योगी सरकार द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को तोहफे में दिया जाएगा स्मार्टफोन

ANGANWADI 1
locationभारत
userचेतना मंच
calendar28 Sep 2021 02:53 PM
bookmark

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में 2022 आगामी विधानसभा चुनाव (LEGISLATIVE ASSEMBLY ELECTION) जल्दी ही अगले साल शुरु होने वाला है । इससे पहले योगी सरकार ने हर स्तर पर अपनी स्मार्ट सियासत का आगाज शुरु कर दिया है जिसमें सबको जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। सीएम योगी (YOGI) ने विधानसभा में बताया था एक करोड़ युवाओं को स्मार्टफोन और टैबलेट वितरित किया जाएगा।

सरकार का इस योजना पर काम जारी है और जल्द ही इसको अमल में लाने की पहल की जाएगी। इसके पहले भी अब योगी सरकार ने आंगनबांड़ी कार्यकत्रियों के माध्यम (MEDIUM) से चुनाव से पहले लाखों घरों तक पहुंचने की पहल की थी।

सरकार के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक कार्यकर्ताओं का योगदान काफी अहम होता है। सराकार ने इन सबके मानदेय में बढ़ोतरी करने के बाद जल्द ही स्मार्टफोन दिया जाएगा। इससे आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं में भी काफी हद तक उत्साह बढ़ेगा। यहीं नहीं उनके परिवार में सरकार की छवि भी बेहतर होगी।

इससे आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं में भी उत्साह का संचार होगा और उनके परिवार के भीतर सरकार को लेकर एक अच्छी छवि बनेगी। आंगनबांड़ी कार्यकर्ताओं को स्मार्टफोन (SMARTPHONE) से सरकारी योजनाओं का प्रचार प्रसाद करने की जिम्मेदारी मिलेगी जिसकी मदद से सरकार लाखों घरों तक आराम से पहुंच पाएगी।

वहीं सरकार ने दावा किया गया है कि पोषण अभियान को ध्यान में रखते हुए कार्यकर्त्रियों को तकनीक से जोड़ने के अलावा कार्य सुविधा (FACILITY) के लिए स्मार्ट फोन वितिरित करने का काम जारी है। बच्चों के स्वास्थ्य HEALTH) परीक्षण के लिए इन्फैन्टोमीटर का वितरण करने की शुरुआत की गई है।

अगली खबर पढ़ें

UP News- 'दहेज मुक्त' बना उत्तर प्रदेश का यह गांव, साल भर की कड़ी मशक्कत के बाद मिली सफलता

PicsArt 09 28 02.08.10
(PC-Times of India)
locationभारत
userसुप्रिया श्रीवास्तव
calendar28 Sep 2021 02:14 PM
bookmark

उत्तर प्रदेश, उन्नाव :-भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियान 'बेटी बचाओ' का असर अब आम जनता पर भी दिखाई देने लगा है। बीते कुछ वर्षों से समाज में 'नारी सशक्तिकरण' को लेकर जागरूकता देखने को मिल रही है। खास तौर पर आज का युवा वर्ग महिलाओं के विकास को लेकर बेहद सक्रिय दिखाई दे रहा है। बेटियों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने में आज के युवा समाज का बहुत ही बड़ा योगदान है। अब इसका एक बहुत ही खास उदाहरण सामने आया है।

दरअसल उत्तर प्रदेश राज्य के उन्नाव (Unnao) जिले के बिछिया ब्लॉक का एक गांव जिसका नाम 'सेवाखेड़ा' है वह पूरी तरह से दहेज मुक्त (Dahej Mukt) हो चुका है। पूरे 1 साल की कड़ी मशक्कत के बाद गांव को 'दहेज मुक्त' होने का तमगा हासिल हुआ है। और इसी के साथ यह पहला ऐसा गांव बन गया है, जहां पर दहेज लेना और दहेज देना पूरी तरह से प्रतिबंधित हो चुका है।

गांव के द्वार पर लगा है 'दहेज मुक्त गांव' का बोर्ड- इस गांव के प्रवेश द्वार पर ही दहेज मुक्त (Dahej Mukt) गांव का बोर्ड लगा दिया गया है। 400 लोगों की आबादी वाला गांव सेवाखेड़ा अधिकतर किसानों व मजदूरों से भरा हुआ है। इस गांव में जगह जगह पर दहेज ना लेने सम्बन्धित स्लोगन लगाए गए हैं। इस गांव में रहने वाले हर युवा ने यह ठान लिया है कि ना तो दहेज लेंगे और ना ही दहेज देंगे। लड़कों के साथ साथ लड़कियां भी इस मिशन में बराबर की हिस्सेदारी निभा रही है। गांव वालों की माने तो उनको इस मिशन में सफलता 'मिशन शक्ति' अभियान के तहत प्राप्त हुई है। अपने गांव को दहेज मुक्त बनाने के बाद अब इस गांव में रहने वाले लोगों का उद्देश्य है कि वह अगल-बगल के अन्य गांवों को भी दहेज मुक्त बनाने में सफल हो पाए। और इसके लिए ये लोग प्रयासरत भी हैं।

