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बड़ा मुद्दा : उत्तर प्रदेश में भी समाप्त होगा मुस्लिम समाज का ओबीसी आरक्षण

CM Yogi On Muslim Reservation

CM Yogi On Muslim Reservation

CM Yogi On Muslim Reservation : उत्तर प्रदेश में एक बहुत बड़ा मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। बड़ा मुद्दा यह है कि क्या पश्चिम बंगाल की तरह से ही उत्तर प्रदेश में भी मुस्लिम समाज का ओबीसी आरक्षण समाप्त हो जाएगा? उत्तर प्रदेश का प्रत्येक खास तथा आम व्यक्ति यह सवाल पूछ रहा है कि क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समाज का ओबीसी आरक्षण समाप्त करने की पहल करेंगे?

उत्तर प्रदेश के CM योगी ने किया है समर्थन

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के CM योगी ने पश्चिम बंगाल में मुस्लिम समाज के ओबीसी आरक्षण को समाप्त करने का स्वागत किया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा मुस्लिम समाज को ओबीसी आरक्षण समाप्त करने के फैसले का स्वागत करने के बाद से पूरे उत्तर प्रदेश में ओबीसी आरक्षण एक प्रमुख मुद्दा बन गया है। उत्तर प्रदेश के राजनेता हों, उत्तर प्रदेश में काम करने वाले पत्रकार हों अथवा उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारी हर कोई मुस्लिम ओबीसी आरक्षण की बात कर रहा है। ज्यादातर विश्लेषकों का मत है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समाज का ओबीसी आरक्षण समाप्त करने का बड़ा फैसला किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में मुद्दा बन चुके मुस्लिम समाज के ओबीसी आरक्षण की पूरी कहानी को भी हम आपको विस्तार से समझा देते हैं।

ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द होने से मचा सियासी घमासान

दरअसल हाल ही में कोलकाता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में वर्ष 2010 से कई वर्गों को दिया गया। ओबीसी का दर्जा निरस्त करते हुए कहा कि “मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़ा वर्ग श्रेणीकी सूची में शामिल करना उनके साथ वोट बैंक की तरह बर्ताव करना है।” कोर्ट ने राज्य में सेवाओं व पदों पर रिक्तियों में मुसलमानों के 77 वर्गों के लिए किए गए ओबीसी आरक्षण को अवैध करार देते हुए कहा कि इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए वास्तव में धर्म ही एकमात्र मानदंड प्रतीत होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ओबीसी के यह सर्टिफिकेट बिना किसी नियम का पालन किये जारी किए गए थे। कोलकाता हाई कोर्ट के इस फैसले की वजह से लगभग 5 लाख लोगों के ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द हो गए हैं ।इनमें से ज्यादातर लोग मुसलमान है। इस सूची में 77 कैटेगरी के तहत ओबीसी सर्टिफिकेट बांटे गए थे जिसमें से अधिकांश मुस्लिम समुदाय से हैं।

पश्चिम बंगाल राज्य सरकार की आलोचना करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि”ओबीसी के तहत 77 नई कैटेगरी जोड़ी गई और ऐसा सिर्फ राजनैतिक फायदे के लिए किया गया ऐसा करना न सिर्फ संविधान का उल्लंघन है बल्कि मुस्लिम समुदाय का भी अपमान है।”कोलकाता उच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि ओबीसी सर्टिफिकेट रद्द  होने का उन लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जो इन ओबीसी सर्टिफिकेट के आधार पर पूर्व में ही किसी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश पा चुके हैं अथवा इन ओबीसी सर्टिफिकेट के आधार पर किसी सेवा में प्रवेश कर चुके हैं अथवा अन्य किसी प्रकार का लाभ प्राप्त कर चुके हैं। उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार के पिछड़ी जाति से संबंधित कानून 2012 को रद्द कर दिया इस कानून की धारा 16 सरकार को पिछड़ी जातियों से संबंधित सूची में परिवर्तन की अनुमति देती है।

