त्रिपुर सुंदरी : 15 किलो सोने और 180 किलो चांदी से होगा देवी का श्रृंगार

फोटो 6
Navratri special
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 02:51 AM
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Navratri special त्रिपुर सुंदरी। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला के गोमती जिले के उदयपुर की पहाड़ियों पर मौजूद त्रिपुर सुंदरी मंदिर स्थित है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। त्रिपुर यानी तीनों लोकों (आकाश, धरती और पाताल) की श्रेष्ठ सुंदरी। जनश्रुति और मान्यता है कि यहां देवी सती का सीधा पैर गिरा था। इन्हीं के नाम पर त्रिपुरा स्टेट का नाम भी रखा गया है। त्रिपुर सुंदरी दुर्गा का काली अवतार हैं। यहां त्रिपुर सुंदरी की पूजा सुबह चार बजे से शुरू हो जाती है, पूरी नवरात्रि देवी का विशेष पूजन यहां चलेगा। त्रिपुरेश्वरी और त्रिपुर सुंदरी के नाम से प्रसिद्ध माता त्रिपुरा सुंदरी के प्रातःकाल के दर्शन के साथ सैकड़ों साल पुरानी मान्यता जुड़ी हुई है। यहां सुबह के दर्शन को सबसे अहम माना जाता है।

तंत्र साधना के लिए यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है

माना जाता है कि त्रिपुर सुंदरी दस महाविद्याओं में से एक सौम्य कोटी की माता हैं। यहां उनके साथ विराजमान भैरव को त्रिपुरेश के नाम से जाना जाता है। माता की इस पीठ को कूर्मपीठ भी कहा जाता है। तंत्र साधना के लिए यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है और मंदिर में तांत्रिकों का मेला लगा रहता है। यहां तंत्र-मंत्र करने वाले साधक आते हैं और अपनी साधना को पूर्ण करने के लिए देवी की पूजा करते हैं। बलि भी चढ़ाते हैं।

15 किलो सोना और 180 किलो चांदी से होगा देवी का श्रृंगार

पिछले 40 साल से नवरात्रि में चंडी पूजा करते आ रहे पुरोहित बताते हैं कि 523 साल पहले नवरात्रि के समय जिस विधि से इस मंदिर में चंडी पूजा और पाठ होते थे, आज भी सब कुछ वैसा ही चल रहा है। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के प्रबंधक मानिक दत्ता कहते हैं, ''महाराजा के समय से लेकर अब तक सरकारी खजाने में मंदिर का करीब 15 किलो सोने और 180 किलो चांदी के गहने जमा हैं। साल में केवल दो बार इन आभूषणों को कड़ी सुरक्षा के बीच मंदिर में लाया जाता है। केवल अष्टमी और दीपावली पर देवी को पहनाने के लिए जिन आभूषणों की जरूरत होती है वही लाए जाते हैं।

प्रतिदिन बकरे की बलि चढ़ती है देवी को

इसे तंत्र विद्या की सिद्ध पीठ माना गया है, मंदिर में देवी को रोज एक बकरे की बलि चढ़ाई जाती है, माना तो ये भी जाता है कि प्राचीन काल में रोज देवी को एक नरबलि दी जाती थी। बकरे की बलि मंदिर ट्रस्ट की ओर से होती है। आम लोग भी अपनी मनोकामना पूरी होने पर मंदिर में बलि चढ़ाते हैं। इसके लिए ट्रस्ट ने फीस तय की हुई है।

मंदिर में दीपावली पर भी चढ़ते हैं सोने चांदी के गहन, होता है बड़ा उत्‍सव

त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ में तंत्र साधक साधनाएं करते हैं। त्रिपुर सुंदरी मंदिर में सबसे बड़ा उत्सव दीपावली पर होता है। इसे यहां दीपावली काली पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर बड़ा मेला लगता है।

त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ को कूर्म पीठ भी कहा जाता है

