के रूप में और फसल उत्सव के रूप में मनाया जाता है यह पर्व मुख्य रूप से पंजाब हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सिख और हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। जबकि पश्चिम बंगाल में यह दिन बंगाली नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।

बैसाखी पर्व का धार्मिक व भौगोलिक महत्व -

धार्मिक मान्यता के अनुसार वैशाखी के दिन महर्षि व्यास ने चारों वेदों को संपूर्ण किया था तथा इसी दिन राजा जनक ने यज्ञ करके अष्टावक्र से ब्रह्मा ज्ञान की प्राप्ति की थी। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन गंगा गोदावरी और कावेरी जैसे धार्मिक नदियों में स्नान कर दान पुण्य करने का बेहद खास महत्व है। भौगोलिक महत्व के अनुसार वैशाखी के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं यही वजह है कि इस दिन को मेष संक्रांति के रूप में भी मनाया जाता है। सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने के कारण इसे नए सौर वर्ष की शुरुआत के रूप में भी माना जाता है इस पर्व का नाम वैशाखी इस वजह से पड़ा क्योंकि इसी दिन सूर्य विशाखा नक्षत्र में प्रवेश करता है।

किसानों का खास पर्व है बैसाखी (Baisakhi)-

बैसाखी का पर्व किसानों के लिए बेहद खास है। मार्च और अप्रैल महीने में रबी के फसल की कटाई होती है। और इस नई फसल की खुशी और उत्साह के रूप में यह पर्व सेलिब्रेट किया जाता है।

कैसे मनाते हैं बैसाखी का त्यौहार -

बैसाखी के दिन सुबह जल्दी उठना इत्यादि कर नए वस्त्र पहनकर गुरुद्वारे, मंदिर में पूजा- अर्चना कर इस पर्व को मनाने की शुरुआत होती है। गुरुद्वारे में भक्तों को 'कड़ा प्रसाद' नामक एक विशेष मिठाई वितरित की जाती है। जगह-जगह लंगर का आयोजन किया जाता है। पुरुष-महिलाएं और युवा पंजाबियों के पारंपरिक नृत्य भांगड़ा और गिद्दा के जरिए अपनी खुशी का इजहार करते हैं। घरों में तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनाए जाते हैं। इसके अलावा जगह-जगह बैसाखी का मेला भी लगता है।

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