Election 2022 : विधानसभा चुनाव (Election 2022) की सरगर्मियां चल रही है। सभी प्रत्याशी अपने अपने तरीके से मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं। लेकिन एक गांव ऐसा भी है, जहां के मतदाता किसी भी प्रत्याशी के लुभावने वायदों की गिरफ्त में नहीं आते हैं। इस गांव के सभी मतदाताओं ने इस विधानसभा चुनाव में केवल नोटा (NOTA) का प्रयोग करने का मन बनाया है। यानि कि उनके लिए कोई भी प्रत्याशी योग्य नहीं है।
यह गांव आम खड़क के नाम से मशहूर है और इसी नाम की विधानसभा सीट भी है। यह गांव उत्तराखंड राज्य के चंपावत जनपद में आता है। इस क्षेत्र के लोग सभी नेताओं से निराश हो चुके हैं। यहां के ग्रामीणों की सबसे पुरानी मांग रही है पिथौरागढ़ लिंक रोड की। लंबे समय से लंबित मांग को पूरा करने में प्रशासन की विफलता से निराश ग्रामीणों ने आगामी में नोटा के लिए मतदान करने का फैसला किया है।
इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी की कमी के चलते पहले ही लगभग 65 फीसदी निवासी गांव छोड़ने के लिए मजबूर हो चुके हैं। आम खड़क के ग्रामीणों का कहना है कि वे वर्ष 2007 से 1,500 मीटर लिंक रोड की मांग कर रहे हैं। हालांकि, प्रस्तावित परियोजना को जिला योजना में शामिल किया गया था, लेकिन यह आज तक काम नहीं हुआ। यदि लिंक रोड का निर्माण किया जाता है, तो यह गांव को टनकपुर-चंपावत राजमार्ग से जोड़ेगी और उनकी कई चिंताओं का समाधान करेगी। अब तक सिर्फ आश्वासन स्थानीय लोगों का कहना है कि जब भी चुनाव नजदीक आते हैं, हमें राजनीतिक दलों के नेताओं से आश्वासन मिलता है कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो सड़क का निर्माण करवाएंगे। लेकिन चुनाव के बाद वे हमें भूल जाते हैं। हमारे पास इस बार नोटा का सहारा लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
लोगों का कहना है कि स्वतंत्रता सेनानियों का गांव होने के बावजूद आम खड़क शिक्षा, चिकित्सा और बैंकिंग सुविधाओं से रहित है। गांव के निवासी और स्वतंत्र सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के जिला अध्यक्ष महेश चौराकोटी ने कहा कि सड़क के अभाव में ग्रामीणों को मामूली चिकित्सा सहायता के लिए टनकपुर और स्कूली शिक्षा के लिए श्यामलताल पहुंचने के लिए लगभग 5 किमी की यात्रा करनी पड़ती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सड़क और बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण 65 फीसदी से अधिक ग्रामीण गांव से पलायन कर गए हैं। राज्य के गठन से पहले कुल 71 परिवारों में से केवल 25 ही बचे हैं। लिंक रोड नहीं होने के कारण अधिकारी या निचले स्तर के सरकारी कर्मचारी और तकनीशियन गांव का दौरा करने से हिचकिचाते हैं। नतीजतन, छोटी से छोटी खराबी को भी ठीक होने में लंबा समय लग जाता है।अगर बिजली आपूर्ति में थोड़ी सी भी खराबी आती है, तो उसे ठीक करने के लिए हमें एक तकनीशियन के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है।