Dharam Karma : वेद वाणी

Rig Veda
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Sep 2021 10:48 AM
bookmark

Sanskrit: ऋतधीतय आ गत सत्यधर्माणो अध्वरम्। अग्नेः पिबत जिह्वया॥ ऋग्वेद ५-५१-२॥

Hindi: हे दिव्य विद्वानों! धर्म के सत्य और सत्य के धर्म को आप जानते हो। हमारे प्रेम और अहिंसा के यज्ञों मेंआप सम्मिलित हो। आप अग्नि की जिव्हा से अर्थात अग्रणी प्रभु की स्तुति करने वाली जिव्हा से हमारे श्रद्धा के सोम का पान करें। (ऋग्वेद ५-५१-२)

English: O divine scholars! You know the truth of Dharma and Dharma of truth. Join us in our Yajana of love and non-violence. You drink the Soma of our reverence with the tongue of fire, that is, with the tongue by which you praise the leading Lord. (Rig Veda 5-51-2)

अगली खबर पढ़ें

रामराज्य की प्रतीक्षा में उत्तर प्रदेश

Ramrajya Ki Umeed
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Sep 2021 10:37 AM
bookmark

विनय संकोची

जब से योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की कमान संभाली है, तब से अनेक बार रामराज्य लाने का वादा प्रदेश की जनता से कर चुके हैं। 2017 में अयोध्या में ऐतिहासिक दिवाली मनाते हुए तो मुख्यमंत्री ने साल भी तय कर दिया था जिसमें रामराज्य आ ही जाना था। योगी आदित्यनाथ ने श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या की धरती से घोषणा की थी - "जिसके पास अपना घर हो, घर में रोशनी हो, हर हाथ को काम हो यही रामराज्य है और रामराज्य का सपना उत्तर प्रदेश में सन 2019 तक पूरा हो जाएगा।" लेकिन सपना तो पूरा नहीं हुआ रामराज्य नहीं आया और योगीराज में रामराज्य के बहुत लक्षण तो दिखाई नहीं पड़ते हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फरवरी 2020 में विधानसभा में कहा कि देश को समाजवादी नहीं राम राज्य की अवधारणा चाहिए। योगी प्रदेश में तो रामराज्य का सपना पूरा कर नहीं पाए और देश में राम राज्य की अवधारणा स्थापित करने की बात करने लगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "सबका साथ, सबका विकास" का जो नारा दिया था, योगी आदित्यनाथ ने उस नारे को ही रामराज्य की अवधारणा बता दिया। मतलब रामराज्य आ गया है, गलती प्रजा की है जो इस महानतम परिवर्तन को पहचान नहीं पा रही है।

भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने जम्मू-कश्मीर में बदले हालातों को देखकर वहां राम राज्य स्थापित हो जाने का दावा किया था। उनके दावे का आधार था कि वहां टैक्सी वाला भी अब "राम-राम" करता है। अगर राम राज्य की यही परिभाषा है, तो देश के बहुत बड़े हिस्से में तो रामराज्य कभी गया ही नहीं था क्योंकि सदियों से बहुत बड़ी संख्या में लोग राम-राम कह कर ही एक-दूसरे का अभिवादन करते चले आ रहे हैं।

श्री रामचरितमानस में वर्णित राम राज्य में किसी को भी दैहिक, दैविक, भौतिक कष्ट नहीं था। सब लोगों में आपसी प्रेम संबंध था, सभी अपने कर्तव्य का पालन करते थे। किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती थी, कोई दरिद्र नहीं था, दुखी और गरीब लोग कहीं नहीं थे। सभी ज्ञानी थे और किसी के प्रति कपट का भाव रखने का न तो कोई अवसर था और न ही कोई कारण। क्या मानस में वर्णित रामराज्य के मानकों की कसौटी पर देश और प्रदेश खरे उतरते हैं?

उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां न तो सबके पास अपना घर है, न हर घर में संतुष्टि की रोशनी है, न हर हाथ को काम है, न हर बच्चे को शिक्षा है। यहां आधे पेट खाकर गुजरा करने वालों की संख्या भी कम नहीं है। इन सब हालातों के बीच रामराज्य स्थापित कर देने की बात पर कौन विश्वास करेगा।

