Hand Washing Day: दिन में छह बार हाथ धोएं, लंबा जीएं 

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calendar30 Nov 2025 09:45 AM
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   विनय संकोची

आज ग्लोबल हैंडवाशिंग डे बोले तो ‘विश्व हस्तप्रक्षालन दिवस’ है। कोरोना संकट में इस दिन का ध्येय वाक्य होना चाहिए था-‘हाथों को बार-बार नहीं धोएंगे तो जिन्दगी से हाथ धो बैठेंगे।’ क्या मैंने गलत कहा, अगर मेरी बात गलत या बुरी लगी हो तो हाथ मत धोना, अगर गलती से तीसरी लहर आई फिर कोरोना आपके साथ जो करेगा उसकी जिम्मेदारी आपकी होगी।

एक आंकड़ा बताता है कि पूरी दुनिया में करीब 300 करोड़ लोग अपने हाथों को साफ नहीं रख पाते। मात्र 20 प्रतिशत लोग ही दुनियाभर में हाथों की सफाई का ध्यान रख पाते हैं। दुनिया में ऐसे लोगों का भी अकाल नहीं है जो ‘खाकर’ ही नहीं ‘धोकर’ भी हाथ नहीं धोते हैं-गंदे कहीं के। ब्रिटेन में हुई एक रिसर्च का निर्णय है कि कोरोना के संक्रमण का खतरा 90 प्रतिशत तक घटाने के लिए सभी को दिन में कम से कम 6 बार हाथ धोने चाहिएं और मास्क को मास्क की तरह ही लगाना चाहिए। कुछ लोग हैं जो मास्क को फ्रेंच कट दाढ़ी की तरह इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग मुंह को कवर कर नाक को खुला छोड़कर कोरोना वायरस को निमंत्रण देते हैं।

कोरोना काल में जब से चाट-पकौड़ी की दुकानें खुल गईं, तमाम साफ-सुथरी मातायें-बहनें, बेटियां गोलगप्पे खाने को टूट पड़ीं। फुल्लू जी ने एक जानकार महिला से पूछा-‘भाभी जी, आप गोलगप्पे खाकर आई हैं, आपको डर नहीं लगा कि कहीं आपको कोरोना न लपक ले।' भाभी जी का उत्तर सुनकर फुल्लू जी अचेत होते-होते बचे। भाभी जी ने कहा-‘गोलगप्पे के पानी में हाथ धोकर ही तो ‘भैया’ गोलगप्पे खिला रहा था। वह बार-बार हाथ धो रहा था तो डर कैसा?' है कोई इलाज ऐसी ‘विद्वान’ भाभियों का?

गंदे हाथों से सबसे ज्यादा बीमारियां बच्चों में फैलती हैं, उनमें डायरिया और निमोनिया सबसे ज्यादा कॉमन हैं। हाथों को साफ न रखने वाले लोगों की वजह से दुनिया भर के देशों को 19 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष अतिरिक्त खर्च करने पड़ते हैं-यह विश्व बैंक की रिपोर्ट है। इस हिसाब से हाथ न धोने वालों की वजह से तमाम विकास कार्यों पर विपरीत असर पड़ता है। मेरे विचार से हाथ धोने में कोताही बरतने वालों पर बकायदा दंड का प्रावधान होना चाहिए।

ग्लोबल हैंडवाशिंग डे की नींव अगस्त 2008 में स्वीडन में स्टॉकहोम में वर्ल्ड वाटर वीक के दौरान पड़ी थी। पहली बार यह दिन 15 अक्टूबर 2008 को मनाया गया। पहली बार यह दिवस स्कूली बच्चों के बीच मनाया गया था। इस दिन को मनाने का उद्देश्य बहुत अच्छा है लेकिन इसके लिए उन लोगों को जगाना होगा जो सो नहीें रहे हैं लेकिन आंखें मूंदकर पड़े हैं। अफसोस की बात है कि लोग अपनी भलाई के लिए हाथ धोने तक को तैयार नहीं होते हैं। दिन में 6 बार हाथ धोना यानी निरोग रहना और लंबा जीना।