इस मंदिर का वास्‍तु के दृष्टिकोण से भी महत्‍व है। मंदिर की बनावट और वास्तु कुछ इस तरह से तैयार किया गया है कि ये भक्तों और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है। मंदिर का निर्माण बंगाली वास्तुशैली एकरत्न में कराया गया था। जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है, उसका आकार कछुए की पीठ के जैसा है। इसी कारण इसे कूर्म पीठ भी कहते हैं। एक मान्‍यता के अनुसार इस जगह भगवान विष्णु का मंदिर बनना था। निर्माण शुरू भी हो चुका था, लेकिन त्रिपुरा के तत्कालीन राजा धन्यमाणिक्य को सपने में देवी ने दर्शन दिए। सपने में राजा को ये पता चला कि जहां विष्णु मंदिर बन रहा है, वहां पहले शक्तिपीठ था। इस सपने के बाद राजा ने बांग्लादेश के चिटगांव में काले पत्थर की बनी त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमा को लाकर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित कर दिया। मंदिर के गर्भगृह में काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित दो प्रतिमाएं स्थापित हैं। पांच फीट ऊंचाई की मुख्य प्रतिमा माता त्रिपुर सुंदरी की है, जबकि दो फीट की दूसरी मूर्ति है, जिसे छोटी माता कहा जाता है, यह मूर्ति भुवनेश्वरी देवी की है।

मंदिर में खासतौर पर चढ़ाई जाने वाली चीजें

इस मंदिर में देवी को साड़ी, सोने के गहने, मिठाइयां, भोग के लिए चावल-दाल और बलि के लिए बकरे देने का चलन है। यह सारा प्रसाद मंदिर प्रबंधन कार्यालय में पहले जमा करना होता है। भक्तों को मंदिर में बनने वाले अन्न भोग खाने के लिए 70 रुपये की अलग से एक पर्ची लेनी होती है।

यूपी में डेंगू और बुखार ने बढ़ाई लोगों की चिंता, लखनऊ में महिला की मौत, दर्जनों अस्पताल में भर्ती

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त्रिपुर सुंदरी : 15 किलो सोने और 180 किलो चांदी से होगा देवी का श्रृंगार

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Navratri special त्रिपुर सुंदरी। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला के गोमती जिले के उदयपुर की पहाड़ियों पर मौजूद त्रिपुर सुंदरी मंदिर स्थित है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। त्रिपुर यानी तीनों लोकों (आकाश, धरती और पाताल) की श्रेष्ठ सुंदरी। जनश्रुति और मान्यता है कि यहां देवी सती का सीधा पैर गिरा था। इन्हीं के नाम पर त्रिपुरा स्टेट का नाम भी रखा गया है। त्रिपुर सुंदरी दुर्गा का काली अवतार हैं। यहां त्रिपुर सुंदरी की पूजा सुबह चार बजे से शुरू हो जाती है, पूरी नवरात्रि देवी का विशेष पूजन यहां चलेगा। त्रिपुरेश्वरी और त्रिपुर सुंदरी के नाम से प्रसिद्ध माता त्रिपुरा सुंदरी के प्रातःकाल के दर्शन के साथ सैकड़ों साल पुरानी मान्यता जुड़ी हुई है। यहां सुबह के दर्शन को सबसे अहम माना जाता है।

तंत्र साधना के लिए यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है

माना जाता है कि त्रिपुर सुंदरी दस महाविद्याओं में से एक सौम्य कोटी की माता हैं। यहां उनके साथ विराजमान भैरव को त्रिपुरेश के नाम से जाना जाता है। माता की इस पीठ को कूर्मपीठ भी कहा जाता है। तंत्र साधना के लिए यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है और मंदिर में तांत्रिकों का मेला लगा रहता है। यहां तंत्र-मंत्र करने वाले साधक आते हैं और अपनी साधना को पूर्ण करने के लिए देवी की पूजा करते हैं। बलि भी चढ़ाते हैं।

15 किलो सोना और 180 किलो चांदी से होगा देवी का श्रृंगार

पिछले 40 साल से नवरात्रि में चंडी पूजा करते आ रहे पुरोहित बताते हैं कि 523 साल पहले नवरात्रि के समय जिस विधि से इस मंदिर में चंडी पूजा और पाठ होते थे, आज भी सब कुछ वैसा ही चल रहा है। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के प्रबंधक मानिक दत्ता कहते हैं, ''महाराजा के समय से लेकर अब तक सरकारी खजाने में मंदिर का करीब 15 किलो सोने और 180 किलो चांदी के गहने जमा हैं। साल में केवल दो बार इन आभूषणों को कड़ी सुरक्षा के बीच मंदिर में लाया जाता है। केवल अष्टमी और दीपावली पर देवी को पहनाने के लिए जिन आभूषणों की जरूरत होती है वही लाए जाते हैं।