प्रदेश में पढ़े-लिखे बेरोजगारों की फौज है, उन्हें कोई काम नहीं मिल रहा है। दावे सरकार कुछ भी करें लेकिन सच्चाई यही है कि रोजगार का अभाव है और इसका प्रभाव यह है कि प्रदेश में अपराधों में निरंतर वृद्धि हो रही है। अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए बड़ी संख्या में पढ़े-लिखे युवा अपराध के रास्ते पर चल निकले हैं। राम राज्य में ऐसा तो नहीं था और यह सब कुछ हो रहा है तो यही मानना चाहिए कि रामराज्य स्थापित करने का वादा और दावा दोनों ही चुनावी हैं। उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी का आलम यह है कि चतुर्थ श्रेणी नौकरी के लिए पीएचडी व एमबीए छात्र अक्सर अप्लाई करते दिखाई देते हैं। हालांकि फिलहाल सरकार का दावा है कि बेरोजगारी दर बड़ी तेजी से घटी है लेकिन आज भी प्रदेश के लाखों बेरोजगार रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं।

प्रदेश में शिक्षा का हाल बदहाल है। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वालों की संख्या लगातार घट रही है, जो बच्चे पढ़ने जाते हैं उन्हें अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र में विद्यालयों का तो बहुत बुरा हाल है किसी स्कूल की चारदीवारी नहीं है, तो कहीं कमरों के ऊपर छत ही नहीं है। कहीं बच्चों को पेड़ों के नीचे पढ़ाया जा रहा है, तो किन्हीं स्कूलों में कई कक्षाओं के लिए एक ही शिक्षक है। अशिक्षित या अल्प शिक्षित राम राज्य का सपना कैसे साकार करेंगे, इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता है।

सब के स्वास्थ्य की चिंता की बात सरकार करती है, लेकिन स्वास्थय सुविधाओं को पूरी तरह सुधारने में कामयाब नहीं होती है। योजनाएं बहुत हैं लेकिन धरातल पर वैसा कुछ नहीं होता है, जैसा योजनाओं की रूपरेखा में दिखाया जाता है।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कहीं डॉक्टर नहीं है, तो कहीं दवाएं और उपकरण नहीं हैं। किसी केंद्र का ताला महीनों से नहीं खुला है, तो किसी केंद्र के प्रांगण में गाय भैंस बैठी मिलती हैं। अस्वस्थ समाज कैसे राम राज्य तक का सफर पूरा करेगा, यह विचारणीय है।

अपराध सरकारी आंकड़ों के हिसाब से कम हो रहे हैं। लेकिन महिलाओं के प्रति अपराधों में कोई कमी आ रही है, ऐसा अखबारों में रोजाना छपने वाले समाचारों से तो लगता नहीं है। हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती, व्यभिचार, भ्रष्टाचार से जुड़े समाचार आम हैं। योगी सरकार ने अपराधियों के हौसले पस्त करने की तमाम ईमानदार कोशिश की है लेकिन उसका प्रदेश को अपराध शून्य करने का सपना अधूरा ही है। ऐसा भी नहीं है कि सरकार अच्छे काम नहीं कर रही है, जरूर कर रही है लेकिन ये इतने भी नहीं हैं कि राम राज्य के तरह सभी सुखी हो जाएं। हालातों को देखकर लगता भी नहीं है कि अभी आने वाले बहुत सालों में रामराज्य का सपना साकार हो पाएगा।

अगली खबर पढ़ें

धर्म - अध्यात्म :कैसे मिटे प्रेम की भूख?

Spiritual 2
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 04:14 PM
bookmark

 विनय संकोची

प्रेम करना और प्रेम पाना मानव की स्वाभाविक  भूख है। मनुष्य के प्रेम पात्र बदल जाते हैं, परंतु प्रेम की भूख नहीं मिटती है। इसका कारण है कि उसकी भूख पूर्ण प्रेम की है, अपूर्ण प्रेम से उसे कभी तृप्ति नहीं मिल सकती। मानव के अंदर परिपूर्णता हो ही नहीं सकती क्योंकि वह तो स्वरूप से  ही अपूर्ण है। अपूर्ण मानव को हम अपना प्रेम देते हैं, इसीलिए हमारा प्रेम भी अपूर्ण ही बना रहता है। बचपन में हम खिलौनों से प्रेम करते हैं, कुछ बड़े होने पर हमजोलियों से प्रेम करने लगते हैं, विवाह होने पर पत्नी से प्रेम करने लगते हैं और संतान होने पर उसके प्रेम में पड़ जाते हैं। हमारे प्रेम के पात्र निरंतर बदलते रहते हैं, इसलिए हमारा प्रेम कभी पूर्ण नहीं होता है और प्रेम के मामले में हम हमेशा अपूर्ण बने रहते हैं, भूखे रहते हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमारे हृदय में पूर्ण प्रेम हो तो हमें पूर्ण परमेश्वर से प्रेम करना होगा, तभी प्रेम की भूख मिट सकती है।

