UP News : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ-2025 (Maha Kumbh-2025) के मेले का भव्य आयोजन होने वाला है। महाकुंभ-2025 का मेला 13 जनवरी 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। इस दौरान आप बार-बार अखाड़ा शब्द जरूर सुनेंगे। दरअसल महाकुंभ के मेले में अखाड़े ही VVIP (अतिविशिष्ठ) मेहमान होते हैं। महाकुंभ के मेले में अखाड़ों से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं होता है। इस कारण यह जानना जरूरी है कि आखिर अखाड़ा क्या होता है? अखाड़े का इतिहास क्या है? यहां हम महाकुंभ-2025 (Maha Kumbh-2025) से पूर्व ही आपको अखाड़ा परंपरा की पूरी जानकारी दे रहे हैं।
आदि शंकराचार्य ने धर्म की रक्षा के लिए बनाए थे अखाड़े
दरअसल साधु-संतों के संगठन को अखाड़ा कहा जाता है। अखाड़ा शब्द का प्रयोग सबसे पहले आदि शंकराचार्य ने किया था। आदि शंकराचार्य ने ही अखाड़ों का विधिवत गठन किया था। इतिहासकारों का मत है कि प्राचीन काल में बौद्ध धर्म के बढ़ते वर्चस्व और मुगलों के आक्रमण से हिंदू धर्म की रक्षा करने के लिए शंकाराचार्य शस्त्र विद्या में निपुण साधुओं के कुछ संगठन बनाए और इन्हें अखाड़ा नाम दिया। शाही सवारी, हाथी-घोड़े की सजावट, घंटा-नाद, नागा-अखाड़ों के करतब और तलवार और बंदूक का खुले आम प्रदर्शन यह अखाड़ों की पहचान है। जो साधु तलवार और अन्य शस्त्र चलाना नहीं जानते हैं, उन्हें इन अखाड़ों में शस्त्र चलाने की दीक्षा दी जाती है। आरंभ में मात्र 4 अखाड़े ही बने थे, लेकिन अभी इनकी संख्या 14 हो चुकी है। वर्ष 2019 में जब प्रयागराज में कुंभ का आयोजन हुआ था तो किन्नर अखाड़े को आधिकारिक रूप से शामिल करने के बाद अखाड़ों की संख्या 14 हो गई थी। अब दलित अखाड़ा का नाम जुड़ने से 15 अखाड़े हो गए हैं। इन अखाड़ों के नाम इस प्रकार हैं :-
- श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज प्रयाग
- श्री पंच अटल अखाड़ा- चैक हनुमान, वाराणसी
- श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी-दारागंज, प्रयाग
- श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती – त्रंब्यकेश्वर, नासिक
- श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमान घाट, वाराणसी
- श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा- दशाश्वमेघ घाट, वाराणसी
- श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़
- श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा
- श्री निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गढ़ी, अयोध्या
- श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा
- श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग
- श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार
- श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार
- किन्नर अखाड़ा
- दलित अखाड़ा
महाकुंभ से अखाड़ों का संबंध
जिस प्रकार से बौद्ध धर्म के भिक्षु जहां एकत्र होते हैं उस स्थान को मठ कहा जाता है, उसी प्रकार से अखाड़े साधुओं के मठ माने जाते हैं। माना जाता है कि पहले अखाड़ों की संख्या केवल 4 थी, बाद में साधुओं के बीच वैचारिक मतभेद होते चले गए और एक मत के साधुओं ने अपने अलग संगठन बना लिए और इस प्रकार से बढ़ते-बढ़ते अखाड़ों की संख्या 13 हो गई। हिंदू धर्म में कुछ ऐसी प्रमुख तिथियां होती हैं जिन पर गंगा में स्नान करना शुभ और पुण्यदायी माना जाता है। इन सभी तिथियों पर कुंभ में साधु संत स्नान करते हैं, इसलिए इसे शाही स्नान कहा जाता है। प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुंभ-2025 में आपको प्रतिदिन शाही स्नान तथा अखाड़ों की चर्चा सुनने को मिलेगी।
