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शाबाश डी.के. बालियान, फर्ज के लिए नहीं झुके बड़े से बड़े लालच के सामने

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UP News : उत्तर प्रदेश पुलिस में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात रहे एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी की खूब चर्चा हो रही है। उत्तर प्रदेश पुलिस के इस जांबाज अधिकारी का नाम दुष्यंत कुमार बालियान उर्फ डी.के. बालियान है। डी.के. बालियान अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। एक बहुत बड़े मामले में अदालत का आदेश आने के बाद हर कोई बोल रहा है कि शाबाश डी.के. बालियान।

उत्तर प्रदेश की एक अदालत के फैसले से जुड़ा है मामला

उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड पुलिस अधिकारी डी.के. बालियान को शाबाशी मिलने का मामला एक अदालती फैसले से जुड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले की एक अदालत ने एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। उत्तर प्रदेश की इस अदालत ने 5 अगस्त को हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई है। अब हर कोई यही बोल रहा है कि यदि इस केस के जांच अधिकारी डी.के. बालियान नहीं होते तो हत्यारे साफ-साफ बच जाते। डी.के. बालियान की इस केस की जांच के दौरान बड़े से बड़े लालच दिए गए थे। फर्ज के सामने डी.के. बालियान ने कभी समझौता नहीं किया था। भला फिर इस मामले में किसी लालच के सामने कैसे झुक सकते थे।

उत्तर प्रदेश के मेरठ में हुआ था सनसनीखेज हत्याकांड

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के मेरठ में गुदडी बाजार नाम का एक प्रसिद्ध मार्किट है। इसी गुदड़ी बाजार में 22 मई 2008 की रात वो हुआ, जिसे याद कर इस इलाके के लोगों का कलेजा आज भी कांप जाता है। रात के अंधेरे में एक घर के अंदर से चीखें सुनाई दे रही थीं। गोलियां चलने की आवाज भी गूंजी, लेकिन पूरा इलाका खामोश रहा। डर और खौफ ऐसा था कि किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वो पुलिस को एक फोन तक कर सके। रात का अंधेरा छंटा तो सूरज की रोशनी में उसी घर से खून की धार बाहर तक बहती हुई नजर आई।

ये घर था उस वक्त के दिग्गज मीट कारोबारी इजलाल कुरैशी का, जिसने अपने घर के अंदर तीन लोगों के साथ रातभर मौत का खेल खेला। सुनील ढाका, पुनीत गिरी और सुधीर उज्जवल को उसने बातचीत के लिए अपने घर बुलाया और बेरहमी के साथ उनका कत्ल कर दिया। कत्ल के पीछे वजह थी उसकी गर्लफ्रेंड शीबा, जो अक्सर इजलाल को इन तीनों के दिमाग ठिकाने लगाने के लिए उकसाती थी। इस मामले में उत्तर प्रदेश की मेरठ कोर्ट ने 5 अगस्त 2024 को शीबा और इजलाल सहित 10 लोगों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। हर कोई यही बोल रहा है कि दोषियों को जेल की सलाखों तक लाना आसान नहीं था। अगर इस केस की जांच उस समय के उत्तर प्रदेश पुलिस के इंस्पेक्टर दुष्यंत कुमार बालियान (डीके बालियान) के हाथ में ना होती, तो शायद आज फैसला कुछ और होता।

कोई जबान नहीं खोलता था UP News

इस विषय में बात करने पर डीके बालियान बताते हैं कि इजलाल कुरैशी का नाम वेस्ट यूपी के टॉप मीट कारोबारियों में शामिल था। उसके चचेरे भाई हाजी शाहिद अखलाक उस समय मेरठ सीट से लोकसभा सांसद थे। राजनीतिक रसूख, बेहिसाब दौलत और बेशुमार ताकत के मालिक इजलाल कुरैशी के खिलाफ बोलने की हिम्मत किसी के अंदर नहीं थी। तीनों लाशें बागपत में मिली थी, इसलिए मुकदमा भी उत्तर प्रदेश के बागपत में ही दर्ज हुआ। बाद में केस मेरठ की कोतवाली में ट्रांसफर हो गया। मामले की गंभीरता को देखते हुए उस समय के एसएसपी आलोक सिंह ने इस केस की जांच सदर बाजार थाने के इंस्पेक्टर डीके बालियान को सौंपी। तब तक पूरे मेरठ में इस हत्याकांड की खबर फैल चुकी थी। यह इत्तेफाक ही था कि डीके बालियान की पोस्टिंग बुलंदशहर में थी और कुछ दिन पहले ही मेरठ जोन के आईजी वीके गुप्ता ने उन्हें कोतवाली में अटैच किया था। दरअसल, ये उस दौर की बात है जब मेरठ के सोती गंज इलाके में बाहर से चोरी की गाडय़िां लाकर काटी जाती थीं। ये इलाका कोतवाली क्षेत्र के अंतर्गत आता था।