उन्नाव के ग्राम विकास अधिकारी ने किया जागरूक- उन्नाव जिले के ग्राम विकास अधिकारी पुत्तन लाल पाल एक समाज सेवी संस्था ' नवयुग जन चेतना समिति' (Navyug jan chetna Samitiddahe) भी चलाते हैं। जिसके माध्यम से यह लोगों को दहेज ना लेने के प्रति जागरूक कर रहे हैं। इनकी कड़ी मेहनत का असर है कि आज इनके जिले का एक गांव पूरी तरह से दहेज मुक्त हो चुका। सेवाखेड़ा गांव निवासी हरिप्रसाद ने बताया कि इस गांव के लगभग 78 परिवार दहेज की वजह से कर्ज में डूब गए थे, लेकिन अब सबको धीरे-धीरे कर्ज से मुक्ति मिल रही है।

Read This Also-

World Pharmacist Day- क्यों मनाया जाता है 25 सितंबर को फार्मासिस्ट दिवस, कब से हुई इसकी शुरुआत?

अगली खबर पढ़ें

पूर्व नियोजित साजिश थी दिल्ली में 2020 में हुए दंगे, यह पल भर के आवेश में नहीं हुए : हाईकोर्ट

WhatsApp Image 2021 09 28 at 1.30.35 PM
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 05:40 AM
bookmark

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi Highcourt) ने 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि शहर में कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए यह पूर्व नियोजित साजिश थी और ये घटनाएं पल भर के आवेश में नहीं हुईं।

ज्ञात हो कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगे 23 फरवरी 2020 की रात से शुरू होकर, उत्तर पूर्व दिल्ली के जाफराबाद इलाके में रक्तपात, संपत्ति विनाश, दंगों और हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला थी। इसमें 53 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा और 200 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह दंगे मुख्यतः मुस्लिम भीड़ द्वारा हिन्दुओं पर हमला करने के बाद भड़के। मारे गए 53 लोगों में से दो-तिहाई मुसलमान थे जिन्हें गोली मारी गई, तलवार से काट दिया गया एवं आग से जला दिया गया था। मृतकों में एक पुलिसकर्मी, एक खुफिया अधिकारी और एक दर्जन से अधिक हिंदू शामिल थे। हिंसा समाप्त होने के एक सप्ताह से अधिक समय के बाद, सैकड़ों घायल अपर्याप्त रूप से चिकित्सा सुविधाओं से वंचित थे और लाशें खुली नालियों में पाई जा रही थीं। इन्हीं सब बातों पर चिंता व्यक्त करते हुए हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की कथित हत्या से संबंधित मामले में आरोपी मोहम्मद इब्राहिम द्वारा दाखिल जमानत याचिका पर विचार करते हुए कहा कि घटनास्थल के आसपास के इलाकों में सीसीटीवी कैमरों को व्यवस्थित रूप से नष्ट कर दिया गया।

हाईकोर्ट ने कहा कि फरवरी 2020 में देश की राजधानी को हिला देने वाले दंगे स्पष्ट रूप से पल भर में नहीं हुए और वीडियो फुटेज में मौजूद प्रदर्शनकारियों का आचरण, जिसे अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड में रखा गया है, स्पष्ट रूप से चित्रित करता है। यह सरकार के कामकाज को अस्त-व्यस्त करने के साथ-साथ शहर में लोगों के सामान्य जीवन को बाधित करने के लिए सोचा-समझा प्रयास था। कोर्ट ने कहा कि सीसीटीवी कैमरों को व्यवस्थित रूप से काटना और नष्ट करना भी शहर में कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए एक पूर्व नियोजित साजिश और पूर्व-नियोजित साजिश के अस्तित्व की पुष्टि करता है।

इब्राहिम की जमानत याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को तलवार के साथ दिखाने वाला उपलब्ध वीडियो फुटेज काफी भयानक था और उसे हिरासत में रखने के लिए पर्याप्त है। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री को देखने से पता चलता है कि याचिकाकर्ता की पहचान तलवार लेकर और भीड़ को भड़काने के लिए कई सीसीटीवी फुटेज में की गई है। यह एक अहम सबूत है जो इस अदालत को याचिकाकर्ता को लंबी कैद में रखने की ओर विवश करता है। यह वह हथियार है जिसे याचिकाकर्ता द्वारा ले जाया जा रहा था जो गंभीर चोटों और/या मौत का कारण बनने में सक्षम है और प्रथम दृष्टया एक खतरनाक हथियार है। न्यायाधीश ने एक लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का दुरुपयोग इस तरह से नहीं किया जा सकता है जो सभ्य समाज के ताने-बाने को अस्थिर करने और अन्य व्यक्तियों को चोट पहुंचाने का प्रयास करता है।

अदालत ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता को अपराध के दृश्य में नहीं देखा जा सकता है, लेकिन वह भीड़ का हिस्सा था क्योंकि याचिकाकर्ता ने जानबूझकर अपने पड़ोस से 1.6 किमी दूर एक तलवार के साथ यात्रा की थी जिसका इस्तेमाल केवल हिंसा और भड़काने के लिए किया जा सकता था। याचिकाकर्ता इब्राहिम को दिसंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह न्यायिक हिरासत में है। उसने इस आधार पर जमानत मांगी थी कि उसने कभी भी किसी विरोध प्रदर्शन या दंगों में भाग नहीं लिया था।