ANMOL RATNA : समाज सेवा उनका शौक नहीं बल्कि जुनून है, पूरा जीवन समर्पित- महेश सक्सेना

Mahesh Saxena
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locationभारत
userगौरव रघुवंसी
calendar06 Jul 2023 11:06 PM
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ANMOL RATNA : नोएडा। आप जानते ही हैं कि दुनिया में अनेक प्रकार के रत्न पाए जाते हैं। इतिहास में भी रत्नों की खूब चर्चा हुई है। अकबर के नवरत्नों के किस्से भी सबने ही सुने हैं। आज हम इन सब रत्नों की बात नहीं कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के नोएडा शहर में रहने वाले एक ऐसे रत्न की जो वास्तव में एक ‘‘अनमोल रत्न’’ की भांति ही हैं।

समाजसेवा में समर्पित

दरअसल नोएडा में नोएडा लोकमंच नामक एक प्रमुख सामाजिक संगठन है। इस संगठन की स्थापना वर्ष-1997 में नोएडा शहर के कुछ जागरूक नागरिकों ने मिलकर की थी। नोएडा लोक मंच के संस्थापक महासचिव का नाम है महेश सक्सेना। आज अपनी अनमोल रत्न सीरीज में हम इन्हीं महेश सक्सेना जी से आपका परिचय कराने वाले हैं। महेश सक्सेना ने अपना पूरा जीवन समाज की सेवा के कार्यों के लिए समर्पित कर रखा है।

कैमिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट

एक साधारण से परिवार में जन्म लेने वाले लोकमंच के संस्थापक महासचिव महेश सक्सेना ने कानपुर के एचबीटीआई से कैमिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की। वे बचपन से ही एक होनहार छात्र थे। इसी कारण छठी कक्षा से लेकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई तक उन्हें छात्रवृत्ति मिलती रही।  वह कैमिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट हैं। उन्होंने जून,1973 में दिल्ली के पटपड़ गंज में अपने उद्योग की स्थापना की। उन्होंने बताया कि उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार इंजीनियर्स को अपना बिजनेस शुरू करने के लिए प्रेरित करती थी। तभी लोन लेकर दोस्त के साथ मिलकर फैक्टरी शुरू की।

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भाई की मौत ने बदल दिया जीवन

आर्थिक समस्याओं से जूझते हुए जिन्दगी चल रही थी कि अचानक सन् 1994 में उनके एक मात्र छोटे भाई का देहावसान हो गया। भाई की जिंदगी को बचा न पाने का दर्द वह आज तक नहीं भूले हैं। उस समय यह एहसास हुआ था कि अगर पैसा होते हुए भी भाई की जिंदगी न बचा पाए तो ऐसे पैसे का क्या फायदा। उस समय मन को काफी विरक्ति हुई, भाई के चले जाने पर विधि के विधान पर काफी कुछ सोचा तथा तब से अपने-आपको अर्थ उपार्जन से अलग कर लिया। अब सामाजिक जिम्मेदारियों तथा अन्य विषमताओं के लिए स्वयं को पूर्णकालिक रूप से लगाने का निश्चय किया है।

इस निश्चय पर दृढ़तापूर्वक चलने में उन्हें अपने परिवार व अन्य लोगों का काफी सहयोग मिला। उनकी धर्मपत्नी लीका सक्सेना, पिता संतशरण सक्सेना और माता शान्ति देवी का इन्हें भरपूर सहयोग मिला। उनके तीनों बच्चों ने उच्च शिक्षा ग्रहण की है। दो बेटी व एक बेटा तीनों ही आज अलग-अलग प्रोफेशन में परिवार का नाम रोशन कर रहे हैं।

उन्हें पूरा विश्वास है कि यदि व्यक्ति पूरी ईमानदारी से कर्म करता चले, उसकी सोच साफ एवं सकारात्मक हो तथा नजरिया किसी की भलाई करने का हो तो परमात्मा और अन्य शक्तियां सदैव उसकी राह आसान करती जाती है। लगभग 26 वर्षों के सामाजिक प्रयासों में उन्होंने लोगों का बहुत प्यार, विश्वास और सहयोग पाया है। बिना किसी स्वार्थ के स्वयं को संस्था के उद्देश्यों के लिए सतत् रूप से समर्पित करके उन्होंने पाया कि लोगों की दुआएं, प्यार और विश्वास ने उन्हें हर पल आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया।