पश्चिम बंगाल में मुसलमान को ओबीसी आरक्षण के दायरे में वामपंथी सरकार लेकर आई थी फिर 2011 में ममता बनर्जी कीतृणमूल कांग्रेस सत्ता में आई। 2010 से 11 में ओबीसी आरक्षण 7 प्रतिशत से बढक़र 17 प्रतिशत किया गया और इसमें 77 नई जातियां शामिल की गई। इस प्रकार कुल मुस्लिम आबादी की 92 प्रतिशत जनसंख्या आरक्षण के दायरे में आ गई। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण के तहत कुल 179 जातियां हैं जिसमें से 118 जातियां मुसलमानों की है। पश्चिम बंगाल की आबादी में मुस्लिम आबादी कुल 27 प्रतिशत है। कोलकाता उच्च न्यायालय के आदेश के बाद पश्चिम बंगाल में आरक्षण का मामला राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है।

क्या होता है ओबीसी आरक्षण?

ओबीसी का अर्थ है Other Backward Classes अर्थात अन्य पिछड़ा वर्ग। भारत में स्वतंत्रता के बाद प्रारंभ में आरक्षण केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए ही प्रदान किया गया था । वर्ष 1991 में मंडल आयोग की सिफारिश के आधार पर ओबीसी को आरक्षण के दायरे में शामिल किया गया। संविधान के अनुच्छेद 340 द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारत के राष्ट्रपति ने दिसंबर 1978 में बीपी मंडल की अध्यक्षता में पिछड़ा वर्ग आयोग की नियुक्ति की। इस आयोग की नियुक्ति का उद्देश्य भारत में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करने के लिए मानदंड निर्धारित करने और उन वर्गों की उन्नति के लिए उठाए जाने वाले कदमों  की सिफारिश करने के लिए किया गया था। मंडल आयोग ने यह निष्कर्ष निकाला कि भारत की जनसंख्या में लगभग 52 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग है इसलिए 27 प्रतिशत सरकारी नौकरियां उनके लिए आरक्षित की जानी चाहिए। मंडल आयोग ने हिंदुओं में पिछड़े वर्गों की पहचान करने के अलावा अन्य धार्मिक समुदायों जैसे मुस्लिम, सिख, ईसाई और बौद्ध में भी पिछड़े वर्गों की पहचान की है। इन पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए आयोग द्वारा 11  संकेतक विकसित किए गए हैं।

कोलकाता उच्च न्यायालय  के फैसले की आलोचना करते हुए राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि “मैं यह फैसला नहीं मानती। राज्य में ओबीसी तबके के लोगों को आरक्षण मिलता रहेगा। मैं आखिर तक यह लड़ाई लडूंगी। सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा “तृणमूल और कांग्रेस दोनों ही तुष्टिकरण की राजनीति कर रही हैं जिस पर लगाम लगाना जरूरी है”।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने किया स्वागत

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि कोलकाता हाई कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण नहीं बल्कि मुस्लिम आरक्षण को लेकर जो अपना फैसला दिया वह स्वागत योग्य है। उन्होंने कहा भारत का संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता। पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार ने राजनीतिक तुष्टिकरण की पराकाष्ठा पर चलते हुए 2010 में 118 मुस्लिम जातियों को जबरन ओबीसी में घुसेडकर उन्हें यह आरक्षण दिया था यानी यह जातियां ओबीसी का हक जबरन हड़प रही थी। इसी असंवैधानिक कृत्य पर कोलकाता हाई कोर्ट ने टीएमसी सरकार के फैसले को पलटा है और एक जोरदार तमाचा मारा है। यह कार्य असंवैधानिक था और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस बयान के बाद उत्तर प्रदेश में सुगबुगाहट है कि क्या प्रदेश की ओबीसी सूची में शामिल मुस्लिम जातियों की समीक्षा हो सकती है उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत कुल 79 जातियां हैं जिनमें से 24मुस्लिम जातियां हैं।

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