प्रतिदिन बकरे की बलि चढ़ती है देवी को

इसे तंत्र विद्या की सिद्ध पीठ माना गया है, मंदिर में देवी को रोज एक बकरे की बलि चढ़ाई जाती है, माना तो ये भी जाता है कि प्राचीन काल में रोज देवी को एक नरबलि दी जाती थी। बकरे की बलि मंदिर ट्रस्ट की ओर से होती है। आम लोग भी अपनी मनोकामना पूरी होने पर मंदिर में बलि चढ़ाते हैं। इसके लिए ट्रस्ट ने फीस तय की हुई है।

मंदिर में दीपावली पर भी चढ़ते हैं सोने चांदी के गहन, होता है बड़ा उत्‍सव

त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ में तंत्र साधक साधनाएं करते हैं। त्रिपुर सुंदरी मंदिर में सबसे बड़ा उत्सव दीपावली पर होता है। इसे यहां दीपावली काली पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर बड़ा मेला लगता है।

त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ को कूर्म पीठ भी कहा जाता है

इस मंदिर का वास्‍तु के दृष्टिकोण से भी महत्‍व है। मंदिर की बनावट और वास्तु कुछ इस तरह से तैयार किया गया है कि ये भक्तों और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है। मंदिर का निर्माण बंगाली वास्तुशैली एकरत्न में कराया गया था। जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है, उसका आकार कछुए की पीठ के जैसा है। इसी कारण इसे कूर्म पीठ भी कहते हैं। एक मान्‍यता के अनुसार इस जगह भगवान विष्णु का मंदिर बनना था। निर्माण शुरू भी हो चुका था, लेकिन त्रिपुरा के तत्कालीन राजा धन्यमाणिक्य को सपने में देवी ने दर्शन दिए। सपने में राजा को ये पता चला कि जहां विष्णु मंदिर बन रहा है, वहां पहले शक्तिपीठ था। इस सपने के बाद राजा ने बांग्लादेश के चिटगांव में काले पत्थर की बनी त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमा को लाकर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित कर दिया। मंदिर के गर्भगृह में काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित दो प्रतिमाएं स्थापित हैं। पांच फीट ऊंचाई की मुख्य प्रतिमा माता त्रिपुर सुंदरी की है, जबकि दो फीट की दूसरी मूर्ति है, जिसे छोटी माता कहा जाता है, यह मूर्ति भुवनेश्वरी देवी की है।

मंदिर में खासतौर पर चढ़ाई जाने वाली चीजें

इस मंदिर में देवी को साड़ी, सोने के गहने, मिठाइयां, भोग के लिए चावल-दाल और बलि के लिए बकरे देने का चलन है। यह सारा प्रसाद मंदिर प्रबंधन कार्यालय में पहले जमा करना होता है। भक्तों को मंदिर में बनने वाले अन्न भोग खाने के लिए 70 रुपये की अलग से एक पर्ची लेनी होती है।

यूपी में डेंगू और बुखार ने बढ़ाई लोगों की चिंता, लखनऊ में महिला की मौत, दर्जनों अस्पताल में भर्ती

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शारदीय नवरात्रि : मां शैलपुत्री की पूजा से मिलती है निरोगी काया, कैसे करे पूजा और मंत्र जाप

