United Nations/Geneva : संयुक्त राष्ट्र/जिनेवा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक भारतीय दवा कंपनी की उन चार दवाओं के खिलाफ अलर्ट जारी किया है, जिनके कारण गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत होने और गुर्दे को गंभीर पहुंचने की आशंका है। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम गेब्रेयेसस ने संवाददाताओं से कहा कि ये चार दवाएं भारत की कंपनी मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड द्वारा बनाई गई सर्दी एवं खांसी के सिरप हैं। डब्ल्यूएचओ भारत में कंपनी एवं नियामक प्राधिकारियों को लेकर आगे जांच कर रहा है।
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टेड्रोस अदनोम गेब्रेयेसस ने कहा कि इन दवाओं के कारण बच्चों की मौत होने से उनके परिवारों को हुई पीड़ा का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। डब्ल्यूएचओ ने बताया कि ये चार उत्पाद प्रोमेथाजिन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ सिरप, मेकॉफ बेबी कफ सिरप और मैग्रिप एन कोल्ड सिरप हैं। इन उत्पादों की निर्माता कंपनी हरियाणा में स्थित मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड है और इस निर्माता ने इन उत्पादों की सुरक्षा और गुणवत्ता पर डब्ल्यूएचओ को अभी तक गारंटी नहीं दी है।
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डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा कि ये उत्पाद अब तक केवल गाम्बिया में पाए गए हैं, लेकिन उन्हें अन्य देशों में भी संभवतः वितरित किया गया है। डब्ल्यूएचओ ने परामर्श दिया कि सभी देश मरीजों को और नुकसान पहुंचने से बचाने के लिए इन उत्पादों की बिक्री पर रोक लगाएं। ‘डब्ल्यूएचओ मेडिकल प्रोडक्ट अलर्ट’ उन चार ‘घटिया उत्पादों’ के लिए जारी किया गया है, जिन्हें सितंबर 2022 में गाम्बिया में चिह्नित किया गया और डब्ल्यूएचओ को इसकी जानकारी दी गई।
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डब्ल्यूएचओ ने कहा कि घटिया चिकित्सकीय उत्पाद ऐसे हैं, जो अपनी गुणवत्ता मानकों या विशिष्टताओं को पूरा नहीं करते। चारों में से प्रत्येक दवा के नमूनों का प्रयोगशाला विश्लेषण पुष्टि करता है कि उनमें डायथाइलीन ग्लाईकॉल और एथिलीन ग्लाईकॉल अस्वीकार्य मात्रा में मौजूद हैं। डब्ल्यूएचओ ने उत्पादों से जुड़े जोखिमों को रेखांकित करते हुए कहा कि डायथाइलीन ग्लाईकॉल और एथिलीन ग्लाईकॉल मनुष्यों के लिए घातक साबित हो सकते हैं।
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विश्व स्वास्थ्य निकाय ने कहा कि डायथाइलीन ग्लाईकॉल और एथिलीन ग्लाईकॉल से पेट दर्द, उल्टी, दस्त, मूत्र त्यागने में दिक्कत, सिरदर्द, मानसिक स्थिति में बदलाव और गुर्दे को गंभीर नुकसान हो सकता है, जिससे मरीज की मौत भी हो सकती है। उसने कहा कि इन उत्पादों को तब तक असुरक्षित माना जाना चाहिए, जब तक संबंधित राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरणों द्वारा उनका विश्लेषण नहीं किया जाता।