कुछ प्रमुख अखाड़ों का इतिहास
हिन्दु धर्म की रक्षा के प्रतीक सभी अखाड़ों का अपना झंडा, अपना निशान तथा अपना इतिहास है। श्री पंचायती आनंद अखाड़ा को सबसे प्राचीन अखाड़ा माना जाता है। श्री पंचायती आनंद अखाड़ा ने महाकुंभ-2025 के तहत प्रयागराज में डेरा जमा दिया है। इस अखाड़े की स्थापना आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने की थी। यह ऐसा अखाड़ा है, जिसमें प्रजातंत्र का प्रशासनिक ढांचा आजादी के पहले से ही लागू हो गया था। इस अखाड़े ने विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका जैसी व्यवस्था भी बनाई थी।
अखाड़े में नागा संन्यासियों को दस नामों से संन्यास की दीक्षा दी जाती है। दशनामी परंपरा के अखाड़ों में आनंद अखाड़ा जूना और निरंजनी के बाद सबसे समृद्ध माना जाता है। इस अखाड़े की 52 मढ़ियां हैं। महाकुंभ में आनंद अखाड़े का शिविर निरंजनी के साथ लगेगा। शाही स्नान में भी आनंद अखाड़े के नागा निरंजनी के ही साथ अस्त्र-शस्त्र लेकर निकलेंगे। अखाड़े के अध्यक्ष शंकरानंद सरस्वती बताते हैं कि आचार्य महामंडलेश्वर का पद सर्वोच्च होता है। इनकी नियुक्ति अखाड़ों के रमता पंचों और श्रीमहंतों की ओर से की जाती है। यह रमता पंच और श्रीमहंत चारों वेदों और उपनिषदों के ज्ञाता होते हैं। सनातन विरोधी या अखाड़े के विपरीत आचरण पर आचार्य महामंडलेश्वर को पद से हटाने का अधिकार भी इन्हें हासिल है। आनंदवार और भूरवार, दो संप्रदायों को मिलाकर बने आनंद अखाड़े में दोनों के दो-दो श्रीमहंत होते हैं। इतने ही रमता पंच भी होते हैं। श्रीमहंत और रमता पंचों का चुनाव छह-छह वर्ष में होता है। यह प्रजातंत्र आजादी के पहले ही आनंद अखाड़े ने अपनाया था।
बड़ा ही महान इतिहास है महानिर्वाणी अखाड़ा का
अखाड़ों के इतिहास की इस कड़ी में महानिर्वाणी अखाड़ा का जिक्र करना बेहद जरूरी है। महानिर्वाणी अखाड़ा का बहुत ही महान इतिहास है। महानिर्वाणी अखाड़े की ने स्थापना 16वीं शताब्दी के के अंत में बिहार के हजारीबाग स्थित गढ़कुंडा के मैदान में हुई थी। उस समय महानिर्वाणी अखाड़े के के आठ संस्थापक सदस्य अटल अखाड़े चर्म से जुड़े थे। कुछ संतों का संबंध के आवाहन अखाड़े से था। यानी दोनों पुण अखाड़ों के तपस्वियों ने सनातन नंत संस्कृति के प्रतीकों को नष्ट करने वाली एम मुगलों की सेना से लड़ने के लिए के महानिर्वाणी अखाड़ा बनाया। अखाड़े के बाम सचिव श्रीमहंत यमुनापुरी बताते हैं कि मौजूदा समय में महानिर्वाणी परंपरा के 10 हजार संन्यासी हैं। औरंगजेब की सेना ने 1771 में गढ़कुंडा पर आक्रमण किया। मुगल सैना काशी में मठों-मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों का निर्माण करा रही थी। औरंगजेब के काशी पर हमले की जानकारी मिलने के बाद महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं ने 1774 में उसकी सेना से भीषण युद्ध किया।
दशनाम नागा संन्यासी एवं श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा नामक पुस्तक में महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं की ओर से लड़े गए ज्ञानवापी समेत तीन युद्धों का जिक्र है। पुस्तक में कहा गया है कि औरंगजेब ने 1974 में अपने सेनापति मिर्जा अली तुरंग खां और अब्दुल अली को विशाल सेना के साथ काशी के ज्ञानवापी और विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण के लिए भेजा। उनके साथ हिंदू मनसबदार राजा हरिदास केसरी और नरेंद्र दास भी थे। औरंगजेब के भय से काशी में हाहाकार मच गया। ऐसे में अखाड़े के हजारों सशस्त्र नागा संन्यासी रणम गिरि, लक्ष्मण गिरि मौनी, देश गिरि नक्खी महाराज के नेतृत्व में मुगल सेना को घेर लिया और उनको परास्त किया। नागा सेना का नेतृत्व करने वाले हरिवंश पुरी और शंकरपुरी वीरगति को प्राप्त हुए। काशी में हरवंश पुरी और शंकर पुरी की समाधियों पर औरंगजेब के क्रूर सैनिकों से धर्म की रक्षा करते हुए 1774 में प्राणोत्सर्ग करने का उल्लेख है।