टी.एन. शेषन से हुए प्रभावित

देश में एक समय ऐसा था जब देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टी.एन. शेषन पूरे देश में ईमानदारी का प्रतीक बन गए थे। सारा देश उन्हें ईमानदारी की प्रतिमूर्ति समझ रहा था। हमारे अनमोल रत्न महेश सक्सेना भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। प्रारंभ में महेश सक्सेना ने 1994 से 1997 तक टी.एन. शेषन के नेतृत्व में नोएडा में देश भक्त समाज नाम से संस्था शुरू की और मुट्ठी भर साथियों के साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी। इसी कड़ी में बिजली विभाग में एक भ्रष्ट अधीक्षण अभियंता की नियुक्ति पर एक जबरदस्त लड़ाई लड़ी और नोएडावासियों को उस भ्रष्ट अधिकारी की नियुक्ति से मुक्ति मिली।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका डाली जिसमें नोएडा के सेक्टर-14ए के नाले में मयूर विहार से बिना शोधित किए डाले जा रहे मल-मूत्र को बंद करने की मांग करके जीत हासिल की। उन्हीं दिनों नोएडा के सेक्टर-19 में कचहरी खोली जा रही थी। तब देश भक्त समाज के विरोध द्वारा इस न्यायालय को यहां से स्थानांतरित करके नोएडा में फेस-2 में स्थापित किया गया। नोएडा शहर के सेक्टर-40 में हुआ माथुर हत्याकांड हो या सेक्टर-9 के व्यापारी ग्रोवर दंपत्ति का सेक्टर-20 में हुआ हत्याकांड हो इसके खिलाफ देश भक्त समाज संस्था ने मजबूत ढंग से आवाज उठाई।

Anmol Ratna Mahesh Saxena अंतिम निवास की सूरत बदली

जीवित व्यक्ति की सेवा करने वाले तो अनेक मिल जाएंगे। मरने के बाद पूरे विधि-विधान से अंतिम संस्कार की व्यवस्था कराना और वह भी रमणीक स्थल पर यह काम केवल महेश सक्सेना जैसे जुनूनी लोग ही कर सकते हैं। नोएडा में बेहद खूबसूरत ढंग से सजाए गए अंतिम निवास (श्मशान घाट) का प्रबंधन भी पिछले 22 वर्षों से महेश सक्सेना ही संभाल रहे हैं। शहीद कर्नल विजयंत थापर की ऐतिहासिक अंतिम यात्रा (जिसमें लाखों लोग एकत्रित हुए शहीद के सम्मान में) यह कार्य भी देश भक्त समाज संस्था के सौजन्य से कराया गया था। शहीद कर्नल विजयंत थापर के अंतिम संस्कार के बाद उन्होंने अंतिम निवास की सूरत बदलने का संकल्प लिया। पहले वहां अव्यवस्थाओं का अम्बार था। चारों तरफ गंदगी व झाडिय़ां फैली थीं। तब से लेकर आज तक उनके प्रयासों से अंतिम निवास में काफी बदलाव किए गए हैं। अंतिम निवास पर सीएनजी से शवदाह की व्यवस्था भी महेश सक्सेना द्वारा करवाई गई।

वहीं कारगिल युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री कोष में देश भक्त समाज द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई को 48 लाख रूपये की धनराशि सौंपी गई। इस प्रकार देश भक्त समाज के दर्जनों युवाओं ने भ्रष्टाचार व अन्याय के विरूद्घ लड़ाई लड़ी। आज यह दर्जनों का कारवां हजारों में तब्दील हो गया है।

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नोएडा की एकमात्र पब्लिक लाईब्रेरी व स्कूल खोले

1997 में नोएडा लोक मंच का गठन हुआ। नोएडा लोक मंच आज नोएडा शहर की एक मात्र पब्लिक लाइब्रेरी की व्यवस्था एवं प्रबंधन कर रहा है। यह पब्लिक लाईब्रेरी नोएडा के सेक्टर-15 में चल रही है। इसके साथ ही नोएडा लोक मंच द्वारा नोएडा के तीन गांव गढ़ी चौखंडी, सर्फाबाद एवं होशियारपुर में संस्कार स्कूल संचालित  किए जा रहे हैं। इन स्कूलों में लगभग 1300 बच्चों को उच्चतम एवं सर्वश्रेष्ठ शिक्षा बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए निरंतर दी जा रही है। इन स्कूलों ने अनेक विलक्षण प्रतिभाएं देश और समाज को दी हैं। इन स्कूलों से पढक़र निकले कई बच्चे आज अधिकारी हैं। पिछले बीस सालों से नोएडा लोक मंच विभिन्न स्थानों में मेडिकल कैंप लगा रहा है। वर्ष-2002 से 2018 तक ‘मे आई हेल्प यू काउंटर’ जिला अस्पताल में मरीजों की सेवा के लिए चलाया गया था, अब उसी कड़ी में पिछले डेढ़ वर्षों से नोएडा लोक मंच द्वारा नोएडा के सेक्टर-12 के पुराने सामुदायिक भवन में प्राधिकरण द्वारा दिए गए स्थान में निशुल्क नोएडा दवा बैंक भी चलाया रहा है।

राष्ट्रीय आपदाओं व कोरोना काल में बने मददगार

देश भर में अब तक आई हुई राष्ट्रीय आपदाओं भुज, नागा पटनम, बिहार, नेपाल, उत्तराखंड, कश्मीर आदि में नोएडा लोक मंच के कार्यकर्ता स्वयं गए एवम भरपूर करोड़ों रुपयों की सहायता देकर देश भर में नोएडा लोक मंच ने नोएडा का नाम बढ़ाया। कोरोना काल में नोएडा लोक मंच द्वारा पुलिस प्रशासन को जरूरत मंदों को बांटने के लिए 80 टन चावल एवम 15 टन दाल दी गई। लगभग 80 हजार खाने के पैकेट लोगों को दिए। साथ ही 10 हजार बैग सूखा राशन भी वितरित किया गया।

