UP Election 2022: सपा -रालोद प्रत्याशी अवतार सिंह भड़ाना को नोटिस

Avtar singh bhadana
UP Election जेवर से चुनाव लड़ेंगे अवतार सिंह भड़ाना.
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Jan 2022 05:46 PM
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Noida: नोएडा । जेवर विधानसभा (Jewar Assembly) से सपा रालोद गठबंधन के प्रत्याशी अवतार सिंह भड़ाना (Avtar Singh Bhadana)के खिलाफ दनकौर पुलिस ने रिटर्निंग ऑफिसर को कोविड-19 तथा आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने की रिपोर्ट प्रिटेंडिंग ऑफिसर को भेजी गई थी जिसके तहत नोटिस जारी किया गया है। डीसीपी ग्रेटर नोएडा (DCP Greater Noida)अमित कुमार(Amit Kumar)  जानकारी देते हुए बताया कि 26 जनवरी को जेवर विधानसभा से चुनाव लड़ रहे रालोद सपा गठबंधन के प्रत्याशी अवतार सिंह भड़ाना द्वारा ग्राम अतरौली में कोविड-19 का उल्लंघन कर करीब 200 से 300 लोगों की भीड़ एकत्र कर दीजिए द्वारा प्रचार किया गया ।उन्होंने बताया कि थाना दादरी के थाना प्रभारी सुधीर कुमार ने जेवर विधानसभा से रेटडिंग ऑफिसर को उक्त रिपोर्ट भेजी। जिसके तहत अब रिटेंडिंग ऑफिसर द्वारा नोटिस जारी किया गया।
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UP Election 2022: भाजपा सरकार में किसानों व युवाओं का सबसे ज्यादा शोषण:राजकुमार भाटी

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Jan 2022 08:34 PM
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Greater Noida: ग्रेटर नोएडा । समाजवादी पार्टी और रालोद गठबंधन के प्रत्याशी राजकुमार भाटी ने चुनाव प्रचार को और अधिक रफ्तार दे दी है। उन्होंने क्षेत्र के शाहपुर, रोहिल्लापुर, गढ़ी शास्त्री, नंगली शाखपुर, नंगली नंगला, नंगली, बजीतपुर, लोटस जिंक, छपरौली, मंगरौली, याकूदपुर, दल्लूपुरा, मोहियापुर और गुलावली आदि गांवों का दौरा किया। सभी स्थानों पर उनका ढ़ोल नंगाड़ों और फूलमालाओं से जोर दार स्वागत किया गया। इस दौरान उन्होंने भाजपा सरकार पर जमकर हल्ला बोला। सपा प्रत्याशी राजकुमार भाटी ने कहा कि प्रदेश में भाजपा सरकार के रहते हमारे किसानों और युवाओं का सबसे अधिक शोषण किया गया है। प्राधिकरणों के स्तर पर किसानों की समस्याएं जस की तस पड़ी हुई हैं। लेकिन कोई अधिकारी सुनने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि कड़ाके की ठंड़ के बावजूद आज भी जिले में अलग-अलग स्थानों पर कई किसान आंदोलन चल रहे हैं। लेकिन कमजोर जनप्रतिनिधियों की वजह से अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रैंग रही। वहीं स्थानीय उद्योगों में हमारे युवाओं के रोजगार के रास्ते भी बंद कर दिए गए हैं। जिले के अधिकांश उद्योगों के बाहर बोर्ड लगे हैं कि 200 किलोमीटर की दूरी से कम के युवाओं को रोजगार नहीं मिलेगा। लेकिन प्रदेश में सपा की सरकार आई तो किसानों और युवाओं के इस शोषण को किसी भी हाल में बर्दास्त नहीं किया जाएगा। राजकुमार भाटी के इन विचारों को सुनकर युवाओं व किसानों ने जिंदाबाद के नारे लगाए। इस अवसर पर उनके साथ बेगराज गुर्जर, संदीप लोहिया, लाट साहब लोहिया, सुनील भाटी, अतुल शर्मा, उधम पंडित्र, महेंद्र नागर, सुभाष भाटी, सुनील भाटी, पिरोज भाटी, वीर सिंह यादव, लाल सिंह गौतम आदि लोग मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
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UP Election 2022: नृप के चुनाव की नई शैली

