Tuesday, 26 November 2024

एक घटना जिसने बनाया भाजपा को सत्ता का हकदार, फैसला था दमदार

BJP News : भारत में लोकसभा का चुनाव चल रहा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) आत्मविश्वास से भरी हुई है। इसी…

एक घटना जिसने बनाया भाजपा को सत्ता का हकदार, फैसला था दमदार

BJP News : भारत में लोकसभा का चुनाव चल रहा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) आत्मविश्वास से भरी हुई है। इसी आत्मविश्वास के बलबूते पर BJP जीत की हैट्रिक बनाकर तीसरी बार केन्द्र में सत्ता पर काबिज होने का दावा कर रही है। क्या आपको पता है कि एक दिन के एक फैसले के कारण  BJP सत्ता की हकदार बनी है। हम आपको विस्तार से बता रहे हैं  BJP को सत्ता तक पहुंचाने वाले फैसले के विषय में पूरे विस्तार से।

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मुंबई में लिखी गई  BJP की सफलता की कहानी

हम कोई फिल्मी कहानी की बात नहीं कर रहे हैं। यह कहानी है भारत की सबसे ताकतवर राजनीतिक पार्टी  BJP की। दरअसल यह बात वर्ष-1995 की है। वर्ष-1995 में मुंबई में  BJP का राष्ट्रीय अधिवेशन था।  BJP के राष्ट्रीय अधिवेशन में 12 नवंबर 1995 को कुछ ऐसा हुआ कि  BJP अचानक भारत की सत्ता पर काबिज हो गई। 12 नवंबर 1995 को  BJP के मुंबई अधिवेशन का अहम दिन था। उस दिन  BJP के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी से लेकर  BJP के जाने-माने नेता अटल बिहारी वाजपेयी और प्रमोद महाजन तक  BJP के तमाम दिग्गज नेता मंच पर थे। हजारों की संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं का हुजूम उमड़ा हुआ था। अगले साल देश में आम चुनाव होने जा रहे थे। लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि आडवाणी इस महाधिवेशन में एक खास इरादे के साथ आए हैं। इरादा ऐसा जिसकी उनके अलावा किसी को भनक तक नहीं थी।  BJP नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना संबोधन खत्म ही किया था कि आडवाणी उठे और कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए ऐलान किया कि हम अगला चुनाव अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में लड़ेंगे। वह पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। ये सुनते ही पूरी सभा में सन्नाटा पसर गया।

आडवाणी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कई सालों से न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ता बल्कि आम लोग भी यही नारा दे रहे हैं कि अगली बारी अटल बिहारी। मुझे पूरा यकीन है कि बीजेपी अटलजी की अगुवाई में अगली सरकार बनाएगी। आडवाणी जैसे ही अपनी बात खत्म कर कुर्सी पर बैठने लगे। वाजपेयी झट से उठे और माइक पकडक़र कहा कि हम सरकार बनाएंगे और जरूर बनाएंगे लेकिन आडवाणी जी के नेतृत्व में। न वाजपेयी मानने को तैयार थे और न ही आडवाणी। दोनों एक दूसरे को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताते रहे। अगले कुछ मिनटों तक दोनों के बीच की इस ‘आप-आप’की खट्टी-मीठी तकरार के गवाह मंच पर आसीन नेताओं से लेकर हजारों कार्यकर्ता रहे। इस दौरान आडवाणी और वाजपेयी के बीच का संवाद कुछ इस तरह का था…

आडवाणी- हम अटल जी के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ेंगे।

वाजपेयी- हम सरकार बनाएंगे और आडवाणी जी हमारे प्रधानमंत्री होंगे।

आडवाणी- घोषणा हो चुकी है।

वाजपेयी- तो मैं भी घोषणा करता हूं कि प्रधानमंत्री…

आडवाणी- अटल जी ही होंगे….

वाजपेयी – आपने ये क्या ऐलान कर दिया? कम से कम मुझ से तो बात करते।

आडवाणी – क्या आप मानते? अगर हमने आपसे पूछा होता….