पिछले 26 वर्षों में सतत् कार्य करने की क्षमता के कारण नोएडा लोकमंच ने इस क्षेत्र के औद्योगिक समूहों व चेरीटेबल ट्रस्ट तथा आम आदमी का विश्वास पाया है। लोगों के प्यार व विश्वास और कार्यकर्ताओं की बढ़ती सक्रिय टोलियों के उचित समन्वय से आज नोएडा लोकमंच सामाजिक जिम्मेदारियों में बढ़ चढकऱ भाग लेता है। महेश सक्सेना ने चेतना मंच को बताया कि जब भी उन्होंने नोएडा में किसी समस्या के लिए आवाज उठाई इस क्षेत्र के जागरूक नागरिकों तथा यहां के चिन्तनशील प्रेस का उन्हें जबरदस्त सहयोग मिला। वे मानते हैं कि सभी सामाजिक उपलब्धियां सहयोगियों की वजह से ही सम्भव हो सकी हैं। नोएडा की अपनी एक अलग छवि हो, पहचान हो।

यहां की प्रशासनिक व प्राधिकरण की कार्यशैली पारदर्शी व सबके प्रति समभाव रखने वाली हो। इस दिशा में प्रयास चल रहे हैं। जिनमें कुछ हद तक सफलता भी मिली है। इन प्रयासों को सफल बनाने की श्रृंखला में मुख्य स्तम्भ है-जागरुक नागरिक और जवाबदेह प्रेस के वे संवाददाता जो यहां के नागरिकों के दु:ख दर्द व पीड़ा से सीधा संबंध रखते हैं। इसमें कुछ गिने-चुने अधिकारी भी शामिल हैं जो अपनी अच्छी सोच और कार्य कुशलता के लिए मशहूर हैं साथ ही क्षेत्रीय भावना का भी पूरा ध्यान रखते हैं। वे मानते हैं कि पिछले 5-6 वर्षों में नोएडा में सामाजिक जिम्मेदारियों को लोगों ने आगे बढकऱ साथ देने में काफी रूचि दिखाई हैं।

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अभी बाकी है सपनों की उड़ान

महेश सक्सेना का मानना है,कि सही मायने में जितना वे करना चाहते थे उतना अभी तक नहीं कर पाये। लोकमंच की स्थापना के समय से ही वे चाहते रहे हैं कि क्षेत्र का प्रत्येक नागरिक उनका साथ दे। यदि प्रत्येक नागरिक सालाना मात्र 30 रुपये दे तो वे इस सामाजिक कार्य को अंजाम देकर लोकमंच का सपना पूरा कर पायेंगे। वे मुफ्त पैथोलाजी लैब की सुविधा, डिस्पैन्सरी तथा प्राइमरी स्कूल आदि का सार्वजनिक स्थानों का पूरा सदुपयोग चाहते हैं। स्कूल की प्रथम पारी में 8 से 12.00 बजे तक बच्चों का स्कूल हो, 2.00 से 6.00 बजे तक जूनियर स्कूल और तीसरी पारी में महिलाओं के लिए वोकेशनल इंस्टीट्यूट का प्रबन्ध करना चाहते हैं। साथ ही स्कूल के किसी छोटे-से हिस्से में आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और ऐलोपैथिक की चिकित्सा सेवा पूरे दिन उपलब्ध करवाने की भी उनकी मंशा हैं। इसी प्रकार अन्य सार्वजनिक स्थानों का भी 12 से 14 घंटे तक सदुपयोग चाहते हैं।

ANMOL RATNA

इसके लिए शासन और प्रशासन दोनों के सहयोग की आवश्यकता है। उनके अनुसार लोकमंच ने कभी भी धन एकत्र करने का प्रयास नहीं किया। जब कभी किसी आर्थिक सहयोग की जरूरत पड़ती है वे अपने कार्य का जिक्र करते हुए उद्योपतियों को पत्र भेजते हैं और उन्हें आशा से अधिक सहयोग मिल जाता है। उनका मानना है कि समाजसेवा की भावना तो है बस जरूरत है लोगों में यह विश्वास पैदा करने की कि उनके पैसे का दुरूपयोग नहीं होगा। वे कभी घर-घर जाकर चंदा इक्कट्ठा नहीं करते और न ही कोई ऐसा कार्यक्रम करवाते हैं जिसमें टिकट लगता हो।

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सक्सेना जी को समाजसेवा के लिए 24 घंटे का समय भी कम लगता है। जहां आम आदमी, पत्रकार, उद्योगपति उन्हें सहयोग करते हैं। वहीं राजनीतिक सहयोग का उनके पास अभाव है। जिस दिन जन-जन का विश्वास उनके साथ होगा उस दिन उनका सपना व लक्ष्य चरमसीमा पर होगा। उन पर अपने दादाजी बद्रीप्रसाद सक्सेना का भी गहरा प्रभाव है। उन्होंने अपने दादाजी से सादा जीवन व अनुशासन सीखा।