Shailputri e1697260330339
Shardiya Navratri 2023
locationभारत
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calendar29 Nov 2025 02:33 PM
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Shardiya Navratri 2023 shubh muhurat शारदीय नवरात्रि की शुरुआत इस बार 15 अक्टूबर 2023 से हो रही है । नवरात्रि नवदुर्गा यानी मां दुर्गा के नौ रूपों की अराधना का पर्व है। नवरात्रि में भक्त पूजा, व्रत और जागरण कर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। नवरात्रि के नौ दिन देवी दुर्गा के अलग-अलग रूप की पूजा या उपासना की जाती है । हर दिन अलग-अलग भोग प्रसाद मा दुर्गा को समर्पित किया जाता है । 2023 me pahli navratri kab hai देवी दुर्गा के ये नौ रूप उनकी  अलग-अलग सिद्धियां और शक्ति को दर्शाते है जो राक्षसों का संहार करती हैं । देवी दुर्गा ये नौ रुप माता के दस महाविद्या वाले रुपों से अलग हैं।आज हम बात करेंगे माता के प्रथम स्वरुप की जिन्हे शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है ।शैलपुत्री जिनके नाम से ही पता चलता है कि जीवन में सफलता के लिए सबसे पहले इरादों में चट्टान की तरह मजबूती और अडिगता होनी चाहिए।

कौन है  मां शैलपुत्री:

ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम देवी हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। इनकी मां का नाम मैना देवी है । इनका विवाह भगवान शिव के साथ हुआ था। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। उनके बाएँ हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प होता है। नवरात्रि के नौ दिनों मे सर्वप्रथम इनकी ही पूजा की जाती है ।आज हम  देवी के प्रथम स्वरुप की बात करेंगे और उनको कैसे प्रसन्न करे इसकी सारी चर्चा करेंगे। pahli navratri kab hai ऐसी मान्यता है कि जिसने भी सच्चे मन से मां दुर्गा की उपासना कर ली तो मां उसका बेड़ा पार लगा देती है और उसका जीवन सुखों से भर देती है ।

पहली नवरात्रि कैसे करे मां की स्थापना:

सर्वप्रथम एक लकड़ी का पाटा या चौकी ले कर उसे गंगाजल से स्वच्छ कर लें  उसके ऊपर एक लाल कपड़ा बिछा ले इसके ऊपर केशर से 'शं' लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। इसके इपर देवी की फोटो या मूर्ति स्थापित करें । चौकी के पास उल्टा त्रिभुज बनाए उसमे बीच मे एक लाल बिंदू अवश्य रखे ये शक्ति का प्रतिक होता है । तत्पश्चात् हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें मंत्र के उच्चारण के साथ देवी को पुष्प समर्पित कर दे।  इसके बाद उस पर एक कलश स्थापित करे । कलश के ऊपर नारियल और पान के पत्ते रख कर एक स्वास्तिक बनाएं । इसके बाद कलश के पास अंखड ज्योति जला कर मंत्र ला जाप करे । मां शैलपुत्री को कुमकुम (पैरों में कुमकुम लगाने के लाभ) और अक्षत लगाएं। मां शैलपुत्री की आरती उतारें और भोग लगाएं।

Shardiya Navratri 2023 shubh muhurat मंत्र इस प्रकार हैं:

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए । पहली नवरात्रि में मां शैलपुत्री की पूजा करने से होते है ये फायदे: शस्त्रों के अनुसार मा शैलपुत्री की पूजा करने से कुंड़ली मे चन्द्रमा जनित दोषो से छुटकारा मिलता है । चंद्र के बुरे प्रभाव निष्क्रिय हो जातें है । मां को सफेद रंग बेहद प्रिय है इसलिये पूजा के समय इन्हे घी चढ़या जाता है । घी अर्पित करने से निरोगी काया की प्राप्ति होती है । प्रसाद मे इन्हें सफेद रंग की मिठाई अर्पित की जाती है । इस दिन जीवन में आ रही परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए एक पान के पत्ते पर लौंग, सुपारी और मिश्री रखकर अर्पित करने से सभी समस्याओं का अंत होता है। इनकी पूजा के समय सफेद वस्त्र धारण करनें चाहिए । नवरात्रि में मां शैलपुत्री की साधना से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। मां शैलपुत्री की पूजा से व्यक्ति के जीवन में स्थिरता आती है। जिन्हें संतान प्राप्ति की इच्छा है वो मां शैलपुत्री की आराधना जरुर करें ।

नवरात्रि में वैष्णो देवी जाने से पहले पढ़े यह खबर, श्राइन बोर्ड ने लगाई ये पाबंदी