अमरीकी न्यूज चैनल फॉक्स न्यूज के एक एंकर पीट हेगसेथ ने 2019 में कहा था-'मुझे याद नहीं पड़ता कि पिछले दस सालों में मैंने कभी अपने हाथ धोए।’ हेगसेथ के इस बयान पर खूब चिकचिक हुई थी। हेगसेथ को छोड़ो 2015 में अमरीकी अभिनेत्री जेनिफर लॉरेंस ने यह कहकर सनसनी फैला दी थी कि वो बाथरूम जाने के बाद कभी भी अपने हाथ नहीं धोती हैं।

सन् 2015 में ही एक विचित्र किन्तु सत्य सर्वे के मुताबिक दुनिया में करीब 26.2 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो मल त्याग के बाद साबुन से हाथ नहीं धोते हैं। छी कैसे गंदे लोग हैं। शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि शौच के बाद भी हाथ न धोना एक आम आदत है। हम हाथ न धोने वालों को बुरा भला कह सकते हैं, नाक-भौं सिकोड़ सकते हैं लेकिन यह सब करने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि दुनिया की एक बड़ी आबादी के पास हाथ धोने की बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं-जैसे कि साबुन और पानी। दुनिया के सबसे कम विकसित देशों में केवल 29 प्रतिशत लोगों को ही ये सुविधाएं सुलभ है, वो भी सहज नहीं।

डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ के अनुमान के अनुसार दुनिया भर में करीब 300 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनके पास हाथ धोने के लिए साबुन और पानी ही नहीं है। बेशक लोग बार-बार हाथ धोने के प्रति इतने अधिक सजग न हों लेकिन ‘बहती गंगा में हाथ धोने’ के लिए लोग एक दूसरे को धकिया कर आगे आने को भयंकर रूप से उतावले रहते हैं। हाथ सफाई के प्रति इसलिए जागरूक रहना जरूरी है क्योंकि इस पर जिंदगियां निर्भर हैं। तो हाथ धोते रहने का संकल्प लें और स्वस्थ रहें।

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काम करते वक्त ब्रेक लेना है जरुरी

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 01:32 PM
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आफिस या वर्क लाइफ से संबंधित ऐसे बहुत से कारण है जो हमको जिनसे हम शारिरिक, भावात्मक और मानसिक (MENTALLY) रुप से प्रभावित हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर ओवरटाइम करना, काम का तनाव (STRESS), कम सैलरी और फिजिकल एक्टिविटी ना करने से शरीर अस्वस्थ्य होने लगता है जो हमारे लिए काफी खतरनाक है।

काम के लिए ना कभी न कहें

किसी भी आफिस में काम करते वक्त आप प्रेशर (PRESSURE) महसूस कर सकते हैं। कभी कभी ऐसा होता है कि वर्किंग आवर्स पता नहीं लग रहा है। ऐसे में आप सीमांए निर्धारित करने का पूरा प्रयास करें और अधिक काम करने के लिए हाँ भी कहने की आदत डालें

काम के बीच में लें ब्रेक

काम के बीच में ब्रेक लेना काफी जरुरी होता है। लेकिन अकसर ऐसा भी होता है कि बहुत से ज्यादा काम होने के कारण ब्रेक लेना अकसर भूल जाते हैं। काम कितना भी ज्यादा क्यों ना हो लेकिन आप समय निकालकर 5 से 10 मिनट का ब्रेक जरुर लिया करें। इसके लिए आप बाहर भी वाॅक करने जा सकते हैं या फिर थोड़ा टहल (WALK) सकते हैं। अपनी बाॅडी (BODY) को सक्रिय रखने का पूरा प्रय़ास करें जिससे आपका शारिरिक और स्वास्थ्य एकदम ठीक रहेगा।

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त्योहारों पर रहें सावधान, कोरोना की है आप पर नजर

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 09:16 PM
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नोएडा। कोरोना के कहर से लोग अभी पूरी तरह उबर नहीं पाए हैं। कोरोना के दंश से भारत के लाखों लोगों ने जहां अपनों को खोया वहीं बड़ी संख्या में आज भी लोग इसकी गिरफ्त से बाहर निकल नहीं पाए हैं। सरकार की मानें तो भारत में इस समय कोरोना की रफ्तार पर लगभग नियंत्रण पा लिया गया है। भारत में कोरोना संक्रमितों की लगातार तेजी से घटती संख्या के चलते ही केंद्र के साथ राज्य सरकारें भी स्थिति को देखते हुए कोरोना नियमों में ढील दे रही हैं। लेकिन हमारी बेफ्रिक्री और लापरवाही एक बार फिर हमें वहीं लाकर न खड़ा कर दे जिससे बचने के लिए इतने दिनों में हमने न जाने कितने लोगों को खोया न जाने क्या-क्या देखा और क्या-क्या सहा। ज्ञात हो कि केरल में ओणम, महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी और दिल्ली-उत्तर प्रदेश में ईद व रक्षा बंधन के बाद कोरोना के मरीजों में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। दुर्गा पूजा के साथ ही देश में त्योहारी मास शुरू हो चुका है ऐसे में हमारी जरा सी लापरवाही बड़े खतरे को आमंत्रण दे सकती है।

