RSS : जाति पर आधारित जनगणना को लेकर RSS का एक बड़ा स्टैण्ड सामने आया है। जाति जनगणना पर RSS की राय के बाद देश भर में इस मुददे पर चर्चा तेज हो गयी है। हर कोई जानना चाहता है कि क्या RSS वास्तव में जाति आधारित जनगणना के पक्ष में खड़ा हो गया है। जाति के आधार पर जनगणना बनाम RSS के हवाले से आरक्षण के मुद्दे पर भी नए सिरे से बहस शुरू हो गई है। यहां हम जाति जनगणना बनाम RSS का सीधा-सीधा विश्लेषण कर रहे हैं।
RSS ने किया जाति आधारित जनगणना का समर्थन
पहले आपको यह बता दें कि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ( RSS) ने जाति पर आधारित जनगणना का समर्थन किया है। यह अलग बात है कि RSS ने यह समर्थन करते हुए घुमावदार शर्तें भी लगाई गई हैं। हाल ही में RSS संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि जाति पर आधारित जनगणना संवदेनशील मामला है और इसका इस्तेमाल राजनीतिक या चुनावी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसका इस्तेमाल पिछड़ रहे समुदाय और जातियों के कल्याण के लिए होना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उप वर्गीकरण की दिशा में बिना किसी सर्वसम्मति के कोई क़दम नहीं उठाया जाना चाहिए।
RSS का बयान ऐसे समय में आया है, जब विपक्षी इंडिया गठबंधन ने जाति आधारित जनगणना को अपना प्रमुख मुद्दा बना लिया है।
केरल के पलक्कड़ में संघ के तीन दिवसीय अखिल भारतीय स्वयंसेवक बैठक के अंतिम दिन RSS के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने प्रेस कांफ्रेन्स की। आंबेकर ने कहा, “हिंदू समाज में जाति और जातीय संबंध एक संवेदनशील मुद्दा है। ये हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसे बहुत गंभीरता से निपटाना चाहिए न कि केवल चुनाव या राजनीति के लिए। ” उन्होंने कहा, ‘ RSS को लगता है कि सभी कल्याणकारी योजनाओं के लिए विशेष रूप से जो जाति पिछड़ रही है, उन पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत होती है और इसके लिए अगर सरकार को कभी आँकड़ों की जरूरत है, तो यह एक स्थापित परंपरा है।’
उन्होंने कहा, “इससे पहले भी सरकार ने इस तरह के काम किए हैं। इसलिए वो आगे भी कर सकती है। लेकिन यह केवल उन समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए. इसे चुनावी राजनीति के उपकरण के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। ” इसलिए हमने सभी के लिए इस बारे में सावधानी बरतने की बात कही है। “आरक्षण के मुद्दे पर आंबेकर ने कहा, “हमारा मानना है कि संवैधानिक आरक्षण बहुत महत्वपूर्ण है। संघ ने इसका हमेशा समर्थन किया है। कोर्ट में जो बात हुई वो बहुत संवेदनशील मुद्दा है। इस पर सरकार और क़ानूनी अधिकारियों को फैसला लेना चाहिए। लेकिन ये सुनिश्चित करना चाहिए कि आरक्षण का लाभ लेने वालों समेत सभी समुदायों के बीच सहमति बनाने की कोशिश हो। इससे पहले कोई क़दम नहीं उठाया जाना चाहिए। ”
विपक्ष ने RSS को घेरा
जाति पर आधारित जनगणना के बयाना के बाद विपक्षी दलों ने RSS को घेरा है। आंबेकर के बयान पर कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, ” RSS स्पष्ट रूप से देश को बताए कि वो जातिगत जनगणना के पक्ष में है या विरोध में है? देश के संविधान की बजाय मनुस्मृति के पक्ष में होने वाले संघ परिवार को क्या दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग और गऱीब-वंचित समाज की भागीदारी की चिंता है या नहीं?” उधर, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने पत्रकारों से कहा, “आज कोई खुल कर नहीं कह सकता कि जाति जनगणना न हो। लेकिन उनके मन में है कि ये न हो। लेकिन बीजेपी बार-बार इन मुद्दों को खड़ा करती है। ” हमने कई बार मांग की लेकिन इन लोगों ने इनकार किया। इनकी कथनी कुछ और करनी कुछ। इनका आरक्षण से कोई मतलब नहीं है। ये लोग केवल बाबा साहब के संविधान को बदलना चाहते हैं। ”
लालू प्रसाद यादव ने एक्स पर लिखा कि RSS जातिगत जनगणना को रोक नहीं सकता है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने RSS पर निशाना साधते हुए चार सवाल पूछे हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा, “जातीय जनगणना को लेकर RSS की उपदेशात्मक बातों से कुछ बुनियादी सवाल उठते हैं। पहला, क्या RSS के पास जाति जनगणना पर विशेषाधिकार है? दूसरा, जाति जनगणना के लिए इजाज़त देने वाला RSS कौन है? तीसरे, RSS का क्या मतलब है, जब वह कहता है कि चुनाव प्रचार के लिए जाति जनगणना का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए? क्या यह जज या अंपायर बनना है? और चौथा, RSS ने दलितों, आदिवासियों और ओबीसी के लिए आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता पर रहस्यमय चुप्पी क्यों साध रखी है? “इसके साथ ही जयराम रमेश ने पूछा, “अब जब RSS ने हरी झंडी दिखा दी है, तब क्या नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री कांग्रेस की एक और गारंटी को हाईजैक करेंगे और जाति जनगणना कराएंगे?”
