Mulayam Singh Yadav : पड़ोसी की साइकिल से स्कूल जाने वाले मुलायम साइकिल निशान से ही बने राजनीति के पुरोधा

Mulayam Singh Yadav :
उदय प्रताप सिंह बताते हैं कि मुलायम पड़ोसी की साइकिल से स्कूल आते जाते थे। मुलायम जब वह आठवीं कक्षा में थे, तब वह अपनी अपनी मोटर साइकिल पर उन्हें क्षेत्र में किसी भी उत्सव समारोहों में ले जाते थे। उन्होंने भावुक मन से एक संस्मरण सुनाया, बात सन्-1960 की है। मैनपुरी जिले के करहल स्थित जैन इण्टर कॉलेज परिसर में कवि सम्मेलन हो रहा था। उसमें वीर रस के विख्यात कवि दामोदर स्वरूप ‘विद्रोही’ ने अपनी प्रसिद्ध कविता दिल्ली की गद्दी सावधान! सुनायी, जिस पर खूब तालियां बजीं। तभी यकायक पुलिस का एक दरोगा मंच पर चढ़ आया और विद्रोही जी को डांटते हुए बोला- ‘बन्द करो ऐसी कवितायें, जो सरकार के खिलाफ हैं।’ उसी समय कसे शरीर का एक लड़का बड़ी फुर्ती से मंच पर चढ़ा और उसने उस दरोगा को उठाकर पटक दिया। विद्रोही जी ने कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे उदय प्रताप सिंह से पूछा- ‘ये नौजवान कौन है?’ पता चला कि यह मुलायम सिंह यादव थे, जो उस समय जैन इण्टर कॉलेज के छात्र थे और उदय प्रताप सिंह उनके गुरू हुआ करते थे।Mulayam Singh Yadav :
मुलायम सिंह यादव के गुरु उदय प्रताप सिंह एक और मजेदार किस्सा सुनाते हैं। एक बार वह मुलायम के साथ एक विवाह समारोह में गए। वहां पर मुलायम सिंह को भीतर बुला लिया गया और उन्हें बाहर ही बैठने को कहा गया। कहा गया कि बाहर ड्राइवर बैठा है, उसे भी चाय-नाश्ता दे दो। यह सुनते ही मुलायम सिंह यादव बिगड़ पड़े। उन्होंने कहा कि वह ड्राइवर नहीं, हमारे गुरु हैं। वह बताते हैं कि मुलायम सिंह जब इंटरमीडिएट में पढ़ने आए, तब उन्होंने अपने लिए पहली बार साइकिल खरीदी। उनके दिल में साइकिल के प्रति अगाध प्रेम बेवजह नहीं था। बचपन से ही अभाव के कारण साइकिल न खरीद पाने की टीस उनके दिल में हमेशा रही। बेशक उन्होंने इसे कभी सार्वजनिक तौर पर जाहिर नहीं किया, लेकिन वह साइकिल से आम आदमी को जोड़ने की मंशा पाले रहे।Mulayam Singh Yadav : जब गौतमबुद्धनगर आए थे नेताजी मुलायम सिंह यादव
पहलवानी से राजनीति में दाखिल होने के बाद जब उन्होंने अपनी समाजवादी पार्टी बनाई, तब उन्होंने साइकिल को ही अपनी पार्टी का निशान बनाया। राजनीतिक जीवन के शुरुआती दौर में वह लखनऊ में खूब साइकिल चलाया करते थे। पत्रकारों से मिलना हो या अखबारों के दफ्तर में जाना हो, वह साइकिल का ही इस्तेमाल करते थे। उन्हें देखकर हर किसी की यह धारणा बन गई कि मुलायम सिंह यादव बेहद सरल और जमीनी नेता हैं। नेता जी ने कभी साइकिल का तिरस्कार नहीं किया, साइकिल ने भी उनका खूब साथ निभाया। आखिर, उसी साइकिल पर सवार होकर मुलायम सिंह यादव विधानसभा और संसद के गलियारों में इतनी बार गए कि वहां की दर-ओ-दीवारों पर उनकी यादें मानो अब भी चस्पा हैं।अगली खबर पढ़ें
