UP Election 2022: सपा -रालोद प्रत्याशी अवतार सिंह भड़ाना को नोटिस





आर.पी. रघुवंशी
संपादक
चेतना मंच
जमाने से पढ़ते आ रहे हैं 'कोउ नृप होइ हमैं का हानी'। चुनाव की वेला में खुद को निर्विकार साबित करने के लिए बड़े बड़े काबिल इसे ब्रह्म वाक्य की तरह इस्तेमाल करते हैं। राजनीतिक पक्षधरता के आरोप से बचने को मैं भी अक्सर इस चौपाई को दोहराया करता था। मगर एक बार किसी सयाने ने टोक दिया। उसने पूछा कि क्या आपको मालूम है कि राम चरित्र मानस में गोस्वामी तुलसी दास किस के मुख से यह कहलवाते हैं? मेरे इनकार करने पर उन्होंने बताया कि कैकई की मति भ्रष्ट करने के लिए उसकी दासी मंथरा ने ही कहा था - 'कोउ नृप होइ हमैं का हानी, चेरि छाडि़ अब होब की रानी'। यानी सत्ता का पूरा तख्तापलट करवाने के लिए एक षड्यंत्रकारी दासी ही कहती है कि राजा कोई भी हो हमें कोई लेना-देना नहीं, मैं तो दासी की दासी ही रहूंगी, रानी आप सोचो आप का क्या होगा? हालांकि दासी मंथरा भी भली भांति जानती थी कि उसकी मालकिन कैकई का पुत्र भरत राजा बना तो उसमें वह अधिक लाभान्वित होगी न कि कौशल्या पुत्र राम के राजा बनने पर। इस चौपाई का अर्थ और मंतव्य जानने के बाद कसम से - 'कोउ नृप होइ हमैं का हानि ' का भाव ही न जाने कहां गुम हो गया। उसके स्थान पर यह भाव जन्मा कि राजा कौन बनेगा जब इससे सरासर फर्क पड़ता है तो मंथरा सा अभिनय क्यों? खुलकर अपनी पसंद नापसंद जाहिर क्यों न की जाए? लीजिए मैं अभी राजनीतिक पसंद-नापसंद को खुल कर व्यक्त करने की बात ही कर रहा हूं और उधर ऐसी खबरें मिलनी भी शुरू हो गई हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक दर्जन से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में जनता ने अपने प्रत्याशियों को दौड़ा लिया है। बंगाल के 'खेला हौबे की तर्ज पर यहां 'खदेड़ा हौबे हो रहा है। कहना न होगा कि जिन्हें खदेड़ा जा रहा है उनमें से अधिकांश भाजपा विधायक हैं और जहां-जहां से उन्हें खदेड़ा गया वे किसान बाहुल्य क्षेत्र हैं।
आर.पी. रघुवंशी
संपादक
चेतना मंच
जमाने से पढ़ते आ रहे हैं 'कोउ नृप होइ हमैं का हानी'। चुनाव की वेला में खुद को निर्विकार साबित करने के लिए बड़े बड़े काबिल इसे ब्रह्म वाक्य की तरह इस्तेमाल करते हैं। राजनीतिक पक्षधरता के आरोप से बचने को मैं भी अक्सर इस चौपाई को दोहराया करता था। मगर एक बार किसी सयाने ने टोक दिया। उसने पूछा कि क्या आपको मालूम है कि राम चरित्र मानस में गोस्वामी तुलसी दास किस के मुख से यह कहलवाते हैं? मेरे इनकार करने पर उन्होंने बताया कि कैकई की मति भ्रष्ट करने के लिए उसकी दासी मंथरा ने ही कहा था - 'कोउ नृप होइ हमैं का हानी, चेरि छाडि़ अब होब की रानी'। यानी सत्ता का पूरा तख्तापलट करवाने के लिए एक षड्यंत्रकारी दासी ही कहती है कि राजा कोई भी हो हमें कोई लेना-देना नहीं, मैं तो दासी की दासी ही रहूंगी, रानी आप सोचो आप का क्या होगा? हालांकि दासी मंथरा भी भली भांति जानती थी कि उसकी मालकिन कैकई का पुत्र भरत राजा बना तो उसमें वह अधिक लाभान्वित होगी न कि कौशल्या पुत्र राम के राजा बनने पर। इस चौपाई का अर्थ और मंतव्य जानने के बाद कसम से - 'कोउ नृप होइ हमैं का हानि ' का भाव ही न जाने कहां गुम हो गया। उसके स्थान पर यह भाव जन्मा कि राजा कौन बनेगा जब इससे सरासर फर्क पड़ता है तो मंथरा सा अभिनय क्यों? खुलकर अपनी पसंद नापसंद जाहिर क्यों न की जाए? लीजिए मैं अभी राजनीतिक पसंद-नापसंद को खुल कर व्यक्त करने की बात ही कर रहा हूं और उधर ऐसी खबरें मिलनी भी शुरू हो गई हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक दर्जन से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में जनता ने अपने प्रत्याशियों को दौड़ा लिया है। बंगाल के 'खेला हौबे की तर्ज पर यहां 'खदेड़ा हौबे हो रहा है। कहना न होगा कि जिन्हें खदेड़ा जा रहा है उनमें से अधिकांश भाजपा विधायक हैं और जहां-जहां से उन्हें खदेड़ा गया वे किसान बाहुल्य क्षेत्र हैं।