सादे विचारों ने जीवन को दी ऊर्जा

समाजसेवी महेश सक्सेना को ताश, बैडमिंटन, टेबल टेनिस और क्रिकेट खेलना बहुत प्रिय लगता है परंतु अब उनके पास इन सब के लिए समय नहीं है। लिखना और लोगों से जुडऩा आजकल उनके नए शौक हैं। वे सादा शुद्ध शाकाहारी भोजन पसंद करते हैं,वैसे रसमलाई उन्हें अधिक पसंद है। मौका मिले तो वे सब्जियां बनाते हैं और दोस्तों को दावत देते हैं। जब से उनके जीवन की दिशा बदली है उन्हें लोगों के चमचमाते चेहरों के सिवाय कोई चीज आकर्षित नहीं करती। दुख का भी अहसास नहीं होता। उनके अनुसार सभी को निश्चय कर लेना चाहिए कि अच्छा बोलें, आलोचना में समय नष्ट न करें। ऐसा करने से मन में विकार नहीं आते।

ANMOL RATNA :

अब महेश सक्सेना  लोकमंच में कार्यकत्ताओं की संख्या में बढ़ोत्तरी चाहते हैं ताकि उपयुक्त शिक्षा और सस्ती चिकित्सा उपलब्ध करा सकें ताकि कोई निर्धन भी इलाज के अभाव से मरे नही। देश के प्रत्येक नागरिक में इतनी जागरूकता पैदा करना चाहते हैं कि वे अपने अधिकारों के प्रति किसी गलत कार्य को न स्वीकार करें। अपराधी तत्व समाज की निष्क्रियता के कारण ही चुने जाते हैं। उनका कहना है कि सरकार को प्रभावशाली धनाढ्य लोगों को अधिक महत्व न देकर विभिन्न विधाओं में पारंगत लोगों की ओर ध्यान देना चाहिए। वे कहते हैं, आज जरूरत है इन मौजूद होनहार किसान, चित्रकार, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक कलाकार आदि ढूंढने की जो कोयले की खान में हीरे की भांति छिपे हुए है।

ANMOL RATNA: Dr. Purshotam Lal, जो भगवान का रूप ही नहीं बल्कि इंसानियत का स्वरूप भी है।

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Special Story : पवार से यारी, शिंदे को ठिकाने लगाने की तैयारी !

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Friendship with Pawar, preparation to hide Shinde!
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 10:06 PM
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नई दिल्ली। अपनों की नाराजगी झेल रही बीजेपी ने अब उन्हें मनाने और उचित सम्मान देने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। शायद इसीलिए एनसीपी को दो फाड़ कर अजित पवार को डिप्टी सीएम बनाया गया है। कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले 10 से 15 दिनों के भीतर महाराष्ट्र में एक और सियासी बदलाव देखने को मिल सकता है। उस बदलाव के तहत देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी जा सकती है। यह भी कहा जा रहा है कि इस बदलाव के पीछे की पटकथा लिखी जा चुकी है। यानि सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद यह लगभग साफ हो गया है कि एकनाथ शिंदे और उनके 15 विधायकों को अयोग्य घोषित किया जा सकता है।

Special Story

शुरू से ही हिल डुल रही सरकार साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही महाराष्ट्र की सत्ता हिल डुल रही है। राज्य में 105 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सत्ता से बाहर रहने की टीस बीजेपी को बेचैन करती रही। वह हमेशा ही इस ताक में लगी रही कि कैसे वह महाराष्ट्र की सत्ता हासिल करे। आखिर, बीजेपी के चाणक्य अमित शाह ने व्यूह रचना की। उन्होंने एक तीर से दो शिकार करने का फैसला किया। पार्टी की रणनीति उद्धव ठाकरे को सत्ता से बाहर करने और शिवसेना के अस्तित्व को ही समाप्त करने की रही। उसमें वह कामयाबी भी रहे। यानि आपरेशन कमल कामयाब हो गया। तीन दशक पुराने रिश्ते टूटने की टीस एकनाथ शिंदे शिवसेना के 40 विधायकों के साथ बीजेपी के साथ आ गए। नतीजतन, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई। बीजेपी को इतने से ही चैन नहीं मिला। उसने तीन दशक पुराने रिश्ते को तोड़कर सत्ता में बैठने वाली शिवसेना को ही ठिकाने लगाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया। आखिर, शिवसेना और उसके सिंबल पर भी एकनाथ शिंदे का कब्जा हो गया। चुनाव आयोग ने भी एकनाथ शिंदे के हक में ही फैसला दिया।

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ये थी ठाकरे की दलील आपरेशन कमल के बाद उद्धव ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने उनकी पार्टी से अलग हुए एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की। ठाकरे के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 10 का हवाला देते हुए दलील रखी कि अगर कोई विधायकों का समूह दो तिहाई से ज्यादा लोग बगावत करते हैं तो उन्हें किसी न किसी दल में विलीन होना होगा। लेकिन, शिंदे और उनके गुट ने ऐसा नहीं किया। इसलिए उन्हें अयोग्य घोषित किया जाये।