हमें यह बात समझनी होगी कि प्रेम और वासना दोनों एक साथ नहीं रह सकते, दोनों में आधारभूत विरोध है। सच्चाई यह है कि आज हम मोह को ही प्रेम के रूप में देखने लगे हैं। हम इन दोनों में भेद नहीं कर पाते हैं। मोह की विशेषता है कि वह पदार्थ की प्राप्ति के समय घट जाता है। प्रेम की विशेषता यह है कि वह पदार्थ - प्राप्ति काल के पूर्व जैसा था प्राप्ति काल में ही वैसा ही बना रहता है। मोह की तरह प्राप्ति के बाद प्रेम घटता नहीं अपितु बढ़ता है। मोह ग्रस्त को धर्म के उपदेश से भी सुधारा नहीं जा सकता। यह सुधार तो स्वयं के प्रयासों से ही संभव है। मोह को त्यागकर प्रेम की ओर प्रवृत्त होने की भूख ही मानव को परिपूर्ण ईश्वर के निकट ले जाने में सक्षम है। जिस जीवन में प्रेम नहीं उसे जीवन कहना ही पाप है। वह तो जड़ जीवन है। प्रेम कभी बदला नहीं चाहता अपितु बलिदान चाहता है। जो सच्चा प्रेमी होता है, वह आशा ही नहीं रखेगा कि उसे प्रेम के बदले प्रेम मिले। दूसरा चाहे उससे घृणा करे लेकिन वह उसे उसी रूप में प्रेम करता रहेगा। सच्चा प्रेमी अपने प्रिय को सदैव बड़ा समझता है। प्रेम का वर्णन सांसारिक माया जाल में फंसा व्यक्ति नहीं कर सकता, प्रेम का वर्णन तो एक समर्पित प्रेमी ही कर सकता है। लेकिन वह प्रेम वर्णन की स्थिति में होता ही नहीं है क्योंकि ऐसा करने से उसके प्रेमानंद में विघ्न पड़ता है। वह तो आनंद में डूबे रहना चाहता है। प्रेम का आनंद अनुपम, अलौकिक और अवर्णनीय है। ईश्वर से प्रेम ही जीवन की सच्चाई है और समर्पण प्रेम का आधार। जब मनुष्य अपना सब कुछ भगवान को अर्पित - समर्पित कर देता है, तो उसके पास न अहंकार रहता है, न मोह रहता है, वह तो भगवान का हो जाता है। ऐसी स्थिति में यदि वह किसी जीवात्मा से प्रेम करता है तो भगवान का रूप मानकर और यही निष्काम प्रेम है, जो किसी भी परिस्थिति में दूषित नहीं होता है।

प्रेम पथ पर चलना आसान नहीं है। ग्रंथों को पढ़ने से प्रेम को समझना मुश्किल है। सांसारिक प्रेम को आध्यात्मिक प्रेम में परिणत किया जा सकता है। इसके लिए सच्चे प्रेम की परिभाषा जाननी होगी और सच्चे प्रेमी को ईश्वर से दिल लगाना होगा। अधिकांश लोग स्वार्थ पूर्ति के लिए ईश्वर से प्रेम करने का दिखावा करते हैं। वे ईश्वर से नित नई मांग करते हैं। प्रेम में मांग का कोई स्थान नहीं होता है, स्वार्थ की कोई जगह नहीं होती है। जहां मांग हो, जहां स्वार्थ हो वहां प्रेम रहे, यह संभव ही नहीं है। प्रेम की प्राप्ति बड़े ही भाग्यवान व्यक्तियों को होती है।

जब तक मानव जीवन यात्रा में प्रेम का प्राकट्य नहीं होगा तब तक वह भगवान का प्रेम नहीं पा सकता। ईश्वर भक्ति सच्चे प्रेम की अंतिम सीढ़ी है। प्रेम सर्वथा अलौकिक और अनिर्वचनीय है। उस तक वाणी की पहुंच नहीं है। बुद्धि भी उसको स्पर्श तो करती है लेकिन पूरा पता नहीं लगा सकती, पूरी कर समझ नहीं पाती। हां, अगर पूरी तरह समर्पित हो जाए तो मन उसे पा सकता है, परंतु मन तो भटकता रहता है और यह भटकन प्रेम को पाने नहीं देती है। प्रेम ऐसा धर्म है, जिसका पालन कर प्रभु को पाया जा सकता है।