सॉंग अथवा स्वाँग  (DRAMA) में लडक़े बनते थे लडक़ी

Ayushmann Khurrana loved the story and immediately agreed to be part of the film says Raaj Shaandilyaa on his character Pooja in Dream Girl 354x199 1
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 03:03 PM
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सॉंग अथवा स्वाँग जिसे अंग्रेजी में DRAMA  भी कहते हैं। यह एक भारतीय पुरातन कला है। इन दिनों यह कला धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। 19वीं शताब्दी में उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों खासतौर से हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सॉंग बेहद लोकप्रिय थे। इस कला को लोकप्रियता की बुलंदियों तक प्रसिद्ध लोक कलाकार व सांगी पंडित लखमीचंद (Pandit Lakhimchand) ने पहुंचाया था। पंडित लखमीचंद हरियाणवी भाषा के प्रसिद्ध कवि व लोक कलाकार थे। उन्होंने अपने 42 वर्ष के जीवन में 100 से भी अधिक किस्सों व कहानियों को सॉंग के रूप में प्रस्तुत किया। उन किस्सों में गाई व बनाई गयी उनकी रागनी आज भी पूरे उत्तर भारत में गाई व सुनी जाती है। सांग के द्वारा किसी पौराणिक किस्से अथवा कहानी को ड्रामे के रूप में स्टेज पर दर्शाया जाता था । उस प्रस्तुति में लड़कियों व महिलाओं के किरदार भी लडक़े व पुरूष ही निभाते थे। वे लडक़े लड़कियों का ऐसा श्रृंगार करते थे कि उन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता था।

सॉंग के लिए गांव के बीच किसी खुले स्थान को चुना जाता था। वहीं पर बुग्गी (भैंसा-बुग्गी) से स्टेज तैयार किया जाता था। उस स्टेज के बीचोंबीच वादय यंत्र बजाने वाले कलाकार बैठते थे। उन कलाकारों के चारों तरफ घूम-घूमकर अभिनय करने वाले कलाकार अपने अभिनय कौशल से हजारों की संख्या में एकत्र ग्रामीणों का भरपूर मनोरंजन करते थे। पंडित लखमीचंद के बाद उनके शिष्य पंडित मांगेराम भी प्रसिद्ध सॉंगी हुए। इसके साथ ही चन्द्र बादी, कच्चा श्याम व जाट मेहर सिंह, बाजे भगत एवं दयाचन्द मैयना जैसे सॉंगी प्रसिद्ध हुए हैं।

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Political News: भाजपा हाईकमान हुआ नाराज

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar27 Nov 2025 02:52 AM
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राष्ट्रीय ब्यूरो। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार वैसे तो दबाव में फैसला न लेने के लिए जानी जाती है। लेकिन लखीमपुर खीरी मामले में वह बैकफुट है। माना जा रहा है कि किसान आंदोलन व विपक्ष के विरोध को थामने के लिए किसी भी समय केंद्रीय मंत्रिपरिषद से गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी की छुट्टी हो सकती है।

सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक,भाजपा हाईकमान अब टेनी का और ज्यादा बचाव करने के पक्ष में नहीं है। साथ ही उन्हें यह संकेत भी दिया जा रहा है कि अब गद्दी छोड़ दें। जिसे  टेनी शायद समझ नहीं पा रहे हैं या समझना नहीं चाहते। बतादें कि उनके बेटे के साथ क्राइम ब्रांच की पुछताझ के दिन जिस तरह टेनी पार्टी आफिस में दिन भर बैठे रहे और समर्थक बेटे आशीष मिश्र के पक्ष में नारेबाजी करते रहे,इससे उनके प्रति हाईकमान की रही-सही सहानुभूति भी जाती रही।

सूत्र बताते हैं कि शीर्ष नेतृत्व की भृकुटि टेढ़ी हो गई है। इसका संकेत यह कहते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दे दिया कि अनुशासनहीनता के खिलाफ पार्टी किसी से भी समझौता नहीं करेगी। जो भी दोषी होगा,उसे सजा मिलेगा। रही-सही कसर उत्तरप्रदेश प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव ने पूरी कर दी। उन्होंने कहाकि नेतागिरी का मतलब फॉच्यूनर से कुचलना नहीं होता है। इस बीच गृह राज्यमंत्री टेनी को हटाने की मांग लगातार जोर पकड़ती जा रही है। टेनी के त्यागपत्र की मांग को लेकर तकरीबन सारे विपक्षी दल एक साथ आ गए हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी इसे सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया और वे लगातार हमलावर हैं। महाराष्ट्र में भी टेनी की केंद्रीय मंत्रिपरिषद से बर्खास्तगी को लेकर आज महाअघाड़ी ने बंद का आयोजन कर रखा है। वहीं किसान संगठन भी अजय मिश्र टेनी के इस्तीफे से कम पर आंदोलन रोकने के लिए राजी नहीं हैं। ऐसे में भाजपा हाईकमान के रुख को देखते हुए संकेत साफ मिल रहे हैँ कि या तो टेनी खुद त्यागपत्र दे देगें अथवा उनकी बर्खास्तगी हो जाएगी।

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क्या ख़तरे में गीता प्रेस ???