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तो भी सरकार कोई कोई खतरा नहीं सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को इस पूरे मामले पर सख्त रुख अख्तियार किया और कहा कि अगर उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा नहीं दिया होता तो उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनने का कानूनी अवसर मिल जाता। लेकिन, अदालत ने विधायकों को अयोग्य ठहराने का मामला महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर पर छोड़ दिया। हालांकि आंकड़ों के लिहाज से विधानसभा में बीजेपी और उसे समर्थन देने वाले विधायकों की संख्या इतनी है कि अगर 16 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया गया, तो भी सरकार को कोई खतरा नहीं है। मराठा वोटरों को साधने की रणनीति अब बड़ा सवाल कि अगर महाराष्ट्र सरकार को कोई खतरा नहीं है तो फिर एनसीपी को तोड़ने के पीछे का कारण क्या हो सकता है। जानकार बताते हैं कि भाजपा के लिए एकनाथ शिंदे और उनके 15 विधायकों की अब विशेष जरूरत नहीं है। अभी हाल में आए भाजपा के एक सर्वे के मुताबिक एकनाथ शिंदे की लोकप्रियता लगभग चार फीसदी ही है। ऐसे में वह आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए उपयोगी साबित नहीं होंगे। इसलिए भाजपा अब एकनाथ शिंदे को ठिकाने लगाने की मंशा पाल बैठी है। दूसरी ओर, अजित पवार को पार्टी में लाने और डिप्टी सीएम बनाने के पीछे की रणनीति महाराष्ट्र के मराठा वोटरों को साधने की है।

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अपने नेताओं को खुश करने का प्लान अजित पवार को लाकर भाजपा ने महाराष्ट्र के अपने नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं को बनाने का भी प्लान बना लिया है। समझा जा रहा है कि अगले 10 से 15 दिनों के भीतर एक और बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। इसके तहत एक बार फिर मुख्यमंत्री पद पर डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस की ताजपोशी हो सकती है। ऐसा कर पार्टी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को खुश कर चुनाव में उतरने की तैयारी में जुट गई है। उत्तर प्रदेशकी खबरों से अपडेट रहने लिएचेतना मंचके साथ जुड़े रहें। देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें। #ncp #ajitpawar #bjp #eknathshinde  
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ANMOL RATNA: Dr. Purshotam Lal, जो भगवान का रूप ही नहीं बल्कि इंसानियत का स्वरूप भी है।