इसी तरह औरंगजेब के ही साथ 1777 में हरिद्वार तीर्थ की रक्षा के लिए युद्ध और पुष्कर राज तीर्थ की रक्षा के लिए मुसलमान गूजरों के साथ महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं के युद्ध का उल्लेख किया गया है। महाकुंभ में पेशवाई (अब छावनी जा प्रवेश) और धर्म ध्वजा की स्थापना की परंपरा की शुरुआत प्रयागराज में युद्ध कौशल में निपुण दशनामी. नागा संन्यासियों की ही देन मानी जाती है। मुगल सेना से युद्ध के बाद महाकुंभ में के महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं ने प्रवेश भौर किया था, तब उनके स्वागत में अस्त्र- शस्त्र, बाजे-गाजे के साथ पेशवाई कर निकाली गई थी। एक बार फिर महानिर्वाणी अखाड़ा महाकुंभ-2025 में झंडे गाड़ने वाला है।
सभी अखाड़ों में विशेष है अटल अखाड़े का महत्व
भारतीय परंपरा का झंडा थामे हुए अखाड़ों में अटल अखाड़े का विशेष महत्व है। अटल अखाड़े की न्याय व्यवस्था को सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था माना जाता है। किसी भी अखाड़े में कोई विवाद निपटाना हो तो उस विवाद को निपटाने में अटल अखाड़े के श्री शंभू पंच का रहना जरूरी माना जाता है। अटल अखाड़े का मुख्यालय काशी के कतुआपुरा में है, जबकि मुख्य पीठ गुजरात के पाटन में। लेकिन, इसके आश्रम और मठ-मंदिर कनखल हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर सहित देश के पांच सौ से अधिक स्थानों पर हैं। बुद्धि-विवेक के देवता गजानन आदि गणेश इस अखाड़े के देवता के रूप में सुशोभित हैं। इसीलिए, महाकुंभ में नगर प्रवेश हो या फिर पेशवाई (छावनी प्रवेश) देवता के रूप में प्रथम पूज्य गजानन को लेकर सबसे आगे शंभू पंच ही चलते हैं।
इनके पीछे भस्म-भभूत लपेटे अस्त्र-शस्त्र से लैस नागा संन्यासी चलते हैं। इस अखाड़े की स्थापना भी आदि शंकराचार्य के निर्देश पर 569 ईस्वी में गोंडवाना में हुई थी। अटल अखाड़े के सचिव श्रीमहंत बलराम भारती बताते हैं कि इसमें दो लाख से अधिक नागा सन्यासी हैं। देशभर में पांच सौ से अधिक मठ-मंदिर और तीर्थ हैं, जिनका प्रबंधन अटल अखाड़ा करता है। सकी स्थापना आवाहन अखाड़े से पृथक की गई। एक दौर था जब आवाहन अखाड़े में नागा संन्यासियों की संख्या अधिक हो गई थी। तब, पूरे देश में धर्म रक्षा के लिए एक जगह या एक केंद्र से इनका संचालन करना संभव पूरे नहीं हो पा रहा था। ऐसे में आवाहन अखाड़े के तमाम नागां संन्यासियों को अलग कर अटल अखाड़ा बना दिया गया।
महंत नरेश गिरि बताते हैं कि वनखंडी भारती, सागर भारती, शिवचरण भारती, अयोध्या पुरी, त्रिभुवन पुरी, छोटे रणजीत पुरी, श्रवण गिरि, दयाल गिरि, महेश गिरि, हिमाचल वने और प्रति वन ने मिलकर श्रीशंभू अटल अखाड़े की स्थापना की थी। इस वक्त अखाड़े में महामंडलेश्वरों की संख्या 60 से अधिक है। इसमें वन और अरण्य संत अधिक हैं। महाकुंभ में अटल अखाड़ा महानिर्वाणी अखाड़े के साथ धर्मध्वजा, पेशवाई (छावनी प्रवेश) और शाही स्नान (राजसी स्नान) में निकलेगा। इस अखाड़े के शंभू पंचों का तिलक अष्टकोणीय होता है, जबकि महानिर्वाणी अखाड़े का भस्मी तिलक चतुष्कोणीय। यह तिलक संन्यासियों की पहचान का अहम हिस्सा होता है। UP News