Geeta Press
locationभारत
userचेतना मंच
calendar11 Oct 2021 10:51 AM
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रवि अरोड़ा

आज सुबह व्हाट्स एप पर किसी ने मैसेज भेजा कि हिंदुओं बाबा का ढाबा तो तुमने प्रचार करके चला दिया । बंद हो रही गीता प्रेस के लिए ऐसा कुछ क्यों नहीं करते ? याद आया कि साल भर पहले भी गीता प्रेस संबंधी ऐसे मैसेज खूब आए थे और फिर अचानक बंद भी हो गए । अर्से बाद फिर इन्हें शुरू किया गया है । अब ऐसे मैसेज कौन शुरू करता है और क्यों करता है , यह तो मुझे नही पता मगर इतना जरूर पता है कि कम से कम अभी कुछ दशक तक तो गीता प्रेस जैसी किसी संस्था को कोई खतरा नही है । आगे की ऊपर वाला जाने ।

बचपन में जब कभी रेलगाड़ी का सफर करने का मौका मिलता और ट्रेन के आने में अभी समय होता तो समय काटने के लिए बुक स्टॉल से बेहतर कोई जगह नहीं दिखती थी । तब भी सैंकड़ों किताबों के बीच गीता प्रेस की हिंदू दर्शन संबंधी किताबें दूर से ही नजर आती थीं । लोगों की रुचि कहिए अथवा इन किताबों की सस्ती कीमत , ये बिकती भी खूब थीं । बाद में भारतीय दर्शन में गहरी रुचि होने के कारण मैं भी गीता प्रेस की किताबें खरीदने लगा । यही नहीं एक बार गोरखपुर गया तो गीता प्रेस के परिसर में चक्कर भी लगा आया । जानकर हैरानी हुई थी कि गीता प्रेस लागत से भी आधी कीमत पर अपनी किताबें बेचती है और बावजूद इसके अब तक साठ करोड़ से अधिक किताबें बेच भी चुकी है । इनमें अकेले गीता की ही बारह करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं । आज भी यह प्रेस पचास हजार से अधिक किताबें रोज़ाना छापती है । वहां जाकर ही पता चला था कि सन 1923 में राजस्थान के एक सेठ जय दयाल गोयन्दका ने इसे शुरू किया था और यह प्रेस उन्हीं की नीति के अनुरूप न तो कोई विज्ञापन लेती है और वहां न ही कोई अनुदान स्वीकार किया जाता है । किताबों की छपाई में हुए नुकसान की भरपाई यह प्रेस अपने औषधालय और कपड़े के व्यापार से पूरा करती है । गीता प्रेस की किताबें पन्द्रह भाषाओं में छपती हैं और इसकी पत्रिका कल्याण के वार्षिक ग्राहक भी ढाई लाख से अधिक हैं । रोचक तथ्य यह है कि पिछली बार जब गीता प्रेस के बंद होने के समाचार सोशल मीडिया पर छाए तो खैरख्वाह लोगों ने बिना मांगे ही प्रेस के बैंक खाते में रुपए ट्रांसफर करने शुरू कर दिए । चूंकि अनुदान लेने की पॉलिसी गीता प्रेस की नहीं है अतः उसने तंग आकर एलान किया कि कृपया हमें पैसे न भेंजे । लोग बाग फिर भी नहीं माने तो प्रेस को अपना वह बैंक खाता ही ब्लॉक करना पड़ा ।

गीता प्रेस की किताबों के आप पक्षधर हों , यह जरूरी नहीं । उसकी सभी किताबें पठनीय हैं , ऐसा मैं भी नहीं मानता । पुरातन भारतीय परंपराओं को पुनर्जीवित करने के मोह में उसने बहुत कुछ कूड़ा भी छापा है । स्त्रियों के प्रति हेय नजरिए और मनुवादी सोच वाली ये किताबें आने वाले समय में गीता प्रेस के लिए अवश्य ही मुसीबत बनेंगी । सच कहूं तो गीता प्रेस ही नही ऐसी तमाम संस्थाएं एक खास किस्म के खतरे में हैं और यह खतरा है बुद्धिमता के विरोध यानि एंटी इंटेलेक्टुइज्म का । बेशक अब धर्म कर्म का दिखावा बढ़ा है मगर धर्म संबंधी ज्ञान खतरे में है । गूढ़ बातें किसी को नहीं सुहातीं । वैसे भी जब कलावा बांधने, टीका लगा लेने, जल चढ़ाने और मंगल वार को गुलदाने का प्रसाद बांटने भर से ही काम चल जाता हो तो वेद, पुराण उप निषादों में कौन दिमाग खपाये । सयाने कहते भी तो हैं कि गाड़ी जिस और जा रही हो , मुंह उधर करके बैठना चाहिए । अब यह तो सत्य है कि गाड़ी कम से कम उधर तो नहीं जा रही , जिधर गीता प्रेस वाले लोग ले जाना चाह रहे हैं ।