WhatsApp Image 2023 06 30 at 3.29.18 PM e1688119473943
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Jun 2023 07:47 PM
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HeaDr. Purshotam Lal:  चेतना मंच, 30 June 2023 एक ऐसा नाम जो कभी एक छोटे से गांव की तंग गलियो में पुकारा जाता था और आज दुनिया के प्रसिद्ध डाक्टरों में लिया जाता है। आपने कई अनमोल रत्नों के बारे में जरूर सुना होगा जैसे - हीरा, माणिक व पन्ना आदि। लेकिन यहा हम बात कर रहे हैं देश, दुनिया और समाज को अपना अद्भुत योगदान देने वाले एक ऐसे व्यक्तित्व की जो वास्तव में पूरी मानवता के लिए एक ‘‘अनमोल रत्न‘‘ है। जी हां यह एक ऐसे महान डॉक्टर हैं जो किसी के दिल की बंद होती हुई धड़कन को चलाते रहने का हुनर जानते हैं। दिल का मामला काफी नाजुक होता है। दिल से धड़कन जुड़ी है और धड़कन से जिन्दगी। जिस दिन धड़कन बंद हो जाती है उस दिन शरीर का वजूद समाप्त हो जाता है। दुर्भाग्यवश कई बार इस दिल में खराबी आ जाती है। कभी इंसान की गलती से तो कभी कुदरत की क्रूरता की वजह से। लेकिन वहीं भगवान के बनाए इस दिल को धरती पर सुधारने वाले भी पैदा होते हैं। ये अपनी शिक्षा अध्ययन, मेहनत और अनुभव से दिल की मरम्मत करते हैं। बंद होते दिल को धड़काना और भविष्य में उसकी धड़कनों को चलाये रखना कोई आसान काम नहीं है। हम यहां आपको बता रहे हैं एक ऐसे महान हार्ट स्पेशलिस्ट के बारे में जो अमेरिका में हजारों दिलों की धड़कने कायम रखने के बाद अब नोएडा को अपनी कर्मभूमि बना चुके हैं। तो जानते हैं विश्व प्रसिद्ध और तीन बार राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ. पुरुषोत्तम लाल  के बारे में। [caption id="attachment_98644" align="aligncenter" width="1200"]Anmol Ratna Dr. Purshotam Lal - Chetna Manch Original Anmol Ratna Dr. Purshotam Lal - Chetna Manch Originals[/caption] डॉ. पुरुषोत्तम लाल का जन्म पंजाब के फिरोज़पुर जिले के एक छोटे से गांव पत्तो में हुआ और वहां के प्रथम डॉक्टर कहलाए गए। प्राथमिक शिक्षा गांव में पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई उनके मामाजी के गांव के सेना गवर्नमेंट हाईस्कूल में हुई। स्कूली शिक्षा उच्चतम अंको से पूरी करने के बाद वे कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के लिए जालंधर गए। फिर अमृतसर से मेडिकल की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होने वर्ष 1976 में अमेरिका जाकर आधुनिक चिकित्सा पद्धति में अपने हुनर को निखारने का फैसला लिया। अमेरिका में रहते हुए वो अपोलो हॉस्पिटल मद्रास में भी अपना योगदान दिया करते थे जहां उन्होने कई नई आधुनिक तकनीकों को पहली बार भारतवर्ष में शुरू किया और अनेक डॉक्टरों को भी प्रशिक्षित किया। यहाँ तक की उनके द्वारा सिखाई जा रही कई तकनीकें तो विश्व में पहली बार शुरू की गईं थी। उनके मन में ग्रामीण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का भी भूत सवार रहता था क्योंकि उस समय भारत के गांवां में डॉक्टर आसानी से नहीं पहुंच पाते थे और इसी कारणवश ऐसे काफी लोगों की युवावस्था में ही मृत्यु हो जाती थी जिनको बचाया जा सकता था। डॉक्टर लाल की इस सोच के पीछे एक दुखद कारण ये भी था की उनके पिताजी का भी गांव में  डॉक्टर ना होने  के कारण छोटी उम्र में ही देहांत हो गया था। और ये घटना उन्हे आगे के जीवन के लिए दुख देती रही। इन सब चीजों को मद्देनज़र रखकर उन्होंने 1996 में भारत वापसी का निर्णय लिया और अपोलो अस्पताल में कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के इंचार्ज के रूप में कार्य करना शुरू किया।   Dr. Purshotam Lal: भारत सरकार ने बनाया डॉक्टर डॉ पुरुषोत्तम लाल  अपने डॉक्टर बनने का पूरा श्रेय भारत सरकार को देते हैं। वे कहते हैं कि किसी भी देश में ऐसा नहीं होता कि सरकार अपने खर्चे से आपको डॉक्टर बनाए। होनहार विद्यार्थी होने के कारण उन्हें स्कूल के समय से ही छात्रवृत्ति मिलने लगी थी जो मेडिकल की पड़ाई तक जारी रही। उनका कहना है कि छात्रवृत्ति की वजह से ही उन्हें पढ़ने में कोई रुकावट नहीं आई तथा वे मेडिकल तक की पढ़ाई बिना व्यवधान के पूरी कर पाए। उनके पिताजी स्वर्गीय श्री निरंजन लाल साइकिल पंचर ठीक करने की एक छोटी सी दुकान चलाते थे। जाहिर है की उनकी इतनी आमदनी नहीं होती थी कि बच्चों को उच्च शिक्षा दे पाये। लेकिन उनके बच्चों ने भी ठान लिया था कि उन्होने बहुत पढ़ना है और एक उज्जवल भविष्य बनाना है। डॉ. लाल कहते हैं कि उनका और उनके दोनों बड़े भाइयों का सपना था कि वे पढ़-लिख कर किसी तरह मास्टर बन जाएं। बाद में दोनों बड़े भाई इंजीनियरिंग में चले गए और भाइयों ने ही उन्हें मेडिकल में जाने का सुझाव दिया। वे बताते हैं कि सभी भाई पढ़ने में काफी मेहनती थे एवम हर कक्षा में प्रथम आते थे। इतना ही नहीं यहाँ तक की हर माह छात्रवृत्ति से पैसे बचा कर वे अपने पिता की मदद भी करने लगे। जालंधर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उन्हें सौ रूपये नेशनल स्कॉलर्शिप तथा साठ रूपये कॉलेज स्कॉलर्शिप मिलती थी जिसमे से काफी पैसे पिताजी को ही दे देते थे। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान भी यही सिलसिला जारी रहा।   बचपन की यादें अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए वे बताते हैं कि उन्हे लैम्प की रौशनी में पढ़ाई करनी पड़ती थी। जब लैम्प का शीशा टूट जाता था तो उस पर कागज की चिप्पियां लगाकर काम चलाना पड़ता था। अत्यधिक अभाव होने के बाद भी उन सबने कभी किसी कमी होने की शिकायत नहीं की। उनका बस एक ही लक्ष्य था की आगे बढ़ना है और कुछ कर दिखाना है। यही वजह है कि वे आज विश्व के जाने-माने हृदयरोग विशेषज्ञ है। सफलता प्राप्त करने में वे अपनी माता लाजवंती और पत्नी पूनम का काफी योगदान मानते हैं। उनके तीन बच्चे हैं। सबसे बड़ी बेटी सोनिया और दो छोटे बेटे सन्नी व साहिल हैं। एक हास्य पूर्वक बात ये है की डॉ. पुरुषोत्तम लाल  को खाने में वह सब पसंद है जिसे वे अपने पेशेंट को न खाने की हिदायत देते हैं। खाने के बारे में पूछने पर वे हंसते हुए कहते हैं कि “मैं अपने मरीजों को जो मना करता हूं वह सब खाता हूं। पंराठा व मलाई वाले दूध के बगैर मेरा काम नहीं चलता। हां, खाना बनाने का कभी समय नहीं मिलता।”   चिकित्सा को सेवा बनाया चिकित्सा के क्षेत्र में व्यवसायीकरण की बात पर वे कहते हैं कि इलाज के समय चिकित्सा किसी व्यवसाय के रूप मे उनके और मरीजों के बीच में ना आए इसी कारण वे किसी भी मरीज से अपने हाथ से पैसा नहीं लेते। उनका कहना है कि जब से वो डॉक्टर बने हैं उन्होंने किसी भी मरीज से अपने हाथ से पैसा नहीं लिया। अब सवाल यह है कि आजकल का इलाज और चिकित्सा के उपकरण इतने महंगे हो गए हैं कि बिना पैसे के इलाज़ मुमकिन नहीं है। इसके बावजूद भी उनकी कोशिश रहती है कि जरूरतमंद व्यक्ति की भी भरसक मदद हो जाए। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि जब वे अपोलो हॉस्पिटल मद्रास में थे तब उनके पास एक ऐसा मरीज आया जिसके पास मात्र 5 हजार रूपये थे। इतने कम पैसो में उसका लाखो का इलाज संभव ही नहीं था और न अस्पताल के मैनेजमेंट से उसके लिए शिफारिश की जा सकती थी। डॉक्टर साहब उस मरीज तथा उसके साथ आए एक व्यक्ति को अपने घर ले आए। सुबह 4 बजे उस मरीज का हार्ट का वाल्व जो बहुत तंग था उसको बिना कैथ लैब के ईको में ही एक नई तकनीक के साथ खोला जो कि पहले कभी इस्तेमाल मे नहीं लाई गई थी और नतीजतन मरीज का कैथ लैब का खर्चा बच गया और मरीज़ स्वस्थ होकर अपने घर गया। तब से वो इस तकनीक को दूसरे मरीजों में भी प्रयोग करने लगे। इस तरह से कई अक्षम लोगों की उन्होने मदद की है। डॉ. लाल 20 से भी अधिक नई तकनीकों को भारत में लेकर आए और उनमें से कई तो विश्व में पहली बार अभ्यास मे लाई गई थीं जैसे कि हार्ट के छेद को Monodisc से बंद करना और Core Valve से TAVI तकनीक का उपयोग। यहां तक की बहुत सारे देश जैसे कि जर्मनी, इटली, चाइना, अमेरिका इत्यादी ने डॉ. लाल को दुनिया की पहली तकनीक ‘TAVI‘ का प्रतिनिधित्व करने के लिए भी आमंत्रित किया। इसके अलावा अन्य और तकनीके जैसे कि हार्ट की बंद आरट्री को ड्रिल करना, स्टेंटिंग और हृदय के तंग वाल्व को खोलना इत्यादिए सारी तकनीकों को ना केवल अन्य चिकित्सको के बीच परिचित किया बल्कि इन तकनीकों के बारे में डॉ. लाल ने अपनी पहली पत्रिका भी प्रकाशित कि। मीडिया ने भी इन तकनीकों के बारे मे खूब लिखा। यहां तक की जर्मनी के Prof. Adnan Kastrati जो दुनिया में माने हुए कार्डियोलॉजिस्ट हैं उन्होंने डॉ. लाल को ‘Father of Interventional Cardiology in India’ की उपाधि दी। कुछ विश्वविद्यालयों ने इनको ‘Doctor of Science’ एवं ‘Professor of Cardiology’ की भी पदवी दी। [caption id="attachment_98645" align="aligncenter" width="1200"]Anmol Ratna Dr. Purshotam Lal - Chetna Manch Original Anmol Ratna Dr. Purshotam Lal - Chetna Manch Originals[/caption] Dr. Purshottam Lal: विवाह के दिन भी किया 8 घंटे काम डॉ. पुरुषोत्तम लाल  की व्यस्तता का आलम यह है कि अपनी शादी के दिन भी उन्हें 8 घंटे तक काम करना पड़ा था। शिकागो में उनकी शादी के दौरान अचानक बीपर पर मेसेज आने के कारण उनको इमरजेंसी में जाना पड़ा। वे अपनी पत्नी के इसलिए भी शुक्रगुज़ार हैं कि उन्होंने डॉ लाल की व्यस्तता की वजह से कभी परिवार में तनाव नहीं आने दिया। अभी भी 68 वर्ष की उम्र में भी वो 8 से 9 घंटे मरीजों की देखभाल में लगे रहते हैं। पत्नी पूनम अर्थशास्त्र में एम.