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उदय प्रताप सिंह बताते हैं कि मुलायम पड़ोसी की साइकिल से स्कूल आते जाते थे। मुलायम जब वह आठवीं कक्षा में थे, तब वह अपनी अपनी मोटर साइकिल पर उन्हें क्षेत्र में किसी भी उत्सव समारोहों में ले जाते थे। उन्होंने भावुक मन से एक संस्मरण सुनाया, बात सन्-1960 की है। मैनपुरी जिले के करहल स्थित जैन इण्टर कॉलेज परिसर में कवि सम्मेलन हो रहा था। उसमें वीर रस के विख्यात कवि दामोदर स्वरूप ‘विद्रोही’ ने अपनी प्रसिद्ध कविता दिल्ली की गद्दी सावधान! सुनायी, जिस पर खूब तालियां बजीं। तभी यकायक पुलिस का एक दरोगा मंच पर चढ़ आया और विद्रोही जी को डांटते हुए बोला- ‘बन्द करो ऐसी कवितायें, जो सरकार के खिलाफ हैं।’ उसी समय कसे शरीर का एक लड़का बड़ी फुर्ती से मंच पर चढ़ा और उसने उस दरोगा को उठाकर पटक दिया। विद्रोही जी ने कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे उदय प्रताप सिंह से पूछा- ‘ये नौजवान कौन है?’ पता चला कि यह मुलायम सिंह यादव थे, जो उस समय जैन इण्टर कॉलेज के छात्र थे और उदय प्रताप सिंह उनके गुरू हुआ करते थे।Mulayam Singh Yadav :
मुलायम सिंह यादव के गुरु उदय प्रताप सिंह एक और मजेदार किस्सा सुनाते हैं। एक बार वह मुलायम के साथ एक विवाह समारोह में गए। वहां पर मुलायम सिंह को भीतर बुला लिया गया और उन्हें बाहर ही बैठने को कहा गया। कहा गया कि बाहर ड्राइवर बैठा है, उसे भी चाय-नाश्ता दे दो। यह सुनते ही मुलायम सिंह यादव बिगड़ पड़े। उन्होंने कहा कि वह ड्राइवर नहीं, हमारे गुरु हैं। वह बताते हैं कि मुलायम सिंह जब इंटरमीडिएट में पढ़ने आए, तब उन्होंने अपने लिए पहली बार साइकिल खरीदी। उनके दिल में साइकिल के प्रति अगाध प्रेम बेवजह नहीं था। बचपन से ही अभाव के कारण साइकिल न खरीद पाने की टीस उनके दिल में हमेशा रही। बेशक उन्होंने इसे कभी सार्वजनिक तौर पर जाहिर नहीं किया, लेकिन वह साइकिल से आम आदमी को जोड़ने की मंशा पाले रहे।Mulayam Singh Yadav : जब गौतमबुद्धनगर आए थे नेताजी मुलायम सिंह यादव
पहलवानी से राजनीति में दाखिल होने के बाद जब उन्होंने अपनी समाजवादी पार्टी बनाई, तब उन्होंने साइकिल को ही अपनी पार्टी का निशान बनाया। राजनीतिक जीवन के शुरुआती दौर में वह लखनऊ में खूब साइकिल चलाया करते थे। पत्रकारों से मिलना हो या अखबारों के दफ्तर में जाना हो, वह साइकिल का ही इस्तेमाल करते थे। उन्हें देखकर हर किसी की यह धारणा बन गई कि मुलायम सिंह यादव बेहद सरल और जमीनी नेता हैं। नेता जी ने कभी साइकिल का तिरस्कार नहीं किया, साइकिल ने भी उनका खूब साथ निभाया। आखिर, उसी साइकिल पर सवार होकर मुलायम सिंह यादव विधानसभा और संसद के गलियारों में इतनी बार गए कि वहां की दर-ओ-दीवारों पर उनकी यादें मानो अब भी चस्पा हैं।संबंधित खबरें
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