Thursday, 5 December 2024

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर PM मोदी की टिप्पणी से रोना आया

PM Modi on Mahatma Gandhi : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में बहुत विवादित टिप्पणी की है। PM मोदी…

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर PM मोदी की टिप्पणी से रोना आया

PM Modi on Mahatma Gandhi : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में बहुत विवादित टिप्पणी की है। PM मोदी की यह टिप्पणी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ( PM Modi on Mahatma Gandhi ) को लेकर है। PM मोदी की महात्मा गांधी पर टिप्पणी के कारण खूब राजनीतिक बवाल मचा हुआ है। इसी बीच PM मोदी की महत्मा गांधी (PM Modi on Mahatma Gandhi) पर की गई टिप्पणी पर प्रसिद्ध कवि तथा राजनेता उदय प्रताप सिंह की टिप्पणी सामने आई है।  सुप्रसिद्ध कवि उदय प्रताप सिंह ने PM मोदी की महात्मा गांधी ( PM Modi on Mahatma Gandhi) पर की गई टिप्पणी पर एक बड़ा आर्टीकल लिखा है। वह आर्टीकल हम ज्यों का त्यों आपको पढ़वा रहे हैं।

PM मोदी की टिप्पणी पर रोना आता है

उदय प्रताप सिंह लिखते हैं कि मनोविज्ञान की परिभाषा में मैंने पढ़ा था की मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो मनुष्य के क्रियाकलापों से उसकी मानसिक स्थिति का अनुमान लगा लेता है। मोदी जी ग़लत सलत बातों को बहुत पहले से अपने राजनीतिक भाषणों में कहते आए हैं। आकाशवाणी पर उनकी रविवार को ‘मन की बातों’ से अधिक मुखरता से उनकी मानसिकता का पता देते हैं। बे सिर पैर की बात तो पहले से बहुत करते आये हैं। लेकिन हाल ही में उन्होंने दो ऐसी बातें कहीं जो जिनका कहना क़तई आवश्यक नहीं था, कोई प्रसंग भी नहीं था। एक बात उन्होंने कही कि ” दुनिया में गांधी जी को लोगों ने एडिनबरा की फिल्म गांधी देखने के बाद जाना है”।

इस बात को पढक़र मेरी समझ में नहीं आया कि मैं हंसू या उनके ज्ञान पर रोऊं। गांधी जी की शख्सियत के बारे में जहां आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक ने यह कहा हो कि आने वाली पीढिय़ां अचरज करेंगे कि गांधी जैसा महान व्यक्ति इस धरती पर कभी चला था। उस गांधी के बारे में भारत के प्रधानमंत्री का यह कथन कि” गांधी को एडिनबरा के फिल्म देखने के बाद दुनिया ने जाना” हंसने की चीज है या रोने की चीज होगी आप जाने। मैं प्रधानमंत्री जी के संज्ञान में एक बात लाना चाहता हूं की जी एडमिन बना ने गांधी की भूमिका निभाई थी उसे ईडन बनाने की जिंदगी ही बदल गई वह आज तक गांधी की तरह रहता है गांधी की तरह खाता है गांधी की तरह से कपड़े पहनता है और गांधी की तरह से चलता है और बात करता है तो फिर आप क्या-क्या कहां डालें

लेकिन कया यह गांधी का एक तरह से अपमान नहीं है? अपने मतलब के लिए सियासी फायदे के लिए मोदी जी ने ऐसे बहुत सी बेतुकी बातें पहले की है। लेकिन गांधी राष्ट्रपिता है उनके बारे में कुछ कहते हुए सावधानी बरतनी उनहें चाहिए ही चाहिए। यह बात कोई और कहता तो इतना आश्चर्य नहीं होता,लेकिन मोदी जी गुजरात से आते हैं जो गांधी जी का जन्म स्थान है और उन्होंने भी गांधी को देर से समझा? जब प्रधानमंत्री बन गए तब उससे पहले तो उनके राजनीतिक दल और उनके दल के थिंक टैंक आरएसएस के लोग गांधी विरोधी सदैव से रहे हैं ।और गांधी की हत्या करने वाला भी इसी थिंक टैंक का एक उत्पाद था, जिससे मोदी जी दावा करते हैं कि वह बचपन से जुड़े रहे हैं।

पटनायक की बीमारी और मोदी

दूसरी बात मोदी जी ने उड़ीसा की एक चुनाव सभा में जो कहा उस कथन का भी कोई राजनीतिक औचित्य समझ में नहीं आया। और चुनावी सभा के दृष्टि से प्रधानमंत्री के पद से ऐसी बात बहुत छोटी लगती है। उन्होंने कहा की उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बीमार चल रहे हैं और कुछ लोग एक साजिश के तहत उन्हें बीमार करने में लगे हुए हैं। बात को आगे बढ़ाते हुए मोदी जी ने कहा कि मैं एक ऐसी समिति गठित करूंगा जो इस मामले की जांच पड़ताल करेगी।

जवाब में खुद नवीन पटनायक ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री जी को बताना चाहता हूं मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं मुझे कोई बीमारी नहीं है मैं किसी साजिश का शिकार नहीं हूं यह बात उनके भाजपा के लोगों ने फैलाई है, इसलिए वह जो समिति गठित करें वह इस दुष्प्रचार के करने वाले की जांच पड़ताल करने की समिति बैठा दें तो ज्यादा अच्छा होगा। क्या चुनावी माहौल में ऐसा वाद विवाद आपने आज से पहले कभी सुना या देखा है।
1924 के चुनाव में प्रारंभ से मोदी जी के वक्तव्य वास्तव में हैरानी का विषय रहे हैं, विवाद का विषय रहे हैं मज़ाक का विषय रहे हैं।