आडवाणी फैसला कर चुके थे। वह अगले साल होने जा रहे चुनाव के लिए बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर वाजपेयी को चुन चुके थे। लेकिन इस फैसले से पार्टी और कार्यकर्ता दोनों हैरान थे। हैरानी का आलम ये था कि आडवाणी मुंबई के जिस होटल रूम में ठहरे थे। उसी शाम उस समय बीजेपी के महासचिव रहे गोविंदाचार्य वहां उनसे मिलने पहुंचे। उन्होंने कमरे में पहुंचते ही पहला सवाल किया कि आप इस तरह का ऐलान कैसे कर सकते हैं? इस पर आडवाणी ने कहा कि मैंने वही किया, जो मुझे ठीक लगा।

इस घटनाक्रम और बातचीत का पूरा ब्योरा वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने अपनी किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर डिसाइड’ में किया है। वह बताती हैं कि जब मैंने इस पूरे मामले पर आडवाणी से पूछा तो उन्होंने मुझसे कहा था कि ‘अगर मैं इस पर दूसरों की राय लेता तो इस फैसले पर कभी नहीं पहुंच पाता।’

बीजेपी के लिए यह बड़ा दांव बना

मुंबई में आडवाणी ने जो ऐलान किया। उससे पार्टी के भीतर और बाहर हर कोई हैरान था। ये वो दौर था, जब आडवाणी, वाजपेयी से बड़ा चेहरा थे। 1990 की उनकी रथ यात्रा से वो पॉलिटिकल स्टार बन गए थे। कई लोगों को संदेह था कि वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का आडवाणी का फैसला उनकी एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था। उन्होंने वाजपेयी को इसलिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया क्योंकि उन्हें खबर लग गई थी कि पीवी नरसिम्हा राव हवाला मामले में जल्द से जल्द चार्जशीट दाखिल कराने की तैयारी में हैं। हवाला मामले में आडवाणी सहित कई बड़े नेताओं पर आरोप था।

नीरजा चौधरी अपनी किताब में लिखती हैं कि संभवत: आडवाणी को ये अंदाजा लग चुका था कि अगर वे प्रधानमंत्री पद के लिए खुद के नाम का ऐलान करते हैं तो उन्हें हवाला मामले में आरोपी बनाए जाने की वजह से उम्मीदवारी से पीछे हटना पड़ सकता है, जो कि एक बड़ी शर्मिंदगी होगी। ये संयोग था या कुछ और… प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर वाजपेयी के नाम के ऐलान के दो महीने बाद ही जनवरी 1996 में हवाला मामले में चार्जशीट दाखिल की गई, जिसमें आडवाणी को आरोपी बताया गया। इससे आगबबूला आडवाणी ने तुरंत संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने दो टूक कह दिया कि जब तक वे इस मामले में बेदाग साबित नहीं होंगे, संसद में कदम नहीं रखेंगे। ऐसे में पार्टी की जोरआजमाइश के बाद भी उन्होंने 1996 का चुनाव नहीं लड़ा। ये उनकी हठ ही थी कि 1998 में इस मामले में बेदाग साबित होने के बाद ही उन्होंने संसद में वापसी की। नीरजा चौधरी लिखती हैं कि आडवाणी को पूरा विश्वास था कि नरसिम्हा राव ने हवाला केस में चार्जशीट दाखिल कराने की जल्दबाजी की ताकि प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए वाजपेयी का रास्ता साफ हो सके। राव कैबिनेट में मंत्री रहे भुवनेश चतुर्वेदी ने मुझे बताया कि आडवाणी को लगता था कि हवाला केस की आड़ में नरसिम्हा राव ने वाजपेयी की मदद की। ये केस सुप्रीम कोर्ट के सुपरविजन में आगे बढ़ रहा था लेकिन नरसिम्हा राव को पता था कि इससे वाजपेयी को मदद मिलेगी।

अब आप समझ गए होंगे कि एक दिन अचानक लिए गए एक फैसले ने BJP को कैसे सत्ता तक पहुंचाया। यह अलग बात है कि लालकृष्ण आडवाणी ने अचानक अटल बिहारी वाजपेयी को क्यों आगे किया था? इस मुददे पर ढ़ेर सारे विचार हैं। सच यही है कि अटल बिहारी वाजपेयी को PM फेस बनाते ही भाजपा को सत्ता मिल गई थी। वह सिलसिला अभी भी चल रहा है।

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