क्यों महत्वपूर्ण है जाति पर आधारित जनगणना का मुद्दा
आपको यह भी बता दें कि जाति आधारित जनगणना पर RSS का यह बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि इस मुद्दे पर बीजेपी विपक्ष के निशाने पर है। जाति आधारित जनगणना कराए जाने को लेकर केवल विपक्ष और ख़ासकर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की ओर से ही नहीं बल्कि बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और जेडीयू जैसे सहयोगी दलों की ओर से भी मांग हो रही है। पिछले साल जेडीयू की अगुवाई वाली सरकार ने बिहार में जातिवार सर्वे कराया था। तब जेडीयू इंडिया गठबंधन का हिस्सा थी और राज्य में जेडीयू-आरजेडी की सरकार थी। जेडीयू और एलजेपी (रामविलास) ने भी जाति आधारित जनगणना की मांग की है।
हाल ही में संसद की ओबीसी कल्याण समिति में जेडीयू ने इस बात को उठाया था। अभी तक बीजेपी ने खुले तौर पर जाति आधारित जनगणना का विरोध नहीं किया है लेकिन उसने इस पर कोई टिप्पणी भी नहीं की है। उसे जाति आधारित जनगणना में अपने हिन्दू वोट बैंक के बिखरने का ख़तरा दिखता है। इसलिए वो खुलकर इसका न तो समर्थन कर पा रही है और न विरोध। बीजेपी ने विपक्ष पर “हिंदू समाज को बांटने” की कोशिश करने का आरोप लगाया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी सांसद कंगना रनौत ने भी इस बारे में टिप्पणी की थी। हाल ही में कंगना ने एक निजी चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा कहा था कि ‘जाति आधारित जनगणना नहीं कराई जानी चाहिए।’ इसी साल मई में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में झटका लगा था।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि इसकी बड़ी वजह रही कि विपक्ष एससी/एसटी वोटरों में ये संदेश देने में सफल रहा कि संविधान ख़तरे में है। अब चूंकि RSS ने जाति आधारित जनगणना को कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में अहम बताया है तो बीजेपी को इस मामले में फ़ैसला लेने में आसानी हो सकती है। साल 2015 में मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कही थी तब काफ़ी विवाद हुआ था। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में मोहन भागवत की यह टिप्पणी मुद्दा बनी थी। इस चुनाव में बीजेपी को हार मिली थी। उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मोहन भागवत के बयान पर सफाई दी थी। मोहन भागवत ने 2019 में कहा था, “आरक्षण के विरोधी और उसके समर्थक अगर एक दूसरे की बात समझ लेंगे तो इस समस्या का हल चुटकी में निकाला जा सकता है।”
इस बयान पर भी काफ़ी विवाद पैदा हुआ और एनडीए के साझीदार दल जैसे रामदास अठावले और रामविलास पासवान ने इस बयान पर अपनी असहमति दर्ज कराई थी। तब RSS ने सफाई दी थी कि ‘संघ का आरक्षण से विरोध नहीं है। आरक्षण के मुद्दे पर सर्वसम्मति से बात होनी चाहिए। हिंदुत्व की राजनीति पर गहरी नजऱ रखने वाले फ्रांसीसी विद्वान क्रिस्टोफर जेफरलो ने साल 2020 में अपने एक लेख में लिखा था कि मराठी ब्राह्मणों द्वारा बनाए गए RSS ने सभी जातीय पृष्ठभूमि वाले हिंदुओं को धीरे-धीरे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है। उन्होंने लिखा है, ”असल में RSS तत्कालीन महाराष्ट्र में आंबेडकर के नेतृत्व में दलित राजनीति के उभार की प्रतिक्रिया में सामने आया। तब उस इलाक़े में आंबेडकर ने पहली बार जाति विरोधी आंदोलन शुरू किया, जिसमें महार सत्याग्रह और दलितों के मंदिर प्रवेश की मुहिम थी। ” RSS को पता है कि सत्ता में बने रहना है तो बहुजनों को साथ जोडऩा होगा।
इसी के तहत बीजेपी अब संगठन और सरकार में जाति का खासा ख्याल रख रही है। हाल ही में रेलवे बोर्ड का चेयरमैन एक दलित को बनाया गया है। राष्ट्रपति के पद पर भी बीजेपी ने जनजाति समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को बनाया। 1925 में गठन के बाद से अब तक RSS के कुल छह सरसंघचालक हुए हैं और इनमें चौथे सरसंघचालक रज्जू भैया यानी राजेंद्र सिंह को छोड़ दिया जाए तो सभी ब्राह्मण हैं। रज्जू भैया भी ठाकुर थे यानी सभी RSS प्रमुख सवर्ण ही हुए हैं RSS में सवर्णों के दबदबे के सवाल पर इसी साल मई महीने में RSS में राजस्थान धर्म प्रसार विंग के एक पदाधिकारी ने कहा था, ”संघ पिछले दस सालों में बहुत बदला है। देश भर में संघ के कऱीब दो हज़ार प्रचारक होंगे और इनमें से कऱीब 20 फ़ीसदी से ज़्यादा दलित हैं। पहले ऐसा बिल्कुल नहीं था। वो दिन दूर नहीं है जब संघ का कोई दलित या आदिवासी स्वयंसेवक सरसंघचालक होगा। यह हमारे एजेंडे का हिस्सा है कि संघ की विचारधारा से बहुजनों को जोड़ना है और हम जोड़ रहे हैं। ” RSS
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