Saturday, 23 November 2024

इस तरह की स्त्रियों के लिए पति होता है सबसे बड़ा शत्रु

Chanakya Niti : भारत देश के महान राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य की नीति शास्त्र ‘चाणक्य नीति’ में लिखे आचार्य चाणक्य…

इस तरह की स्त्रियों के लिए पति होता है सबसे बड़ा शत्रु

Chanakya Niti : भारत देश के महान राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य की नीति शास्त्र ‘चाणक्य नीति’ में लिखे आचार्य चाणक्य के कलियुग में शत प्रतिशत सत्य साबित हो रहे हैं। आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र चाणक्य नीति में महिलाओं को लेकर काफी कुछ विस्तार से लिखा है। स्त्री यानि महिला या वुमेन को लेकर लिखी बातों को लेकर उन्होंने तर्क भी दिए हैं। चाणक्य नीति में महिलाओं के बारे में लिखा गया है कि किस चरित्र की महिलाओं के लिए उनके पति उनके सबसे बड़े शत्रु होते हैं।

Chanakya Niti in hindi

आपको बता दें कि आचार्य चाणक्य मर्मज्ञ राजनीतिज्ञ तो हैं ही साथ ही वह महान अर्थशास्त्री भी हैं। आचार्य चाणक्य द्वारा रचित नीति शास्त्र चाणक्य नीति में उन्होंने मानव जीवन को सरल बनाने के अनेक उपाय बताए हैं। आचार्य चाणक्य की नीतियों आज भी देश विदेश के लोगों द्वारा किया जा रहा है। अपने पति को शत्रु माने वाली स्त्रियों के बारे में आचार्य चाणक्य लिखते हैं कि …

लुब्धाना वाचकः शत्रुर्मूर्खाणां बोधकः रिपुः।
जारस्वीणां पतिः शत्रुश्चौराणा चन्द्रमा रिपुः।।

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लोभी व्यक्तियों के लिए भीख चन्दा तथा दान मांगने वाले व्यक्ति शत्रु रूप होते हैं, क्योंकि मांगने वाले को देने के लिए उन्हें अपनी गांठ के धन को छोड़ना पड़ है। इसी प्रकार मुर्खों को भी समझाने-बुझाने वाला व्यक्ति अपना दुश्मन लगता है, क्योंकि यह उनकी मूर्खता का समर्थन नहीं करता। दुराचारिणी स्त्रियों के लिए पति ही उनका शत्रु होता है कि उसके कारण उनकी आजादी और स्वच्छन्दता में बाधा पड़ती है। चोर चन्द्रमा को अपना शत्रु समझते हैं, क्योंकि उन्हें अंधेरे में छिपना सरल होता है, चांद की चांदनी में नहीं।

मतलब साफ है कि दुष्चरित्र वाली महिलाओं के लिए उनका पति उनका सबसे बड़ा शत्रु होता है। क्योंकि पति के रहते हुए दुराचारिणी महिलाओं की आजादी समाप्त हो जाती है। इस तरह के चरित्र वाली महिलाओं के पति उनकी स्वतंत्रता पर पहरा लगा देते हैं, जिस कारण वह कहीं आ जा नहीं सकती हैं।

भाग्य बदलते देर नहीं लगती

रंक करोति राजानं राजानं रंकमेव च।
धनिनं निर्धनं चैव निर्धनं धनिनं विधिः।।

आचार्य चाणक्य यहां भाग्य को चर्चा करते हुए कहते है भाग्य रंक को राजा तथा राजा को रंग बना देता है। धनी को निर्धन तथा निर्धन को धनी बना देता है।

आशय यह है कि भाग्य बढ़ा बलवान होता है। यह एक भिखारी को पल भर में राजा बना देता है तथा एक ही पल में राजा को रंक बना देता है। भाग्य के विपरीत होने पर एक संपन्न व्यक्ति को निर्धन बनने में कभी देरी नहीं लगती और भाग्य अच्छा होने पर मामूली-सा इन्सान भी पलक झपकते ही धन्ना सेठ बन जाता है। और यह सब भाग्य का खेल है। कर्म के बाद फल काफी कुछ भाग्य पर निर्भर करता है।

गुणहीन नर पशु समान

येषां न विद्या न तपो न दानं न चापि शीलं च गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरंति।।

आचार्य चाणक्य यहाँ विद्या, दान, शील आदि गुणों से हीन व्यक्ति की निरर्थकता की चर्चा करते हुए कहते हैं कि जिनमें विद्या, तपस्या, दान देना, शील, गुण तथा धर्म में से कुछ भी नहीं है, वे मनुष्य पृथ्वी पर भार हैं। वे मनुष्य के रूप में पशु हैं, जो मनुष्यों के बीच में घूमते रहते हैं।

आशय यह है कि जो मनुष्य विद्या का अध्ययन नहीं करता अर्थात् जो मूर्ख हैं, जो तपस्या नहीं करता; जो किसी को कभी कुछ नहीं देता, जिसका आचरण और स्वभाव अच्छा नहीं है, जिसमें कोई भी सद्गुण नहीं हैं तथा जो पुण्य-धर्म नहीं करता जिसमें इनमें से एक भी अच्छाई नहीं हो, ऐसे लोग बेकार ही पृथ्वी का भार बढ़ाते हैं। ऐसे लोगों को मनुष्य के रूप में घूमने वाला पशु ही समझना चाहिए।

उपदेश सुपात्र को ही दें

अन्तःसार विहीनानामुपदेशो न जायते।
मलयाचलसंसर्गात् न वेणुश्चन्दनायते।।

आचार्य चाणक्य यहां उपदेश देने के लिए सुपात्र की महत्ता की चर्चा करते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति अन्दर से खोखले हैं और उनके भीतर समझने की शक्ति नहीं है, ऐसे व्यक्तियों को उपदेश देने का कोई लाभ नहीं, क्योंकि वे बेचारे समझने की शक्ति के अभाव के कारण शायद चाहते हुए भी कुछ समझ नहीं पाते। जैसे मलयाचल पर उगने पर भी तथा चन्दन का साथ रहने पर भी बांस सुगन्धित नहीं हो जाते, ऐसे ही विवेकहीन व्यक्तियों पर भी सज्जनों के संग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वस्तुतः प्रभाव तो उन लोगों पर पड़ता है जिनमें कुछ सोचने-समझने या ग्रहण करने की शक्ति होती है। जिसके पास स्वयं सोचने-समझने की बुद्धि नहीं, वह किसी दूसरे के गुणों को क्या ग्रहण करेगा।

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