विनय संकोची
Chatta Chauth आज गणेश चतुर्थी है। शिवपुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति श्रीगणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है। नई पीढ़ी को तो नहीं लेकिन पचास-साठ वर्ष आयु वर्ग के लोगों को अवश्य ही याद होगा कि चार दशक पूर्व तक गणेश चतुर्थी को ‘चट्टा चौथ’ के नाम-रूप से मनाया जाता था। कब और कैसे चट्टा चौथ की लोक परम्परा आधुनिकता की चकाचौंध में गुम हो गई पता ही नहीं चला। चट्टा चौथ को चौथ (चौठ) चांदनी भी कहा जाता था।”
Chatta Chauth 2023
मारा गेंद में टोल घुमाके गेंद पड़ी जमना में जाके, गेंद हमारी देकर जइयौ, फिर खेलन को मतना अइयौ…।” इस तरह की लोक चौपाइयां चट्टा वादन के साथ गणेश चतुर्थी के अवसर पढ़ी जाती थीं।
‘गुरु साक्षात परब्रह्म’ की पवित्र भावना के साथ हर्षोल्लास से ज्ञान के देवता श्रीगणेश का अवतरण दिवस मनाने की स्वर्णिम परम्परा थी। इसमें ‘गुरु पूजन’ के अतिरिक्त स्कूलों में पुस्तकों का पूजन भी होता था। उस समय अधिकांश बच्चों का दाखिला स्कूल में चट्टा चौथ के दिन ही कराया जाता था। गुरुजनों को अन्न और वस्त्र भेंटकर उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेकर ‘बच्चे’ शिक्षा के साथ संस्कार की पाठशाला में भी प्रवेश करते थे। बच्चे लकड़ी के बने चट्टे बजाते थे और लोक चौपाइयां गाते थे। बच्चों को गुड़धानी खाने को मिलती थी।
लोककथाओं में सुना था कि पांच वर्ष की आयु में श्रीरामलला को गणेश चतुर्थी के दिन ही पहली बार पाठशाला में भेजा गया था। बच्चे रामजी जैसे ही मर्यादित बनें शायद इसी भावना के वशीभूत हो लोग गणेश चतुर्थी के दिन ही उन्हें पहली बार स्कूल भेजते रहे होंगे। यह अतीत की बातें हो गई हैं, जिन पर उपेक्षा की धूल की परत मोटी होती जा रही है। Chatta Chauth
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