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होली तो हमने खेली है, अब कैसी होली ?

HOLI-2024

HOLI-2024

Holi 2024 :  जी हां 25 मार्च-2024 को होली(Holi) का त्यौहार है। होली का महापर्व मनाने तथा होली खेलने की खूब तैयारियां चल रही हैं। ऐसे में घर के बड़े बुजुर्गों का खूब कहते हुए सुना जाता है कि “अरे होली तो हमने खेली थी, अब कैसी होली?” बड़े बुजुर्गों की इस बात में काफी दम है। वास्तव में अब होली के त्यौहार का पूरा मजा ही बदल गया है या यूं कहें कि होली का मजा अब बचा ही नहीं है। जरा जान लीजिए कैसी होती थी असली होली।

वह थी असली होली

होली फिर आ गई है । कृष्ण कन्हैया (Krishna Kanhaiya) व राधा की रासलीलाओं की पावन भूमि ब्रज में गोप गोपियों के बीच जोर आजमाइश चालू हो गई है। लठ मार होली के शौकीन हुरियारे व ब्रजबालाएं हुड़दंग मचा रहे हैं। पर यह तो है ब्रजभूमि की होली ।हमारे बचपन में हमारे गांव मोहल्ले में तो होली का जो रूप हमने देखा है वैसी होली अब कहां? होलिका दहन के पूर्व ही गांव मोहल्लों की युवा शक्ति पूरे मोहल्ले में तांक-झांक करके यह तय करती थी कि होलिका दहन में किसका दरवाजा किसका तख्त या बुग्गी ठेली को होली में स्वाहा करना है। गृह स्वामी जब अपने गन्ने पर नवान्न ,गेहूं ,जौ चने की बालियां बांधकर होली पूजन के लिए जाता था तो होलिका का तो पता नहीं उसका कलेजा जरूर भक्क से जल उठता था हाय मेरा तखत हाय मेरी बुग्गी या फिर हाय मेरा दरवाजा ।पर अब हो क्या सकता था ।एक तरफ मां बहन की गालियों का पूरा शब्दकोश खाली करके कलेजे की आग को ठंडा करता बुजुर्ग गृह स्वामी दूसरी ओर नाचती गाती चिढ़ाती ही- ही ठी ठी करती मोहल्ले के पप्पूओं गुड्डूओं,राजुओं कल्लुओं की फौज ।

Holi 2024

दिन वाली होली

यह तो हुई रात की बात, पर यह मत समझना कि रात गई और बात गई ।सुबह सो कर उठते ही पता चलता था कि फला चाचा-ताऊ के घर के आगे कांड हो गया। किसी ने उनके चौबारे पर हंडिया फुड़वा दी है। हंडिया में होता क्या था शुद्ध निखालिस मानव विष्ठा(मानव मल )। इससे पहले कि मोहल्ले में रंगों की फुहार शुरू हो,  उस चाचा ताऊ की गलियों की बौछार  शुरू हो जाती थी, पर क्या मजाल की फुड़वाने वाले का कोई सुराग मिले या उसकी सेहत पर कोई असर हो। एक ने हांडी कांड करके अपने मन का मैल निकाला और दूसरे ने गलियों की बौछार करके।

गांव मोहल्ले की युवा शक्ति केवल होली की आग जलाने की ही व्यवस्था नहीं करती थी बल्कि अपनी आंखें सेकने की भी पूरी व्यवस्था करती थी, लक्ष्य होता था गांव में ब्याह कर आई नई-नई चंपे की कली, मोहल्ले भर की भौजी को रंगों से सराबोर करना। रंग भी कैसे लगाना है अरे भाई वैसे ही जैसे अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना क्योंकि होली के नाम पर मौका भी था और दस्तूर भी। फिर उस चंपाकली की जो दुर्गति होती थी अकथनीय है।
पर यह मत समझिएगा की दुर्गति केवल चंपाकली की होती थी। ऐसा समाजवादी समरसता का और क्यों कोई त्यौहार नहीं देखा की मोहल्ले के सारे राजूओं पप्पूओं गुड्डूओं के बदन पर कपड़ों की जगह उनकी चिंदियां लटक रही है मुंह पर कालिखें पुती हुई है पता ही नहीं चल रहा की टिकैत चाचा का छोरा है या बालियान ताऊ का। मुंह भले ही काला रंग गया है चेहरे पर दूधिया सफेद हंसी का झरना फूट रहा है। रंगों को छोडि़ए गोबर कीचड़ पोत कर भी भड़ास निकाली है। गोबर कीचड़ की होली में जो मजा था वह मजा ऑर्गेनिक रंगों में कहां चढ़ते ही नहीं असर क्या छोड़ेंगे। होली का आरंभ भले ही हंडिया कांड से हो पर अंत तो धोती खोलने से ही होता था और यह घटना घटती थी गांव मोहल्ले के किसी रसिया टाइप आदमी के साथ ।भांग वाली ठंडाई का तो मजा ही कुछ और था किसी ने ज्यादा पी ली या भांग चढ़ गई तो उसके करतबों के आगे बॉलीवुड के सारे कॉमेडियन फेल। बिना टिकट बढिय़ा ड्रामा देखिए ऐसा कि हंसते-हंसते पेट फूल जाए।

फिर मनता था फाग

और अंत में ढोल मंजीरा के साथ फाग गाते होली को आध्यात्मिक सांस्कृतिक दार्शनिक त्यौहार की महत्ता प्रदान करते गायको की टोली आज बिरज में होरी रे रसिया या फिर होली खेले रघुवीरा गाते जिनके लिए होली बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है होली में जिनके लिए दर्शन है अध्यात्म है और भक्ति है। जिस घर में घुस जाओ वही गुझिया समोसा पापड़ के साथ बड़े बुढो के आशीर्वाद प्रेम स्नेह की मिठास मुंह में घुल जाती है। होली के मंत्र “बुरा ना मानो होली है” का जय घोष करती हुई टोलियां अपने कारनामों की माफी मांगती सी लगती है। Holi 2024

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