गुप्ता हॉस्पिटल एंड मैटरनिटी सेंटर के डायरेक्टर डॉ. सतीश गुप्ता ने बताया कि कोरोना का खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है बल्कि उसकी निगाहें भीड़भाड़ वाली जगहों और हमारी-आपकी लापरवाही पर टिकी हैं। हमारी जरा सी चूक कोरोना की तीसरी लहर का कारण बन सकती है। उन्होंने कहा कि कोरोना अभी भी हमारे आसपास मौजूद है। खुद को जिंदा रखने और संख्या बढ़ाने के लिए उसे नई जीवित कोशिकाओं की जरूरत है और बस वह इसी फिराक में है कि हमसे चूक हो और वह हम पर हावी हो जाए लिहाजा हमें हरहाल में बेफ्रिक्री और लापरवाही से बचना होगा।

डॉ. सतीश गुप्ता ने बताया कि कोरोना संक्रमण संक्रमित व्यक्ति की छींक, खांसी या बोलने से निकले ड्रापलेट्स से किसी अन्य व्यक्ति तक पहुंचता है। दो गज की दूरी तक यदि उसे कोई स्वस्थ्य जीवित कोशिका नहीं मिलती तो जमीन पर गिरकर वह स्वयं ही नष्ट हो जाता है। लेकिन त्योहारों के समय हम इस खतरे को नजरअंदाज करते हुए दो गज की दूरी भूल जाते हैं और बिना मास्क लगाए एक-दूसरे से बात करना शुरू कर देते हैं और यही लापरवाही हमारे लिए भारी पड़ सकती है। डॉ. गुप्ता के अनुसार घटता तापमान कोरोना संक्रमण के लिए अनुकूल समय होता है ऐसे में हमें ज्यादा सावधान रहने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि गर्मी की अपेक्षा कम तापमान में कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ता और फलता-फूलता है। उन्होंने बताया कि मास्क पहनने में लोग अभी भी लापरवाही बरत रहे हैं यह उनके और आने वाले कल के लिए सही नहीं है। उन्होंने बताया कि लोग मास्क लगाने में शायद शर्म महसूस करते हैं, जोर-जबरजस्ती और शासन-प्रशासन के डर के कारण अगर वह मास्क लगाते भी हैं तो वह भी आधे मुंह के नीचे से पहनकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं। लेकिन उनका ऐसा करना समाज के लिए बेहद खतरनाक है। उन्होंने बताया कि मास्क कोरोना सहित तमाम और तरह के संक्रमण से हमारी रक्षा करता है इसलिए लोग इसके महत्व को समझें और इसे बताए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार ही पहनें।

डॉ. गुप्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि बीमार और बुजुर्गों को यह संक्रमण आसानी से अपनी चपेट में ले लेता है क्योंकि ऐसे लोगों में रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इसलिए बेहतर होगा कि ऐसे लोगों को एक अलग कमरे में रखा जाए उनके खान पान का उचित ध्यान रखा जाए तथा उन्हें बच्चों से दूर ही रखा जाए तो बेहतर होगा। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि वैक्सीन ही कोरोना से बचने का एक मात्र विकल्प है इसे लगवाने में किसी भी तरह की लापरवाही न बरतें। वैसे भी हमारे देश में कई कंपनियों की वैक्सीन उपलब्ध हैं चाहे वह कोविशील्ड हो को-वैक्सीन हो या स्पुतनिक की जो भी वैक्सीन आपके आसपास उपलब्ध हो आप उसे समय पर जरूर लगवाएं। उन्होंने बताया कि कोरोना हमारी एंडीबॉडी पर अटैक करता है और वैक्सीन खोई हुई एंटीबॉडी को फिर से बढ़ाता है। इसलिए आप ये समझ लीजिए कि वैक्सीन हमारे लिए रामबाण है।