UP Elections 2022 : तीसरे चरण के मतदान में आलू किसानों की अहम भूमिका

UP Elections 2022 : विधानसभा चुनाव (UP Elections 2022) के तीसरे चरण में जिन 69 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है उनमें 36 विधानसभा क्षेत्र में आलू किसान हैं। यादव और कुर्मी बाहुल्य इन क्षेत्रों के किसान आलू को शुद्ध सोना मानते हैं। कानुपर के फर्रुखाबाद, कन्नौज, मैनपुरी और अरौल-बिल्हौर क्षेत्र के आलू क्षेत्र में आलू के खेत सड़क किनारे दिखाई देते हैं। 258 कोल्ड स्टोरेज भी हैं। ये इस बात की गवाही देते हैं कि यहां के अधिकांश किसान आलू उगाते हैं। इनकी संख्या करीब साढ़े चार लाख है। स्वाभाविक है कि किसानों के इतने बड़े समूह की उम्मीदें राजनीतिक दलों से भी बड़ी होंगी।
UP Elections 2022
आगरा एक्सप्रेस-वे पर जैसे ही कन्नौज का बॉर्डर शुरू होता है, खेतों में हर तरफ आलू की चमक नजर आती है। वहीं खेत में और खेत में हर जगह आलू की फसल होती है। कानपुर के बिल्हौर, कन्नौज और फरूखाबाद से लेकर फिरोजाबाद तक आलू पट्टी है। यहां लाखों किसान परिवारों की आजीविका आलू पर टिकी है। जहां 11 लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन करने वाले फर्रुखाबाद में 2 लाख से ज्यादा किसान आलू की खेती से जुड़े हैं। यहां की शैतानपुर मंडी पहुंचने पर आलू के हाल और राजनीतिक चाल दोनों का खुलासा होता है। आलू किसानों का कहना है कि चुनाव में वादे तो किए गए, लेकिन आलू की खपत बढ़ाने के लिए उद्योग नहीं लग पाए। पिछली सरकारों ने आलू किसानों के लिए कुछ खास नहीं किया। कहा जाता है कि हर चुनाव में चिप्स, शराब फैक्ट्री और आलू पाउडर बनाने की बात होती है। इस चुनाव में भी राजनीतिक दलों ने दावा करना शुरू कर दिया है। लेकिन यह दावा हकीकत में बदल पाएगा, इस पर अभी भी संशय बना हुआ है। ऐसे में वोट उन्हीं को मिलेगा जो आलू किसानों की बात करेंगे।
आपको बता दें कि आलू उत्पादन क्षेत्रों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है। यहां करीब 6.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में आलू बोया जाता है। पूरे राज्य में करीब 147.77 लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ है। ऐसे में आगरा से शुरू होकर मथुरा, इटावा, फर्रुखाबाद से लेकर कानपुर देहात तक फैली आलू पट्टी देश के कुल उत्पादन का करीब 30 फीसदी उत्पादन करती है। देश में डीजल के दामों में बढ़ोतरी, डीएपी और यूरिया की कमी, तैयार आलू की आढ़ती के सहारे होने का दर्द किसानों को बेचैन कर रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आलू का उत्पादन करने वाले किसान किसी भी दल की पिछली सरकारों से संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं। कारण आलू उत्पादकों की समस्याओं का समाधान करने के दावे तो सभी करते हैं, लेकिन समस्या का निराकरण करने के प्रति गंभीर कोई भी नजर नहीं आता है। ऐसे में आलू किसान तीसरे चरण में अहम भूमिका निभा सकता है। अब ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
UP Elections 2022 : विधानसभा चुनाव (UP Elections 2022) के तीसरे चरण में जिन 69 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है उनमें 36 विधानसभा क्षेत्र में आलू किसान हैं। यादव और कुर्मी बाहुल्य इन क्षेत्रों के किसान आलू को शुद्ध सोना मानते हैं। कानुपर के फर्रुखाबाद, कन्नौज, मैनपुरी और अरौल-बिल्हौर क्षेत्र के आलू क्षेत्र में आलू के खेत सड़क किनारे दिखाई देते हैं। 258 कोल्ड स्टोरेज भी हैं। ये इस बात की गवाही देते हैं कि यहां के अधिकांश किसान आलू उगाते हैं। इनकी संख्या करीब साढ़े चार लाख है। स्वाभाविक है कि किसानों के इतने बड़े समूह की उम्मीदें राजनीतिक दलों से भी बड़ी होंगी।
UP Elections 2022
आगरा एक्सप्रेस-वे पर जैसे ही कन्नौज का बॉर्डर शुरू होता है, खेतों में हर तरफ आलू की चमक नजर आती है। वहीं खेत में और खेत में हर जगह आलू की फसल होती है। कानपुर के बिल्हौर, कन्नौज और फरूखाबाद से लेकर फिरोजाबाद तक आलू पट्टी है। यहां लाखों किसान परिवारों की आजीविका आलू पर टिकी है। जहां 11 लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन करने वाले फर्रुखाबाद में 2 लाख से ज्यादा किसान आलू की खेती से जुड़े हैं। यहां की शैतानपुर मंडी पहुंचने पर आलू के हाल और राजनीतिक चाल दोनों का खुलासा होता है। आलू किसानों का कहना है कि चुनाव में वादे तो किए गए, लेकिन आलू की खपत बढ़ाने के लिए उद्योग नहीं लग पाए। पिछली सरकारों ने आलू किसानों के लिए कुछ खास नहीं किया। कहा जाता है कि हर चुनाव में चिप्स, शराब फैक्ट्री और आलू पाउडर बनाने की बात होती है। इस चुनाव में भी राजनीतिक दलों ने दावा करना शुरू कर दिया है। लेकिन यह दावा हकीकत में बदल पाएगा, इस पर अभी भी संशय बना हुआ है। ऐसे में वोट उन्हीं को मिलेगा जो आलू किसानों की बात करेंगे।
आपको बता दें कि आलू उत्पादन क्षेत्रों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है। यहां करीब 6.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में आलू बोया जाता है। पूरे राज्य में करीब 147.77 लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ है। ऐसे में आगरा से शुरू होकर मथुरा, इटावा, फर्रुखाबाद से लेकर कानपुर देहात तक फैली आलू पट्टी देश के कुल उत्पादन का करीब 30 फीसदी उत्पादन करती है। देश में डीजल के दामों में बढ़ोतरी, डीएपी और यूरिया की कमी, तैयार आलू की आढ़ती के सहारे होने का दर्द किसानों को बेचैन कर रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आलू का उत्पादन करने वाले किसान किसी भी दल की पिछली सरकारों से संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं। कारण आलू उत्पादकों की समस्याओं का समाधान करने के दावे तो सभी करते हैं, लेकिन समस्या का निराकरण करने के प्रति गंभीर कोई भी नजर नहीं आता है। ऐसे में आलू किसान तीसरे चरण में अहम भूमिका निभा सकता है। अब ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।