चूंकि डीके बालियान की छवि तेज तर्रार ऑफिसर के तौर पर थी इसलिए इन वारदातों पर लगाम लगाने के लिए ही आईजी ने उन्हें मेरठ की कोतवाली में अटैच कर दिया। 25 मई को डीके बालियान ने जैसे ही गुदड़ी बाजार इलाके में हुए हत्याकांड की जांच संभाली, उन्हें केस को कमजोर करने के लिए रुपयों के ऑफर आने लगे। डीके बालियान ने बताया कि कुछ दिन बाद उनके पास कुछ वकील आए और कहा कि उन्हें जितना पैसा चाहिए, उतना मिलेगा। आप केवल मुंह खोलिए, लेकिन चार्जशीट से तीन नाम हटा दीजिए। डीके बालियान ने ऐसा करने से साफ-साफ मना कर दिया। बालियान ने कहा कि उन्होंने इतना वीभत्स हत्याकांड अपने जीवन में कभी नहीं देखा और वो दोषियों को सजा दिलाकर रहेंगे। वकील लौट गए लेकिन अब बालियान को केस से हटाने की कोशिशें शुरू हो गईं। उनके खिलाफ लखनऊ रिपोर्ट भेजी गई कि डीके बालियान मुजफ्फरनगर के निवासी हैं और ऐसे में बार्डर से सटे मेरठ जिले में उनकी तैनाती नियमों के खिलाफ है। कुछ दिन बाद ही डीके बालियान का ट्रांसफर कानपुर कर दिया गया।

डीके बालियान के समर्थन में उतर आया था पूरा मेरठ

हालांकि, तब तक पूरे मेरठ को पता चल चुका था कि डीके बालियान का ट्रांसफर साजिश के तहत कराया गया है। मेरठ के लोग बालियान के समर्थन में सडक़ों पर उतर आए। तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह ने मामले पर संज्ञान लिया और चार दिन के भीतर ही डीके बालियान का ट्रांसफर रद्द कर, उन्हें वापस इस केस की जांच के लिए मेरठ भेज दिया गया। जांच में ये भी सामने आया कि उस दौरान डीके बालियान की पोस्टिंग गाजियाबाद में थी और उन्हें मेरठ में केवल कोतवाली से अटैच किया गया था, इसलिए सबकुछ नियमों के मुताबिक था। डीके बालियान वापस लौटे और एक बार फिर केस अपने हाथ में ले लिया। मामले में सबूत जुटाने के बाद उन्होंने इजलाल कुरैशी और उसकी गर्लफ्रेंड शीबा सिरोही सहित 14 लोगों के खिलाफ चार्जशीट फाइल कर दी।

इधर वादी पक्ष को जैसे ही पता चला कि आरोपी अपने रसूख का इस्तेमाल केस को प्रभावित करने के लिए कर रहे हैं, वो सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की हर दिन सुनवाई का आदेश दिया। बालियान बताते हैं कि आरोपियों की तरफ से मुकदमे की पैरवी के लिए 30-35 वकीलों की एक पूरी फौज उतारी गई थी। हालांकि, 16 साल बाद मामले में इंसाफ हुआ। कोर्ट ने डीके बालियान की जांच और सबूतों पर अपना फैसला सुनाते हुए सोमवार को 10 आरोपियों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। डीके बालियान फिलहाल सीओ के पद से रिटायर हो चुके हैं। उन्हें संतोष है कि आखिरकार दोषियों को उनके गुनाहों की सजा मिल गई। UP News

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