PM Modi on Mahatma Gandhi

कभी वह कहने लगते हैं कि अगर इंडिया गठबंधन की सरकार आई तो बैकवर्ड और शेड्यूल कास्ट के आरक्षण काटकर मुसलमान को दे दिया जाएगा ,कभी उन्होंने मंगलसूत्र छीन कर मुसलमान को धन देने की बात विपक्ष के विरुद्ध कही। कांग्रेस का घोषणा पत्र इस्लामिक है।
ऐसी बेतुकी और बे सिर पैर की बात है हमने पहले कभी किसी प्रधानमंत्री के मुंह से नहीं सुनी थी। प्रधानमंत्री मोदी जी कौर झूठी बातें ऐसी बातें जिनके यथार्थ से कोई संबंध नहीं बहुत पहले से की गई है होती रही है। उन्हें मैं दोहराना नहीं चाहता लेकिन भाषा की गिरावट जिसमें उन्होंने मुजरा जैसे शब्द का प्रयोग किया और जो पूरी दुनिया ने सुना एक तरफ हम भारत को विश्व गुरु बनाना चाहते हैं दूसरी तरफ हमारे भारत के प्रधानमंत्री की भाषा का स्तर अगर यह हो जाएगा तो मैं नहीं समझता कि भारत के विश्व गुरु बनने की संभावना शेष बची है।

मैंने जवाहरलाल नेहरू से लेकर मोदी जी तक सारे प्रधानमंत्री को देखा और सुना है 80 से लेकर आज तक मैं सक्रिय राजनीति का एक हिस्सा रहा हूं मैं प्रधानमंत्री के भाषण सुने हैं जो भाषण नेहरू जी देते थे गिरधारी लाल नंदा लाल बहादुर शास्त्री इंदिरा गांधी मुरारजी देसाई तक सबको सुना है 1989 में मैं स्वयं एमपी हो गया फिर मैं वीपी सिंह, चंद्रशेखर, गुलजारीलाल नंदा, अटलजी और देवगौड़ा जी के भाषण मैंने सदन में सुने हैं सदन के बाहर सुनें। प्रधानमंत्री पद की एक मर्यादा होती है जिसमें विपक्ष का सम्मान करना लोकतंत्र की एक शर्त होती है एक परंपरा है विपक्ष उतना ही आदरणीय महत्वपूर्ण है जितना सत्ता पक्ष होता है ।आदरणीय अटल जी और चंद्रशेखर जी की आपसी वाद विवाद मैंने सदन में सुने है। चंद्रशेखर भाषण के शुरू से कहा करते थे अटल जी मैं आपका बहुत सम्मान करता हूं आपका आदर करता हूं लेकिन कुछ बातों पर मैं आपसे सहमत नहीं हो सकता हूं, मेरा फर्ज बनता है कि मैं अपनी असहमत आपके सामने प्रकट करूं। जिससे लोकतंत्र का स्वास्थ्य बना रहे।

PM Modi on Mahatma Gandhi

अटल जी कि मैंने कई भाषण सुने हैं जिसमें उन्होंने नेहरू जी इंदिरा जी चंद्रशेखर जी की भूरि भूरि प्रशंसा की है। पक्षऔर विपक्ष के नेता एक दूसरे के शत्रु नहीं होते। दोनों देश के हित में काम करते हैं उनके काम करने के तरीके अलग हो सकते हैं ।पर उनमें राष्ट्रद्रोही कोई नहीं होता और विपक्षियों में समरसता भी लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए जरूरी होती है। बल्कि सत्ता पक्ष पर विपक्ष की का नियंत्रण ही लोकतंत्र की आत्मा है मोदी जी के व्यवहार से पता चलता है कि उनकी प्रवृत्ति तानाशाही है इसलिए लोकतंत्र की परंपराओं का निर्वहन करना उनकी शान के खिलाफ है उनकी नजर में विपक्ष के सारे लोग बेईमान है गलत ह अयोग्य हैं। उन्होंने जिस तरह से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को नाकारा कर दिया है, वह किसी से छुपा नहीं है जितनी स्वायत्तता प्राप्त संस्थाएं थी उनकी पारदर्शिता पर अब संदेह होने लगा है ।संदेह तो यहां तक होता है की भारत का चुनाव आयोग भी कभी-कभी प्रधानमंत्री का मुखापेक्षी ही लगता है।
उदाहरणार्थ जिस प्रकार उन्होंने मुसलमान के लिए आपत्तिजनक बयान दिए थे इसकी शिकायत कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा साहब ने चुनाव

आयोग से की। फलस्वरूप चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री को कुछ कहने के बजाय बीजेपी के प्रधान नड्डा जी को इतना निर्देश दे दिया कि वह अपने मुख्य प्रचारकों से कह दें कि इस प्रकार की बातें न करें । मुझे याद है चुनाव आयोग में कभी टी एन शेशन जैसा सख्त आदमी भी था जिसने निष्पक्षता के निर्भीकता के मापदंड स्थापित कर दिए थे । मैं यहां चुनाव में हार या जीत की बात नहीं कर रहा हूं। हर चुनाव के दो ही परिणाम होते हैं कोई हारता है कोई जीतता है, लेकिन राजनीतिज्ञों की भाषा व्यवहार चरित्र ऐसा होना चाहिए जो अगली नसलों के लिए आदर्श भी होना चाहिए। चुनाव का असर अगली नसों के भविष्य पर नहीं पडना चाहिए। ऐसा मैं मानता हूं। जय हिंद PM Modi on Mahatma Gandhi

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