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Jan 2022 08:30 PM
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आर.पी. रघुवंशी संपादक चेतना मंच जमाने से पढ़ते आ रहे हैं 'कोउ नृप होइ हमैं का हानी'। चुनाव की वेला में खुद को निर्विकार साबित करने के लिए बड़े बड़े काबिल इसे ब्रह्म वाक्य की तरह इस्तेमाल करते हैं। राजनीतिक पक्षधरता के आरोप से बचने को मैं भी अक्सर इस चौपाई को दोहराया करता था। मगर एक बार किसी सयाने ने टोक दिया। उसने पूछा कि क्या आपको मालूम है कि राम चरित्र मानस में गोस्वामी तुलसी दास किस के मुख से यह कहलवाते हैं? मेरे इनकार करने पर उन्होंने बताया कि कैकई की मति भ्रष्ट करने के लिए उसकी दासी मंथरा ने ही कहा था - 'कोउ नृप होइ हमैं का हानी, चेरि छाडि़ अब होब की रानी'। यानी सत्ता का पूरा तख्तापलट करवाने के लिए एक षड्यंत्रकारी दासी ही कहती है कि राजा कोई भी हो हमें कोई लेना-देना नहीं, मैं तो दासी की दासी ही रहूंगी, रानी आप सोचो आप का क्या होगा? हालांकि दासी मंथरा भी भली भांति जानती थी कि उसकी मालकिन कैकई का पुत्र भरत राजा बना तो उसमें वह अधिक लाभान्वित होगी न कि कौशल्या पुत्र राम के राजा बनने पर।  इस चौपाई का अर्थ और मंतव्य जानने के बाद कसम से  - 'कोउ नृप होइ हमैं का हानि ' का भाव ही न जाने कहां गुम हो गया। उसके स्थान पर यह भाव जन्मा कि राजा कौन बनेगा जब इससे सरासर फर्क पड़ता है तो मंथरा सा अभिनय क्यों? खुलकर अपनी पसंद नापसंद जाहिर क्यों न की जाए?  लीजिए मैं अभी राजनीतिक पसंद-नापसंद को खुल कर व्यक्त करने की बात ही कर रहा हूं और उधर ऐसी खबरें मिलनी भी शुरू हो गई हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक दर्जन से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में जनता ने अपने प्रत्याशियों को दौड़ा लिया है। बंगाल के 'खेला हौबे की तर्ज पर यहां 'खदेड़ा हौबे हो रहा है। कहना न होगा कि जिन्हें खदेड़ा जा रहा है उनमें से अधिकांश भाजपा विधायक हैं और जहां-जहां से उन्हें खदेड़ा गया वे किसान बाहुल्य क्षेत्र हैं।

हालांकि अलीगढ़ जैसे शहर में विरोध तो सपा प्रत्याशी का भी हुआ मगर लोगों का गुस्सा अधिकांशत: सत्ता में बैठी पार्टी भाजपा के प्रत्याशियों पर ही निकल रहा है। महंगाई, बेरोजगारी, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान नाइंतजामी से तो लोगों में आक्रोश है ही साथ ही किसान आंदोलन के दौरान किए गए अपमान से भी लोगबाग कुपित हैं। विधायक ही नहीं उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी इस विरोध प्रदर्शनों का शिकार हो गईं। अभी तो पहले चरण का भी मतदान नहीं हुआ और अभी से पब्लिक 'कोउ नृप होइ हमैं का हानीÓ को नकार रही है, आगे पता नहीं क्या क्या होगा? पिछले पैंतीस सालों से चुनावों को नजदीक से देखता आ रहा हूं। प्रत्याशियों के प्रति लोगों में गुस्सा सामान्य सी बात है। जीते हुए पुराने प्रत्याशियों के अपेक्षाओं पर खरा न उतरने पर लोग कुपित होते ही हैं। मगर इस बार का विरोध कुछ अलग सा ही है। यह विरोध इक्का-दुक्का विधानसभा क्षेत्रों तक भी सीमित नहीं दिख रहा। इस बार का गुस्सा एक किस्म की सामूहिकता लिए हुए है और खास बात यह है कि कोई खास राजनीतिक दल भी इसके पीछे नहीं लगता। पता नहीं आपका क्या विश्लेषण है मगर मुझे तो लगता है कि जनता अब खुद को बेवकूफ समझे जाने से ज्यादा नाराज है। हर बार जाति और धर्म के सांचे में डालकर उसका वोट झटक लिया जाता है और बाद में उसे झुनझुना सा थमा देते हैं। अवश्य ही उसे बुरा लगता होगा कि उसके जीने-मरने के मामलों पर कोई बात ही नहीं करता। बेशक उसे अपनी जाति का आदमी अच्छा लगता है। यकीनन अपने धर्म का आदमी भी उसकी पहली पसंद होता है मगर उसे उसकी आखिरी पसंद भी राजनीतिक दल मान लेते हैं, यह उसे अब बर्दाश्त नहीं होता। नृप के चुनाव को शायद यही अब उसकी शैली हो।