Sawan 2023: कौन है शिव, जानिए शिव से जुड़े रहस्य

शिव कौन है इनकी उत्त्पत्त्ति कैसे हुई:
पुराणों के अनुसार भगवान शिव का जन्म नहीं हुआ है वो स्वयंभू है । शिव विष्णु जी के माथे के तेज से उत्पन्न हुए। विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं। हालांकि भगवान शिव के जन्म के संबंध में एक कहानी प्रचलित है। भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच एक बार बहस हुई। दोनों खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करना चाह रहे थे। तभी एक रहस्यमयी खंभा दिखाई दिया। खंभे का ओर-छोर दिखलाई नहीं पड़ रहा था। भगवान ब्रह्मा और विष्णु को एक आवाज सुनाई दी और उन्हें एक-दूसरे से मुकाबला करने की चुनौती दी गई। उन्हें खंभे का पहला और आखिरी छोर ढूंढने के लिए कहा गया.भगवान ब्रह्मा ने तुरंत एक पक्षी का रूप धारण किया और खंभे के ऊपरी हिस्से की खोज करने निकल पड़े. दूसरी तरफ भगवान विष्णु ने वराह का रूप धारण किया और खंभे के आखिरी छोर को ढूंढने निकल पड़े। दोनों ने बहुत प्रयास किए लेकिन असफल रहे.जब उन्होंने हार मान ली तो उन्होंने भगवान शिव को इंतजार करते हुए पाया। तब उन्हें एहसास हुआ कि ब्रह्माण्ड को एक सर्वोच्च शक्ति चला रही है जो भगवान शिव ही हैं। खंभा प्रतीक रूप में भगवान शिव के कभी ना खत्म होने वाले स्वरूप को दर्शाता है।शिव की पत्नियां :
Sawan 2023 भगवान शिव की पत्नियों के बारे में शास्त्रों में उल्लेख मिलता है। सर्वप्रथम शिव का विवाह प्रजापतिदक्ष की पुत्री सती से हुआ था।वो यज्ञ की अग्निकुंड मे जल कर भस्म हो गई थी। तत्पश्चात उन्होंने हिमालय के राजा हिमावन के यहां पुत्री के रूप मे जन्म लिया और हिमावन की पुत्री पार्वती कहलाई।गंगा ,काली, उमा शिव की ही पत्नियों के नाम है ।शिव और शंकर एक है :
कुछ पुराणों में भगवान शंकर को शिव कहा गया है क्योंकि वे निराकार शिव के समान हैं। कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम मानते हैं परन्तु तस्वीरों में दोनों की आकृति अलग-अलग है। कई जगह तस्वीरों में शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए चित्रित किया गया है। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। अत: शिव और शंकर 2 अलग-अलग सत्ताएं हैं। माना जाता है कि महेश (नंदी) और महाकाल, भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।शिव के कितने पुत्र थे:
शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। उक्त सभी संतो के जन्म की कथा बेहद ही रोचक है।भगवान शिव और पार्वती के विवाह के उपरांत कार्तिकेय का जन्म हुआ था।गणेश तो माता पार्वती के उबटन से बने थे। सुकेश नामक एक अनाथ बालक को उन्होंने पाला था। जलंधर शिव के तेज से उत्पन्न हुआ था। अय्यप्पा शिव और मोहिनी के संयोग से जन्मे थे। भूमा उनके ललाट के पसीने की बूंद से जन्मे थे। अंधक और खुजा नामक 2 पुत्र और थे जिसके बारे में ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता है।शिव व्रत और त्योहार :
सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख त्योहार है।शिव के शिष्य:
शिव के प्रमुख 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन सप्तऋषियों द्वारा ही भगवान शिव का प्रचार प्रसार पूरे संसार मे फैला था ,जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी।सब के आरध्या देव शिव:
Sawan 2023 असुर, दानव, राक्षस, गंधर्व, यक्ष, आदिवासी और सभी वनवासियों के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म आदिवासियों का धर्म है । दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगम्बर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, राघव शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परम्परा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की ही परंपरा से ही माने जाते हैं।शिव के दर्शन:
भगवान शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं। भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। वे सतयुग में समुद्र मंथन के समय भी थे और त्रेता में राम के समय भी। द्वापर युग की महाभारत काल में भी शिव थे और कलिकाल में विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि काल्पनिक ज्ञान सबसे महत्वपूर्ण है।Sawan 2023Sawan Somwar 2023 : रहस्यमयी है एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर, यहां मौजूद हैं स्वयं शिव
अगली खबर पढ़ें
शिव कौन है इनकी उत्त्पत्त्ति कैसे हुई:
पुराणों के अनुसार भगवान शिव का जन्म नहीं हुआ है वो स्वयंभू है । शिव विष्णु जी के माथे के तेज से उत्पन्न हुए। विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं। हालांकि भगवान शिव के जन्म के संबंध में एक कहानी प्रचलित है। भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच एक बार बहस हुई। दोनों खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करना चाह रहे थे। तभी एक रहस्यमयी खंभा दिखाई दिया। खंभे का ओर-छोर दिखलाई नहीं पड़ रहा था। भगवान ब्रह्मा और विष्णु को एक आवाज सुनाई दी और उन्हें एक-दूसरे से मुकाबला करने की चुनौती दी गई। उन्हें खंभे का पहला और आखिरी छोर ढूंढने के लिए कहा गया.भगवान ब्रह्मा ने तुरंत एक पक्षी का रूप धारण किया और खंभे के ऊपरी हिस्से की खोज करने निकल पड़े. दूसरी तरफ भगवान विष्णु ने वराह का रूप धारण किया और खंभे के आखिरी छोर को ढूंढने निकल पड़े। दोनों ने बहुत प्रयास किए लेकिन असफल रहे.जब उन्होंने हार मान ली तो उन्होंने भगवान शिव को इंतजार करते हुए पाया। तब उन्हें एहसास हुआ कि ब्रह्माण्ड को एक सर्वोच्च शक्ति चला रही है जो भगवान शिव ही हैं। खंभा प्रतीक रूप में भगवान शिव के कभी ना खत्म होने वाले स्वरूप को दर्शाता है।शिव की पत्नियां :
Sawan 2023 भगवान शिव की पत्नियों के बारे में शास्त्रों में उल्लेख मिलता है। सर्वप्रथम शिव का विवाह प्रजापतिदक्ष की पुत्री सती से हुआ था।वो यज्ञ की अग्निकुंड मे जल कर भस्म हो गई थी। तत्पश्चात उन्होंने हिमालय के राजा हिमावन के यहां पुत्री के रूप मे जन्म लिया और हिमावन की पुत्री पार्वती कहलाई।गंगा ,काली, उमा शिव की ही पत्नियों के नाम है ।शिव और शंकर एक है :
कुछ पुराणों में भगवान शंकर को शिव कहा गया है क्योंकि वे निराकार शिव के समान हैं। कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम मानते हैं परन्तु तस्वीरों में दोनों की आकृति अलग-अलग है। कई जगह तस्वीरों में शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए चित्रित किया गया है। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। अत: शिव और शंकर 2 अलग-अलग सत्ताएं हैं। माना जाता है कि महेश (नंदी) और महाकाल, भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।शिव के कितने पुत्र थे:
शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। उक्त सभी संतो के जन्म की कथा बेहद ही रोचक है।भगवान शिव और पार्वती के विवाह के उपरांत कार्तिकेय का जन्म हुआ था।गणेश तो माता पार्वती के उबटन से बने थे। सुकेश नामक एक अनाथ बालक को उन्होंने पाला था। जलंधर शिव के तेज से उत्पन्न हुआ था। अय्यप्पा शिव और मोहिनी के संयोग से जन्मे थे। भूमा उनके ललाट के पसीने की बूंद से जन्मे थे। अंधक और खुजा नामक 2 पुत्र और थे जिसके बारे में ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता है।शिव व्रत और त्योहार :
सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख त्योहार है।शिव के शिष्य:
शिव के प्रमुख 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन सप्तऋषियों द्वारा ही भगवान शिव का प्रचार प्रसार पूरे संसार मे फैला था ,जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी।सब के आरध्या देव शिव:
Sawan 2023 असुर, दानव, राक्षस, गंधर्व, यक्ष, आदिवासी और सभी वनवासियों के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म आदिवासियों का धर्म है । दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगम्बर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, राघव शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परम्परा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की ही परंपरा से ही माने जाते हैं।शिव के दर्शन:
भगवान शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं। भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। वे सतयुग में समुद्र मंथन के समय भी थे और त्रेता में राम के समय भी। द्वापर युग की महाभारत काल में भी शिव थे और कलिकाल में विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि काल्पनिक ज्ञान सबसे महत्वपूर्ण है।Sawan 2023Sawan Somwar 2023 : रहस्यमयी है एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर, यहां मौजूद हैं स्वयं शिव
संबंधित खबरें
अगली खबर पढ़ें




Sawan Somwar 2023[/caption]
एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर दक्षिण-द्रविड़ शैली में बना है। बताया जाता है कि इस मंदिर को बनने में करीब 39 साल लगे थे। जटोली शिव मंदिर सोलन से करीब सात किलोमीटर दूर है। यह मंदिर देवभूमि के नाम से मशहूर हिमाचल प्रदेश के सोलन में स्थित है, जिसे जटोली शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 111 फुट है। मंदिर का भवन निर्माण कला का एक बेजोड़ नमूना है, जो देखते ही बनता है। जटोली शिव मंदिर के बारे में भक्तों का कहना है कि यहां के पत्थरों से डमरू की आवाज आती है। कई बार भक्तों को भगवान शिव के वहां मौजूद होने की भी अनुभूति इसी कारण से होती है। मान्यता है कि पौराणिक काल में भगवान शिव यहां आए थे और कुछ समय के लिए यहीं रहे थे। मंदिर का निर्माण 1950 के दशक में स्वामी कृष्णानंद परमहंस नाम के बाबा ने कराया था। 1974 में उन्होंने इस मंदिर की नींव रखी थी और मंदिर के निर्माण के दौरान ही उन्होंने 1983 में समाधि ले ली। बावजूद इसके मंदिर का निर्माण कार्य चलता रहा और इस मंदिर का कार्य मंदिर प्रबंधन कमेटी देखने लगी। इस मंदिर को पूरी तरह तैयार होने में करीब 39 साल लगे थे। करोड़ों रुपये की लागत से बने इस मंदिर का पूरा निर्माण श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान से ही हुआ है।