ए. हैं तथा अमेरिका से एम.बी.ए. भी करके आईं है। उनके एम.बी.ए. होने का लाभ डॉ. लाल को मिला भी है। रोजाना काफी वक़्त वे अस्पताल में व्यतीत कर अस्पताल के प्रबंधन में साथ देती हैं। डॉ. लाल अपने पिता को ही अपना आदर्श मानते हैं तथा उनकी ईमानदारी और मेहनत की सीख को उन्होने अपनाया है। चिकित्सा के क्षेत्र में आनेवाले युवा लोगों के लिए उनकी सलाह है कि इलाज के दौरान परमात्मा को ध्यान में रख कर प्रार्थना करनी चाहिए कि उन्हे ऐसी शक्ति दें की वह सफलतापूर्वक इलाज कर सके। इसके अलावा किसी भी मरीज को अगर अपने ही परिवार का सदस्य मानकर इलाज किया जाए तो शत प्रतिशत सफलता तय है। जब कोविड बुरी तरह फैला हुआ था तो काफी डॉक्टर हार्ट अटैक वाले मरीजों का इलाज करने में घबराते थे लेकिन उन्होंने सभी ऐसे मरीजों का ऑपरेशन किया भले ही वे खुद कोविड से दो बार ग्रस्त हुए जिसकी उनको बिल्कुल भी चिंता नहीं थी। चिकित्सा के क्षेत्र में बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा को वे गंभीरता से नहीं लते। उनका कहना है कि प्रोपेगेण्डा करना और कमीशन लेना या देना उनके सिद्धांतो के खिलाफ है। वे कहते हैं कि हम सिर्फ अच्छा काम करते हैं और इसी दम पर आगे बढ़ना चाहते हैं। उनके पास जो भी मरीज आते हैं उनके उत्तम काम के बारे में सुनकर ही आते हैं। वह कहते है कि “हार्ट का इलाज कराने वाले किसी मरीज को 25-50 हजार की बचत से कोई मतलब नहीं होता। वह जब भी आएंगे हमारा काम देख कर ही आएंगे और मैं अपने काम को पूजा की तरह पूरा मन लगाकर करता हूं।”   ग्रामीण स्वास्थ्य (Rural Health) जैसा की उन्होने बताया की डॉक्टर की अनुपलब्धता के कारण उनके पिता 40 साल की उम्र में गांव में ही गुज़र गए जिससे उनके मन में बहुत ठेस पहुंची और उन्होंने गांव में डॉक्टर को लाने के लिए बहुत शोध किया और एक 3 प्वाइंट फार्मूला बनाया। उसको लागू करने के लिए उन्होंने बतौर बोर्ड ऑफ गवर्नर मेडिकल काउंसिल को जॉइन किया और मेडिकल एडुकेशन सिस्टम को ऐसा बनाने का प्रयास किया कि कोई भी स्पेशलिस्ट गांव जाने में संकोच न करें लेकिन दुर्भाग्यवश वो इसमें सफल नहीं हो पाए क्योंकि भारत में कोई नया सिस्टम शुरू करना इतना आसान नहीं होता।   मैट्रो अस्पताल समूह डॉ. पुरुषोत्तम लाल  ने नोएडा के सेक्टर-12 में सभी आधुनिक उपकरणों से युक्त हृदय रोगो के लिए मैट्रो अस्पताल खोला हुआ है। साथ ही नोएडा के ही सेक्टर-11 में एक मल्टीस्पेशलिटी मैट्रो अस्पताल भी है। इस प्रकार उनके कई अस्पताल प्रीत विहार, पांडव नगर, दिल्ली, मेरठ, वड़ोदरा, रेवाड़ी, जयपुर, सिडकुल, हरिद्वार तथा फरीदाबाद में भी स्थापित हैं। अक्सर मैट्रो हॉस्पिटल में अंतिम दौर से गुजर रहे मरीज आते हैं और कई बार तो ऐसा भी होता है कि सभी जगह से निराश होकर आए मरीज यहां आकर नया जीवन पाते है। डॉ. लाल की मेहनत और अनुभव का ही नतीजा है कि उनके अस्पतालों मे दर्जनों ऐसे प्रयोग हुए हैं, जो सिर्फ भारत में पहली बार हुये है और विश्व मे प्रथम स्थान प्राप्त करते हैं। यही वजह है कि डॉ. लाल का नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्डस में शामिल है और शीघ्र ही गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्डस में भी शामिल होने वाला है।   Heart Specialist Dr. Purshotam Lal: सम्मान व पुरस्कार डॉ. पुरुषोत्तम लाल  को अब तक तीन दर्जन से अधिक राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय सम्मान व पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका हैं। भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिए जाने वाले सर्वाधिक तीन प्रतिष्ठित सम्मान उन्हें प्राप्त हुए हैं। वर्ष 2003 में पद्मभूषण , वर्ष 2004 मे डॉ.बी.सी. रॉय नेशनल अवार्ड अथवा वर्ष 2009 में  पद्मविभूषण से डॉक्टर साहब को नवाजा जा चुका है। डॉ. पुरुषोत्तम लाल आज दुनिया भर मे पहचाने जाते है और किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। [caption id="attachment_98646" align="aligncenter" width="773"]Anmol Ratna Dr. Purshotam Lal - Chetna Manch Original Anmol Ratna Dr. Purshotam Lal - Chetna Manch Originals[/caption]